NCERT Class 11 Sociology Samaj Shastra Parichay Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

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Chapter: 1

समाजशास्त्र परिचय
अभ्यास

1. समाजशास्त्र के उद्गम और विकास का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?

उत्तर: समाजशास्त्र का उद्गम एवं विकास पश्चिमी यूरोप की सामाजिक परिस्थितियों की देन है। औद्योगिक क्रांति, फ्रांस की क्रांति तथा ज्ञानोदय की इसके विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके परिणामस्वरूप न केवल पश्चिमी समाजों में एक नवीन आर्थिक क्रियाकलाप की पद्धति (जिसे पूँजीवाद कहा जाता है) विकसित हुई अपितु इनसे इन देशों की सामाजिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। गाँव से शहरों की ओर प्रवर्जन, सामाजिक गतिशीलता, शिक्षा एवं रोजगार में वृद्धि, लौकिक दृष्टिकोण के विकास के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याएँ भी विकसित होने लगीं। समकालीन विश्व में, एक प्रकार से देखा जाए तो हम एक से ज्यादा ‘समाजों’ से जुड़े हुए हैं। जब हम विदेशियों के बीच ‘हमारे समाज’ की बात करते है तो हमारा मतलब ‘भारतीय समाज’ से हो सकता है लेकिन भारतीयों के बीच ‘हमारे समाज’ को भाषा, समुदाय, धर्म या जाति अथवा जनजाति के संदर्भ में भी लिया जा सकता है। समाजशास्त्र के उद्गम और विकास के अध्ययन का महत्त्व समाजशास्त्र के उद्गम और विकास के अध्ययन के महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता है–

(i) पारिभाषिक महत्त्व: समाजशास्त्र के अध्ययन से समाजशास्त्र के पारिभाषिक शब्दों, अध्ययन विषयों और धारणाओं का ठीक-ठीक परिचय प्राप्त हो जाता है। इन शब्दों का वैज्ञानिक अध्ययन समाज के स्वरूप को समझने में सहायक होता है।

(ii) समाज का वैज्ञानिक ज्ञान: समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा समाज के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त होता है। समाजशास्त्र के अंतर्गत समाज संबंधी सभी बातों का अध्ययन किया जाता है।

(iii) सामाजिक जीवन की समस्याओं का ज्ञान: समाजशास्त्र हमें सामाजिक जीवन की सामान्य समस्याओं की जानकारी प्रदान करता है। समाज की विभिन्न समस्याओं; जैसे-अपराध, किशोर अपराध, श्वेतवसन अपराध, जनसंख्या की समस्या, निर्धनता और बेकारी आदि का ज्ञान तथा इनके प्रचलन के कारणों का पता हमें समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा ही होता है।

(iv) पारिवारिक जीवन को सफल बनाने में सहायक: व्यक्ति और परिवार का अटूट संबंध है। व्यक्ति परिवार में जन्म लेता है और उसका लालन-पालन भी परिवार में ही होता है। इस प्रकार वह परिवार के अन्य सदस्यों से अनेक प्रकार से संबंधित होता है।

(v) अंतर्राष्ट्रीय जीवन को सुखद बनाने में सहायक: समाजशास्त्र के अध्ययन से केवल अपने समाज का ही ज्ञान नहीं होता वरन् विश्व समाज को भी ज्ञान प्राप्त होता है। समाजशास्त्र विश्व के विभिन्न भागों में निवास करने वाले व्यक्तियों की जीवन-शैली और रहन-सहन के ढंगों को भी ज्ञान प्रदान करता है।

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2. ‘समाज’ शब्द के विभिन्न पक्षों की चर्चा कीजिए। यह आपके सामान्य बौद्धिक ज्ञान की समझ से किस प्रकार अलग है?

उत्तर: सामान्य रूप से ‘समाज’ शब्द से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। ऐसा कहा जाता है कि जहाँ जीवन है वहीं समाज भी है। अगर हम समाज शब्द के अर्थ अपने अथवा किसी सामान्य आदमी के सामान्य बौद्धिक ज्ञान के अनुसार देखें तो सामान्य व्यक्ति यह कहते हैं कि समाज वह समूह है जो कुछ व्यक्तियों को मिलाकर बनाया गया है अर्थात व्यक्तियों के एकत्र अथवा समूह को समाज कहते हैं। ‘समाज’ एक अत्यधिक प्रचलित शब्द है जिसको साधारण बोलचाल की भाषा में व्यक्तियों के समूह के लिए प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए–‘आर्य समाज’, ब्रह्म समाज’, ‘धर्म समाज’, ‘विद्यार्थी समाज’ तथा ‘बाल समाज’, आदि शब्दों का प्रयोग व्यक्ति इसी अर्थ में करते हैं। कुछ लोग ‘समाज’ शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के समूह के रूप में अथवा एक समिति या संस्था के रूप में भी करते हैं। इसी कारण समाज के अर्थ के संबंध में काफी अनिश्चितता पायी जाती है। समाजशास्त्र में समाज’ शब्द का प्रयोग जनसाधारण द्वारा लगाए गए इन अर्थों में नहीं होता, वरन् यह एक विशिष्ट अर्थ को प्रतिपादित करता है। समाजशास्त्र एक विज्ञान है तथा विज्ञान होने के नाते इसकी अपनी एक शब्दावली है। वैज्ञानिक शब्दावली में प्रत्येक शब्द को विशिष्ट अर्थ में प्रयोग किया जाता है। ‘समाज’ भी इसी प्रकार का एक शब्द (संकल्पना या अवधारणा) है, जिसका संबंध समाजशास्त्र की शब्दावली से है। इस नाते न केवल इसका स्पष्ट अर्थ है, अपितु इसके विभिन्न पक्षों के बारे में भी किसी प्रकार का संदेह नहीं है।

समाज के क्रमबद्ध ज्ञान एवं सामान्य बौद्धिक ज्ञान में अंतर: हम देख चुके हैं कि किस तरह समाजशास्त्रीय ज्ञान ईश्वरमीमांसीय और दार्शनिक प्रेक्षणों से अलग है। इसी प्रकार समाजशास्त्र सामान्य बौद्धिक प्रेक्षणों से अलग है। सामान्य बौद्धिक वर्णन सामान्यतः उन पर आधारित होते हैं जिन्हें हम प्रकृतिवादी और/या व्यक्तिवादी वर्णन कह सकते हैं। व्यवहार का एक प्रकृतिवादी वर्णन इस मान्यता पर निर्भर करता है कि एक व्यक्ति व्यवहार के ‘प्राकृतिक’ कारणों की पहचान कर सकता है। समाजशास्त्र में समाज का क्रमबद्ध (विधिवत्) अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन एक विशिष्ट दृष्टिकोण या चिंतन द्वारा किया जाता है, जिसे समाजशास्त्रीय चिंतन कहते हैं। यह चिंतन सामान्य बौद्धिक ज्ञान से भिन्न होता है। सामान्य बौद्धिक ज्ञाने में दार्शनिक एवं धार्मिक अनुचिंतन सम्मिलित किया जाता है।

3. चर्चा कीजिए कि आजकल अलग-अलग विषयों में परस्पर लेन-देन कितना ज़्यादा है।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

4. अपनी या अपने दोस्त अथवा रिश्तेदार की किसी व्यक्तिगत समस्या को चिह्नित कीजिए। इसे समाजशास्त्रीय समझ द्वारा जानने की कोशिश कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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