NCERT Class 12 Biology Chapter 13 जैव-विविधता एवं संरक्षण

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NCERT Class 12 Biology Chapter 13 जैव-विविधता एवं संरक्षण

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Chapter: 13

अभ्यास

1. जैव-विविधता के तीन आवश्यक घटकों (कंपोनेंट) के नाम बताइए।

उत्तर: जैवविविधता के तीन आवश्यक घटक निम्नलिखित हैं:

(i) आनुवंशिक विविधता।

(ii) जातीय विविधता।

(iii) पारिस्थितिकिय विविधता।

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2. पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आंकलन करते हैं?

उत्तर: पृथ्वी पर जातीय विविधता समान रूप से वितरित नहीं है, बल्कि एक रोचक प्रतिरूप दर्शाती है। पारिस्थितिकीविद् विश्व की कुल जातियों का आकलन अक्षांशों पर तापमान के आधार पर करते हैं। जैव विविधता साधारणतया, उष्ण कटिबंध क्षेत्र में सबसे अधिक तथा ध्रुवों की तरफ घटती जाती है। उष्ण कटिबंध क्षेत्र में जातीय समृद्धि के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं- उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में जैव जातियों को विकास के लिए अधिक समय मिला तथा इस क्षेत्र को अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त हुई जिससे उत्पादकता अधिक होती है। जातीय समृद्धि किसी प्रदेश के क्षेत्र पर आधारित होती है। पारिस्थितिकीविद् प्रजाति की उष्ण एवं शीतोष्ण प्रदेशों में मिलने की प्रवृत्ति, अधिकता आदि की अन्य प्राणियों एवं पौधों से तुलना कर उसके अनुपात की गणना और आकलन करते हैं।

3. उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति-समृद्धि क्यों मिलती हैं? इसकी तीन परिकल्पनाएँ दीजिए ?

उत्तर: इस प्रकार की परिकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं:

(i) जाति उद्भवन आमतौर पर समय का कार्य है। शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बार-बार हिमनद होता रहा है जबकि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र लाखों वर्षों से अबाधित रहा है। इसी कारण जाति विकास तथा विविधता के लिए लंबा समय मिला है।

(ii) उष्ण कटिबंधीय पर्यावरण शीतोष्ण पर्यावरण से भिन्न तथा कम मौसमीय परिवर्तन दर्शाता है। यह स्थिर पर्यावरण निकेत विशिष्टीकरण को प्रोत्साहित करता रहा है जिसकी वजह से अधिकाधिक जाति विविधता उत्पन्न हुई है।

(iii) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता उत्पन्न हुई है।

4. जातीय क्षेत्र संबंध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्त्व हैं?

उत्तर: जातीय: क्षेत्र संबंधः जर्मनी के महान् प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री एलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों में गहन खोज के बाद जाति समृद्धि तथा क्षेत्र के मध्य संबंध स्थापित किया। उनके अनुसार कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है। जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच संबंध आयताकार अतिपरवलय होता है। यह  लघुगणक पैमाने पर एक सीधी रेखा दर्शाता है। इस संबंध को निम्नांकित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है: log S = log C + Z log A, जहाँ; S = जाति समृद्धि, A = क्षेत्र, Z = रेखीय ढाल (समाश्रयण गुणांक) C = Y – अन्तः खंड

पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों के अनुसार z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है। यह वर्गिकी समूह अथवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं करता है। आश्चर्यजनक रूप से समाश्रयण रेखा की ढलान एक जैसी होती है। यदि हम किसी बड़े समूह के जातीय क्षेत्र संबंध जैसे- सम्पूर्ण महाद्वीप का विश्लेषण करते हैं, तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीव्र रूप से तिरछी खड़ी होती है। Z के मान की परास 0.6 से 1.2 होती है।

5. किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?

उत्तर: जैव विविधता की क्षति के कारण- जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर जिसका विश्व सामना कर रहा है वह मुख्यरूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। इसके चार मुख्य कारण हैं (निम्न उपशीर्षकों में इसका वर्णन किया गया है।

(i) आवासीय क्षति तथा विखंडन: यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा-वनों से होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे; लेकिन अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं हैं। ये इतनी तेजी से नष्ट हो रहे हैं कि जब तक आप इस अध्याय को पढ़ेंगे हजारों हेक्टेयर वर्षा वन समाप्त हो चुके होंगे। विशाल अमेजन वर्षा-वन, (जिसे विशाल होने के कारण ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है)। उसमें संभवतः करोड़ों जातियाँ (स्पीशीज़) निवास करती हैं। इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चारागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया है। संपूर्ण आवासीय क्षति के अलावा प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन (फ्रैग्मैंटेशन) हुआ है, जिससे बहुत सी जातियों के जीवन को खतरा उत्पंन हुआ है। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खडों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए तथा प्रवासी (माइग्रेटरी) स्वभाव वाले कुछ प्राणी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि (पॉपुलेशन) में कमी होती है।

(ii) अतिदोहन: मानव हमेशा भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, लेकिन जब ‘आवश्यकता’ ‘लालच’ में बदल जाती है। तब इस प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन (ओवर एक्सप्लाइटेशन) शुरू हो जाता है। मानव द्वारा अति दोहन से पिछले 500 वर्षों में बहुत सी जातियाँ (स्टीलर समुद्री गाय, पैसेंजर कबूतर) विलुप्त हुई हैं। आज बहुत सारी समुद्री मछलियों आदि की जनसंख्या शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की जातियाँ खतरे में हैं।

(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण : जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास (पार्थेनियम) लैंटाना और हायसिंथ (आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लैरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश) जातियों के लिए खतरा पैदा का रही हैं।

(iv) सहविलुप्तता: एक जाति के विलुप्त होने से उस पर आधारित दूसरी जन्तु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। उदाहरण के लिए एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है, तब उसके विशिष्ट परजीवी भी विलुप्त होने लगते हैं।

(v) स्थानांतरण अथवा झूम कृषि: जंगलों में रहने वाली जन जातियाँ विभिन्न जन्तुओं का शिकार करके भोजन प्राप्त करती हैं। इनका कोई निश्चित आवास नहीं होता। ये जीवनयापन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानान्तरित होती रहती हैं। ये जंगल की भूमि पर खेती करते हैं, इसके लिए ये जनजातियाँ प्रायः जंगल के पेड़-पौधों, घास फूस को जलाकर नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं।’ वन्य जातियाँ जगह की कमी के कारण प्रभावित होती हैं।

6. पारितंत्र के कार्यों के लिए जैवविविधता कैसे उपयोगी है?

उत्तर: जैव विविधता की पारितंत्र के कार्यों में उपयोगिता:

लंबे समय तक पारिस्थितिकविदों का मानना रहा कि अधिक जातियों वाला समुदाय, कम जातियों वाले समुदाय की तुलना में अधिक स्थिर होता है। डेविड टिलमैन ने अपने दीर्घकालिक शोध में पाया कि जिन भूखंडों पर जातियों की विविधता अधिक थी, उनमें जैवभार में साल दर साल कम उतार-चढ़ाव देखा गया। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि जैव विविधता में वृद्धि से पारितंत्र की उत्पादकता भी बढ़ती है।

जैव विविधता न केवल एक स्वस्थ पारितंत्र के लिए आवश्यक है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी अनिवार्य है। प्रकृति द्वारा प्रदान की जाने वाली पारितंत्र सेवाओं में जैव विविधता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरणस्वरूप, अमेजन के वर्षावन पृथ्वी की लगभग 20% ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। इसी प्रकार परागण करने वाले जीव—जैसे मधुमक्खियाँ, गुंजन मक्षिकाएँ, पक्षी और चमगादड़—पौधों के फल और बीज निर्माण में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त, जैव विविधता हमें सौंदर्यात्मक आनंद, शुद्ध पर्यावरण, और सूखा-बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं को नियंत्रित करने जैसी सेवाएँ भी प्रदान करती है।

7. पवित्र उपवन क्या हैं? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?

उत्तर: पवित्र वन, जिन्हें पवित्र उपवन भी कहा जाता है, पूजा स्थलों के आस-पास के वन क्षेत्र हैं जिन्हें आदिवासी समुदाय बहुत महत्व देते हैं। ये सबसे अबाधित वन क्षेत्र हैं, जो प्रायः अत्यधिक क्षरित भू-दृश्यों से घिरे होते हैं। ये भारत के कई हिस्सों में पाए जाते हैं, जिनमें कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान (अरावली), मध्य प्रदेश (सरगुजा, बस्तर), केरल और मेघालय शामिल हैं।

8. पारितंत्र सेवा के अंतर्गत बाढ़ व भू-अपरदन (सॉयल इरोजन) नियंत्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितंत्र के जीवीय घटकों (बायोटिक कंपोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?

उत्तर: पारितंत्र को संरक्षित कर बाढ़, सूखा और मृदा अपरदन जैसी समस्याओं पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है। वृक्षों की जड़ें मृदा कणों को बांधकर रखती हैं, जिससे जल और वायु प्रवाह की गति कम होती है और अपरदन नहीं होता। लेकिन जब वृक्षों की कटाई होती है, तो यह अवरोध समाप्त हो जाता है और मृदा की उपजाऊ ऊपरी परत तेज वर्षा या हवा के साथ बह जाती है, जिसे मृदा अपरदन कहते हैं।

पहाड़ी क्षेत्रों में जलग्रहण क्षेत्रों के वृक्ष काटे जाने से मैदानी इलाकों में बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है। बाढ़ के समय नदी का जल तेज गति से तटों से टकराकर कटाव करता है, जिससे नदी अपनी सामान्य दिशा से भटककर अन्य दिशाओं में बहने लगती है।

वृक्षारोपण मृदा अपरदन और बाढ़ नियंत्रण का एक प्रभावी उपाय है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में वृक्ष वायु अपरदन को रोकने और हवा की गति को कम करने में सहायक होते हैं, जिससे मृदा क्षरण की दर घटती है।

9. पादपों की जाति विविधता (22 प्रतिशत) जंतुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है; क्या कारण है कि जंतुओं में अधिक विविधता मिलती है?

उत्तर: पौधों की तुलना में प्राणियों में अनुकूलन की क्षमता अधिक होती है। प्राणियों में प्रचलन (movement) की विशेषता होती है, जिससे वे विपरीत परिस्थितियों में स्थान परिवर्तन कर स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं। इसके विपरीत पौधे स्थिर होते हैं, और उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों का सीधे सामना करना पड़ता है।

प्राणियों में तंत्रिका तंत्र और अंतःस्रावी तंत्र मौजूद होता है, जिसकी सहायता से वे पर्यावरणीय संवेदनाओं को ग्रहण कर उचित प्रतिक्रिया देते हैं। यही तंत्र उन्हें वातावरण के अनुसार स्वयं को जल्दी अनुकूलित करने में सक्षम बनाता है।

इन्हीं विशेषताओं के कारण किसी भी पारितंत्र में प्राणियों की जैव विविधता पौधों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है।

10. क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं, जहाँ पर हम जानबूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?

उत्तर: जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास लैंटाना और हायसिंथ (आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इन हानिकारक प्रजातियों को हमें जानबूझकर विलुप्त करना होगा। इसी प्रकार अनेक विषाणु जैसे-पोलियो विषाणु को विलुप्त करके दुनिया को पोलियो मुक्त करना चाहते हैं।

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