NCERT Class 12 Hindi Chapter 18 अतीत में दबे पाँव

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NCERT Class 12 Hindi Chapter 18 अतीत में दबे पाँव

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Chapter: 18

HINDI

अभ्यास

1. सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?

उत्तर: सिन्धु सभ्यता, एक साधन-सम्पन्न सभ्यता थी परन्तु उसमें राजसत्ता या धर्मसत्ता के चिह्न नहीं मिलते। इसके प्रमाण मुअनजो-दड़ो में चारों ओर बिखरे हुए हैं। शहर का व्यवस्थित रूप, चारों ओर मकान की सुविधा संपन्न बनावट, पानी की निकासी की उत्तम व्यवस्था, सड़कों का आकार तथा बनावट, विशाल स्नानागार, कुओं की व्यवस्था, तांबे का प्रयोग, पत्थरों का प्रयोग, कपड़ों पर रंगाई, पूजास्थल, अन्य स्थानों से व्यापार संबंध, खेती के सबूत इत्यादि बातें इसकी भव्यता की कहानी कह जाते हैं। वहाँ की नगर योजना, वास्तुकला, मुहरों, ठप्पों, जल-व्यवस्था, साफ-सफाई और सामाजिक व्यवस्था आदि की एकरूपता द्वारा उनमें अनुशासन देखा जा सकता है। वहाँ पर किसी प्रकार के राजप्रसाद दिखाई नहीं देते हैं। न ही ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिससे वहाँ किसी बड़े मंदिर का पता चले। वहाँ पर विकसित सभ्यता के चिह्न मिलते हैं।

2. ‘सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया?

उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता के सौंदर्य-बोध को समाज-पोषित इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें राज-पोषित या धर्म-पोषित चिह्न नहीं मिलते। इस सभ्यता में आम जनता से जुड़े चिह्न ज़्यादा हैं और इसमें प्रभुत्व या दिखावे के तेवर भी नहीं दिखाई देते। यहाँ पर धर्मतंत्र या राजतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाली वस्तुएँ-महल, उपासना-स्थल आदि-नहीं मिलतीं। यहाँ आम आदमी के काम आने वाली चीजों को सलीके से बनाया गया है। इन सारी चीजों से उसका सौंदर्य-बोध उभरता है। यहां आम आदमी के काम आने वाली चीज़ों को सलीके से बनाया गया है। सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का बहुत महत्व था। इसी आधार पर कहा जाता है कि सिंधु-सभ्यता का सौंदर्य-बोध समाज-पोषित था।

3. पुरातत्त्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि– “सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

उत्तर: मोहन जोदड़ो और हड़प्पा, सिंधु सभ्यता के दो बहुत ही प्रसिद्ध नगर हैं। मोहन जोदड़ो का नगर नियोजन बेमिसाल है। यहाँ की सड़कों और गलियों के विस्तार को, यहाँ के खंडहरों को देख कर ही जाना जा सकता है। यहाँ की हर सड़क आड़ी-सीधी है। यदि हम इस शहर की बनावट पर नज़र डालें तो पता चलता है कि नगर से जुड़ी हर चीज़ अपने सही स्थान पर है। यहाँ पर खुदाई के दौरान, गहने, खिलौने, बर्तन, कंघी, अनाज के बीज इत्यादि सब पाए गए हैं लेकिन युद्ध में प्रयोग होने वाले हथियार नहीं पाए गए। जो इस बात का प्रमाण है कि पुरातत्त्व सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी। इसलिए यह कहना सर्वथा उचित है कि सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी।

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4. ‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे हैं।’ इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

उत्तर: लेखक इस वाक्य का प्रयोग मुअन जो-दड़ो जाने के बाद करता है। मुअन जो-दड़ो में सिन्धु सभ्यता के खण्डहर बिखरे हैं। लेखक को मोहन-जोदाड़ो में चारों ओर इस सभ्यता के प्रमाण दिखाई देते हैं। इससे लेखक हमें बताता है कि इतिहास भी कभी वर्तमान था। यह वर्तमान भी कभी हमारी तरह सजीव और विकसित था। यहाँ जितने भी प्रमाण मिले हैं या बिखरे पड़े हैं, वे बेशक ऐतिहासिक हो सकते हैं। पुरातात्विक या ऐतिहासिक स्थान का महत्त्व सामान्य तौर पर ज्ञान से सबंधित होता है। इतिहास यह बताता है कि यहाँ कभी पूरी आबादी अपना जीवन व्यतीत करती थी। लेखक इस ज्ञान के अलावा भी कुछ और जानना चाहता है। जानने से अधिक वह महसूस करना चाहता है। उसे लगता है कि जिस मकान के खंडहर में वह खड़ा है, उसी मकान में जीवन भी था। लोग उस मकान में रहते थे, अपना पूरा जीवन बिताते थे।

5. टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं– इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।I

उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता में इतिहास से जुड़े हज़ारों प्रमाण इधर-उधर बिखरे हुए हैं। मोहनजोदड़ो के खण्डहर आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व की सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास को दर्शाते हैं कि उस समय वहाँ के निवासी कितने सम्पन्न थे और उनका रहन-सहन, सामाजिक स्वरूप, व्यवसाय-व्यापार कैसा था। यहाँ से प्राप्त खिलौने, गहने, बर्तन, नावें इस सभ्यता से जुड़ी हर बात का खुलासा करते हैं। इनसे वहाँ की संस्कृति के बारे में भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। परन्तु जब इन खंडहरों पर दृष्टि पड़ती है, तो ऐसा जान पड़ता है मानो अभी बोल पड़ेंगे। इनके घर अब भी अपने होने का अहसास करा देते हैं। गलियों में खड़े हो तो लगता है कि अभी बैलगाड़ी सामने से निकल रही है। शहर की दीवारों में अब भी टेक लेकर खड़े हो सकते हैं। घरों की देहरी पर जाएँ, तो ऐसा जान पड़ता है मानो अब भी यहाँ पर लोग निवास करते हैं। वस्तुतः वहाँ के टूटे-फूटे खण्डहरों को देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उस सभ्यता का भी समृद्धिशाली वर्तमान था।

6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

7. नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।

उत्तर: हमारा जवाब लेखक के पक्ष में है। इस नगर में अब जो देखने को बचा है, वह जल व्यवस्था ही है। मोहनजोदड़ो के समीप बहती हुई सिन्धु नदी, नगर में स्थित कुएँ, महाकुण्ड, स्नानागार तथा पानी निकासी की बेजोड व्यवस्था को देखकर लेखक ने सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘जल-संस्कृति’ कहा है। प्रत्येक घर में एक स्नानघर था। घर के भीतर से पानी या मैला पानी नालियों के माध्यम से बाहर हौदी में आता है और फिर बड़ी नालियों में चला जाता है। ऐसी जल व्यवस्था जो स्वयं में अद्भुत है। आज के समय में जब हम स्वयं को आधुनिक कहते हैं, ऐसी जल व्यवस्था प्रणाली देखने को नहीं मिलती है। नगर में कुओं का प्रबंध था। ये कुएँ पक्की ईटों के बने थे। अकेले मुअनजो-दड़ों नगर में सात सौ कुएँ हैं। ऐसे में सिन्धु सभ्यता के अंदर हमें बड़ा सामूहिक स्नानागार मिलता है। बड़े-बड़े कुएँ वहाँ पर विद्यमान हैं, जिससे नगर में पानी की व्यवस्था की जाती है। इसलिए इसे जल-संस्कृति कहना गलत नहीं होगा।

8. सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ़ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? में इससे इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।

उत्तर: यदि मोहनजोदड़ो अर्थात् सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में धारणा बिना साक्ष्यों के बनाई गई है तो यह गलत नहीं है। मेरे मन में यह धारणा उत्पन्न होती है कि यदि सिंधु घाटी सभ्यता विद्यमान थी, तो उसके अतिरिक्त और भी सभ्यताएँ विद्यमान रही होगीं। क्योंकि जो कुछ हमें खुदाई से मिला है वह किसी साक्ष्य से कम नहीं। खुदाई के दौरान मिले बर्तनों, सिक्कों, नगरों, सड़कों, गलियों को साक्ष्य ही कहा जा सकता। सभ्यता अकेले नहीं फल-फूल सकती है। इसके भी अन्य सभ्यताओं के साथ व्यापारिक संबंध रहे होगें। साक्ष्य लिखित हों यह जरूरी नहीं है। जो कुछ हमें सामने दिखाई दे रहा है वह भी तो प्रमाण है। मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। वह हर दृष्टि से प्रामाणिक है।

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