NCERT Class 11 Political Science Chapter 17 राष्ट्रवाद

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NCERT Class 11 Political Science Chapter 17 राष्ट्रवाद

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Chapter: 17

राजनीतिक सिद्धांत
प्रश्नावली

1. राष्ट्र किस प्रकार से बाकी सामूहिक संबद्धताओं से अलग है?

उत्तर: राष्ट्र अन्य बाकी सामूहिक संबद्धताओं जैसे– परिवार, जनजातीय, जातीय और अन्य सगोत्रीय समूहों से अलग है। 

(i) परिवार: परिवार तो प्रत्यक्ष सम्बन्धों पर आधारित होता है जिसका प्रत्येक सदस्य एक सदस्य से दूसरे सदस्यों के व्यक्तित्व और चरित्र के विषय में व्यक्तिगत जानकारी रखता है।

(ii) जनजातीय: यह जनजातीय, जातीय और अन्य सगोत्रीय समूहों से भी अलग है। इन समूहों में विवाह और वंश परम्परा सदस्यों को आपस में जोड़ती है। 

इसलिए यदि हम सभी सदस्यों को, व्यक्तिगत रूप से भी नहीं जानते हों तो भी आवश्यकता पड़ने पर हम उन सूत्रों को खोज निकाल सकते हैं जो हमें आपस में जोड़कर रखते है, लेकिन राष्ट्र के सदस्य के रूप में हम अपने राष्ट्र के अधिकांश सदस्यों को सीधे तौर पर न कभी जान पाते हैं और न ही उनके साथ वंशानुगत नाता जोड़ने की आवश्यकता पड़ती है। फिर भी राष्ट्र हैं, लोग उनमें रहते हैं और उनका सम्मान करते हैं।

2. राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार से आप क्या समझते हैं? किस प्रकार यह विचार राष्ट्र-राज्यों के निर्माण और उनको मिल रही चुनौती में परिणत होता है?

उत्तर: राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार से हम यह समझते हैं कि सभी लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार है। इस अधिकार के आधार पर हम स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक स्थिति निर्धारित कर सकते हैं और स्वतंत्र रूप से अपना आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास कर सकते हैं।

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आत्म-निर्णय के अपने दावे में राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक राजनीतिक इकाई या राज्य के दजे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाए। अक्सर ऐसी माँग उन लोगों की ओर से आती है जो एक लंबे समय से किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते आए हों और जिनमें साझी पहचान का बोध हो। कुछ मामलों में आत्म-निर्णय के ऐसे दावे एक स्वतंत्र राज्य बनाने की उस इच्छा से भी जुड़े होते हैं। इन दावों का संबंध किसी समूह की संस्कृति की सुरक्षा करने से होता है।

3. हम देख चुके हैं कि राष्ट्रवाद लोगों को जोड़ भी सकता है और तोड़ भी सकता है। उन्हें मुक्त कर सकता है और उनमें कटुता और संघर्ष भी पैदा कर सकता है। उदाहरणों के साथ उत्तर दीजिए।

उत्तर: राष्ट्रवाद का प्रभाव समाज पर दो तरह से पड़ सकता है, यह लोगों को जोड़ने के साथ-साथ उन्हें तोड़ भी सकता है।

(i) राष्ट्रवाद लोगों को जोड़ सकता है:

स्वतंत्रता संग्राम: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, राष्ट्रवाद ने भारतीयों को एकजुट किया था। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं के नेतृत्व में, भारतीय जनता ने साम्राज्यवाद के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया। इस राष्ट्रीय आंदोलन ने देशवासियों को एक साझा उद्देश्य और पहचान दी।

राष्ट्रीय एकता: भारत में विभिन्न भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों के बावजूद, भारतीय राष्ट्रवाद ने एक मज़बूत राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न की, जो आज भी भारतीय समाज में प्रमुख है।

(ii) राष्ट्रवाद लोगों को तोड़ भी सकता है:

भारत-पाकिस्तान विभाजन: 1947 में भारत का विभाजन और पाकिस्तान का निर्माण राष्ट्रवाद के कारण हुआ था, जिसमें धार्मिक आधार पर दो नए देशों का निर्माण हुआ। यह विभाजन लाखों लोगों की जानें लेने वाला और कई परिवारों को तोड़ने वाला था।

नागरिक संघर्ष और अल्पसंख्यक अधिकार: जब राष्ट्रवाद अत्यधिक और कट्टर हो जाता है, तो यह धार्मिक या सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव का कारण बन सकता है। जैसे कि 1990 के दशक में कश्मीर में भड़की हिंसा और 2002 में गुजरात दंगे, जहां उग्र राष्ट्रवाद ने लोगों के बीच विभाजन और संघर्ष को बढ़ाया था।

4. वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता। टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि आंतरिक तौर पर इन सभी में विभिन्नताएं पाई जाती हैं। विश्व के सभी बड़े-बड़े धर्म आंतरिक तौर पर विविधता से भरे हुए हैं। इसी तरह एक स्थान की भाषा दूसरे स्थान की भाषा से अलग होती है। और इन तत्वों का राष्ट्रवाद पर प्रभाव भी भिन्न होता है। वंश, भाषा, धर्म, या नस्ल जैसे कारक केवल एक स्थानीय या क्षेत्रीय संदर्भ में प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन ये वैश्विक स्तर पर सार्वभौमिक नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए, भाषा आधारित राष्ट्रवाद जैसे फ्रांस या जापान में महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन अन्य देशों में यह उतना प्रभावी नहीं है, जहां कई भाषाएँ बोली जाती हैं। इसी प्रकार, धर्म और जातीयता का प्रभाव भी विभिन्न समाजों में अलग-अलग रूपों में दिखाई देता है, और कभी-कभी ये तत्व संघर्ष या भेदभाव का कारण भी बन सकते हैं। इसलिए, इन कारकों को राष्ट्रवाद के लिए वैश्विक कारण के रूप में देखना सटीक नहीं होगा।

5. राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारकों पर सोदाहरण रोशनी डालिए।

उत्तर: राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

(i) साझे विश्वास – राष्ट्र विश्वास के माध्यम से बनता है। राष्ट्रवाद समूह के भविष्य के लिए सामूहिक पहचान और दृष्टि का प्रमाण है, जो स्वतन्त्र राजनीतिक अस्तित्व का आकांक्षी है।

(ii) इतिहास – राष्ट्रवादी भावनाओं को इतिहास भी प्रेरित करती है। यानी वे राष्टवादियों में स्थायी ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है। यानी वे राष्ट्र को इस रूप में देखते हैं जैसे वे बीते अतीत के साथ-साथ आने वाले भविष्य को समेटे हुए हैं।

(iii) भू-क्षेत्र – राष्ट्रवादी भावनाएँ एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी होती हैं। किसी विशिष्ठ भू-क्षेत्र पर दीर्घकाल तक साथ-साथ रहना और उससे जुड़े साझे अतीत की यादें लोगों को एक सामूहिक पहचान का बोध कराती हैं।

(iv) साझे राजनीतिक आदर्श: राष्ट्रवादियों की साझा राजनीतिक दृष्टि होती है कि वे किस प्रकार का राज्य बनाना चाहते हैं। शेष बातों के अलावा वे लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता और उदारवाद जैसे मूल्यों और सिद्धान्तों को भी स्वीकार करते हैं।

6. संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक समर्थ होता है। कैसे?

उत्तर: संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक समर्थ होता है क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में समाज के सभी लोगों को चाहे वे राष्ट्र के साथ है या नहीं, अपने विचार रखने का अधिकार मिलता है। लोकतंत्र में किसी खास धर्म, नस्ल या भाषा से संबद्धता की जगह एक मूल्य समूह के प्रति निष्ठा की जरूरत होती है। इस मूल्य-समूह को देश के संविधान में भी दर्ज़ किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक समुदाय के सदस्य कुछ दायित्वों से बँधे होते हैं। ये दायित्व सभी लोगों के नागरिकों के रूप में अधिकारों को पहचान लेने से पैदा होते हैं। अगर राष्ट्र के नागरिक अपने सहनागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को जान और मान लेते हैं तो इससे राष्ट्र मजबूत ही होता है। 

7. आपकी राय में राष्ट्रवाद की सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर: राष्ट्रवादी अक्सर स्वतंत्र राज्य को अपने अधिकार के रूप में देखने लगते हैं। हालांकि, यह संभव नहीं है कि प्रत्येक राष्ट्रीय समूह को स्वतंत्र राज्य प्रदान किया जाए, और यह आवश्यक नहीं कि ऐसा करना उचित हो। इससे ऐसे राज्यों का निर्माण हो सकता है, जो आर्थिक और राजनीतिक रूप से अत्यधिक छोटे और अस्थिर हों। इसके अलावा, इससे अल्पसंख्यक समुदायों की समस्याएँ और बढ़ सकती हैं। इसलिए, हमें राष्ट्रवाद के असहिष्णु और एकांगी स्वरूपों को प्रोत्साहित करने के बजाय समावेशी और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

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