NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी and select need one. NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी Question Answers Download PDF. NCERT Hindi Antral Bhag – 2 Class 12 Solutions.

NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 1 देवसेना का गीत

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. CBSE Class 12 Hindi Antral Bhag – 2 Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी Notes, CBSE Class 12 Hindi Antra Bhag – 2 Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 1

अंतराल भाग-२
प्रश्न-अभ्यास

1. ‘चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?’ नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इसके उत्तर में नायकराम ने यह उत्तर दिया था कि चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। यह कथन नायकराम ने कहा था। इस कथन में निहित भाव इस प्रकार है कि सूरदास के जल रहे घर से उसके शत्रुओं को प्रसन्नता हो रही होगी। लोगों ने यह सोचा कि सूरदास के चूल्हे में जो अंगारे बचे थे, उनकी हवा से शायद यह आग लगी थी। परन्तु सच यह नहीं था। भैरों ने सूरदास के झोपड़े में जान बूझकर आग लगाई थी। नायकराम जानता था कि यह आग चूल्हे की वजह से नहीं लगी है, बल्कि किसी ने लगाई थी।

2. भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई?

उत्तर: भैरों सूरदास से नाराज़ था। भैरों की पत्नी सुभागी भैरों की मार के डर से सूरदास की झोंपड़ी में छिप जाती है और सुभागी को मारने भैरों सूरदास की झोंपड़ी में घुस जाता है, किंतु सूरदास के हस्तक्षेप से वह उसे मार नहीं पाता। सूरदास और सुभागी के संबंधों की चर्चा पूरे मुहल्ले में इतनी हुई कि भैरों अपने अपमान और बदनामी का बदला लेने की सोच ली। भैरों सूरदास पर नज़र रखने लगा। अंततः उसके रुपयों की थैली उठा ले गया और सूरदास की झोंपड़ी में आग लगा दी।

3. ‘यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।’ संदर्भ सहित विवेचन कीजिए।

उत्तर: सूरदास एक अँधा भिखारी था। उसकी संपत्ति में एक झोपड़ी, जमीन का छोटा-सा टुकड़ा और जीवनभर जमा की गई पूंजी थी। यही सब उसके जीवन के आधार थे। उसके पोटली में 500 सौ रुपए थे। उस पूँजी से उसे बहुत-सी अभिलाषाएँ थी। वह गाँववालों के लिए कुँआ बनवाना चाहता था, अपने बेटे की शादी करवाना चाहता था तथा अपने पितरों का पिंडदान करवाना चाहता था। उसने सोचा पोटली के साथ रुपये जल गए होंगे परन्तु चाँदी नही जले होंगे, इसी अभिलाषा से उसने राख ठंडी होने के बाद झोपड़ी के अंदर जाके देखा। उसने अधीरता के साथ सारी राख छान डाली। एक-एक मुट्ठी राख हाथ में लेकर देखी, उसे लोटा मिला, तवा मिला, किंतु पोटली न मिली। झोपड़ी के साथ ही पूँजी के जल जाने से अब उसकी कोई भी अभिलाषा पूरी नहीं हो सकती थी। उसे लगा कि यह फूस की राख नहीं है बल्कि उसकी अभिलाषाओं की राख है। उसकी सारी अभिलाषाएँ झोपड़ी के साथ ही जलकर राख हो गई।

4. जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों?

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

उत्तर: जगधर जब भैरों के घर यह पता करने पहुँचा कि सूरदास के घर आग किसने लगवाई है, तो उसे पता लगा कि भैरों ने ही सूरदास के घर आग लगवाई थी। जब भैरों ने जगधर को रुपये से भरे थैली दिखाई। उसमे पाँच सौ से अधिक रुपए था। जगधर ने भैरों को सलाह दी कि वह रुपये सूरदास को वापस कर दे, परन्तु जगधर ने यह सलाह ईमानदारी से नहीं, ईर्ष्या से दी थी। जगधर को भैरों के पास इतना रुपया देखकर अच्छा नही लगा। जगधर को भी रुपयों का लोभ था। अगर भैरों उसे आधे रुपये दे देता, तो शायद उसे तस्कीन (तसल्ली) हो जाती पर भैरों से यह आशा नहीं कि जा सकती थी। अगर ऐसा होता है, तो शायद वह भैरों को कुछ न कहता।

5. सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था?

उत्तर: सूरदास एक अँधा भिखारी था, वह स्वयं को समाज के आगे लज्जित नहीं करना चाहता था। वह लोगो के दान पर ही जीता था, एक अँधे भिखारी के पास इतना धन होना लोगो के लिए हेरानी की बात हो सकती थी। इस धन के पता चलने पर लोग उस पर संदेह कर सकते थे। भिखारियों के लिए धन-संचय पाप संचय से कम अपमान की बात नहीं है। अतः वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था।

6. ‘सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर: सूरदास परेशानी, दुःख, ग्लानि और निराशा के भाव उसे हर पल महसूस हो रहे थे। अचानक उसने घीसू द्वारा मिठुआ को कहते सुना कि खेल में रोते हो! यह सुनते ही उसे ऐसा हुआ, किसी ने उसका हाथ पकड़कर किनारे पर खड़ा कर दिया। उसने सोचा जीवन में हार जीत तो होती रहेगी, व्यक्ति को चोटों और मेहनत से डरना नहीं चाहिए, जीवन के संघर्षों का सामना करना चाहिए। जो मनुष्य जीवन के इस खेल को स्वीकार नहीं करता है वह दुख और निराशा के अलावा कुछ नहीं पाता। बस जैसे वह जाग उठा और राख के बीच रोता-बिलखता सूरदास उठ खड़ा हुआ। अपने दुख पर प्राप्त विजय-गर्व की तरंग ने जैसे उसमें प्राण डाल दिए और वह राख के ढेर को प्रसन्नता से दोनों हाथों से उड़ाने लगा। यह ऐसे शख्स की मनोदशा है जिसने हार का मुंह तो देखा लेकिन हार नहीं मानी बल्कि अपनी हार को जीत में बदल दिया।

7. ‘तो हम सौ लाख बार बनाएँगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।

उत्तर: तो हम सौ लाख बार बनाएँगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन निम्न प्रकार से है: सूरदास की झोंपड़ी जला दी जाती है और जीवन–भर की संचित कमाई चोरी हो जाती है। इसके बावजूद वह किसी से प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं करता था बल्कि पुनर्निर्माण में विश्वास करता था। इसीलिए वह मिठुआ के सवाल- “जो कोई सौ लाख बार झोंपड़ी को आग लगा दे तो” के जवाब में दृढ़ता के साथ उत्तर देता है- “तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे”।

योग्यता-विस्तार

1. इस पाठ का नाट्य रूपांतर कर उसकी प्रस्तुति कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

2. प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का संक्षिप्त संस्करण पढ़िए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

Scroll to Top