Assam Jatiya Bidyalay Class 6 Hindi Chapter 4 सच्चा चेला

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सच्चा चेला

Chapter – 4

অসম জাতীয় বিদ্যালয়

পাঠভিত্তিক ক্রিয়াকলাপৰ প্রশ্নোত্তৰ


প্রস্তুত পাঠটিত বৈষ্ণৱ ধৰ্মৰ অনন্য সাধক মথুৰাদাস বুঢ়া আতাৰ অপাৰ গুৰুভক্তিৰ চৰ্চা কৰা হৈছে। গুৰুৰ প্ৰতি অটুট নিষ্ঠা আৰু ভক্তিৰে তেওঁ শেষত মাধৱদেৱৰ দৰে মহান পুৰুষ আৰু পণ্ডিতৰ প্রিয় শিষ্য হ’ব পাৰিছিল।

মথুৰাদাস বুঢ়া আতা মাধৱদেৱৰ প্ৰধান শিষ্যসকলৰ মাজৰ এজন আছিল। তেওঁ বৰ পৰিশ্রমী, সৎ বৈষ্ণৱ, আৰু প্ৰখৰ বুদ্ধিযুক্ত আছিল। মথুৰাদাস পোনতে চৈতন্যপন্থী আছিল। তেওঁৰ গুৰুৰ নাম আছিল হৰিদেৱ মিশ্র।

এদিনাখনৰ কথা। মথুৰাদাসে নিজৰ গুৰৰ ওচৰত জানিবলৈ ইচ্ছা প্রকাশ কৰিলে—“গুৰুদেৱ, শুৰু হ’বৰ বাবে উপযুক্ত গুণসমূহৰ লক্ষণ কওকচোন।” তাত বহুতো শিষ্য আছিল। ইফালে এই প্রশ্নৰ উত্তৰ দিয়াটো তেওঁৰ বাবে সহজ নাছিল। এইবাবে তেওঁ নিজৰ দুৰ্বলতা নুলুকুৱাই ক’লে—“বোপা! যোৱা, তুমি মাধৱদেৱৰ ওচৰলৈ। তাত তুমি তত্ত্বজ্ঞান পাবা, তোমাৰ আশা পূৰ হ’ব।” 

জ্ঞানৰ ভোকাতুৰজন কিয় বহি থাকিব? তেওঁ গুৰুক প্রণাম কৰি আৰু তেওঁৰ পৰা আশীৰ্বাদ লৈ মুঠ ওঠৰজন ভক্তৰে সৈতে মাধৱদেৱৰ ওচৰত উপস্থিত হ’ল। 

সুন্দৰীদিয়া নামৰ ঠাইত মহাপুৰুষ মাধৱদেৱ আছিল। মথুৰাদাসৰে সৈতে ওঠৰজন ভকতক দেখি মাধৱদেৱ আচৰিত হ’ল। তেওঁ বুজি পালে যে তেওঁলোক শিষা হ’বলৈ আহিছে। মাধৱদেৱে তেওঁলোকক গুৰু হোৱাৰ উপযুক্ত গুণ বিলাকৰ বিষয়ে বৰ ভাল ধৰণে বুজালে। মাধৱদেৱৰ পাণ্ডিত্যত মথুৰাদাস মোহিত হ’ল। তেওঁ মাধৱদেৱৰ শিষ্য হোৱাৰ ইচ্ছা প্ৰকাশ কৰিলে। কিন্তু পৰীক্ষা নোলোৱাকৈ মাধৱদেৱে কাকো শিষ্য কৰিবলৈ ইচ্ছা নকৰিলে।

মাধৱদেৱে ক’লে- “যদি আপোনালোকে মোৰ পৰা দীক্ষা ল’ব বিচাৰিছে তেস্তে পুৰণি গুৰুৰ নাম মাটিত লিখি নিজৰ ভৰিৰে মচি পেলাব লাগিব।” আদেশ পোৱাৰ লগে লগে মথুৰাদাসক বাদ দি বাকী ওঠৰজন ভক্তই মাধৱদেৱৰ কথামতে তাকেই কৰিলে। কিন্তু মথুৰাদাসে হাতযোৰ কৰি থিয় হ’ল। তেওঁ ক’বলৈ ধৰিলে “দেৱ, মোক ক্ষমা কৰিব। মই নিজৰ গুৰুক ৰিদ্ধাৰ কৰিব নোৱাৰিম। যি গুরু পৰা অপাৰ জ্ঞান পাইছোঁ, যাৰ কাৰণে মই আজি আপোনাৰ কাষত থিয় হৈছে সেই গুৰুৰ অপমান মই কেনেকৈ কৰোঁ? মোক দীক্ষাই নালাগে, আজ্ঞা দিয়ক, মই তালৈকে গুচি যাম।”

মাধৱদেৱ প্রসন্নিত হ’ল। প্রকৃত শিষ্যই তেওঁক পালে। বাকী ওঠবজন শিষ্যই নিৰাশ হৈ উভতি যাব লগাত পৰিল।

সেইজন মথুৰাদাস পিছলৈ গৈ প্ৰসিদ্ধ বৈষ্ণৱ ভক্ত হ’ল। বৰপেটা সত্ৰৰ প্ৰধান হৈ জনতাৰ মাজত আদর্শবাদী পুৰুষ ৰূপে সিদ্ধ হ’ল। 

সঁচাকৈয়ে যিজনে নিজৰ গুৰুৰ প্ৰতি অচল ভক্তি ৰাখি কৰ্তব্য পথত অটল হৈ ৰয় তেৱেঁই পিছলৈ মহান হ’ব পাৰে।

शब्द (শব্দ)अर्थ (অৰ্থ)
पोंछ डालनामिटानाমচি পোলোৱা
अचलस्थिरস্থিৰ, অটল
मार्गराह, पथৰাস্তা, পথ
मोहितआकृष्टমোহিত
चेलाशिष्यশিষ্য
आशीषआशीर्वादআশীর্বাদ
मौजूदउपस्थितউপস্থিত
आसआशाআশা

पशन- अभस (প্রশ্ন অভ্যাস)

प्रशन : 1. पूर्ण वाक्य में उतर लिखो : (পূর্ণ বাক্যত উত্তৰ দিয়া) 

(i) मथुरादास बुढ़ा आता के गुरु कौन थे ? 

उत्तर : मथुरादास बुढ़ा आता के गुरु हरिदेव मित्र थे।

(ii) कितने भक्तों को साथ लेकर वे माधवदेव के पास पहुँचे ? 

उत्तर : कुल अठारह भक्तों को साथ लेकर वे माधवदेव के पास पहुंचे। 

(iii) माधवदेव के गुरु कौन थे ? 

उत्तर : माधवदेव के गुरु श्रीशंकरदेव थे। 

(iv) उन दिनों माधवदेव कहाँ रहते थे ? 

उत्तर : उन दिनों माधवदेव सुन्दरीदिया नामक स्थान में रहते थे। 

प्रश्न : 2. मथुरादास बुढ़ा आता के बारे में कम से कम पाँच वाक्य लिखो।(মথুৰাদাস বুঢ়া আতাৰ বিষয়ে কমেও পাঁচ শাৰী লিখা)

उत्तर : मथुरादास बुढ़ा आता बैष्णव पंडित थे। वे बरपेटा सत्र के सत्राधिकार थे। वे ज्ञान के पूजारी थे। उनके गुरु का नाम था हरिदेव मिश्र एकदिन गुरु को गुरु बनाने का आवश्यकीय गुण के बारे में पूछा। लेकिन हरिदेव मिश्र ने उन्हें श्रीमधावदेव के पास जाने को कहा।

वे मथुरादास के पास चले गये। जब माधवदेव से मिली तो उनके पाण्डित्यों पर मोहित हो गए। माधवदेव के परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उनका सच्चा चेला बन गया और आगे चल कर वैष्णव व्यक्ति बने।

प्रश्न : 3. ‘सच्चा चेला उनको मिल गया।’ किसे कैसे सच्चा चेला मिल गया था ? (“প্রকৃত শিষ্য তেওঁ পালে।” কোনে কেনেকৈ আচল শিষ্য পালে ?) 

उत्तर : माधवदेव ने मथुरादास और उठारह शिष्यों को कहा कि दीक्षा लेने के लिए पहले गुरु का नाम जमीन पर लिखकर पैरों से पोंछना पड़ेगा। मथुरादास को छोड़कर बाकी अठारह वही कर डाला किन्तु मथुरादास ने ऐसे करने से आपत्ति की। क्योंकि गुरु की बल पर ही उन्हें माधवदेव से भेंट हुई। ऐसे गुरु की अपमान करने से दीक्षा न लेना ही बेहतर होगा। एैसी बाणी पर माधवदेव के चेहरे पर मुस्कान आ गया। माधवदेव को सच्चा चेला मिल गया।

प्रश्न : 4. मथुरादास की जगह तुम होते तो क्या करते ? (মথুৰাদাসৰ ঠাইज তুমি হোৱা হ’লে কি কৰিলাহেঁতেন ? লিখি গুৰুৰ মহিমা জানিবলৈ চেষ্টা কৰা) 

उत्तर : मथुरदास की जगह मैं होता तो गुरु की मर्यादा हानि करनेवाला काम नहीं करता।

प्रश्न : 5. बाकी अठारह भक्त वापस चले गये थे। अगर माधवदेव की जगह तुम होते तो तुम क्या करते ? क्या उन्हें जाने देते सोचो ৷ 

(বাকী উঠৰজন ভক্তই ঘুৰি যাবলগীয়াত পৰিল। যদি মাধৱদেৱৰ ঠাইত তুমি হ’লাহেঁতেন কি কৰিলাহেঁতেন। তুমি তেওঁলোকক যাব দিলাহেঁতেন নে ? ভাবা।)

उत्तर : माधवदेव की जगह मैं होता तो पहले उन लोगों को समझाता कि गुरु का अपमान करनेवेला कोई काम हमें करना नहीं चाहिए। सही और गलत समझाकर उन लोगों को अपने सिद्धान्त के अनुसार चलने को कहता।

प्रश्न : 6. सजाकर लिखो : (সজাই লিখা) 

(i) मिश्र हरिदेव था नाम उनके गुरुदेव।

उत्तर : उनके गुरुदेव का नाम हरिदेव मिश्र था।

(ii) पाकर आज्ञा गुरु प्रणाम की किया। 

उत्तर : गुरु की आज्ञा पाकर प्रणाम की।

(iii) गुरु का तिरस्कार नहीं कर मैं अपने पाऊगाँ। 

उत्तर : मैं अपने गुरु का तिरस्कार नहीं कर पाऊगाँ। 

प्रश्न : 7. दो या तीन वाक्यों में उत्तर लिखो :

(i) मथुरादास बुढ़ा आता ने अपने गुरुदेव से कौन-सा सवाल किया था ? गुरु से उनको क्या उत्तर मिला ? 

उत्तर : मथुरादास बुढ़ा आता ने अपने गुरुदेव से सवाल पूछा- “गुरुदेव, गुरु बनने के लायक गुणों के लक्षण बताइये।”

गुरु से उनको उत्तर मिला- “बापु! जाओ तुम सद्गुरु माधव के पास मिलेगा तत्वज्ञान, पूरी होगी तुम्हारी आस।” 

(ii) मथुरादास ने माधवदेव से दीक्षा लेने से क्यों इनकार किया ?

उत्तर : मथुरादास ने माधवदेव से दीक्षा लेने से इनकार किया क्योंकि अपने गुरु का नाम जमीन पर लिखकर अपने पैरों से पोंछेने को कहा था। मथुरादास गुरु का तिरस्कार सह न सका।

(iii) आगे चलकर मथुरादास क्या बन ? 

उत्तर : आगे चलकर मथुरादास प्रसिद्ध वैष्णव भक्त बने। बरपेटा सत्र के प्रधान बनकर जनता के बीच आदर्शवादी पुरुष सिद्ध हुए। 

प्रशन : 8. खली जगों की पर्त करो : (খালি ঠাই পূৰণ কৰা)

(i) मथुरादास पहले __पंथी थे। 

उतर : मथुरादास पहले चैतन्यपंथी पंथी थे। 

(ii) उनले गुरुदेव क नम था ___I

उतर : उनले गुरुदेव क नम था होरीदेव मिश्र l

(iii) सच्चा चेला __मिल गया। 

उतर : सच्चा चेला उनको मिल गया। 

(iv) मथुरादास आगे चलकर प्रसिद्ध __भक्त बने।

उतर : मथुरादास आगे चलकर प्रसिद्ध वेप्षव भक्त बने l

(v) बहुत से शिष्य उस दिन __थे ।

उतर : बहुत से शिष्य उस दिन मैजूद थे ।

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