NCERT Class 11 Creative Writing and Translation Chapter 1 सृजनात्मकता और लेखन

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NCERT Class 11 Creative Writing and Translation Chapter 1 सृजनात्मकता और लेखन

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Chapter: 1

1. दुनिया की छोटी से छोटी चीज की अहमियत पहचानना रचनात्मक अनुभव हो सकता है।

(i) अपने अनुभव से कोई दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: (i) सूखी पत्तियाँ और टहनियाँ: एक बार मैंने बगीचे से कुछ सूखी पत्तियाँ और टहनियाँ इकट्ठी कीं। शुरू में ये बेकार लगीं, लेकिन मैंने उनसे एक सुंदर दीवार सजावट (Wall Hanging) बनाई। यह न सिर्फ सुंदर दिखी, बल्कि लोगों ने इसकी सराहना भी की। इससे मुझे यह अनुभव हुआ कि छोटी और उपेक्षित चीज़ों में भी रचनात्मकता छिपी होती है।

(ii) पुराना कार्ड और रद्दी कागज़: मैंने एक बार जन्मदिन के पुराने कार्ड और रद्दी कागज़ से एक सुंदर ग्रीटिंग कार्ड बनाया था, जिसे मैंने अपने दोस्त को उपहार में दिया। उसने उस कार्ड को बहुत पसंद किया। इससे यह समझ आया कि छोटी और फेंकी जाने वाली चीज़ों से भी हम नया और सुंदर कुछ बना सकते हैं।

(ii) यह भी बताइए कि वह रचनात्मक क्यों है।

उत्तर: (i) सूखी पत्तियाँ और टहनियाँ से दीवार सजावट (Wall Hanging): रचनात्मक है क्योंकि यह प्राकृतिक और फेंक दी जाने वाली चीजों से एक सुंदर सजावटी वस्तु बनाना था। इससे न केवल सजावट हुई बल्कि पर्यावरण के अनुकूल (eco-friendly) चीज़ बनाई गई, जो कला और सोच का अच्छा उदाहरण है।

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(ii) पुराने कार्ड और रद्दी कागज़ से ग्रीटिंग कार्ड: यह रचनात्मक इसलिए है क्योंकि इसमें पुराने और अनुपयोगी कागज़ों का उपयोग कर एक नया और भावनात्मक तोहफा तैयार किया गया। इसमें कल्पना, सजावट और सन्देश की अभिव्यक्ति तीनों का सुंदर मेल है।

2. कला और साहित्य को सृजनात्मक कहा जाता है, क्यों? दो उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर: कला और साहित्य को सृजनात्मक इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें कल्पना, भावनाएँ और जीवन के अनुभवों का सुंदर और अर्थपूर्ण रूपांतरण होता है। ये रचनाएँ केवल उपयोगिता के लिए नहीं होतीं, बल्कि वे मनुष्य की सोच, संवेदना और दृष्टिकोण को नया आकार देती हैं। जैसे एक मूर्तिकार मिट्टी या पत्थर को अपने कौशल से सुडौल और जीवंत मूर्ति में बदल देता है—यह केवल आकार देना नहीं, बल्कि अपने भीतर की भावनाओं, संस्कृति और दृष्टि को मूर्त रूप देना है। इसी तरह एक साहित्यकार जैसे रवींद्रनाथ ठाकुर या महादेवी वर्मा अपने लेखन के माध्यम से समाज, प्रकृति और मनुष्य की जटिलताओं को शब्दों में इस प्रकार ढालते हैं कि वह पाठकों के मन को छू जाती है और उन्हें सोचने को मजबूर कर देती है।

पहला उदाहरण है – मिट्टी का एक गोला जब कुम्हार के हाथों से गुजरकर सुराही का रूप लेता है, तो यह केवल एक बर्तन नहीं बनता, बल्कि एक ऐसी रचना बनती है जिसमें कलाकार की मेहनत, संवेदना और सौंदर्यबोध जुड़ा होता है।

दूसरा उदाहरण – पत्थर को तराशकर बनी ऐलोरा की मूर्तियाँ, जो यह दर्शाती हैं कि कैसे एक कठोर और निर्जीव वस्तु को कलाकार अपने सृजनात्मक कौशल से जीवंत कर देता है।

3. अभ्यास सृजनात्मकता को निखारता है, कैसे?

उत्तर: अभ्यास सृजनात्मकता को निखारने का सबसे प्रभावशाली माध्यम है, क्योंकि निरंतर अभ्यास से हमारी पाँचों इंद्रियाँ—देखना, सुनना, सूँघना, छूना और चखना—सजग और संवेदनशील बनती हैं। रचनात्मक व्यक्ति मामूली-सी चीज़ों में भी सौंदर्य ढूँढ़ने की क्षमता रखता है और यह क्षमता अभ्यास से ही विकसित होती है। उदाहरण के तौर पर, एक साहित्यकार रोजमर्रा की घटनाओं में भी भावनात्मक गहराई और सामाजिक अर्थ खोज लेता है, तो एक अनुवादक मूल रचना की आत्मा को नए शब्दों में ढालने का अभ्यास करके उसमें नयापन और प्रभाव जोड़ देता है। मीडिया लेखक समाचारों की प्रस्तुति में तथ्य, भावनाएँ और नयापन लाने के लिए सतत अभ्यास करता है। जैसे—”महिला आरक्षण बिल हंगामे में पेश” शीर्षक में सटीकता और रोचकता का मेल स्पष्ट है, जो अभ्यास का परिणाम है। इसी तरह, अनुवाद करते समय जब “एकला चलो रे” को हिंदी में “चल अकेला रे” के रूप में प्रस्तुत किया गया, तो उसमें भाव, लय और प्रभाव को बरकरार रखना अभ्यास का ही परिणाम था। अभ्यास के द्वारा ही लेखक, कवि, पत्रकार, अनुवादक या कलाकार अपनी छठी इंद्रिय को सजग बनाते हैं, जिससे वे उन भावों और संकेतों को भी पहचान पाते हैं जो आमतौर पर लोगों की नज़र से छूट जाते हैं। इसीलिए कहा गया है कि ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।’ यानी अभ्यास व्यक्ति को दृष्टा बनाता है, जो हर चीज़ में अर्थ, सौंदर्य और रचना की संभावना देख सकता है।

4. इस चित्र को देखकर आपके मन में जो भी शीर्षक सूझते हैं, उन्हें लिखिए। (कम से कम पाँच)

उत्तर: इस चित्र को देखकर निम्नलिखित शीर्षक दिए जा सकते हैं:

(i) सर्द रात की तपिश।

(ii) अकेला लड़का और जलती आग।

(iii) कश्मीर की ठंडी शाम में जीवन की गर्माहट।

(iv) आग के सहारे उम्मीद की रोशनी।

(v) प्रकृति की गोद में एक सर्द कहानी।

ये शीर्षक चित्र की भावनात्मक गहराई और वातावरण को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं, जो ठंड, अकेलेपन, संघर्ष और जीवन की गर्मी को दर्शाते हैं।

5. अपने परिवार के व्यक्तियों को आप रोज़ काम करते देखते हैं। उनके कामों में आपको कहाँ-कहाँ सृजनात्मकता नज़र आती है? लिखिए।

उत्तर: हमारे परिवार के सदस्य रोज़मर्रा के कामों में भी सृजनात्मकता का परिचय देते हैं। यहाँ कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं:

(i) माँ की रसोई में सृजनात्मकता – मेरी माँ रोज़ नए-नए व्यंजन बनाती हैं। जब घर में कुछ सामग्री नहीं होती, तब भी वह उपलब्ध चीज़ों से स्वादिष्ट खाना बना देती हैं। उनके व्यंजन में स्वाद और सजावट दोनों ही बहुत खास होते हैं।

(ii) पिता की समय प्रबंधन कला – मेरे पिताजी ऑफिस के साथ-साथ घर की ज़रूरतों का भी पूरा ध्यान रखते हैं। वे अपने काम को इस तरह व्यवस्थित करते हैं कि किसी को भी परेशानी न हो। यह एक सृजनात्मकता है कि वे हर काम को संतुलन के साथ करते हैं।

(iii) भाई की पढ़ाई का तरीका – मेरा भाई कठिन विषयों को आसान बनाने के लिए चार्ट, रंगीन पेन और चित्रों का उपयोग करता है। वह पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए खुद ही मॉडल और नोट्स तैयार करता है।

(iv) बहन की सिलाई-कढ़ाई में सृजनात्मकता – मेरी बहन पुराने कपड़ों से नए डिज़ाइन वाले परिधान बना लेती है। वह खुद ही बैग और सजावटी सामान तैयार कर लेती है।

(v) दादी की कहानियाँ – मेरी दादी जब भी कहानियाँ सुनाती हैं, तो उसमें अपने अनुभव और कल्पना का सुंदर मेल होता है। उनकी कहानियाँ हमें न केवल मनोरंजन देती हैं, बल्कि सीख भी देती हैं।

6. आपके मोहल्ले में सृजनात्मकता कहाँ नज़र नहीं आती? लिखिए।

उत्तर: मेरे मोहल्ले में कुछ ऐसे स्थान और स्थितियाँ हैं जहाँ सृजनात्मकता की कमी साफ़ दिखाई देती है:

(i) कूड़े-कचरे का अंबार – मोहल्ले की गलियों में कूड़ा सही ढंग से नहीं डाला जाता। लोग जगह-जगह गंदगी फैला देते हैं। अगर लोग थोड़ा सृजनात्मक सोचें तो कूड़े के लिए सुंदर डस्टबिन लगाए जा सकते हैं या कचरा प्रबंधन के नए तरीके अपनाए जा सकते हैं।

(ii) दीवारों पर पोस्टर और गंदे चित्र – कई दीवारों पर पोस्टर चिपकाए जाते हैं या लोग गंदे शब्द लिख देते हैं। इन दीवारों को सुंदर चित्रों या सामाजिक संदेशों से सजाया जा सकता है।

(iii) पार्क की देखरेख में कमी – मोहल्ले का पार्क काफ़ी उजाड़ और असंवारा सा लगता है। पौधे ठीक से नहीं लगे हैं और झूले भी टूटे हुए हैं। अगर इसमें कुछ रंगीन पेंटिंग्स, सुंदर पौधे और बच्चों के लिए आकर्षक झूले लगें, तो यह सृजनात्मक प्रयास होगा।

(iv) सामुदायिक भवन का उपयोग न होना – मोहल्ले में एक सामुदायिक भवन है, लेकिन वह खाली और जर्जर पड़ा है। वहाँ कला, संगीत या बच्चों की रचनात्मक कक्षाएँ लगाई जा सकती हैं।

(v) बिल्डिंग्स और घरों में एकरूपता – घरों के रंग और डिज़ाइन में कोई विविधता नहीं है। यदि लोग अपने घरों को अलग-अलग रंगों और सजावट से सजाएँ, तो मोहल्ला और सुंदर दिखेगा।

7. सृजनात्मकता आस-पास के वातावरण को सुंदर तो बनाती ही है, उसके साथ ही यह लोगों के जीवन को भी छू जाती है। अपने विचार लिखिए।

उत्तर: सृजनात्मकता न केवल हमारे आस-पास के वातावरण को सुंदर बनाती है, बल्कि यह हमारे जीवन को भी गहराई से प्रभावित करती है। जब कोई व्यक्ति सृजनात्मक तरीके से कोई काम करता है, चाहे वह चित्र बनाना हो, कविता लिखना हो या घर की सजावट करना हो – वह काम देखने वालों के मन को छू जाता है और उसमें एक नई ऊर्जा भर देता है।

सृजनात्मकता हमें केवल सुंदरता का अनुभव नहीं कराती, बल्कि हमारे सोचने, महसूस करने और जीने के तरीकों को भी बेहतर बनाती है। जैसे – किसी ने किसी बेजान दीवार पर सुंदर चित्र बना दिए, तो वह दीवार न केवल देखने में अच्छी लगती है, बल्कि वह लोगों के मन को भी प्रसन्न करती है।

सृजनात्मक विचारों से सजा हुआ एक छोटा सा घर भी बड़े-बड़े महलों से ज़्यादा अपनापन और खुशी दे सकता है। सृजनात्मकता से किया गया कोई भी काम चाहे वह कहानी सुनाना हो या बच्चों के लिए रंग-बिरंगे चार्ट बनाना  लोगों के दिलों को छू लेता है। इसलिए कहा जाता है कि सृजनात्मकता केवल बाहरी सजावट नहीं है, यह अंदर से जीवन को संवेदनशील, सुंदर और अर्थपूर्ण बनाती है।

8. (i) परीक्षा का आज अंतिम दिन है।

(ii) आज विद्यालय लंबी छुट्टी के बाद फिर खुला है।

इस बीच क्या हुआ – अपने संस्मरण लिखिए।

उत्तर: परीक्षा का आज अंतिम दिन है और मेरे मन में एक अजीब-सी हलचल है। पिछले कई दिनों से लगातार पढ़ाई, रात-दिन की मेहनत और मानसिक तनाव अब एक राहत में बदलने वाला है। परीक्षा का अंतिम पेपर देते समय जैसे ही अंतिम घंटी बजी, मेरे चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान आ गई। दोस्तों के साथ मिलकर परीक्षा की बातें करते हुए मैंने महसूस किया कि इस पूरे सफ़र में मैंने न केवल पढ़ाई की, बल्कि अनुशासन, आत्मविश्वास और समय का सही उपयोग भी सीखा।

कुछ दिनों की छुट्टी के बाद आज विद्यालय फिर से खुला है। सुबह-सुबह तैयार होकर जब मैं स्कूल पहुँचा, तो मुख्य द्वार पर चहल-पहल देखकर मन बहुत खुश हुआ। प्रार्थना सभा में सबके चेहरे खिले हुए थे, शिक्षक भी नए उत्साह से मिले। कक्षा में जब हम सबने अपने अनुभव साझा किए, तो लगा कि इस बीच केवल किताबें ही नहीं बदलीं, हम सब भी थोड़े-से बदल गए हैं – थोड़े ज़्यादा समझदार, थोड़े ज़्यादा गंभीर। इस छोटे-से अंतराल ने मुझे बहुत कुछ सिखाया और अब मैं फिर से नए जोश के साथ पढ़ाई और खेल दोनों के लिए तैयार हूँ।

9. ‘परिवर्तन सृष्टि का नियम है’ – साहित्य और कला इससे अछूते नहीं हैं। इसीलिए समय के साथ-साथ विधाएँ भी नया रूप लेती हैं। उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर: ‘परिवर्तन सृष्टि का नियम है’  यह बात साहित्य और कला पर भी पूरी तरह लागू होती है। समय के साथ जैसे-जैसे समाज, सोच, तकनीक और जीवनशैली बदलते हैं, वैसे-वैसे साहित्य और कला की अभिव्यक्तियाँ भी बदलती हैं। पहले जो बातें मौखिक परंपरा से कहानियों और गीतों के रूप में कही जाती थीं, वे अब किताबों, फ़िल्मों, नाटकों और डिजिटल माध्यमों से लोगों तक पहुँचती हैं।

उदाहरण के लिए, पहले कविता केवल पुस्तकों में पढ़ी जाती थी, लेकिन आज वही कविताएँ मंचों पर काव्य पाठ, पोएट्री स्लैम और सोशल मीडिया वीडियोज़ के ज़रिए जीवंत हो गई हैं। पहले चित्रकला कैनवास या दीवारों तक सीमित थी, अब डिजिटल आर्ट और एनिमेशन के रूप में एक नया स्वरूप ले चुकी है। कहानियाँ पहले किताबों तक सीमित थीं, अब वेब सीरीज़, ऑडियो बुक्स और ग्राफ़िक नॉवेल्स के रूप में नए आयाम पा रही हैं। इस तरह, परिवर्तन ने साहित्य और कला को अधिक जीवंत, सुलभ और व्यापक बना दिया है, जिससे वे आज की पीढ़ी से और गहराई से जुड़ पाते हैं। यही सृजनात्मकता की सुंदरता है समय के साथ ढलते हुए भी अपने भाव और सार को बनाए रखना।

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