NCERT Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका

NCERT Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका and select need one. NCERT Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका Question Answers Download PDF. NCERT Class 11 Political Science Bharat Ka Samvidhan Sidhant Aur Vavhar Texbook Solutions.

NCERT Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. CBSE Class 11 Political Science Bharat Ka Samvidhan Sidhant Aur Vavhar Textual Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका Notes, CBSE Class 11 Political Science Bharat Ka Samvidhan Sidhant Aur Vavhar in Hindi Medium Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 5

भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार
INTEX QUESTION

1. इतने सारे ‘स्टिंग ऑपरेशनों’ के बाद क्या मंत्री अब भी कहीं भी कुछ भी बोलने को स्वतंत्र हैं?

उत्तर: स्टिंग ऑपरेशनों के बाद मंत्रियों की बोलने की स्वतंत्रता  के बढ़ते प्रभाव के कारण मंत्री अब पहले की तरह बेधड़क कुछ भी बोलने से चते हैं। क्योंकि उनके शब्द तेजी से जनता की और पहुंच सकते हैं और राजनीतिक या कानूनी संकट खड़ा कर सकते हैं। लेकिन, मंत्री अब भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं, परंतु जिम्मेदारी और सावधानी के साथ।

2. सरकार से विरोध दर्ज कराने का एक आम तरीका है सदन से ‘वाकआउट’ करना, क्या यह काम ज़रूरत से ज़्यादा हुआ है?

उत्तर: वाकआउट सरकार के विरोध का एक लोकतांत्रिक तरीका है, लेकिन जब यह बार-बार होता है, तो संसदीय कार्यवाही बाधित होती है और जनता के मुद्दों पर प्रभावी चर्चा नहीं हो पाती। ज़रूरत से ज़्यादा वाकआउट लोकतांत्रिक संवाद को कमजोर कर सकता है, इसलिए, वाकआउट करने के बजाय, सदन में रहकर तर्कपूर्ण बहस और मतदान के माध्यम से विरोध दर्ज कराना अधिक प्रभावी तरीका है।

3. मुझे समझ में नहीं आता कि नेता अपना दल क्यों बदलते हैं? क्या वे कभी अपनी उस पार्टी में लौट कर आते भी हैं जो उन्होंने छोड़ी थी?

उत्तर: नेता अक्सर सत्ता, व्यक्तिगत लाभ, असंतोष या राजनीतिक अवसरों के कारण दल बदलते हैं। हाँ, नेता अक्सर राजनीतिक लाभ या बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपनी पुरानी पार्टी में लौट आते हैं।

4. कानून बनाने वालों पर भी कुछ कानून लागू होते हैं?

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

उत्तर: हाँ, कानून बनाने वालों पर भी कुछ कानून लागू होते है जैसे संविधान और विधि के तहत सभी कानून और वे भी कानूनी जवाबदेही से मुक्त नहीं हैं।

प्रश्नावली

1. आलोक मानता है कि किसी देश को कारगर सरकार की ज़रूरत होती है जो जनता की भलाई करे। अतः यदि हम सीधे-सीधे अपना प्रधानमंत्री और मंत्रिगण चुन लें और शासन का काम उन पर छोड़ दें, तो हमें विधायिका की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।

उत्तर: में आलोक के बात से सहमत नहीं हुँ, लोकतंत्र में विधायिका अनिवार्य है क्योंकि यह सरकार की शक्ति पर नियंत्रण रखती है, नीतियों पर चर्चा करती है और जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। केवल प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल चुनने से सत्ता का केंद्रीकरण और निरंकुशता बढ़ सकती है, जिससे लोकतांत्रिक संतुलन टूट जाएगा।

2. किसी कक्षा में द्वि-सदनीय प्रणाली के गुणों पर बहस चल रही थी। चर्चा में निम्नलिखित बातें उभरकर सामने आयीं। इन तर्कों को पढ़िए और इनसे अपनी सहमति – असहमति के कारण बताइए।

(क) नेहा ने कहा कि द्वि-सदनीय प्रणाली से कोई उद्देश्य नहीं सधता।

उत्तर: नेहा के इस तर्क से असहमति है। द्वि-सदनीय प्रणाली लोकतांत्रिक प्रणाली को संतुलित और प्रभावी बनाती है। यह नीतियों और कानूनों पर गहराई से विचार करने का अवसर देती है और जल्दबाजी में गलत निर्णय लेने से रोकती है। राज्यसभा जैसे ऊपरी सदन विशेषज्ञता और विविध प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं, जो लोकतंत्र की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं।

(ख) शमा का तर्क था कि राज्य सभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए।

उत्तर: शमा के तर्क से सहमति है। राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होने से कानून निर्माण में विशेषज्ञता और गहराई आती है। यह सुनिश्चित करता है कि नीतियों और विधेयकों को विशेषज्ञ दृष्टिकोण से परखा जाए, जिससे उनकी गुणवत्ता और प्रासंगिकता बढ़ती है।

(ग) त्रिदेव ने कहा कि यदि कोई देश संघीय नहीं है, तो फिर दूसरे सदन की ज़रूरत नहीं रह जाती।

उत्तर: त्रिदेव के तर्क से असहमति है। द्वि-सदनीय प्रणाली संघीय देशों में राज्यों के हितों की रक्षा करती है, लेकिन यह गैर-संघीय देशों में भी महत्वपूर्ण है। यह कानूनों की समीक्षा, विस्तृत चर्चा और सत्ता के संतुलन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनती है।

3. लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में क्यों कारगर ढंग से नियंत्रण में रख सकती है?

उत्तर: जिस दिल या दलों के गठबंधन को लोकसभा में बहुमत हासिल होता है उसी के सदस्यों को मिलाकर संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका बनती है। संभव है कि बहुमत की ताकत पाकर यह कार्यपालिका अपनी शक्तियों का मनमाना प्रयोग करने लगे। ऐसी स्थिति में संसदीय लोकतंत्र मंत्रिमंडल को तानाशाही में बदल सकता है जिसमें मंत्रिमंडल जो कहेगा सदन को वही मानना पड़ेगा। जब संसद सक्रिय और सचेत होगी, तभी वह कार्यपालिका पर नियमित और प्रभावी नियंत्रण रख सकेगा।

4. लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नहीं बल्कि जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्या आप इससे सहमत हैं? कारण बताएँ।

उत्तर: नहीं मैं इस कथन से असहमत हूं। लोकसभा सिर्फ़ जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच नहीं है, बल्कि यह कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखती है, लोकसभा, जनता द्वारा सीधे चुनी जाती है, इसलिए यह कार्यपालिका पर ज़्यादा प्रभावी ढंग से नियंत्रण रख सकती है।

लोकसभा के ज़रिए कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने के कुछ कारण है–

(i) लोकसभा संसद का एक महत्वपूर्ण अंग है जो जनता के प्रतिनिधियों से बनी होती है।

(ii) लोकसभा के पास कानून बनाने, संविधान में संशोधन करने, और प्रश्न पूछने का अधिकार है।

(iii) यह न केवल जनता की समस्याओं और अपेक्षाओं को उठाने का मंच है।

5. नीचे संसद को ज़्यादा कारगर बनाने के कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति या असहमति का उल्लेख करें। यह भी बताएँ कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे?

(क) संसद को अपेक्षाकृत ज़्यादा समय तक काम करना चाहिए।

उत्तर: इस कथन से मै सहमद हुं, संसद को देश के विकास और जनता की भलाई के लिए अधिक समय तक कार्य करना चाहिए। सांसद को बिना काम-काज के भत्ता दिया जाना उचित नहीं है, यह वर्तमान में संसद के सत्र अपेक्षाकृत कम समय तक चलते हैं, जिससे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और निर्णय प्रभावित होते हैं।

(ख) संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।

उत्तर: इस कथन से मै सहमद हुं, संसद के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं, और उनका कर्तव्य है कि वे सदन की कार्यवाही में भाग लें। अधिकांश सांसद सदन से अनुपस्थित रहते हैं जिससे सदन में महत्त्वपूर्ण विषयों पर आवश्यक विचार-विमर्श नहीं हो पाता। यदि सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी जाए, तो संसद की कार्यक्षमता में सुधार होगा और चर्चा अधिक प्रभावशाली होगी।

(ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दंडित कर सकें।

उत्तर: इस कथन से मै सहमद हुं, ऐसा होने पर सदन में जो सदस्य उद्दण्डता का व्यवहार करते हैं उन पर अंकुश लगेगा और सदन की कार्यवाही निर्बाध रूप से चलती रहेगी। यदि सदस्यों द्वारा कार्यवाही में बार-बार बाधा पहुंचाई जाती है, तो यह संसद के समय और संसाधनों की बर्बादी है। अध्यक्ष को इस मामले में कार्रवाई का अधिकार होना चाहिए ताकि अनुशासन बना रहे।

6. आरिफ यह जानना चाहता था कि अगर मंत्री ही अधिकांश महत्त्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुसंख्यक दल अकसर सरकारी विधेयक को पारित कर देता है, तो फिर कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका क्या है? आप आरिफ को क्या उत्तर देंगे?

उत्तर: आरिफ यह जानना चाहता था कि अगर मंत्री ही अधिकांश महत्त्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुसंख्यक दल उन्हें पारित कर देता है, लेकिन संसद कानून बनाने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद केवल विधेयकों को पारित करने का मंच नहीं है, बल्कि यह विधेयकों पर गहन चर्चा और बहस का अवसर प्रदान करती है, जहां सभी दल अपने विचार और सुझाव रखते हैं। अगर ज़्यादातर महत्वपूर्ण विधेयक मंत्री ही पेश करते हैं, तो भी कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका अहम होती है। संसद में विधेयक पेश करने और पारित करने की प्रक्रिया में राष्ट्रपति और संसद के दोनों सदनों की भूमिका होती है। 

विधेयकों को बेहतर बनाने के लिए संसद में संशोधन किए जा सकते हैं, और सरकार को अपनी नीतियों और विधेयकों का औचित्य प्रस्तुत करना पड़ता है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है। इसके अलावा, कई बार विधेयकों को विस्तृत अध्ययन के लिए संसदीय समितियों को भेजा जाता है, जो गहराई से समीक्षा करती हैं।

7. आप निम्नलिखित में से किस कथन से सबसे ज़्यादा सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण दें।

(क) सांसद/विधायकों को अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होने की छूट होनी चाहिए।

(ख) दलबदल विरोधी कानून के कारण पार्टी के नेता का दबदबा पार्टी के सांसद/विधायकों पर बढ़ा है।

(ग) दलबदल हमेशा स्वार्थ के लिए होता है और इस कारण जो विधायक/सांसद दूसरे दल में शामिल होना चाहता है उसे आगामी दो वर्षों के लिए मंत्री पद के अयोग्य करार कर दिया जाना चाहिए।

उत्तर: में (ग) वाले कथन से सहमत हुं, इसका कारण यह है कि दलबदल लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात है। विधायक या सांसद जनता के द्वारा एक विशेष दल की नीतियों के आधार पर चुने जाते हैं। यदि वे दल बदलते हैं, तो यह उनके स्वार्थ को दर्शाता है और जनता की इच्छाओं की अवहेलना करता है।

8. डॉली और सुधा में इस बात पर चर्चा चल रही थी कि मौजूदा वक्त में संसद कितनी कारगर और प्रभावकारी है। डॉली का मानना था कि भारतीय संसद के कामकाज में गिरावट आयी है। यह गिरावट एकदम साफ दिखती है क्योंकि अब बहस मुबाहिसे पर समय कम खर्च होता है और सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करने अथवा वॉकआउट (बहिर्गमन) करने में ज़्यादा। सुधा का तर्क था कि लोकसभा में अलग-अलग सरकारों ने मुँह की खायी है, धराशायी हुई हैं। आप सुधा या डॉली के तर्क के पक्ष या विपक्ष में और कौन-सा तर्क देंगे?

उत्तर: डॉली का तर्क सही है कि संसद में बहस का समय कम और बाधाओं का चलन बढ़ा है, जिससे कामकाज प्रभावित होता है। सुधा का तर्क भी सही है कि संसद ने कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने में सफलता पाई है। मेरा तर्क यह है कि संसद की कारगरता बढ़ाने के लिए बहस और चर्चा को प्राथमिकता दी जाए और वॉकआउट जैसे व्यवधानों से बचा जाए।

9. किसी विधेयक को कानून बनने के क्रम में जिन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है उन्हें क्रमवार सजाएँ।

(क) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।

उत्तर: संबंधित मंत्री विधेयक की जरूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।

(ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है – बताएँ कि वह अगर इस पर हस्ताक्षर नहीं करता करती है, तो क्या होता है?

उत्तर: विधि-मंत्रालय का कानून-विभाग विधेयक तैयार करता है।

(ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहाँ इसे पारित कर दिया जाता है।

उत्तर: किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।

(घ) विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है।

उत्तर: विधेयक उप-समिति के पास भेजा जाता है, समिति उसमें कुछ फेरबदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।

(ङ) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।

उत्तर: विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।

(च) विधेयक उप-समिति के पास भेजा जाता है समिति उसमें कुछ फेर-बदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।

उत्तर: विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में हुआ है, उसमें यह विधेयक पारित होता है।

(छ) सबद्ध मंत्री विधेयक की ज़रूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।

उत्तर: विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहाँ इसे पारित कर दिया जाता है।

(ज) विधि-मंत्रालय का कानून-विभाग विधेयक तैयार करता है। 

उत्तर: विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। यदि राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर नहीं करते और इसे पुनर्विचार के लिए लौटा देते हैं, तो सदन में पुनः विचार किया जाता है। यदि विधेयक दोबारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाए, तो राष्ट्रपति को इसे स्वीकृति देनी होती है।

10. संसदीय समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देखरेख पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: संसदीय समितियाँ यह सब कार्य करती हैं। 1983 से भारत में संसद की स्थायी समितियों की प्रणाली विकसित की गई है। विभिन्न विभागों से संबंधित ऐसी 20 समितियाँ हैं। स्थायी समितियाँ विभिन्न विभागों के कार्यों, उनके बजट, खर्च, तथा उनसे संबंधित विधेयकों की देखरेख करती हैं।

स्थायी समितियों के अतिरिक्त, अपने देश में संयुक्त संसदीय समितियों का भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन समितियों में संसद के दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। संयुक्त संसदीय समितियों का गठन किसी विधेयक पर संयुक्त चर्चा अथवा वित्तीय अनियमितताओं की जाँच के लिए किया जा सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

Scroll to Top