NCERT Class 11 Political Science Chapter 14 सामाजिक न्याय

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NCERT Class 11 Political Science Chapter 14 सामाजिक न्याय

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Chapter: 14

राजनीतिक सिद्धांत
प्रश्नावली

1. हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला?

उत्तर: हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ है कि जो व्यक्ति जिसका अधिकारी है, उसे वह देना ही न्याय है। इसमें समाज की भलाई सुनिश्चित करने के लिए हर व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा प्रदान करना शामिल है।

समय के साथ, “हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देना” की परिभाषा भी बदलती रही है। प्राचीन काल में इसका अर्थ था कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई गलत कार्य किया है तो उसे दंड दिया जाए, और यदि उसने कोई अच्छा कार्य किया है तो उसे पुरस्कार प्रदान किया जाए।

आधुनिक संदर्भ में, जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार, हर व्यक्ति की अपनी गरिमा होती है। जब प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा को स्वीकार किया जाता है, तो इसका अर्थ यह होता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास और अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए समान अवसर दिए जाएं। न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों को समान और उचित महत्व प्रदान किया जाए।

2. अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांतों की संक्षेप में चर्चा करो। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइये।

उत्तर: अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांतों है–

(i) समान लोगों के प्रति समान व्यवहार: आधुनिक समाज में तमाम लोगों को समान महत्त्व देने के बारे में आम सहमति है, लेकिन यह निर्णय करना आसान नहीं कि हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाए। इस समकक्षों के साथ समान बरताव का सिद्धांत यह कहता है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और समान अवसर मिलना चाहिए, क्योंकि मनुष्य होने के नाते सभी में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, लोगों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वह जाति, नस्ल, वर्ग या लिंग के आधार पर हो। उदाहरण स्वरूप, यदि दो व्यक्ति समान कार्य करते हैं, तो उन्हें समान वेतन मिलना चाहिए, चाहे वे किसी भी जाति या लिंग से संबंधित हों। यह सिद्धांत समानता, न्याय और निष्पक्षता की ओर अग्रसर होने की कोशिश करता है।

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(ii) समानुपातिक न्याय: समान व्यवहार न्याय का एकमात्र सिद्धान्त नहीं है। समान बरताव न्याय का एकमात्र सिद्धांत नहीं है, क्योंकि कुछ परिस्थितियों में समान बरताव अन्यायपूर्ण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, अगर सभी छात्रों को समान अंक दिए जाएं, तो यह उनके प्रयास और गुणवत्ता के आधार पर न्यायसंगत नहीं होगा। इसलिए, न्याय का मतलब यह हो सकता है कि लोगों को उनके प्रयास, अर्हता और काम के कठिनाई स्तर के आधार पर पुरस्कृत किया जाए। समान काम के लिए समान दाम का सिद्धांत सही है, लेकिन कुछ कामों के लिए अलग-अलग पारिश्रमिक तय करना न्यायपूर्ण हो सकता है, जैसे खनिकों या पुलिसकर्मियों के लिए, जिनके काम में अधिक खतरे और प्रयास होते हैं। समाज में न्याय के लिए समानुपातिकता के सिद्धांत के साथ समान बरताव के सिद्धांत का संतुलन जरूरी है।

(iii) मुख्य आवश्यकताओं का विशेष ध्यान: न्याय का तीसरा सिद्धान्त है-पारिश्रमिक या कर्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की मुख्य आवश्यकताओं का ध्यान रखने का सिद्धान्त। इसे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का एक तरीका माना जा सकता है। समाज के सदस्यों के रूप में लोगों की बुनियादी अवस्था और अधिकारों की दृष्टि से न्याय के लिए यह आवश्यक हो सकता है कि लोगों के साथ समान बरताव किया जाए, लेकिन लोगों के बीच भेदभाव न करना और उनके परिश्रम के अनुपात में उन्हें पारिश्रमिक देना भी यह सुनिश्चित करने के लिए शायद पर्याप्त न हो कि समाज में अपने जीवन के अन्य सन्दर्भों में भी लोग समानता का उपभोग करें या कि समाज समग्ररूप से न्यायपूर्ण हो जाए। लोगों की विशेष आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखने का सिद्धान्त समान व्यवहार के सिद्धान्त को अनिवार्यतया खण्डित नहीं, बल्कि उसका विस्तार ही करता है।

3. क्या विशेष ज़रूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरूद्ध है?

उत्तर: विशेष ज़रूरतों का सिद्धांत समानता को प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त समर्थन देने की बात करता है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी परिस्थिति के आधार पर समान अवसर मिल सकें। लेकिन इस पर सहमत होना सरल नहीं होता कि लोगों को विशेष सहायता देने के लिए उनकी किन असमानताओं को मान्यता दी जाए। शारीरिक विकलांगता, उम्र या अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच न होना कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्हें विभिन्न देशों में बरताव का आधार समझा जाता है। यह माना जाता है कि जीवनयापन और अवसरों के बहुत उच्च स्तर के उपभोक्ता और उत्पादक जीवन जीने के लिए आवश्यक न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित लोगों से हर मामले में एक समान बरताव करेंगे उनके ऐसा करने पर यह आवश्यक नहीं है कि परिणाम समतावादी और न्यायपूर्ण समाज होगा बल्कि एक असमान समाज भी हो सकता है।

4. निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में ‘अज्ञानता के आवरण’ के विचार का उपयोग किस प्रकार किया।

उत्तर: रॉल्स तर्क प्रस्तुत करते हैं कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम स्वयं को ऐसी परिस्थितियों में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाए। रॉल्स के अनुसार, निष्पक्षता और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए, समाज के प्रत्येक सदस्य को अपनी स्थिति (जैसे जाति, लिंग, शारीरिक अवस्था, आर्थिक स्थिति) से अज्ञात रखना चाहिए। इस “अज्ञानता के आवरण” के तहत, जब हम समाज के लिए न्यायपूर्ण सिद्धांत तय करते हैं, तो हम अपनी व्यक्तिगत पहचान और परिस्थितियों को न जानते हुए उस सिद्धांत को अपनाते हैं। इसका मतलब यह है कि हम किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त होकर, समान और निष्पक्ष तरीके से समाज के सभी लोगों के हितों की रक्षा करने के बारे में सोचते हैं।

रॉल्स का यह विचार इस प्रकार न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत बनाता है, क्योंकि जब लोग अपनी स्थिति से अज्ञात होते हैं, तो वे ऐसा कोई भी सिद्धांत नहीं अपनाएंगे जो किसी विशेष समूह के खिलाफ हो। इसका परिणाम यह होता है कि सभी व्यक्तियों को समान अवसर मिलते हैं, और समाज में असमानताओं को तभी स्वीकार किया जाता है जब वे समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए लाभकारी हों। यह सिद्धांत न्याय की सच्ची परिभाषा के रूप में काम करता है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि वितरण निष्पक्ष और समावेशी हो। इसलिए रॉल्स तर्क प्रस्तुत करते हैं कि नैतिकता नहीं बल्कि विवेकशील चिन्तन हमें समाज में लाभ और भार के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने की ओर प्रेरित करती है। इस उदारहण में हमारे पास पहले से बना-बनाया कोई लक्ष्य या नैतिकता के प्रतिमान नहीं होते हैं। हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है, यह निर्धारित करने के लिए हम स्वतन्त्र होते हैं। यही विश्वास रॉल्स के सिद्धान्त को निष्पक्ष और न्याय के प्रश्न को हल करने को महत्त्वपूर्ण और सबल रास्ता तैयार कर देता है।

5. आम तौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी ज़रूरतें क्या मानी गई है? इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है?

उत्तर: विभिन्न सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की गणना के लिए विभिन्न तरीके इजाद किये हैं। लेकिन सामान्यतः इस पर सहमति है कि स्वस्थ रहने लोगों की बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी समझी जाती है। आजकल हमारे समाज में और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी यह बहस चल रही है कि क्या मुक्त बाज़ार के जरिए खुली प्रतियोगिता को बढ़ावा देना समाज के सुविधाप्राप्त सदस्यों को नुकसान पहुँचाए बगैर सुविधाहीनों की मदद करने का सर्वोत्तम तरीका होगा या कि गरीबों को न्यूनतम बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने की जिम्मेवारी सरकार को लेनी चाहिए। 

6. सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्यवाई को निम्न में से कौन-से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है?

(क) गरीब और ज़रूरतमदों को निशुल्क सेवाएँ देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।

(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।

(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।

(छ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।

उत्तर: (ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।

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