NCERT Class 11 Fine Art Chapter 3 मौर्य कालीन कला

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NCERT Class 11 Fine Art Chapter 3 मौर्य कालीन कला

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Chapter: 3

भारतीय कला का परिचय: भाग – 1
अभ्यास

1. क्या आप यह सोचते हैं कि भारत में प्रतिमाएँ मूर्तियाँ बनाने की कला मौर्य काल मे शुरू हो गई थी? इस संबंध में आपके क्या विचार हैं, उदाहरण सहित लिखें।

उत्तर: भारत में प्रतिमाएँ और मूर्तियाँ बनाने की कला मौर्य काल में शुरू नहीं हुई थी, बल्कि इसकी शुरुआत इससे बहुत पहले, सिंधु घाटी सभ्यता के समय हो चुकी थी। सिंधु सभ्यता की नर्तकी की कांस्य प्रतिमा, दाढ़ी वाले पुजारी की पत्थर की मूर्ति और मिट्टी से बनी मातृदेवी की आकृतियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि लोग तब भी मूर्तिकला में निपुण थे। मौर्य काल में जरूर इस कला को राजकीय संरक्षण मिला और यह अधिक विकसित हुई।

उदाहरणस्वरूप, अशोक स्तंभों के शीर्ष पर सिंह-मुखी मूर्तियाँ, पाटलिपुत्र की यक्षिणी प्रतिमा, तथा बाराबर गुफाओं की नक्काशी मौर्य काल की उन्नत मूर्तिकला का प्रतीक हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि मूर्तिकला की परंपरा मौर्य काल से पहले शुरू हो चुकी थी, लेकिन मौर्य काल में उसे विशेष प्रोत्साहन और विस्तार मिला।

2. स्तूप का क्या महत्व था और स्तूप वास्तुकला का विकास कैसे हुआ?

उत्तर: स्तूप बौद्ध धर्म में अत्यंत पवित्र धार्मिक स्मारक होते थे, जो बुद्ध के अवशेषों (धातुओं), उनकी स्मृति या उपदेशों को समर्पित होते थे। यह बौद्ध श्रद्धा का केंद्र हुआ करते थे और साधकों के लिए पूजा व परिक्रमा का स्थान भी। प्रारंभ में स्तूप केवल मिट्टी या ईंट के बने ढाँचे होते थे, लेकिन मौर्य काल में अशोक ने इनका निर्माण बड़े पैमाने पर करवाया। बाद में स्तूपों में वास्तुशिल्पीय विकास हुआ—बेलनाकार ढोल, अर्धगोलाकार गुंबद (अंडा), हरमिका, छत्र, परिक्रमा पथ और अलंकृत द्वार जुड़े। साँची, भरहुत, अमरावती जैसे स्थलों पर इनका सुंदर उदाहरण देखने को मिलता है।

3. बुद्ध के जीवन की वे चार घटनाएं कौन-सी थीं जिन्हें बौद्ध कला के भिन्न-भिन्न रूपों में चित्रित किया गया है, ये घटनाएं किस बात का प्रतीक थी?

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उत्तर: बौद्ध कला में बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाएँ बार-बार चित्रित की गई हैं—

(i) जन्म। 

(ii) गृहत्याग। 

(iii) ज्ञानप्राप्ति (बोधगया में)। और 

(iv) महापरिनिर्वाण।

ये घटनाएँ उनके जीवन के आध्यात्मिक यात्रा और आत्मबोध के प्रतीक हैं। इन्हें प्रत्यक्ष रूप से बुद्ध की आकृति के बजाय प्रतीकों (जैसे कमल, अश्व, वृक्ष, चक्र, सिंहासन) के रूप में दर्शाया गया। ये प्रतीक ध्यान, त्याग, ज्ञान और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।

4. जातक क्या है? जातकों का बौद्ध धर्म से क्या संबंध है? पता लगाइए।

उत्तर: जातक कथा या बुद्ध के जीवन की किसी घटना का वर्णन बौद्ध परंपरा का अभिन्न अंग बन गया था। जातक कथाएँ स्तूपों के परिक्रमा पथों और तोरण द्वारों पर चित्रित की गई हैं। चित्रात्मक परंपरा में मुख्य रूप से संक्षेप आख्यान, सतत आख्यान और घटनात्मक आख्यान पद्धति का प्रयोग किया जाता है। वैसे तो सभी बौद्ध स्मारकों में मुख्य विषय बुद्ध के जीवन की घटनाएँ ही हैं, लेकिन मूर्तियों या आकृतियों से सजावट करने के मामले में जातक कथाएँ भी समान रूप से महत्वपूर्ण रही हैं। बुद्ध के जीवन से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं पर उनमें से अक्सर बुद्ध के जन्म, गृह त्याग, ज्ञान (बुद्धत्व) प्राप्ति, धम्मचक्रप्रवर्तन और महापरिनिर्वाण (जन्म चक्र से मुक्ति) की घटनाओं को ही अक्सर चित्रित किया गया है। जिन जातक कथाओं का अक्सर अनेक स्थानों पर बार-बार चित्रण दर्शाया गया है, वे मुख्य रूप से छदंत जातक, विदुरपंडित जातक, रूरू जातक, सिबि जातक, वेस्सांतर जातक और शम जातक से हैं।

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