Class 12 Hindi Chapter 22 जूझ

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जूझ

Chapter – 22

काव्य खंड

साराशं: लेखक का मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता था, परंतु यह बात अपने दादा (पिता) को बताने में डरते थे। वे हमेशा इसी ताक में रहते कि कोई उनके दादा को इस विषय में समझा दें। लेखक को इस बात का विश्वास था कि केवल खेती करने से हाथ कुछ नहीं आएगा। वह पढ़ लिखकर नौकरी करना चाहते थे, ताकि उससे मिले पैसे को वह विठोबा आण्णा की तरह कारोबार में लगा सके।

लेखक के यहाँ दीवाली बीतने पर महीना भर ईख पेरने का कोल्हू चलाया जाता था। इनके यहाँ सबसे पहले कोल्हू चलाया जाता ताकि इनका गुड़ बाजार में सबसे पहले आये और इन्हें गुड़ के अच्छे भाव मिल सके। जबकि दूसरे किसानों का मानना था कि देर तक खड़ी रहने वाली ईख के रस में पानी की मात्रा कम होती है, और रस गाढ़ा हो जाता है, जिसके कारण ज्यादा गुड़ निकलता है। और इसी वजह से इस बार भी वे इस कार्य से जल्दी निपट गये और आगे के काम में लग गये।

एक बार जब लेखक की मां कंडे थाप रही थी और वे बाल्टी में पानी भर-भरकर उन्हें देकर उनकी मदद कर रहे थे। तब लेखक अपने पढ़ाई की बात माँ के सामने छेड़ते हैं। जिस पर वह कहती हैं, जब भी लेखक के पढ़ाई की बात दादा के समक्ष करती है, तभी वह बरहेला सूअर की तरह गुरांता। लेखक कहते हैं कि अब खेती के सारे काम हो चुके है। उसके पास करने की कुछ विशेष कार्य नहीं है, अत: उनकी पढ़ाई की बात माता दत्ता जी से करें ताकि वे दादा को समझा पाये। तय हुआ उसी रात लेखक और उनकी माँ दत्ता जी राव के घर जाएंगे। माँ को लग रहा था कि दादा इसके लिए कभी तैयार नहीं होंगे।

रात को दोनों दता राव देसाई के घर गये। माँ ने उन्हें बताया कि किस तरह दादा सारा दिन बाजार रखमाबाई के पास गुजार देता है। बेटे को पढ़ाई छुड़वा कर काम में इसलिए लगवा दिया ताकि खुद आजादी के साथ गाँव में घुम सके। यह सुनते ही दत्ताजी राव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे दादा को समझाएँगे साथ में यह भी कहा कि दादा के सामने वे जो भी पूछेगें उसका उत्तर लेखक निडर होकर दे।

दादा के घर आते ही माँ ने उन्हें बताया कि दत्ताजी ने उन्हें बुलाया है। यह सुनकर दादा सीधे दत्ताजी राव से मिलने चले गये। आधा घण्टा बीतने पर माँ ने दादा को खाने पर बुलाने के बहाने से लेखक को वहाँ भेजा। बच्चे को देखते ही दत्ताजी ने उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा और बच्चे से जब यह पता चला कि वह स्कूल नहीं जाता तो उन्होंने दादा पर खूब गुस्सा किया। उन्होंने दादा से स्कूल न भेजने का कारण पूछा। साथ ही यह आदेश भी दिया कि वे उन्हें स्कूल भेजे। इसके बाद खाना खाते वक्त दादा ने उससे यह वचन लिया कि सुबह से ग्यारह बजे तक वह खेत में पानी देगा और उसके बाद स्कूल जायेगा। सबेरे आते समय हो पढ़ने का बस्ता घर से ले आएगा और छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत आकर घंटा भर ढोर चरायेगा। जब खेतों में ज्यादा काम होगा तब वह पाठशाला में गैर हाजिरी लगायेगा।

रोते धोते पाठशाला फिर से शुरू हो गया। वह फिर से पाँचवीं में जाकर बैठने लगा। उसके सभी साथी आगे बढ़ गये थे, अत: पाँचवीं के सभी बच्चे उसकी अपेक्षा कम उम्र के थे। नया देखकर कक्षा के बाकी बच्चे उसे छेड़ने लगे। एक बच्चा उसकी गमछा खींच कर मास्टर की नकल करने लगा। तभी मास्टर आ गये। उसके बाद मास्टर ने वामन पंडित की कविता पढ़ाई।

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पढ़ाई शुरू हो चुकी थी, परंतु लेखक का मन उदास था। पाठशाला पराई लग रही थी। वह चोंच मारकर लेखक को घायल कर रही थी। गमछा पहनकर स्कूल आते देख कक्षा के दूसरे बच्चे छेड़ने लगे। माँ, आठ दिन में एक टोपी और दो नाड़ीवाली चड्ढी मैलखाऊ रंग की मगंवा दी। मंत्री नामक एक मास्टर थे, जो छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। वे हाथ से गर्दन पकड़कर पीठ पर घूमा लगाकर दंड देते थे। उनको देखते ही सभी का पसीना छूटने लगता था। सभी लड़के घर से पढ़ाई करके आने लगे। वसंत पाटील नाम का एक लड़का लेखक की ही कक्षा में पढ़ता था। जो शरीर से तो दुबला-पतला था, परंतु बहुत ही होशियार था। मास्टर ने उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया। लेकिन लेखक को लगता था यह अधिकार वसंत पाटील के बदले उसे मिलना चाहिए था। दूसरी तरफ उसे यह भी लगता था कि उसे पूरी तैयारी करके अच्छी तरह पास होना है। वह भी वसंत पाटील की तरह ही पूरी मेहनत से पढ़ाई करने लगे। हमेशा कुछ न कुछ पढ़ने बैठता था। मन की एकाग्रता के कारण गणित आसान हो गया। 

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