NCERT Class 11 Fine Art Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

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NCERT Class 11 Fine Art Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

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Chapter: 4

भारतीय कला का परिचय: भाग – 1
अभ्यास

1. साँची के स्तूप संख्या 1 की भौतिक एवं सौंदर्य विशिष्टताओं का वर्णन करें।

उत्तर: सांची के स्तूप संख्या 1, जिसे महान स्तूप के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म के एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह अपनी जटिल नक्काशी, वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इन तोरणों पर बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और जातक कथाएँ अत्यंत जीवंत और गहराई से उकेरी गई हैं। मूर्तियाँ संपूर्ण अंतराल को भरती हैं और उनमें गतिशीलता और कोमलता स्पष्ट दिखाई देती है। आकृतियों की मुद्राएँ स्वाभाविक और लयात्मक हैं जिनसे मूर्तियों में जीवन का संचार प्रतीत होता है। यह स्तूप बौद्ध कला की परिपक्वता, संतुलन और गहन भावनात्मक अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।

2. पाँचवीं एवं छठी शताब्दी ईसवी में उत्तर भारत मूर्तिकला की शैलीगत प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।

उत्तर: पाँचवीं और छठी शताब्दी ईस्वी के दौरान उत्तर भारत में मूर्तिकला का विकास परिपक्वता की ओर अग्रसर था। इस काल में मूर्तियों में शरीर की बनावट अधिक वास्तविक और पारदर्शिता से युक्त दिखाई देती है। उनकी कला से वस्त्रों को इस प्रकार दर्शाया गया कि वे शरीर से चिपके हुए प्रतीत होते हैं, जिससे शरीर की आकृति स्पष्ट झलकती है। मथुरा, सारनाथ और कौशांबी जैसे स्थलों पर बुद्ध की प्रतिमाएँ पारदर्शी वस्त्रों में दिखाई देती हैं, जिनमें सौम्यता और आध्यात्मिकता प्रमुख है। चेहरे पर हल्की मुस्कान, कम अलंकरण, और शांत मुद्रा इस काल की विशिष्टताएँ हैं। मूर्तियाँ भारीपन से मुक्त होकर अधिक स्वाभाविक और मांसल दिखाई देने लगीं, जिसमें भौतिक सौंदर्य के साथ आध्यात्मिक भावनाओं का भी समावेश किया गया। यह काल मूर्तिकला की भावनात्मक और शैलीगत परिपक्वता का प्रतीक रहा।

3. भारत के विभिन्न भागों में गुफ़ा आश्रयों से एलोरा के एकाश्म मंदिर तक वास्तुकला का विकास किस प्रकार हुआ?

उत्तर: भारत में गुफ़ा वास्तुकला का विकास प्रारंभिक बौद्ध गुफ़ाओं से हुआ, जहाँ स्तूपों के साथ संरचनात्मक मंदिर भी बने, परंतु वे आज शेष नहीं हैं। साँची का गजपृष्ठाकार चैत्य (मंदिर संख्या 18) और गुंटापल्ली के मंदिर इसके उदाहरण हैं। भज, अजंता, कन्हेरी, नासिक और कैलास के गुफा मंदिरों में शिल्प की जटिलता और भव्यता स्पष्ट देखी जा सकती है। धीरे-धीरे यह विकास गुफ़ाओं से बाहर निकलकर स्वतंत्र मंदिर स्थापत्य की दिशा में बढ़ा। एलोरा में यह परंपरा चरम पर पहुँची, जहाँ एक ही चट्टान को काटकर कैलाश मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर वास्तुकला और शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण है, जिसमें शैव, वैष्णव और बौद्ध परंपराएँ एक ही स्थान पर अभिव्यक्त हुई हैं। इस विकास यात्रा में संरचनाओं की जटिलता, आकार की भव्यता और धार्मिक विविधता सभी का सुंदर संगम देखने को मिलता है।

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4. अजंता के भित्ति-चित्र क्यों विख्यात हैं?

उत्तर: अजंता के भित्ति-चित्र अपनी कलात्मक सुंदरता, भावनात्मक गहराई और विषयवस्तु की विविधता के लिए विख्यात हैं। यह महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है और वहाँ भुसावल जलगाँव और औरंगाबाद के रास्ते से पहुँचा जा सकता है। अजंता में कुल 26 गुफ़ाएँ हैं। इन चित्रों में बुद्ध के जीवन की घटनाएँ, जातक कथाएँ और बौद्ध दर्शन की झलक अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की गई है। चित्रों में आकृतियों की मुद्राएँ, आँखों की अभिव्यक्ति और रंगों की लयात्मकता चित्रकला को जीवंत बना देती है। ये चित्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्व रखते हैं, बल्कि मानव भावनाओं, सामाजिक जीवन और प्रकृति के सौंदर्य को भी बखूबी दर्शाते हैं। इस चित्र में बाहर की ओर प्रक्षेप दिखलाया गया है, रेखाएँ अत्यंत स्पष्ट हैं और उनमें पर्याप्त लयबद्धता देखने को मिलती है। शरीर का रंग बाहरी रेखा के साथ मिल गया है जिससे चित्र का आयतन फैला हुआ प्रतीत होता है। आकृतियाँ पश्चिमी भारत की प्रतिमाओं की तरह भारी हैं।

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