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Class 12 Hindi Chapter 16 भक्तिन
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भक्तिन
काव्य खंड
लेखक परिचय: महादेवी वर्मा का जन्म १९०७ ई० में फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदोर में हुई। नौ वर्ष की अवस्था में उनकी शादी कर दी गयी थी। पर विवाहोपरांत भी उनको पढ़ायी चलती रही। सन् १९३२ में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्याल से संस्कृत विषय में स्नातकोतर को परीक्षा उतीर्ण की और नारी समाज में शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना करके उसकी प्रधानाचार्य के रूप में कार्य करने लगी। महादेवी वर्मा छायावाद के चार स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। उनकी प्रतिष्ठा साहित्य और समाज सेवी दोनों रूपों मे रही है। महात्मा गांधी जी के सम्पर्क में आने के पश्चात् वे समाज कल्याण को और उन्मुख हो गई। महादेवी वर्मा ने ‘चाद’ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया है। ये आरम्भ में ब्रजभाषा में कविता लिखती थी, बाद में खड़ी बोली में लिखने लगी और शीघ्र ही इस क्षेत्र में इन्होंने महतवपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया। महादेवी वर्मा एक कुशल चित्रकार भी थी, इसलिए इनकी कविताओं में चित्रो जैसी संरचना का आभा, मिलता है। महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार (‘यामा संग्रह के लिए १९८३ ई० में), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भारत-भारती पुरस्कार पद्मभूषण (१९५६ ई०) मिला। महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ हैं- काव्य संकलन दीपशिखा, यामा, निबन्ध संग्रह श्रृंखला की कड़ियाँ, आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर, संस्मरण रेखाचित्र अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार।
साराश
महादेवी ने प्रस्तुत संस्मरम में भक्तिन के संघर्षमय जीवन को प्रस्तुत किया है। भक्तिन एक ग्रामीण वृद्धा है, जो महादेवी के यहाँ काम की तलाश में आयी है। वृद्धा का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी है, परन्तु अपनी दीन-हीन अवस्था के कारण वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को नहीं बतलाती। परन्तु इमानदारीवश वह अपना नाम महादेवी को बताती है। और महादेवी वर्मा उसके गले में कंठी माला देखकर उसका नामाकरण भक्तिन करती है। महादेवी वर्मा भक्तिन को काम पर नियुक्त कर लेती है। | भक्तिन झूसी गाँव के प्रसिद्ध अहीर की पुत्री है। बचपन में ही माता की मृत्यु होने पर विमाता ने पालपोस कर बड़ा किया। पाँच वर्ष की अवस्था में ही पिता ने उसका विवाह हड़ियाँ गाँव के एक सम्मपन अहीर के सबसे छोटे पुत्र से कर दिया। नौ वर्ष की आयु में ही उसका गौना कर दिया।
ससुराल में रहने के दैरान ही भक्तिन के पिता की मरनात्म रोग की सूचना नहीं दी। विमाता ने पिता की मृत्यु हो जाने पर भक्तिन के ससुराल खबर भेजा। परन्तु सास ने रोने-धोने के अपराकुन से बचने के लिए भक्तिन को कुछ नहीं बताया। केवल यह कहकर भेजा की बहुत दिनों से वह नेहर नहीं गयी है। वहाँ जाकर भी विमाता से अच्छा व्यवहार नहीं मिला। ससुराल में हमेशा भक्ति उपेक्षा की ही पात्र बनी रही। तीन लड़कियों की माता होने के कारण जिठानियों द्वारा उसकी उपेक्षा होने लगी सास शासन प्रणाली चलाती थी। पुत्रों को जन्म देने के कारण कुछ सम्मान | जिठानियों को भी प्राप्त था। परन्तु लड़कियों की माँ होने के कारण लक्षमिन को दण्ड मिलता है। जिठानियाँ उसके पति से झूठी सच्ची शिकायते करती रहती थी। परन्तु पत्नी के प्रति प्रेम होने के कारण उसपर कभी हाथ नहीं उठाता था। वहो जिठानियाँ पतियों द्वारा पिटी जाती थी। जिठानियों के लड़को को जहाँ दूध की मलाई खाने को दी जाती श्री, वहाँ भक्तिन की लड़कियों को चने और बाजरे की घुघरी खाने को दी जाती है। | इन्ही कारणवश लक्षमिन अपने पति संग परिवार से अलग हो गयी। और परिश्रम द्वारा अपनी गृहस्थी को सुखी और समृद्ध बना लिया।
लक्षमिन ने अपनी बड़ी बेटी की शादी बड़े धूम-धाम से की। कुछ ही समय बाद भक्तिन के पति का मृत्यु हो गयी और गृहस्थी का सारा भार भक्तिन पर आ गया। उस समय | लक्षमिन की आयु केवल उन्नीस वर्ष की रही होगी। लक्षमिन की सम्पति देख उनके जिठानियों को नियत डगमगा गयो। परन्तु उनको भक्तिन की सम्पति तभी मिल सकती थी जब भक्तिन दूसरे आदमी से विवाह करती। परन्तु भक्तिन ने ऐसा प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। लक्षमिन अपने सम्पति से सूई को नौक के बराबर तक देने को तैयार नहीं हुई। लक्षमिन ने अपने दोनों बेटीयों का भी विवाह करवा दिया और पति द्वारा चुने गये बड़े दामाद की मृत्यु हो गयी। जेठ-जिठातियों को सम्पति हथियाने का सुअवसर मिला। उन्होंने तीतर लड़ाने वाले सड़के से बड़ी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा। भक्तिन द्वारा अस्वीकार किये जाने पर उन लोगों ने सड्यन्त्र रचा। भक्तिन की अनुपस्थिती में तीतर बाज लड़का विधवा की कोठरी में घुस गया और सार्केल लगा ली। परन्तु विधवा।
लड़को पंचायत के समक्ष अपने आफ को निर्दोष प्रमाण न कर पाई जिससे उसे मजबुरन विवाह के सुत्र में बँधना पड़ा। परिवार के षड़यन्त्र के कारण लक्षमिन की गृहस्थी उजड़ गयी। यहाँ तक लगान देना भी दूभर हो गया। एक बार लगान न दे पाने के कारण दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रहना पड़ा। यह अपमान सहन न कर पाने के कारण दूसरे दिन भक्तिन काम की तलाश में शहर आ गयी।
दूसरे दिन दो मिनट नाक दबाकर जप करने के बाद कोयले की मोटी रेखा से सीमा | निश्चित कर चैके में प्रतिष्ठित हुई। महादेवी वर्मा पाठ कुशल थी। पहले दिन एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ तथा गाढ़ी दाल परोस दी। जिसे देख महादेवी वर्मा के उत्साह पर तुषारपात गिर पड़ा।
भक्तिन हमेशा दूसरों को अपने मन के अनुसार बना लेना चाहती थी। पर उसे बदलने की क्षमता किसी में नहीं थी। इसी वजह से महादेवी वर्मा आज ज्यादा देहाती हैं, पर भक्तिन को शहर की हवा छू भी नहीं पाई। शहर के रसगुल्ले तक भक्तिन ने नहीं चखा यहाँ तक कि आय के स्थान पर जी कहने का शिष्टाचार नहीं सीख सकती।
भक्तिन में दुगुणों का अभाव नहीं था। वही महादेवी के ईधर-उधर विखरे पैसे को संभाल कर रखती थी। महादेवी वर्मा को खस रखना उसके जीवन का परम कतर्व्य था। भक्तिन का सिर घुटाना महादेवी को अच्छा नही लगता। अज: जब की ऐसा करने से रोकती थी तो यह कहकर टाल देती कि सिर घुटाने की बात शास्त्रों में लिखी गई है। भक्तिन अनपढ़ थी और अपने विद्या के अभाव को महादेवी को पढ़ाई-लिखाई पर अभिमान करके भर लेती हैं। एक बार जब महादेवी जी ने अपने घर काम करने वाले से अगूठे की जगह हस्ताक्षर करने का नियम बनाया तो महादेवी दुविधा में पड़ गयी। उसने यह कहकर बात को टाल दिया कि वह पढ़ने बैठ गयी तो घर का काम कौन करेगा। रात को जब महादेवी जी लिखती तो भक्तिन भी कोने में परी बिछाकर जागरण करती थी। महादेवी को अगर किसी पुस्तक की आवश्यकता होती तो भक्तिन केवल रंग पूछकर उसे उनके सामने ला देती थी और सुबह भक्तिन महादेवी जी से आगे जाग जाती थी। उनकी प्रभमण की एकान्त साधिन भक्तिन ही रही है।
एक बार जब युद्ध देश की सीमा में बढ़ते देख लोग जब आतंकित हो उठे, महादेवी को छोड़कर बेटी दामाद के साथ जाने को प्रस्तुत न हुई। भक्तिन और महादेवी के बाँच सेवक स्वामी का संबंध है यह कहना कठिन है। क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई | सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा करे। भक्तिन | महादेवी वर्मा के परिचितों से भली भाँति परिचित थी और उतना ही सम्मान करती थी जितना उनका महादेवी वर्मा के प्रति था। भक्तिन किसी वेश-भूषा से यो किसी को नाम के अपभ्रशं द्वारा।
भक्तिन को कारागार से पैसे ही डर लगता था ऐसे यमलोक से ऊंची दीवार देखते ही, वह आँख भूँदकर बेहोश हो जाना चाहती थी। उसकी इसी कमजोरी के कारण लोग महादेवी जी के जेल जाने की संभावना बता बताकर चिढ़ाने लगते थे। फिर भी वह महादेवी के साथ जेल जाने को प्रस्तुत थी। अक्सर उनसे पुछती की कौन से सामान बाँध ले जिससे असुविधा न हो। भक्तिन कभी भी महादेवी जीसे दूर जाने की बात नहीं। सोचती थी। महादेवी वर्मा कहती है, कि चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा और महादेवी स्वयं क्या करेगी कहना कठिन है।
प्रश्नोत्तर
1. भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तरः भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था। भक्तिन का यह नाम समृद्धि सूचक है। लेकिन लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। अतः भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगो से छुपाती थी।
भक्तिन को यह नाम महादेवी वर्मा ने दिया था। भक्तिन जब पहली बार महादेवी वर्मा के पास आई थी। उसके गले में कंठी माला देखकर महादेवी वर्मा ने भक्तिन को यह नाम दिया।
2. दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से अकसर यह धारणा चलती है कि यह स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उतर: कन्या रत्न पैदा करने के कारण भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा की पात्र बनी। पुत्र पैदा करने के कारण ठानिया अपना स्थान ऊँचा मानती थी। जिठानियाँ जहाँ बैठकर लोक-चर्चा करती थी वही भक्तिन मट्ठा पेरती, कूटती पीसती थी। जहाँ जिठानियों के बेटे धूल उड़ाते थे वही भक्तिनि की बेटियाँ गोबर उठाती, कंड़े पाथती । जिठानियाँ अपने बेटो को जहाँ औंटते हुए दूध पर से मलाई उतारकर खिलाती वही भक्तिन की बेटियो को चने बाजरे की घूघरी चबानी पड़ती।
जी हाँ इससे बहुत हद तक में सहमत हूँ। समाज में घटित इसप्रकार की घटनाएँ अक्सर, हमें यह सोचने को बाध्य कर देता है, एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की शत्रु होती हैं। कन्या रत्न पैदा करने पर जहाँ महिला को समाज तथा घर में उनके ही घर के अन्य महिला सदस्य से घृणा या उपेक्षा सहना पड़ता हैं। वही ऐसे उदाहरण थी बहुत मिलते हैं, जहाँ कन्या रत्न की ‘ गर्भ में ही हत्या कर जाती हैं।
3. भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतन्त्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है? कैसे?
उत्तरः विवाह के क्षेत्र में यह सामाजिक परम्परा सदियों से चली आ रही है, कि घर के बड़े सदस्य ही वर पसन्द कर लड़की का विवाह करा देते हैं। इसमें लड़की मर्जी पसन्द नायसन्द को नहीं पुछा जाता हैं। जहाँ तक विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार की बात आती है वहाँ उसे पूरी स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। विवाह जैसे महतवपूर्ण संदर्भ में उनकी राय लेना आवश्यक हैं। भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना नही कहा जा सकता बल्कि स्त्री के मनवाधिकार के कुचलने का क्रम हैं। भक्तिन की बेटी निर्दोष होकर भी अपना निर्दोष होने का प्रमाण नहीं दे पाई। जिससे उसकी इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह करा दिया जाता है।
4. नहीं” लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर: लेखिका कहती हैं, भक्तिन अच्छी हैं, यह कहना कठिन है क्योंकि अच्छे होने के लिए दोषमुक्त होना जरूरी है, जबकि भक्तिन में दुर्गुणों का अभाव नही हैं। भक्तिन महादेवी जी के इधर-उधर पड़े पैसो को मटके में संभाल कर रखती हैं, और अगर कोई इसे चोरी नाम देने की कोशीश करता तो वह तर्क देती कि यह उसका अपना घर हैं, और घर के पैसे को संभालकर रखना चोरी नही कहलाता है। महादेवी जी को खुश करना भक्तिन का कतर्व्य ना वह ऐसी बात जिससे उनको क्रोध आ सकता था उसे बदलकर इधर-उधर करके बताती थी।
5. भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न के सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
उत्तरः महादेवी वर्मा को स्त्रियों का सिर घुटाना अच्छा नहीं लगता था और भक्तिन हर बृहस्पतिवार को एक दरिद्र नापित द्वारा अपना चूड़ाकर्म करवाती थी। महादेवी ने भक्तिन को ऐसा करने से रोका परन्तु भक्तिन कहती है, कि शास्त्रों में लिखा है। जब महादेवी जी कुतूहलवश पूछती हैं, कि क्या लिखा हैं, तब वह बताती हैं तीरथ गए मुँडाएँ सिद्ध यह किस शास्त्र में लिखा हैं, महादेवी जी के लिए यह जानना संभव नहीं था। महादेवी जी कहती हैं, कि शक्तिन शास्त्र के प्रश्न को भी अपनी सुविधा से सुलझा लेती है।
6. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?
उत्तर: भक्तिन हमेशा दूसरो को अपने मन के अनुसार बना लेना चाहती हैं, परन्तु अपने लिए किसी भी प्रकार का परिवर्तन की कल्पना संभव नहीं हैं। भक्तिन के साथ रहकर महादेवी अधिक देहाती हो गयी हैं, परन्तु भक्तिन को शहर की हवा भी नही छु सकी। भक्तिन महादेवी को क्रियात्मक रूप से सिखानी कि ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे दानों की खिचड़ी अधिक स्वादिष्ट होती है, सफेद महुए की लपसी संसार भर के हलवे को भी लजा 5 सकती है। महादेवी के नाराज होने के बावजूद भी उसने साफ धोती पहन्ना नही सीखा। यहाँ तक की आँय के स्थान पर जी कहने का शिष्टाचार भी नही सीख सकी।
7. ‘भक्तिन’ किस प्रकार की विद्या हैं?
उत्तर: ‘भक्तिन’ संस्मरणात्मक रेखाचित्र हैं।
8. ‘भक्तिन’ नामक रेखाचित्र की लेखिका कौन हैं?
उत्तर: ‘भक्तिन’ नामक रेखाचित्र की लेखिका महादेवी वर्मा जी हैं।
9. भक्तिन कौन है?
उत्तरः भक्तिन महादेवी वर्मा की सेविका है।
10. भक्तिन का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर: भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था।
11. भक्तिन नाम किसने तथा क्यों दिया?
उत्तर: भक्तिन के गले माला देखकर महादेवी वर्मा ने शक्तिन को यह नाम दिया।
12. सोना कौन है?
उत्तरः सोना महादेवी जी की हिटली का नाम है।
13. बंसत और गोधूलि कौन हैं?
उत्तरः महादेव वर्मा के कुत्ते का नाम बंसत तथा उनकी बिल्ली का नाम गोधूली हैं।
14. भक्तिन के व्यक्तित्व की दो विशेषगएँ लिखिए?
उत्तर: अनन्य सेविका, कर्मठ महिला ।
15. रेखाचित्र किसे कहते है?
उत्तर: रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में भर्भस्पर्शी भावपूर्ण एंव सजीव अंकन है।
16. महादेवी वर्मा को किस रचना के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था?
उत्तरः महादेवी वर्मा को यामा संग्रह के लिए सन् १९८३ ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।
17. महादेवी वर्मा की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तरः महादेवी वर्मा की मृत्यु सन् १९८७ ई० में इलाहाबाद में हुई थी।
व्याख्या कीजिए
क) इसी से आज मैं अधिक देहाती हूँ, पर उसे शहर की हवा नही लग पाई।
उत्तरः प्रस्तुत पक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के ‘गद्य खण्ड’ के ‘भक्तिन’ नामक सस्मरमात्मक रेखाचित्र से लीया गया है। इसके रेखाचित्रकार है, महादेवी वर्मा।
प्रस्तुत पंक्तियों महादेवी वर्मा ने अपनी सेविकै भक्तिन के विषय में कहा हैं। भक्तिन के व्यक्तित्य के कुछ जरूरी पहलू को अंकित किया है। लेखिका कहती हैं, कि भक्तिन का यह स्वभाव था कि वह सदैव दूसरो को अपने मन के अनुसार बना लेती थी। यही कारण हे कि भक्तिन के साथ रहकर महादेवी वर्मा अधिक देहाती बन गयी थी परन्तु स्वय भक्तिन पर शहर की हवा नहीं लग पाई थी। भक्तिन हमेशा महादेवी वर्मा को बताती कि मकई का रात को बता दलिया, सवेरे मठ्ठे से सोधा लगख हैं। बाजरे के तिल लगाकर बनाए हुए पुए गरम कम अच्छे लगते है। सफेद महुए की लपसी संसार भर के हलवे को लजा सकती है। परन्तु स्वंय रसगुल्ले को अपने मुँह में नहीं डाला। उसने कभी साफ धोती पहनाना नहीं सीखा परन्तु महादेवी जी के धोकर फैलाए हुए कपड़ो को भी वह तह करने के बहाने सिलवटों से भर देती है। भक्तिन ने महादेवी वर्मा को अपनी भाषा के अनेक तंदकथाएँ तो कंठस्थ करा दी परन्तु स्वंय ‘आँय’ के स्थान पर ‘जी’ कहने का शिष्टाचार नहीं सीख सकी।
ख) “भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं।”
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के भक्तिन नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से ली गई हैं। पुस्तक आर इसमें महादेवी वर्मा ने अपनी सेविका भक्तिन के व्यक्तित्य का बहुत दी दिलचस्प खाका खीचा हैं।
महादेवी वर्मा कहती हैं कि भक्तिन में दुगुणों का अभाव नहीं है, अंत वह अच्छी है यह कहना कठिन होगा। महादेवी जी के बिखरे पैसे किसी प्रकार भंडार घर की मटकी में चले जाते है, यह रहस्य हैं, परन्तु इस सम्भन्ध में अगर कोई संकेत भी करें तो वह भक्तिन के सामने जीतना संभव नहीं हैं। भक्तिन महादेवी वर्मा के स्वभाव को अच्छी तरह से जानती थी, अतः जो बात महादेवी को क्रोधित कर सकती थी उसे हमेशा भक्तिन घुमा-फिराकर कहती थी। भक्तिन का मानना था कि इतना झूठ और इतनी चोटी तो धर्मराज महाराज में भी होगा। अतः भक्तिन महादेवी जी को खुश करने के लिए इतना झूठ और इतनी चोरी करें बी तो कोई हर्ज नहीं हैं।