HSLC 2023 Hindi Question Paper Solved | দশম শ্ৰেণীৰ হিন্দী পুৰণি প্ৰশ্নকাকত সমাধান

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HSLC 2023 Hindi Question Paper Solved

HSLC 2023 Hindi Question Paper Solved | দশম শ্ৰেণীৰ হিন্দী পুৰণি প্ৰশ্নকাকত সমাধান

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হিন্দী পুৰণি প্ৰশ্নকাকত সমাধান

2023

HINDI OLD PAPER

ALL QUESTION ANSWER

SECTION – A (खण्ड – क)

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दो:

(क) कबीर दास के अनुसार पण्डित कौन है?

उत्तर: कबीर दास के अनुसार वह व्यक्ति पंडित है जो ‘प्रेम का ढई आखर’ पढ़ता है।

(ख) मीराँ ने अपने मान रखने के लिए प्रभु से क्या प्रार्थना की है?

उत्तर: मीराँ ने अपने मान रखने के लिए प्रभु से अपने दुख दूर करने की प्रार्थना की है।

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(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी जी के द्वारा विरचित पठित पाठ का नाम क्या है?

उत्तर: रामवृक्ष बेनीपुरी जी के द्वारा विरचित पठित पाठ का नाम “अकबर बिरबल” है।

(घ) छोटे जादूगर ने जिस मैदान में जादू का प्रदर्शन किया था, उसका नाम क्या था?

उत्तर: छोटे जादूगर ने जिस मैदान में जादू का प्रदर्शन किया था, उसका नाम कार्निवाल था।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दो:

(क) सत्य के संबंध में बेनीपुरी जी की क्या धारणा है?

उत्तर: लेखक कहते है कि सत्य हमेशा कठोर होता है और यह कठोरता और भद्दापन के साथ जन्मा करते हैं। कठोरता के लिए मौन बलिदान चाहिए। लोग ऐसे बलिदान से भागकर बेकार प्रशंसा आशा करते है। सत्य से भागकर असत्य को आश्रय देते है। पाठ के अनुसार सब लोग भद्देपन से गुमनामी से भागते है। इसलिए नींव की ईंट बनाने से भी बचता है। वे चुपचाप बलिदान से ही वचते है ऐसा नहीं बलिदानों को गुणगान करने से भी बचते है। यह जानबूझकर ही करते है। इसलिए हमेशा लोग सत्य से भी धीरे धीरे भागते हैं।

(ख) ‘आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं है?’ इसके उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या कहा था?

उत्तर: श्रीमान जी ने जब पूछा कि “आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं। छोटे, जादूगर ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि- “माँ ने आज तुरंत चले आने को कहा है। उसकी घड़ी का समीप है।

(ग) भोलाराम की बीमारी क्या थी?

उत्तर: भोलाराम की गरीबी की बीमारी थी।

(घ) यमदूत ने भोलाराम के जीव के लापता होने के संबंध में क्या बताया है?

उत्तर: यमदूत ने भोलाराम के जीव के लापता होने के संबंध में कुछ इस तरह बताया- ‘दयानिधान! मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया। आज तक मैने धोखा नहीं खाया था, पर इस बार भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया। पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम की देह त्यागी, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरम्भं की। नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ त्यो ही वह मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया। इन पाँच दिनो में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला।’

(ङ) बच्चों के कोमल पाँवों के स्पर्श से सड़क के कौन-से भाव बनते हैं?

उत्तर: बच्चों के छोटे छोटे कोमल पाव के स्पर्श को पाकर सड़क बहुत प्रसन्न अनुभव करती है। लेकिन इसके बदले नन्हे बच्चों को देने देने के लिए सड़क के पास कुछ नहीं है। उस समय सड़क को कुसुम कली के समान कोमल होने की साध होती है ताकि सड़क पर चलने में या खेलने कुदने में बच्चों को कोई कठिनाई ना हो।

(च) ‘सड़क संसार की कोई भी कहानी पूरी नहीं सुन पाती हैं ।’ क्यों?

उत्तर: सड़क सैकड़ों, हजारों वर्षों से लाखों- करोड़ों लोगों की हँसी, गीत, और बातें सुनती आई है। पर कोई भी कहानी को पुरा नहीं सुन पाती है। इसका कारण यह है कि किसी आदमी की थोड़ी सी बात सुनने के बाद फिर जब सड़क दुबारा कान लगाती है तबतक उस आदमी का जीवन सम्पांत ही हो जाता है। इससे वह सावित होता है कि सड़क के जीवन में जो स्थिरता है वह स्थिरता मनुष्य जीवन में नहीं है। इसलिए सड़क के पास टूटी-फूटी बातें और बिखरे हुए गीत अनेक है मगर कोई पूरी कहानी नहीं है जो सड़क सुन पाती है।

(छ) पठित कविता के आधार पर कलम की शक्ति को रेखांकित करो।

उत्तर: यह हम पर निर्भर करता है कि हमे किसको अपनाकर समाज का निर्माण करना है। अतः कलाम और तलवार में से कलम की शक्ति अधिक है तथा कलम के द्वारा देश में हो रहे अन्दर चार एवं कुराइयों को मिटाया जा सकता है। अतः ज्ञानसात से ही देश की तरक्की की जा सकती है। इसीलिए कलम को ज्ञानशक्ति का प्रतीक माना गया है।

(ज) मृत्तिका कब मातृरूपा बन जाती है?

उत्तर: रौंदे और जीते जाने पर मिट्टी धन-धान्य होकर मातृरूपा बन जाती है।

(झ) ‘तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो’ – यहाँ कवि मनुष्य के संबंध में क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट करो।

उत्तर: मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा ही मिट्टी को भिन्न आकार देता है। मनुष्य के पुरुषार्थ के परिणामस्वरूप ही मिट्टी चिन्मयी शक्ति का रूप धारण करती है। पुरुषार्थ हर सफलता का मूलमंत्र है, इसलिए उसे सबसे बड़ा देवत्व माना गया है।

3. निम्नलिखित की सप्रसंग व्याख्या करो:

(क) राम नाम रस पीजै मनुआँ, राम नाम रस पीजै, तब कुसंग सतसंग बैठ णित हरि चरचा सुण लीजै। काम क्रोध मद लोभ मोह कूँ, बहा चित्त सूं दीजै। मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, ताहि के रंग में भीजै।।

उत्तर: यह पंक्तियां मीराबाई द्वारा विरचित हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आलोक भाग-2 के अन्तर्गत पद-त्रय’ शीर्षक के तृतीय पद से लिया गया है।

इसमें मीराबाई ने पति के रंग-रूप और नाम कीर्तन के महिमा का चित्र व्यंजित किया है।

कवयित्री मीराबाई ने मनुष्य मात्र को प्रभु कृष्ण के प्रेम-रंग-रस से सराबोर हो जाने को कहा है। मीरा के अनुसार सभी मनुष्य कुसंग को छोड़कर सत्संग में बैठना चाहिए और अपने मन काम, क्रोध, लोभ, मोह मद जैसे वैरीओ को भगाकर कृष्ण का नाम लेना चाहिए।

इसमें मीरा जी की कृष्ण-भक्ति की मधुर ध्वनि व्यंजित हो उठी है जो मनुष्यों के हृदय में आनन्द उल्लास ला देती है।

अथवा

म्हारे घर आवौ सुन्दर श्याम । तुम आया बिन सुध नहीं मेरो, पीरी परी जैसे पाण । म्हारे आसा और ण स्वामी, एक तिहारो ध्याण । मीराँ के प्रभु वेग मिलो अब, राषो जी मेरो माण।।

उत्तर: यह पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत कृष्ण-भक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा विरचित ‘पद-त्रय शीर्षक से लिया गया है। 

इसमें कवयित्री ‘मीराबाई के कृष्ण प्रेम-विरह में व्यथित मन का एक जीता जागता चित्र अंकित हुआ है।

सुंदर श्यामरुयी कृष्ण-दर्शन के अभिलाषी मीरा जी ने कृष्ण को अपने घर आने का आमन्त्रण देकर समान कहती है कि वे कृष्ण के विरह में पके पान की तरह पीली पड़ गयी हैं। कृष्ण के दर्शन विना वे सुध- बुध खो बैठी है। मीरा फिर कहती है कि कृष्ण ही कमल उनकी एकमात्र ध्यान है, कृष्ण के अतिरिक्त कहीं कुछ दीखता ही नहीं है। अतः वे तुरन्त आकर मीरा लोक से मिलना चाहिए और उनकी मान रक्षा करनी राबाई चाहिए। इसमें प्रेम की व्याकुलता तन्मयता और स्वाभाविक उल्लास का एक सजीव चित्र हमें देखने को मिलता है।

(ख) सत गुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपगार। 

लोचन अनँत उघाड़िया, अनँत दिखावनहार।

उत्तर: यह पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आलोक भाग-2’ के अन्तर्गत महात्मा कबीर दास विचरित साखी शीर्षक दोहे से लिया गया है। 

प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी ने अपने ऊपर गुरु द्वारा किए गए उपकार को बताया है। कि किस तरह गुरु ने मेरी आंखों को खोलकर सत्य का दर्शन करवाया है।

प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी कहते हैं सतगुरु की महिमा का कोई सानी नहीं है। कोई भी अंत नहीं है अर्थात असीमित है क्योंकि उन्होंने मेरे ऊपर बहुत से उपकार किए हैं। कहने का अर्थ यह है की सतगुरु की महिमा असीमित है और उन्होंने मुझपर अनंत (असीमित) उपकार किये हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि माया के कारण मेरी आँखें बंद पड़ी थी, सत्य मुझे दिखाई नहीं दे रहा था, सतगुरु ने मेरी आँखों को खोला और मुझे सत्य दिखाया, सत्य का दर्शन करवाने वाले ऐसे संत की महिमा असीमित और अपार है। कहने का तात्पर्य यह है कि सतगुरु ने हमारी अज्ञानता भरी आंखों को खोलकर ज्ञान (सत्यता) से मेल करवाया।

अथवा

जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जान मसान। 

जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान। 

उत्तर: यह पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आलोक भाग-2’ के अन्तर्गत महात्मा कबीर दास विरचित साखी शीर्षक दोहे से लिया गया है। इसमें कबीर जी ने हमें प्रेम और भक्ति की महत्ता पर अपना विचार प्रकट किया है। कबीर दास के अनुसार जिस घर में हरिया भगवान की पूजा नहीं होती वह घर श्मशान के समान है। श्मशान में रहने वाले को लोग भूत रहते है जिसके पास भगवान के प्रति प्रेम या भक्ति से भरा कोई हृदय नहीं। दूसरी और उस घर में रहे व्यक्तियों का शरीर भी प्राण शून्य है, लोहार की खाल जैसी है।

4. ‘छोटा जादूगर’ शीर्षक कहानी के संदेश को स्पष्ट करो।

उत्तर: छोटा जादूगर के इन मानवीय गुणों का उद्घाटन कर आत्मनिर्भरता और दायित्व बौध का संदेश देना ही कहानी का उद्देश्य है। इस कहानी के लेखक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कहानी में एक बालक का अपने माता के प्रति प्रेम, व्यवहार की कुशलता और परिश्रम से जीबन बिताने का वर्णन है।

‘छोटा जादूगर’ प्रसाद जी की एक ऐसी मनोरम कहानी है, जिसमें आर्थिक विपन्नता और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए तेरह-चौदह साल के एक लड़के के चरित्र को आदर्शात्मक रूप में उभारा गया है। परिस्थिति की माँग से एक बालक किस प्रकार अपने पाँवों पर खड़ा हो जाता है उसका यहाँ हृदयग्राही चित्रण हुआ है। छोटे जादुकर के रूप में प्रस्तुत बालक के मधुर व्यवहार, चतुराई, क्रिया कौशल, स्वाभिमान, देशप्रेम और मातृ-भक्ति से पाठक का मन सहज ही द्रवीभूत हो उठता है।

अथवा

‘सुंदर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।’ ‘नींव की ईंट’ शीर्षक लेख में लेखक ने किस बलिदान की ओर संकेत दिया है – स्पष्ट करो।

उत्तर: प्रस्तुत व्याख्या के अनुसार लेखक बेनीपुरी जी कहते हे कि सुन्दर सृष्टि अपने आप नहीं होती है। इसके लिए त्याग और बलिदान जरुर लगते है। जिस प्रकार नीव की ईंट की बलिदान से दुनिया में इमारत खड़े रहते हैं, कंगुरे बनते है, लोग इमारतों को प्रशंसा करते है। लेकिन इन प्रशंसा के पीछे नीव की ईट का बलिदान है-वह मिट्टी के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाते है, अपने को मौनता सा अंधकार में सौंप देता है। वह कभी प्रशंसा नहीं चाहते है।

ठिक उसी प्रकार नये समाज के लिए कुछ लोगों का बलिदान देना चाहिए। जिस प्रकार कई लोगों के बलिदान से देश को स्वतंत्रता मिली, देश को नई सृष्टि के मौका मिली।

अतः देखा जाता है कि नई सुन्दर सृष्टि के लिए बलिदान जरूर होना चाहिए, चाहे वह इमारत के लिए हो या देश-समाज के लिए हो।

5. (क) निम्नलिखित में से किन्हीं दो मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग करो:

नौ-दो ग्यारह होना; अपने पावों पर खड़ा होना; घोड़ा बेचकर सोना; दंग रह जाना

उत्तर: नौ-दो ग्यारह होना: पुलिस को देखते ही चोर नौ-दो ग्यारह हो गया।

अपने पावों पर खड़ा होना: छोटे जादूगर ने बचपन से परिश्रम करके आज अपने पाव पर खड़ा हो गया।

घोड़ा बेचकर सोना: संगीता अपने 12वीं की परीक्षा देकर निश्चिंत हो कर घोड़े बेच कर सो रही है।

दंग रह जाना: छोटे जादूगर का खेल देखकर लोग दंग रह गए।

(ख) निम्नलिखित में से किन्हीं चार के लिंग-परिवर्तन करो:

शिक्षक; कवि; महिला ; श्रीमान; नायिका; धोबी ; बन्दर

उत्तर: शिक्षक =  शिक्षिका।

कवि = कवयित्री।

महिला = सज्जन।

(ग) निम्नलिखित में से किन्हीं दो की संधि करो:

उत् + लास; जगत् + नाथ; इति + आदि; देव + ऋषि

उत्तर: उत् + लास = उल्लास।

जगत् + नाथ = जगन्नाथ।

इति + आदि = इत्यादि।

देव + ऋषि = देवर्षि।

(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं चार के बहुवचन-रूप बनाओ: 

बस्तु; नारी; दवा; लड़का; पुस्तक ; घड़ी

उत्तर: बस्तु = बस्तुएँ।

नारी = नारियाँ।

दवा = दवाइयाँ।

लड़का = लड़के।

पुस्तक = पुस्तकें।

घड़ी = घड़ियाँ।

(ङ) निम्नलिखित में से किन्हीं चार के एक-एक पर्यायवाची शब्द लिखो:

कपड़ा; पर्बत; सरस्वती; नदी; आकाश; घर; बिजली

उत्तर: कपड़ा: वस्त्र।

पर्बत: पहाड़।

सरस्वती: शारदा।

नदी: तटिनी।

आकाश: गगन।

गर: गृह।

बिजली: बिद्युत।

(च) निम्नलिखित उपसगों और प्रत्ययों को जोड़कर एक-एक शब्द बनाओ: (किन्हीं चार) 

अधि; परा; अनु; आई; ता; पन

उत्तर: अधि = अधिकार।

परा = पराजय।

अनु = अनुपम।

आई = लम्बाई।

ता = महानता।

पन = पागलपन।

(छ) निम्नलिखित में से किन्हीं चार के विपरीतार्थक शब्द दो:

निंदा; स्थूल; दोस्त; विष; धनी; सौभाग्य; कठिन

उत्तर: निंदा: स्तुति।

स्थूल: सूक्ष्म।

दोस्त: दुश्मन।

विष: अमृत।

धनी: निर्धन।

सौभाग्य: दुर्भाग्य।

कठिन: सरल।

(ज) निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करो:

(i) आपका दर्शन हुआ।

उत्तर: आपके दर्शन हुए।

(ii) वह आज घर वापस नहीं लौटा है।

उत्तर: वह आज घर लोटा है।

(iii) आप बाहर आइए।

उत्तर: आप बाहर जाइए।

(iv) मैंने रोटी खाया है।

उत्तर: मैंने रोटी खाया।

GROUP – B (खण्ड – ख)

6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दो:

(क) महादेवी जी ने किसको नीलकंठ कहा है?

उत्तर: महादेव जी ने मोर को नीलकंठ कहा है।

(ख) “मयूर कलाप्रिय बीर पक्षी है, हिंसक मात्र नहीं।” इसका उदाहरण महादेवी जी ने क्या कहकर दिया है?

उत्तर: “मयूर कलाप्रिय वीर पक्षी है, हिंसक मात्र नहीं।” इस कथन का आशय यह है कि प्रकृति में जितने भी जीव जंतु है, मयूर की का स्वभाव उन सब से भिन्न है।

(ग) महादेवी जी ने किसके लिये ‘बड़े मियाँ’ शब्दों का प्रयोग किया है?

उत्तर: महादेवी जी ने चिड़ियों के सौदागर के लिए ‘बड़े मियाँ’ शब्दों का प्रयोक किया है।

(घ) नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित पाठ्य कविता का नाम लिखो।

उत्तर: नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित पाठ्य कविता का नाम – शूल-फूल (1934)

(ङ) कवि ने किसे ठोकर मारने की बात कही है?

उत्तर: अपने मंजिल के बीच बाधा उत्पन्न करने वाले पत्थरों अर्थात अपने कठिनाइयों को कवि ने ठोकर मारने की बात कही है।

7. अधोअंकित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दो:

(क) अपने प्रिय तारों के टूटने पर अम्बर क्यों शोक नहीं मनाता है?

उत्तर: कवि का मानना है कि अंबर में जितने भी तारे है, उनमें से अगर कोई प्रिय तारा टूट भी जाता है तो अंबर कभी भी उसका शोक नहीं मनाता है। इसी गगन के माध्यम से कवि मानव जीवन को प्रेरणा देना चाहते है, की मानव का जीवन भी विभिन्न तरंगों से भरा होता है। परंतु कभी-कभी अपने पिया के खो जाने या अतीत के कारण उनका जीवन स्तब्ध हो जाता है। उन्हें अपने अतीत को भुलाकर जिंदगी में आगे बढ़ जाना चाहिए। ठीक अंबर की तरह।

(ख) ‘जो बीत गयी’ कविता का क्या संदेश है?

उत्तर: प्रस्तुत कविता मे बीती बातो पर हमे कभी भी शोक नही करना चाहिए यह संदेश दिया है। मनुष्य को प्रकृति से सीख लेनी चाहिए। मनुष्य का जीवन सुख दुख से भरा हुआ है। मनुष्य को अपने बीते हुए दुःखो को भूल जाना चाहिए। अपने दुखों को स्मरण कर शोक में समय बिताना अच्छी बात नहीं है। हमें वर्तमान की सुखों को लेकर ही जीवन का आनन्द लेनी चाहिए।

(ग) कवि ने कायरता को प्रतिहिंसा से अधिक अपवित्र क्यों कहा है?

उत्तर: कवि ने कायरता को प्रतिहिंसा से अधिक अपवित्र कहा है क्योंकि अगर हिंसा करने वाला व्यक्ति प्यार से न समझे, तो हिंसा के बदले हिंसा करना भी कभी कभार जरूरी हो जाता है। लेकिन हिंसा को सहन कर या परिस्थितियों से घबराकर हार मान लेना कायरता कहलाता है। जो की प्रतिहिंसा से भी अधिक अपवित्र है।

(घ) ‘युद्धं देहि कहे जब पामर,

दे न दुहाई पीठ फेर कर !’ – यहाँ कवि क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर: यह पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक “आलोक भाग-२” के अन्तर्गत गीति कवि नरेंद्र शर्मा जी विरचित “कायर मत बन” शीर्षक कविता से लिया गया है।

इसमें कवि ने मनुष्य की शत्रुओं का सामना करने के लिए प्रेरणा दी है। कवि मानव को सम्बोधित करते हुए कहते है कि जब शत्रु तुम्हें युद्ध करने के लिए ललकारते है तब तुम्हे साहस के साथ युद्ध कर जवाब देना चाहिए। प्रेम के बल पर विरोधियों को जित लेना पवित्र कर्म है। सज्जन व्यक्तियों से भरा समाज में द्दीयह संभव है। पर इसके विपरीत परिस्थिति में अर्थात हिंसा के सामने सिर झुकाकर कायरता देखाना जीवन नहीं है। जो वीरता से परिस्थितियों का सामना कर सकता है उन्हें ही लक्ष्य प्राप्ति होती है।

शब्दार्थ = युद्धं देहि = युदध के लिए ललकारना। 

पामर = दुष्ट, शत्रु, नीच। 

दुहाई = शपथ। 

पीठ फेरना = लड़ाई के मैदान से भाग खड़ा होना। 

प्राप्ति = प्यार, समोहब्बत। 

तस्कर = बुरा कार्य करने वाला।

(ङ) सत्य का सही तोल क्या है? ‘कायर मत बन’ कविता के आधार पर स्पष्ट करो।

उत्तर: कवि की दृष्टि में सत्य का सही तोल यह है कि जो व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य मार्ग में आनेवाले बाधाओं से डर कर भागता है उसे लक्ष्य की प्राप्ति कभी नहीं होती और जो मानवता को अमर बनाने में परिस्थितियों के साथ लड़ाई कर खून पसिना बहाकर आया है उनकी ही उन्नति होती है।

(च) चिड़िया के चरित्र की किन्हीं दो विशेषताएँ लिखो।

उत्तर: कविता में बताया गया है कि चिड़िया सन्तोषी स्वभाव की है और वह मुँहबोली एवं गर्वीली भी है। वह परिश्रमी तथा मधुरभाषी है।

(छ) नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप के चंगुल से कैसे बचाया था?

उत्तर: नीलकंठ दूर ऊपर झूले मे सो रहा था जब साप आया। उसी के चौकन्ने कानो ने उस मंद स्वर की व्यथा पहचानी और वह पूँछ-पंख समेटकर सर से एक झपटे नीचे आ गया।

उसने साँप को फन के पास पंजो से दबाया और फिर चोंच से इतने प्रहार किए कि वह अधमरा हो खरगोश का बच्चा बच्चा मुख गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुख से निकल आया। इसी प्रकार नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप के चंगूल से बचाया।

(ज) जाली के बड़े घर में रहनेवाले जीव-जन्तुओं के आचरण की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख करो।

उत्तर: जाली के बड़े घर में रहने वाले सभी जीव-जंतु एक दूसरे से मित्रता का व्यवहार करते थे। खरगोश, तोते, मोर, मोरनी सभी मिल-जुलकर रहते थे। लेकिन कुब्जा का स्वभाव मेल-मिलाप वाला था ही नहीं। वह स्वभाव से ही ईर्ष्यालु होने के कारण हरदम सबसे झगड़ा करती थी और अपनी चोंच से नीलकंठ के पास जाने वाले हर-एक पक्षी को नोंच डालती थी।

8. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दो:

नीलकंठ की मृत्यु के पश्चात् महादेवी जी ने उसका अंतिम संस्कार कैसे किया है – स्पष्ट करो।

उत्तर: नीलकंठ की मृत्यु के बाद महादेवी जी उसे अपने शाल में लपेटकर संगम ले गई और नीलकंठ को गंगा की बीच धार में प्रवाहित किया। ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे अपने घर में पालने वाले प्रत्येक जीव को घर का सदस्य मानती थी।

अथवा

‘पशु-पक्षियों के रूप, स्वभाव, व्यवहार तथा चेष्टाओं से लेखिका महादेवी जी भली-भाँति परिचित थी।” – पाठ के आधार पर इस उक्ति की सार्थकता को स्पष्ट करो।

उत्तर: महादेवी वर्माजी को पशु – पक्षियों के प्रति सहज लगाव था। उन्होंने कुत्ते-बिल्ली जैसे पशु पाल रखे थे। इतना ही नहीं अपने पशु जगत में हिरनों के प्रति भी काफी ममत्व था। उनके मन में प्राणियों के प्रति करुणा की प्रबल भावना थी। 

9. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर निबंध लिखो:

(क) अनुशासन और विद्यार्थी।

उत्तर: प्रस्तावना – विद्यार्थी किसी राष्ट्र विशेष का अक्षय कोष होते हैं। जो आज का विद्यार्थी है वह कल देश के भविष्य का कर्णधार बन सकता है। देश की प्रगति उन्ही के कन्धों पर अवलम्बित है। विद्यार्थी जीवन में बालक में अच्छे भाव, विचार, संस्कार एवं मानवीय भावनाएँ पल्लवित एवं विकसित होती हैं। विद्यार्थी जीवन में अर्जित ज्ञान जीवन पथ का सम्बल बनता है।

अनुशासन का महत्त्व – अनुशासन के नियमों का बीजारोपण बाल्यकाल से होना चाहिए क्योंकि विद्यार्थी जीवन में जो संस्कार पड़ जाते हैं वे स्थायी होते हैं। प्रकृति भी अनुशासन में बँधकर संचालित हो रही है। जिस भाँति रात-दिन तथा ऋतु परिवर्तित होती रहती हैं, उसी प्रकार नियमबद्ध जीवन में भी परिवर्तन का चक्र निरन्तर रहता है।

अनुशासन की जड़ें – शिक्षा संस्कारयुक्त होनी चाहिए। अनुशासन स्वेच्छा से होना चाहिए, यह हमें संयमी बनाता है। छात्रों के लिए अनुशासन वायु तथा जल की भाँति आवश्यक है। छात्र जीवन जितना सदाचार, अनुशासित तथा सुन्दर होगा उतना ही शेष जीवन भी सुखी तथा सम्पन्न होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं।

विद्यार्थी से आशाएँ – आज का विद्यार्थी ही कल देश का कर्णधार बनेगा। वही राष्ट्र का भाग्य विधाता बनेगा। आज भारत माता की लौह-शृंखलाएँ छिन्न-भिन्न हो चुकी हैं, अतः छात्रों को जागरूक होकर अनुशासित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

छात्रों में अनुशासनहीनता तथा उसका निवारण-छात्रों द्वारा निरन्तर तोड़-फोड़, हड़तालें तथा सरकारी सम्पत्ति के विनाश के समाचार हर रोज समाचार-पत्रों में आते रहते हैं। परिवार का वातावरण भी पूर्णतः अनुशासित नहीं है। विद्यालय आज घिनौनी राजनीति का अखाड़ा बन गये हैं।

विद्यार्थी जीवन का महत्त्व – विद्यार्थी जीवन जिन्दगी का स्वर्णिम काल होता है। इसी जीवन में विद्यार्थी अपने भविष्य के जीवन की आधारशिला रखता है। यहीं से सुन्दर और दृढ़ जीवन की पड़ी आधारशिला (नीव) पर उस विद्यार्थी के भविष्य का भवन खड़ा हो पाता है जो बहुत ही आकर्षक होगा।

विद्यार्थी जीवन में ही एक छात्र अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक गुणों को विकास की एक दिशा प्रदान करता है। इन गुणों के विकसित होने पर ही वह विद्यार्थी एक ठोस व्यक्तित्व का धनी होता है। तपस्वी के

विद्यार्थी के लक्षण – विद्यार्थी का जीवन किसी तपस्वी के जीवन से कम कठोर नहीं होता। माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त करना बहुत ही कठिन है। विद्या कभी भी आराम से, सुख से प्राप्त नहीं हो सकती। जीवन में संयम और नियमों के अनुसार चलना पड़ता है। विद्यार्थी के पाँच लक्षणों को निम्न प्रकार बताया गया है।

उपर्युक्त पद्यांश में बताए गए लक्षणों वाला विद्यार्थी अपने जीवन में सदैव सफल होता है। यह जीवन साधना और सदाचार का है।

आधुनिक विद्यार्थी जीवन – आज हमारे देश की समाज व्यवस्था लड़खड़ा रही है। विद्यार्थी ने अपने जीवन की गरिमा को भुला दिया है। विद्यार्थी के लिए स्कूल मौज-मस्ती का स्थल रह गया है। वह अब विद्यादेवी की आराधना का मन्दिर नहीं रह गया है। वह तो उसके लिए मनोरंजन तथा समय काटने का स्थल भर रह गया है। विद्यार्थी में उद्दण्डता और असत्यता घर बनाए बैठी है। परिश्रम करने से अब वह पीछे हट रहा है। उसका लक्ष्य प्राप्त करना, केवल धोखा और चालपट्टी रह गया है। वह अनुशासनहीन होकर ही अपना कल्याण करना चाहता है। उसने विनय, सदाचार और संयम को पूर्णतः भुला दिया है। विद्यार्थी ने स्वयं को कलंकित बना लिया है।

अनुशासनहीनता को दूर किया जा सकता है – अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए विद्यार्थी  अपने अग्रजों के अनुशासित जीवन से सीख प्राप्त करें। विद्यालयों के वातावरण को सही कर देना चाहिए। अध्यापकों को विशेष रूप से विद्यार्थियों की प्रत्येक प्रक्रिया पर सख्त नजर रखनी होगी। उनके प्रति अपने आचरण का भी प्रभाव छोड़ना पड़ेगा।

उपसंहार – आज के विद्यार्थी कल के राष्ट्र के कर्णधार हैं। अतः इन्हें अपने अन्दर ऊँचे वैज्ञानिक के, ऊँचे विचारक के, ऊँचे चिन्तनकर्ता के महान् गुणों को अपने में विकसित करते हुए अपने अभिलाषित लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए। ज्ञान पिपासा, श्रम, विनय, संयम, आज्ञाकारिता, सेवा, सहयोग, सह-अस्तित्व के गुणों को अपने अन्दर विकसित कर लेना चाहिए। एक आदर्श नागरिक बन कर विद्यार्थी राष्ट्र की सेवा करते हुए राष्ट्र धर्म का पालन कर सकने में समर्थ होते हैं।

(ख) पर्यटन की आवश्यकता।

उत्तर: मानव प्रवृत्ति और पर्यटन– मानव मन कौतुहल एवं जिज्ञासा नामक वृतियों से आक्रान्त रहता हैं। इन वृतियों के कारण वह नवीन वस्तुओं को देखने, समझने, नवीन स्थलों के प्रति आकृष्ट होने एवं नवीन स्थानों की सैर करने के लिए सचेष्ट रहता हैं।

इस प्रकार नवीन स्थानों तथा विभिन्न भू भागों में भ्रमण करना ही पर्यटन कहा जाता हैं। पर्यटन करने से मनुष्य को भिन्न भिन्न भौगोलिक परिवेशों को देखने को सुअवसर प्राप्त होता हैं और उनके ज्ञान की वृद्धि होती हैं।

पर्यटन की व्यवस्था-पर्यटन मानव की स्वच्छंद एवं उन्मुक्त जीवन पद्धति का एक अंश हैं। इसकी व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति की रूचि एवं देश विशेष के आधार पर हो सकती हैं।

वर्तमान युग में पर्यटन की व्यवस्था का काफी प्रसार हो गया है और सारे विश्व के देशों का भ्रमण आसानी से किया जा सकता हैं।

फिर भी प्रत्येक यात्री के लिए यह आवश्यक हैं कि वह जिस देश की यात्रा पर जा रहा हो, वहां की रीती नीति, भाषा, खान पान तथा शिष्टाचार आदि का उसे ज्ञान हो।

उसे वहां के दर्शनीय स्थानों, ऐतिहासिक स्मारकों का भी ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए उसे उस स्थान का मानचित्र एवं वहां की परिचयात्मक पुस्तिका अपने पास रखनी चाहिए।

यात्रा के लिए कुछ आवश्यक सामान साथ में ले जाना चाहिए। धन की व्यवस्था भी पूर्णरूप से होनी चाहिए. इस तरह की आवश्यक व्यवस्था हो जाने पर यदि कोई साथी या परिचित सहयात्री मिल जाए तो उसकी भी व्यवस्था करनी चाहिए।

सहयात्री मिल जाने पर बहुत सी सहायता मिल जाती हैं एवं मार्ग की परेशानियों का सामना किया जा सकता हैं।

पर्यटन से लाभ– मनुष्य को पर्यटन से अनेक लाभ होते हैं। इससे मनुष्य के ज्ञान का विस्तार होता हैं। विद्यार्थी जिन धार्मिक अथवा ऐतिहासिक स्थानों का वर्णन पुस्तकों में ही पढ़ पाते हैं।

उन स्थानों को प्रत्यक्ष रूप से देखने पर ज्ञान और अधिक बढ़ जाता हैं। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिर हड़प्पा और सारनाथ के भग्नावशेष अजन्ता और एलोरा की गुफाएं आगरा का ताज महल, दिल्ली का लाल किला, जयपुर का हवा महल एवं जंतर मन्तर आदि का साक्षात ज्ञान पर्यटन से ही किया जा सकता हैं।

विभिन्न भागों के रीती रिवाज खान पान सामाजिक परम्परा सभ्यता एवं प्राकृतिक वातावरण आदि समस्त बातों का ज्ञान पर्यटन से ही हो सकता है। पर्यटन से मनोरंजन भी होता हैं।

तो नयें लोगों से परिचय भी बढ़ता हैं। इससे अनुभव परिपक्व होता हैं। इस तरह पर्यटन काफी लाभकारी रहता हैं।

उपसंहार– इस नश्वर संसार में आकर मनुष्य ने यदि भिन्न भिन्न भागों को नहीं देखा, प्रकृति के सौन्दर्य का नजदीकी से अवलोकन नहीं किया, तो उसका अमूल्य जीवन वास्तव में व्यर्थ हैं।

पर्यटन से ऐसे कई नवीन मित्र बन जाते है जो जीवन भर सहायता सहयोग करते रहेगे। अतः हमे चाहिए कि हम अपनी आर्थिक शक्ति तथा पारिवारिक स्थिति के अनुसार पर्यटन करें, अपना लोकानुभव निरंतर बढाते रहे जीवन की सफलता के लिए पर्यटन परमावश्यक हैं।

(ग) प्रदूषण की रोकथाम।

उत्तर: प्रस्तावना: विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।

प्रदूषण का अर्थ: प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना। 

प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं – वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण।

वायु-प्रदूषण: महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।

जल-प्रदूषण: कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है।

ध्वनि-प्रदूषण: मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।

प्रदूषणों के दुष्परिणाम: उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।

प्रदूषण के कारण: प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है। 

सुधार के उपाय: विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।

(घ) महात्मा गाँधी।

उत्तर: प्रस्तावना: गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में उन्होंने एहम भूमिका निभायी थी। 2 अक्टूबर को हम उन्हीं की याद में गाँधी जयंती मनाते है। वह सत्य के पुजारी थे। गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था।

गाँधी जी के बारे में: गाँधी जी के पिता का नाम करमचंद उत्तमचंद गाँधी था और वह राजकोट के दीवान रह चुके थे। गाँधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था और वह धर्मिक विचारों और नियमों का पालन करती थीं। कस्तूरबा गाँधी उनकी पत्नी का नाम था वह उनसे 6 माह बड़ी थीं। कस्तूरबा और गाँधी जी के पिता मित्र थे, इसलिए उन्होंने अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दी। कस्तूरबा गाँधी ने हर आंदोलन में गाँधी जी का सहयोग दिया था।

गाँधी जी की शिक्षा: गाँधी जी ने पोरबंदर में पढ़ाई की थी और फिर माध्यमिक परीक्षा के लिए राजकोट गए थे। वह अपनी वकालत की आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड चले गए। गाँधी जी ने 1891 में अपनी वकालत की शिक्षा पूरी की। लेकिन किसी कारण वश उन्हें अपने कानूनी केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने रंग के चलते हो रहे भेद-भाव को महसूस किया और उसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने की सोची। वहां के लोग लोगों पर ज़ुल्म करते थे और उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे।

गाँधी जी ने उठाई आवाज: भारत वापस आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाह को जवाब देने के लिए और अपने लिखे समाज को एकजुट करने के बारे में सोचा। इसी दौरान उन्होंने कई आंदोलन किये जिसके लिए वे कई बार जेल भी जा चुके थे। गाँधी जी ने बिहार के चम्पारण जिले में जाकर किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की। यह आंदोलन उन्होंने जमींदार और अंग्रेज़ों के खिलाफ किया था। एक बार गाँधीजी को स्वयं एक गोरे ने ट्रेन से उठाकर बाहर फेंक दिया क्योंकि उस श्रेणी में केवल गोरे यात्रा करना अपना अधिकार समझते थे परंतु गांधी जी उस श्रेणी में यात्रा कर रहे थे।

गाँधी जी ने प्रण लिया कि वह काले लोगों और भारतीयों के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने वहाँ रहने वाले भारतीयों के जीवन सुधार के लिए कई आन्दोलन किये। दक्षिण अफ्रीका में आन्दोलन के दौरान उन्हें सत्य और अहिंसा का महत्त्व समझ में आया। जब वह भारत वापस आए तब उन्होंने वही स्थिति यहां पर भी देखी, जो वह दक्षिण अफ्रीका में देखकर आए थे। 1920 में उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया और अंग्रेजों को ललकारा।

उपसंहार: 1930 में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया और 1942 में उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया। अपने इन आन्दोलन के दौरान वह कई बार जेल गए। हमारा भारत 1947 में आजाद हुआ, लेकिन 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गई, जब वह संध्या प्रार्थना के लिए जा रहे थे।

10. बरसात के समय विद्यालय की श्रेणी कक्षा में खिड़कियों से पानी आकर भर जाता है, जिसके कारण श्रेणियाँ रद्द कर दी जाती हैं। इसकी शिकायत दर्ज करने हेतु विद्यालय के प्रधान शिक्षक अथवा प्रधान शिक्षिका के नाम पर उनकी मरम्मत के लिये एक प्रार्थना पत्र लिखो।

उत्तर:  सेवा में,

श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय,

धेमाजी माध्यमिक विद्यालय,

धेमाजी

12 अप्रैल, 2023

विषय- विद्यालय की खिड़कियों की मरम्मत।

महोदय,

निवेदन है की लगभग दो सप्ताह से बरसात के कारन विद्यालय की श्रेणी-कक्षा में खिड़कियों से पानी आकर भर जाने से श्रेणियाँ रद्द कर दी जा रही हैं।

अतः प्रार्थना है कि विद्यालय के खिड़कियों का मरम्मत कर दिया जाए।

दिनांक: 12.04.2023

प्रार्थी, 

प्रियंका शर्मा

अन्य सभी छात्र

कक्षा-10

अथवा

महात्मा गाँधी पर बनायी गयी एक पुरस्कृत फिल्म अपने नगर के सिनेमा हॉल में प्रदर्शित हो रही है। अपनी कक्षा के कक्षा-प्रतिनिधि की हैसियत से उस फिल्म को देखने की अनुमति (अपनी कक्षा की अंतिम दो कक्षाओं को रद्द कर) देने की प्रार्थना कर अपने विद्यालय के प्रधान शिक्षक या प्रधान शिक्षिका के नाम पर एक प्रार्थना-पत्र लिखो।

उत्तर: सेवा में,

श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय,

सिलापथार माध्यमिक विद्यालय,

सिलापथार, धेमाजी

20 जुलाई, 2023

विषय- अंतिम दो कक्षाओं को रद्द करने के लिए।

महोदय,

निवेदन है की महात्मा गाँधी पर बनायी गयी एक पुरस्कृत फिल्म अपने नगर के सनेमा-हॉल में प्रदर्शित हो रही है। 

अतः प्रार्थना है कृपया यह फिल्म देखने जाने की अनुमति दे।

दिनांक: 20.07.2023

प्रार्थी, 

अभिनाश त्रिवेदी।

कक्षा-10

11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दो।

साक्षरता का अर्थ है अक्षर-ज्ञान। अक्षर ब्रह्म है, इसके अर्थात् अक्षर-ज्ञान के बिना मनुष्य अधूरा है। मनुष्य इसलिए मनुष्य बनता है कि उसके पास ज्ञान की ताकत है। निरक्षर व्यक्ति हमेशा दुःखी होता है, वह समाज पर निर्भरशील होकर पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करता है। वह पत्र, सुचना अथवा समाचार-पत्र नहीं पढ़ सकता है। अतः यह बाहर नहीं जा सकता है, सहायता के लिए मुँह ताकता तथा दुनिया का हाल नहीं जान सकता है। साक्षरता से मनुष्य को खुशी ही खुशी मिलती है। लेकिन पूर्ण साक्षरता आयेगी कैसे? बड़े-बूढ़े भी पढ़ें, तथा समाज की नयी पीढ़ी के लोग आगे आकर लोगों को निरक्षरों को सेवा-भाव से पढ़ाएँ उसके लिए बच्चों को भी स्कूलों में अवश्य भेजा जाये। सरकार भी साक्षरता का कार्यक्रम हाथ में ले रही है; पर सरकार पर निर्भर रहना ठीक नहीं है। असली कर्म वही है, जो सेवा-भाव से, समर्पित होकर किया जाए।

प्रश्नावली:

(क्र) उपर्युक्त गद्यांश का एक सार्थक शीर्षक दो।

उत्तर: उपर्युक्त गद्यांश का एक सार्थक यही है कि हमे अपना ज्ञान सभी में बाटना चाहिए।

(ख) साक्षरता का अर्थ क्या है?

उत्तर: साक्षरता का अर्थ है अक्षर-ज्ञान।

(ग) साक्षरता से क्या-क्या लाभ मिलते हैं?

उत्तर: साक्षरता से मनुष्य को खुशी ही खुशी मिलती है।

(घ) निरक्षर व्यक्ति दुःखी क्यों होते हैं?

उत्तर: निरक्षर व्यक्ति हमेशा दुःखी होता है, वह समाज पर निर्भरशील होकर पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करता है। वह पत्र, सुचना अथवा समाचार-पत्र नहीं पढ़ सकता है। अतः यह बाहर नहीं जा सकता है, सहायता के लिए मुँह ताकता तथा दुनिया का हाल नहीं जान सकता है। 

(ङ) पूर्ण साक्षरता के उपाय क्या-क्या है?

उत्तर: पूर्ण साक्षरता के उपाय- बड़े-बूढ़े भी पढ़ें, तथा समाज की नयी पीढ़ी के लोग आगे आकर लोगों को निरक्षरों को सेवा-भाव से पढ़ाएँ।

12. निम्नलिखित वाक्यों का अनुवाद हिन्दी में करो:

(a) Hindi is the official language of India.

उत्तर: भारत की राजभाषा हिन्दी है।

(b) It is also regarded as the national language of the country.

उत्तर: इसे देश की राष्ट्रीय भाषा भी माना जाता है।

(c) It is spoken by a large number of people of India.

उत्तर: यह भारत के बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है।

(d) Hindi is a simple and rich language.

उत्तर: यह भारत के बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है।

(e) I can speak Hindi very well.

उत्तर: मैं बहुत अच्छी हिंदी बोल सकता हूं।

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