NCERT Class 11 Creative Writing and Translation Chapter 2 साहित्यिक लेखन

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NCERT Class 11 Creative Writing and Translation Chapter 2 साहित्यिक लेखन

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Chapter: 2

1.स्वयं को सब्जीवाले, माली या चौकीदार के रूप में रखकर देखिए। किसी एक के रूप में अपने को रखकर आत्मकथा लिखिए।

उत्तर: मेरा नाम रामलाल है और मैं एक माली हूँ। मेरी ज़िंदगी फूलों, पौधों और पेड़ों के बीच ही बीतती है। हर सुबह सूरज के निकलने से पहले मैं बग़ीचे में पहुँच जाता हूँ। मेरे हाथों में कुदाल, पानी की बाल्टी और दिल में हरियाली का सपना होता है। पौधों को प्यार से सहलाकर पानी देना, सूखी पत्तियाँ हटाना और समय-समय पर खाद डालना मेरा रोज़ का काम है। जब कोई कली खिलकर फूल बनती है, तो ऐसा लगता है जैसे मेरी मेहनत रंग लाई हो। मैं पेड़ों से बातें करता हूँ, उन्हें अपने बच्चों की तरह समझता हूँ। हर मौसम के साथ मेरी ज़िंदगी बदलती है—बसंत में बग़ीचा रंग-बिरंगा हो जाता है, तो बरसात में हरियाली और भी गहरी लगती है। लोग जब बग़ीचे में आकर बैठते हैं, फोटो खिंचवाते हैं या बच्चों को खेलते देखते हैं, तो मुझे बहुत संतोष होता है। मैं भले ही आम इंसान हूँ, पर मेरी मेहनत से यह बग़ीचा जन्नत जैसा लगता है। यही मेरा गर्व है, यही मेरी आत्मा की ख़ुशी है।

2. अपनी कल्पना से किसी पक्षी, कागज, या एक रुपये के सिक्के की आत्मकथा लिखिए।

उत्तर: एक रुपये के सिक्के की आत्मकथा –

मेरा नाम एक रुपया है — छोटा दिखता हूँ पर मेरी अहमियत बहुत बड़ी है। मैं टकसाल में बना और पहली बार जब किसी की जेब में गया, तो खुशी से झूम उठा। मेरे सफर की शुरुआत दुकान से हुई, फिर मैं किसी बच्चे की गुल्लक में गया, कभी मंदिर की थाली में चढ़ा, तो कभी किसी गरीब के हाथ में पहुँचा। कई बार लोगों ने मुझे नज़रअंदाज़ किया, तो कभी किसी के पास सिर्फ मैं ही उम्मीद की किरण बनकर रहा। मेरी चमक धीरे-धीरे कम होती गई, पर मेरी यादें और यात्राएं बढ़ती गईं। आज मैं थोड़ा पुराना हो गया हूँ, लोग मुझे छोटे समझकर भूलने लगे हैं, लेकिन मुझे आज भी गर्व है कि मैंने न जाने कितनों की मदद की, कितनी मुस्कानों का हिस्सा बना और देश की अर्थव्यवस्था का छोटा पर मजबूत स्तंभ बना रहा।

3. ‘पालतू पक्षी का उड़ती चिड़िया के नाम पत्र’ -‘अपनी कल्पना से लिखिए।

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उत्तर: प्रिय उड़ती चिड़िया के नाम पत्र,

नमस्कार!

मैं तुम्हें अपने छोटे से पिंजरे से लिख रहा हूँ। तुम्हें खुले आकाश में उड़ते देखता हूँ तो मन मचल उठता है। तुम्हारे पंखों की आज़ादी, बादलों के साथ खेलना और पेड़ों पर फुदकना—ये सब मेरे सपनों की दुनिया है।

मैं एक पालतू पक्षी हूँ। मेरे पास खाना है, पानी है, एक सुंदर पिंजरा भी है। पर जो नहीं है, वो है “आज़ादी”। मैं उड़ना चाहता हूँ जैसे तुम उड़ती हो, खुले नीले गगन में, बिना किसी बंधन के।

कभी-कभी सोचता हूँ—क्या इंसानों ने तुम्हें भी पिंजरे में डालने की कोशिश की होगी? क्या तुम भी कभी मेरी तरह पिंजरे में कैद रही थी?

अगर कभी तुम्हें समय मिले, तो मेरे पास आना, मेरे पिंजरे के पास। अपनी उड़ान की कहानी सुनाना और मुझे बताना कि आज़ादी का स्वाद कैसा होता है।

तुम्हारी उड़ान का सपना देखने वाला,

—पिंजरे का पंछी

4. अपने बचपन की किसी फ़ोटो / खिलौने / पुस्तक / पोशाक को देखते हुए आप अपने बीते हुए दिनों को किस रूप में याद करते हैं? लिखिए। 

उत्तर: जब मैं अपने बचपन की किसी फ़ोटो, खिलौने, पुस्तक या पोशाक को देखती हूँ, तो मेरे दिल में एक मीठी सी टीस उठती है। उन चीज़ों को देखते ही मेरा बचपन जैसे मेरी आँखों के सामने जीवंत हो उठता है। वह समय जब जीवन बहुत सरल था, चिंता-मुक्त और खुशियों से भरा हुआ।

पुरानी फ़ोटो में अपनी मासूम मुस्कान देखकर मैं सोचती हूँ कि कैसे छोटी-छोटी बातों में इतनी बड़ी खुशियाँ छुपी होती थीं। खेलना, हँसना, रोना और फिर पल भर में सब भूल जाना—यही तो था बचपन का असली स्वाद।

जब मैं अपने पुराने खिलौनों को देखती हूँ, तो ऐसा लगता है जैसे वे मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। हर दिन उनके साथ खेलने का उत्साह, उन्हें संभालकर रखने की कोशिश और कभी-कभी उन्हें लेकर रूठ जाना—इन सब में अनगिनत यादें छिपी हैं।

बचपन की किताबें आज भी मुझे मेरी माँ की गोद में वापस ले जाती हैं, जहाँ मैं कहानियाँ सुनते-सुनते कब नींद में खो जाती, पता ही नहीं चलता था। पापा की आवाज़ में कविताएँ सुनना और उन्हें दोहराने की कोशिश करना मेरे सबसे प्यारे पलों में से हैं।

और जब मैं अपनी कोई पुरानी पोशाक देखती हूँ, तो त्योहारों की खुशबू जैसे वापस आ जाती है। वह पोशाक पहनकर आईने के सामने घूमना, सबको दिखाना और तारीफ़ें पाना, वो पल आज भी मेरे दिल में बसे हुए हैं।सच कहूँ तो, ये सब चीज़ें सिर्फ वस्तुएँ नहीं हैं, ये मेरे बचपन की यादों की खिड़कियाँ हैं। इन्हें देखकर मैं फिर से उसी सुनहरे समय में लौट जाना चाहती हूँ, जहाँ हर दिन एक नई कहानी होती थी और हर शाम एक प्यारा सपना।

5. वर्तमान समय में होने वाली हिंसक घटनाएँ गांधी जी से कुछ कहने को विवश करती हैं। इसे ध्यान में रखते हुए गांधी जी को एक पत्र लिखिए।

उत्तर: आदरणीय गांधी जी,

सादर प्रणाम।

आज के समय में चारों ओर हिंसा, नफ़रत और असहिष्णुता फैली हुई है। हर दिन किसी न किसी रूप में लोग एक-दूसरे को दुख पहुँचा रहे हैं। ऐसे में आपकी अहिंसा और सत्य की सीख बहुत याद आती है।आपने हमें सिखाया था कि प्रेम और शांति से ही समाज को बदला जा सकता है। लेकिन आज लोग बात करने के बजाय लड़ने लगे हैं। आपकी बातें अब सिर्फ किताबों तक सीमित रह गई हैं, जबकि हमें उन्हें जीने की ज़रूरत है।

मैं वादा करता/करती हूँ कि मैं खुद से शुरुआत करूँगा/करूँगी और आपके रास्ते पर चलने की कोशिश करूँगा/करूँगी।

आपका श्रद्धापूर्वक,

(आपका नाम)

6. ‘सृजनात्मक लेखन तथा अनुवाद’ की कक्षा में पहले दिन के अपने अनुभवों को लिखिए।

उत्तर: ‘सृजनात्मक लेखन तथा अनुवाद’ की कक्षा में पहले दिन का अनुभव मेरे लिए बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक रहा। कक्षा की शुरुआत ही एक सकारात्मक माहौल के साथ हुई, जहाँ हमें लेखन को अभिव्यक्ति का माध्यम मानने की सीख दी गई। शिक्षक ने जब बताया कि हर व्यक्ति के भीतर कहने के लिए कुछ न कुछ होता है, तो मुझे पहली बार अपने विचारों को शब्दों में ढालने की अहमियत समझ आई। हमने छोटे-छोटे अभ्यास किए, जिसमें कल्पना, संवेदना और भाषा की भूमिका को महसूस किया। अनुवाद को केवल भाषा का परिवर्तन नहीं, बल्कि भावों और संस्कृति का पुल बताया गया, जो मुझे बहुत अच्छा लगा। इस पहले दिन ने मुझे यह एहसास दिलाया कि लेखन सिर्फ कला नहीं, बल्कि आत्म-अन्वेषण की एक यात्रा भी है।

7. सृजनात्मकता हमारे चारों तरफ बिखरी हुई है, लेकिन हम इसे अक्सर महसूस नहीं कर पाते। क्या आपने कभी इस पर विचार किया? कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर: हाँ, मैंने इस पर कई बार विचार किया है कि सृजनात्मकता वास्तव में हमारे चारों तरफ बिखरी हुई है, लेकिन हम उसे हमेशा पहचान नहीं पाते। एक बच्चा जब मिट्टी से कुछ बनाता है, कोई बुजुर्ग जब कहानी सुनाता है, या एक माँ जब स्वादिष्ट भोजन में नए स्वाद जोड़ती है—ये सब सृजनात्मकता के रूप हैं। हम अक्सर सोचते हैं कि सृजनात्मकता केवल कलाकारों या लेखकों में होती है, जबकि असल में यह हर इंसान के भीतर होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग उसे व्यक्त करते हैं और कुछ अनजाने में उसे नजर अंदाज कर देते हैं। अगर हम अपने आस-पास की छोटी-छोटी चीज़ों को ध्यान से देखें, तो पाएँगे कि हर जगह सृजन की छाप है—प्रकृति में, इंसानों के व्यवहार में और हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी। कक्षा में इस पर चर्चा करके हम एक-दूसरे की दृष्टि और अनुभवों से सृजनात्मकता को और बेहतर समझ सकते हैं।

8. अपने एक दिन के अनुभव डायरी में लिखें –

स्कूल में

परीक्षा से पहले

प्रिय मित्र से अनबन

उत्तर: डायरी लेखन

आज का दिन मेरे लिए थोड़ा कठिन रहा। सुबह स्कूल पहुँचा तो मन पहले से ही थोड़ा परेशान था, क्योंकि परीक्षा नज़दीक है और तैयारी पूरी नहीं हो पाई थी। कक्षा में पढ़ाई के दौरान ध्यान लगाने की कोशिश की, लेकिन मन बार-बार भटकता रहा। दिन और भी खराब तब हो गया जब मेरे प्रिय मित्र से किसी छोटी-सी बात पर अनबन हो गई। हमने एक-दूसरे से बहस कर ली और दोनों ही नाराज़ हो गए। दिल भारी हो गया, क्योंकि वही दोस्त परीक्षा के समय मेरा सबसे बड़ा सहारा होता है। अब रात को जब सब शांत है, तो सोच रहा हूँ कि गलती चाहे जिसकी भी हो, दोस्ती ज़्यादा ज़रूरी है। कल सुबह सबसे पहले उससे बात करूँगा और सब ठीक करने की कोशिश करूँगा। यही सोचकर अब मन थोड़ा हल्का लग रहा है।

9. कल्पना कीजिए कि किसी एक बैंक लॉकर दादी या नानी के बटुए / कैशियर के डिब्बे /रिक्शा चालक की जेब में विभिन्न प्रकार के रुपये और सिक्के बोल सकते, तो उनके बीच क्या संवाद होता? लिखिए।

उत्तर: अगर दादी के बटुए, कैशियर के डिब्बे या रिक्शा चालक की जेब में रखे रुपये और सिक्के बोल सकते, तो उनके बीच की बातचीत बहुत ही दिलचस्प होती। दादी के बटुए में पड़े पुराने नोट फुसफुसाते, “हमें तो अब केवल यादों की तरह संभालकर रखा जाता है।” पास ही रखा नया चमकदार सिक्का हँसते हुए कहता, “मैं तो हर दिन बाज़ार घूम आता हूँ, मुझे देखो कितनी सफाई और चमक है!” वहीं, कैशियर के डिब्बे में पड़े हज़ार और पाँच सौ के नोटों में थोड़ा घमंड होता। हज़ार का नोट कहता, “मैं सबसे बड़ा हूँ, मेरी गिनती अलग से होती है।” सौ का नोट मुस्कराकर जवाब देता, “पर मैं तो हर ग्राहक की ज़रूरत बन चुका हूँ, मेरे बिना तो काम ही नहीं चलता।”

रिक्शा चालक की जेब में पड़े दो और पाँच के सिक्के दिनभर की मेहनत से थके हुए लगते। वे कहते, “हम छोटे ज़रूर हैं, पर हमारी खनखनाहट में ईमानदारी और मेहनत की खुशबू है।” दस का नोट भावुक होकर बोलता, “हम जैसे पैसे हर रोज़ नई ज़िंदगी के हिस्सेदार बनते हैं, कहीं दूध लाते हैं, तो कहीं बच्चों की फीस भरते हैं।”

अगर ये रुपये और सिक्के बोल सकते, तो वे सिर्फ लेन-देन का जरिया नहीं, बल्कि इंसानों की कहानियों, संघर्षों और खुशियों के सच्चे साथी बन जाते।

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