NCERT Class 11 Political Science Chapter 6 न्यायपालिका

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NCERT Class 11 Political Science Chapter 6 न्यायपालिका

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Chapter: 6

भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार
INTEX QUESTION

1. सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फ़ैसले को बदलने की इजाज़त क्यों दी गई है? क्या ऐसा यह मानकर किया गया है कि अदालत से भी चूक हो सकती है? क्या यह संभव है कि फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए जो खंडपीठ बैठी है उसमें वह न्यायाधीश भी शामिल हो, जो फ़ैसला सुनाने वाली खंडपीठ में था?

उत्तर: हाँ, सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फ़ैसले को बदलने की अनुमति इसलिए दी गई है क्योंकि यह माना जाता है कि न्यायालय से भी चूक हो सकती है। संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत, न्यायालय को अपने निर्णयों की समीक्षा करने का अधिकार दिया गया है। पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए गठित खंडपीठ में आमतौर पर वे ही न्यायाधीश शामिल होते हैं, जिन्होंने मूल फ़ैसला सुनाया था, लेकिन विशेष परिस्थितियों में अन्य न्यायाधीश भी शामिल हो सकते हैं।

2. मेरा खयाल है कि न्यायिक सक्रियता का रिश्ता कार्यपालिका और विधायिका को यह बताने से है कि उन्हें क्या करना चाहिए। यदि विधायिका और कार्यपालिका ने भी फ़ैसला सुनाना शुरू कर दिया तो फिर क्या होगा?

उत्तर: यदि विधायिका और कार्यपालिका भी फ़ैसले सुनाने लगें, तो शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत भंग हो जाएगा, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता खतरे में पड़ सकती है। इससे संवैधानिक संतुलन बिगड़ेगा और नागरिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

प्रश्नावली

1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के विभिन्न तरीके कौन-कौन से हैं? निम्नलिखित में जो बेमेल हो उसे छाँटें।

(क) सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह ली जाती है।

(ख) न्यायाधीशों को अमूमन अवकाश प्राप्ति की आयु से पहले नहीं हटाया जाता।

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(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।

(घ) न्यायाधीशों की नियुक्ति में संसद की दखल नहीं है।

उत्तर: (ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।

2. क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।

उत्तर: नहीं न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। क्योंकि यह भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है। लेकिन वह संविधान द्वारा तय की गई सीमा के अंदर ही काम करता है। भारतीय न्यायपालिका भी संविधान का भाग है और संविधान के अनुसार ही उसे कार्य करना पड़ता है। न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। प्रणाली को संविधान के प्रति जवाबदेही के साथ स्वतंत्र रूप से कार्य करना होता है।

3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं?

उत्तर: न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान है–

(i) न्यायाधीशों की नियुक्ति योग्यता और अवस्था के आधार पर की जाती है।

(ii) न्यायाधीशों के पारिश्रमिक और सेवा शर्तों की रक्षा की जाती है।

(iii) न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद अदालतों में प्रैक्टिस करने से रोका जाता है।

(iv) न्यायपालिका को यह अधिकार है कि वह संविधान-विरोधी कानूनों को रद्द कर सके।

(v) न्यायाधीशों का कार्यकाल और सेवानिवृत्ति की आयु तय है, जिससे उनके काम में स्थिरता बनी रहती है।

4. नीचे दी गई समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और उनमें निम्नलिखित पहलुओं की पहचान करें।

(क) मामला किस बारे में है?

उत्तर: मामला इस बारे में है कि रिलायंस एनर्जी के ताप-ऊर्जा संयंत्र से होने वाले प्रदूषण के कारण दहानु के किसानों की चीकू उत्पादन और पर्यावरण को हुए नुकसान से जुड़ा है। किसानों ने इस प्रदूषण के खिलाफ अदालत में अर्जी दी थी, और सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस एनर्जी को किसानों को 300 करोड़ रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है।

(ख) इस मामले में लाभार्थी कौन है?

उत्तर: इस मामले में लाभार्थी दहानु के चीकू उत्पादक किसान हैं। 

(ग) इस मामले में फरियादी कौन है?

उत्तर: इस मामले में फरियादी दहानु के किसान हैं।

(घ) सोचकर बताएँ कि कंपनी की तरफ से कौन-कौन से तर्क दिए जाएँगे?

उत्तर: कंपनी की तरफ से निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:

(i) संयंत्र में सभी पर्यावरणीय मानकों का पालन किया गया है।

(ii) प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए संयंत्र में उचित तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।

(iii) क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण के लिए अन्य कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे वाहन उत्सर्जन, अन्य उद्योग, आदि।

(iv) कंपनी स्थानीय समुदाय के विकास और रोजगार सृजन में योगदान दे रही है।

(ङ) किसानों की तरफ से कौन-से तर्क दिए जाएँगे?

उत्तर: किसानों की तरफ से निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:

(i) ताप-ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाले धुएं और राख ने फसलों और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है।

(ii) क्षेत्र में चीकू उत्पादन में भारी गिरावट आई है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई है।

(iii) प्रदूषण ने न केवल फसलों को, बल्कि स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य और जल स्रोतों को भी प्रभावित किया है।

(iv) संयंत्र का संचालन पर्यावरणीय मानकों और नियमों का उल्लंघन करता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस से दहानु के किसानों को 300 करोड़ रुपए देने को कहा निजी कारपोरेट ब्यूरो, 24 मार्च 2005

मुंबई – सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस एनर्जी से मुंबई के बाहरी इलाके दहानु में चीकू फल उगाने वाले किसानों को 300 करोड़ रुपए देने के लिए कहा है। चीकू उत्पादक किसानों ने अदालत में रिलायंस के ताप-ऊर्जा संयंत्र से होने वाले प्रदूषण के विरुद्ध अर्जी दी थी। अदालत ने इसी मामले में अपना फ़ैसला सुनाया है।

दहानु मुंबई से 150 कि.मी. दूर है। एक दशक पहले तक इस इलाके की अर्थ व्यवस्था खेती और बागवानी के बूते आत्मनिर्भर थी और दहानु की प्रसिद्धि यहाँ के मछली पालन तथा जंगलों के कारण थी। सन् 1989 में इस इलाके में ताप-ऊर्जा संयंत्र चालू हुआ और इसी के साथ शुरू हुई इस इलाके की बर्बादी। अगले साल इस उपजाऊ क्षेत्र की फ़सल पहली दफ़ा मारी गई। कभी महाराष्ट्र के लिए फलों का टोकरा रहे दहानु की अब 70 प्रतिशत फ़सल समाप्त हो चुकी है। मछली पालन बंद हो गया है और जंगल विरल होने लगे हैं। किसानों और पर्यावरणविदों का कहना है कि ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाली राख भूमिगत जल में प्रवेश कर जाती है और पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रदूषित हो जाता है। दहानु तालुका पर्यावरण सुरक्षा प्राधिकरण ने ताप-ऊर्जा संयंत्र को प्रदूषण नियंत्रण की इकाई स्थापित करने का आदेश दिया था ताकि सल्फर का उत्सर्जन कम हो सके। सर्वोच्च न्यायालय ने भी प्राधिकरण के आदेश के पक्ष में अपना फ़ैसला सुनाया था। इसके बावजूद सन् 2002 तक प्रदूषण नियंत्रण का संयंत्र स्थापित नहीं हुआ। सन् 2003 में रिलायंस ने ताप ऊर्जा संयंत्र को हासिल किया और सन् 2004 में उसने प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र लगाने की योजना के बारे में एक खाका प्रस्तुत किया। प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र चूँकि अब भी स्थापित नहीं हुआ था इसलिए दहानु तालुका पर्यावरण सुरक्षा प्राधिकरण ने रिलायंस से 300 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी देने को कहा।

5. नीचे की समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और, चिह्नित करें कि रिपोर्ट में किस-किस स्तर की सरकार सक्रिय दिखाई देती है।

(क) सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की निशानदेही करें।

उत्तर: यातायात के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निश्चित मापदण्डों के आधार पर केस को तय करने में सर्वोच्च न्यायालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।

(ख) कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज की कौन-सी बातें आप इसमें पहचान सकते हैं?

उत्तर: कार्यपालिका:

(i) केंद्र और दिल्ली सरकार ने दोहरे ईंधन प्रणाली की नीति बनाई।

(ii) उच्चस्तरीय समिति गठित कर ऑटो ईंधन नीति पर सुझाव मांगा।

(iii) सर्वोच्च न्यायालय से सीएनजी में बसों को बदलने की समय-सीमा बढ़ाने की अपील का निर्णय लिया।

न्यायपालिका:

(i) सीएनजी के अलावा अन्य ईंधनों पर बसें चलाने पर रोक लगाई।

(ii) सरकार को समय-सीमा बढ़ाने की अपील करने का विकल्प दिया।

(iii) टैक्सी और ऑटो रिक्शा के लिए सीएनजी अनिवार्य करने पर जोर नहीं दिया।

(ग) इस प्रकरण से संबद्ध नीतिगत मुद्दे, कानून बनाने से संबंधित बातें, क्रियान्वयन तथा कानून की व्याख्या से जुड़ी बातों की पहचान करें।

उत्तर: 

नीतिगत मुद्देकानून बनाने से संबंधित बातेंक्रियान्वयनकानून की व्याख्या:
सीएनजी बनाम डीजल के उपयोग पर बहस।डॉ. आरए मशेलकर समिति को राष्ट्रीय स्तर पर ऑटो ईंधन नीति बनाने की जिम्मेदारी।सीएनजी आपूर्ति स्टेशनों की कमी और उसकी पूर्ति।सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की व्याख्या करते हुए नीति तैयार की जा रही है।
दोहरे ईंधन प्रणाली (सीएनजी और डीजल) अपनाने की आवश्यकता।सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखकर नीति निर्धारण।न्यायालय के निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना।“सीएनजी के अलावा अन्य ईंधन पर रोक” का अर्थ और उसका परिवहन प्रणाली पर प्रभाव।

सीएनजी मुद्दे पर केंद्र और दिल्ली सरकार एक साथ

स्टाफ रिपोर्टर, द हिंदू, सितंबर 23, 2001 राजधानी के सभी ग़ैर-सीएनजी व्यावसायिक वाहनों को यातायात से बाहर करने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार संयुक्त रूप से सर्वोच्च न्यायालय का सहारा लेंगे। दोनों सरकारों में इस बात की सहमति हुई है। दिल्ली और केंद्र की सरकार ने पूरी परिवहन व्यवस्था को एकल ईंधन प्रणाली से चलाने के बजाय दोहरे ईंधन – प्रणाली से चलाने के बारे में नीति बनाने का फैसला किया है क्योंकि एकल ईंधन प्रणाली खतरों से भरी है और इसके परिणामस्वरूप विनाश हो सकता है।

राजधानी के निजी वाहन धारकों ने सीएनजी के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने का भी फैसला किया गया है। दोनों सरकारें राजधानी में 0.05 प्रतिशत निम्न सल्फर डीजल से बसों को चलाने की अनुमति देने के बारे में दबाव डालेंगी। इसके अतिरिक्त अदालत से कहा जाएगा कि जो व्यावसायिक वाहन यूरो-दो मानक को पूरा करते हैं उन्हें महानगर में चलने की अनुमति दी जाए। हालाँकि केंद्र और दिल्ली सरकार अलग-अलग हलफनामा दायर करेंगे लेकिन इनमें समान बिंदुओं को उठाया जाएगा। केंद्र सरकार सीएनजी के मसले पर दिल्ली सरकार के पक्ष को अपना समर्थन देगी।

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री श्री राम नाईक के बीच हुई बैठक में ये फ़ैसले लिए गए। श्रीमती शीला दीक्षित ने कहा कि केंद्र सरकार अदालत से विनती करेगी कि डॉ. आरए मशेलकर की अगुआई में गठित उच्चस्तरीय समिति को ध्यान में रखते हुए अदालत बसों को सीएनजी में बदलने की आखिरी तारीख आगे बढ़ा दे क्योंकि 10,000 बसों को निर्धारित समय में सीएनजी में बदल पाना असंभव है। डॉ. मशेलकर की अध्यक्षता में गठित समिति पूरे देश के ऑटो ईंधन नीति का सुझाव देगी। उम्मीद है कि यह समिति छः माह में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि अदालत के निर्देशों पर अमल करने के लिए समय की ज़रूरत है। इस मसले पर समग्र दृष्टि अपनाने की बात कहते हुए श्रीमती दीक्षित ने बताया-सीएनजी से चलने वाले वाहनों की संख्या, सीएनजी की आपूर्ति करने वाले स्टेशनों पर लगी लंबी कतार की समाप्ति, दिल्ली के लिए पर्याप्त मात्रा में सीएनजी ईंधन जुटाने तथा अदालत के निर्देशों को अमल में लाने के तरीके और साधनों पर एक साथ ध्यान दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने सीएनजी के अतिरिक्त किसी अन्य ईंधन से महानगर में बसों को चलाने की अपनी मनाही में छूट देने से इन्कार कर दिया था लेकिन अदालत का कहना था कि टैक्सी और ऑटो रिक्शा के लिए भी सिर्फ सीएनजी इस्तेमाल किया जाए, इस बात पर उसने कभी जोर नहीं डाला। श्री राम नाईक का कहना था कि केंद्र सरकार सल्फर की कम मात्रा वाले डीजल से बसों को चलाने की अनुमति देने के बारे में अदालत से कहेगी, क्योंकि पूरी यातायात व्यवस्था को सीएनजी पर निर्भर करना खतरनाक हो सकता है। राजधानी में सीएनजी की आपूर्ति पाईपलाइन के जरिए होती है और इसमें किसी किस्म की बाधा आने पर पूरी सार्वजनिक यातायात प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाएगी।

6. निम्नलिखित कथन इक्वाडोर के बारे में है। इस उदाहरण और भारत की न्यायपालिका के बीच आप क्या समानता अथवा असमानता पाते हैं?

सामान्य कानूनों की कोई संहिता अथवा पहले सुनाया गया कोई न्यायिक फ़ैसला मौजूद होता तो पत्रकार के अधिकारों को स्पष्ट करने में मदद मिलती। दुर्भाग्य से इक्वाडोर की अदालत इस रीति से काम नहीं करती। पिछले मामलों में उच्चतर अदालत के न्यायाधीशों ने जो फ़ैसले दिए हैं उन्हें कोई न्यायाधीश उदाहरण के रूप में मानने के लिए बाध्य नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत इक्वाडोर (अथवा दक्षिण अमेरिका में किसी और देश) में जिस न्यायाधीश के सामने अपील की गई है उसे अपना फ़ैसला और उसका कानूनी आधार लिखित रूप में नहीं देना होता। कोई न्यायाधीश आज एक मामले में कोई फ़ैसला सुनाकर कल उसी मामले में दूसरा फ़ैसला दे सकता है और इसमें उसे यह बताने की ज़रूरत नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।

उत्तर: भारत की न्यायपालिका पारदर्शिता और न्यायिक मिसालों पर आधारित है, जहाँ फ़ैसले लिखित होते हैं और उनका कानूनी आधार स्पष्ट किया जाता है। इसके विपरीत, इक्वाडोर में न्यायाधीश पिछले फ़ैसलों का पालन करने या अपने निर्णयों का आधार बताने के लिए बाध्य नहीं हैं। इससे भारत की न्यायपालिका अधिक स्थिर और सुसंगत, जबकि इक्वाडोर की प्रणाली अस्थिर और अस्पष्ट प्रतीत होती है।

भारतीय न्याय व्यवस्था व इक्वाडोर की न्याय व्यवस्था में एक समानता यह है कि भारत व इक्वाडोर में न्यायाधीश नवीन परिस्थिति में अपना प्रथम निर्णय किसी विषय पर बदल सकते हैं।

7. निम्नलिखित कथनों को पढ़िए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमल में लाए जाने वाले विभिन्न क्षेत्राधिकार; मसलन मूल, अपीली और परामर्शकारी से इनका मिलान कीजिए।

(क) सरकार जानना चाहती थी कि क्या वह पाकिस्तान – अधिग्रहीत जम्मू-कश्मीर के निवासियों की नागरिकता के संबंध में कानून पारित कर सकती है।

उत्तर: सरकार संवैधानिक और कानूनी प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांग रही है, जो परामर्शकारी क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।

(ख) कावेरी नदी के जल विवाद के समाधान के लिए तमिलनाडु सरकार अदालत की शरण लेना चाहती है।

उत्तर: मूल क्षेत्राधिकार: राज्यों के बीच विवाद (जैसे, कावेरी नदी जल विवाद) सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।

(ग) बांध स्थल से हटाए जाने के विरुद्ध लोगों द्वारा की गई अपील को अदालत ने ठुकरा दिया।

उत्तर: अपीली क्षेत्राधिकार: निचली अदालत के फ़ैसले के खिलाफ की गई अपील पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आता है, जो अपीली क्षेत्राधिकार के अंतर्गत है।

8. जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद कर सकती है?

उत्तर: जनहित याचिका (पीआईएल) के ज़रिए गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों को न्याय मिल सकता है, जनहित याचिका के ज़रिए, न्यायालय से मदद मांगकर, गरीबों के हितों की रक्षा की जा सकती है, जनहित याचिका के ज़रिए, गरीबों को न्याय सुलभ कराया जा सकता है। जिससे उनका मौलिक अधिकार सुरक्षित किया जा सके। इसके माध्यम से सामाजिक अन्याय, भेदभाव और शोषण के मामलों को उजागर किया जाता है और सरकार को गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं और नीतियों के सही क्रियान्वयन के लिए बाध्य किया जा सकता है। यह न्याय प्रणाली को गरीब और वंचित वर्गों के लिए अधिक सुलभ और प्रभावी बनाती है।

9. क्या आप मानते हैं कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है? क्यों?

उत्तर: हां, में मानती हूं, क्योंकि यह दोनों संस्थाओं के बीच कार्यक्षेत्र की सीमाओं को चुनौती दे सकता है। न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है। न्यायिक सक्रियता के कारण अक्सर न्यायपालिका कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करती रहती है, जिसे कार्यपालिका पसंद नहीं करती। अतः न्यायपालिका तथा कार्यपालिका में विरोध की संभावना बनी रहती है।

10. न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से किस रूप में जुड़ी है? क्या इससे मौलिक अधिकारों के विषय क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिली है? 

उत्तर: भारतीय न्यायपालिका को न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति प्राप्त होती है जिसके सहारा पर न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों तथा कार्यपालिका द्वारा जारी आदेशों की संवैधानिक वैधता की जाँच कर सकती है, अगर ये संविधान के विपरीत पाए जाते हैं तो न्यायपालिका उन्हें अवैध घोषित कर सकती है। न्यायपालिका आमतौर पर नीतिगत विषयों पर टिप्पणी नहीं करती, लेकिन विगत कुछ वर्षों में न्यायपालिका ने अपनी इस सीमा को लांघते हुए कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप किया है। इसे राजनीतिक क्षेत्रों में न्यायिक सक्रियता कहा जाता है। न्यायपालिका के इस हस्तक्षेप ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न कर दी है, क्योंकि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में बाधा के रूप में देखा जा रहा है।

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