NCERT Class 11 Biology Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर

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NCERT Class 11 Biology Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर

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Chapter: 6

अभ्यास

1. निम्नलिखित में शारीर के आधार पर अंतर करो।

(अ) एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल।

उत्तर: 

ऊतकएकबीजपत्री मूलद्विबीजपत्री मूल
कॉर्टेक्सस्तर कम मोटा होता है।अपेक्षाकृत अधिक मोटा स्तर होता है।
अंतस्त्वचाकोशिकाएँ स्थूलित भित्तियों वाली होती हैं. इसलिए मार्ग कोशिकाएँ अधिक स्पष्ट होती हैं।प्रायः भित्तियाँ पतली होती हैं. केवल अरीय भित्तियों पर कैस्पेरियन पट्टियाँ होती हैं। अतः मार्ग कोशिकाएँ अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट नहीं होती हैं।
पिथ (Pith)विकसित और स्पष्टअविकसित या अनुपस्थित
केम्बियम की उपस्थितिअनुपस्थितउपस्थित (द्वितीयक वृद्धि के लिए उत्तरदायी)
परिरम्भपार्श्व मूल बनाती है।पार्श्व मूल बनाने के अतिरिक्त एधा तथा कॉर्क एधा बनाने में सहायता करती हैं।

(ब) एकबीजपत्री तना तथा द्विबीजपत्री तना।

उत्तर: 

ऊतकएकबीजपत्री तनाद्विबीजपत्री तना
बाह्यत्वचाअधिकतर रोमरहित होती है।प्रायः रोमयुक्त होती है।
अधस्त्वचादृढ़ोतक (sclerenchyma) से बनी होती है।स्थूलकोण ऊतक (collenchyma) से बनी होती है।
परिरम्भसामान्य रूप से अनुपस्थित होता है दृढ़ोतक और मृदूत की बनी होती है।
अंतस्त्वचाअनुपस्थित होती है।सामान्यतया स्पष्ट होती है।
मज्जास्पष्ट नहीं होता, फिर भी केंद्र में कभी-कभी कोशिकाएँ विघटित होकर मज्जा गुहास्पष्ट होता है, कभी-कभी कोशिकाएँ विघटित होकर मज्जा गुहा बनाती हैं।

2. आप एक शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन करें। आप कैसे पता करेंगे कि यह एकबीजपत्री तना अथवा द्विबीजपत्री तना है? इसके कारण बताओ।

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उत्तर:  शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी अवलोकन करके निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर एकबीजपत्री या द्विबीजपत्री तने की पहचान करते हैं:

(क) तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण:

(i) बाह्य त्वचा पर उपचर्म (cuticle), रंध्र (stomata) तथा बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।

(ii) अधस्त्वचा (hypodermis) उपस्थित होती है।

(iii) अंतस्त्वचा प्रायः अनुपस्थित या अल्पविकसित होती है।

(iv) परिरम्भ (pericycle) प्रायः बहुस्तरीय होता है।

(v) संवहन बण्डल संयुक्त (conjoint), बहिः फ्लोएमी (collateral) या उभय फ्लोएमी (bicollateral) होते हैं।

(ख) एकबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण:

(i) बाह्यत्वचा पर बहुकोशिकीय रोम अनुपस्थित होते हैं।

(ii) अधस्त्वचा दृढ़ोतक (sclerenchymatous) होती है।

(iii) भरण ऊतक (ground tissue) वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरम्भ तथा मज्जा में अविभेदित होता है।

(iv) संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।

(v) जाइलम वाहिकाएँ (vessels) ‘V’ या ‘Y’ क्रम में व्यवस्थित रहती हैं।

(ग) द्विबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण:

(i) बाह्य त्वचा पर बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।

(ii) अधस्त्वचा (hypodermis) स्थूलकोण ऊतक से बनी होती है।

(iii) संवहन बण्डल एक या दो घेरों में व्यवस्थित होते हैं।

(iv) भरण ऊतक वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा तथा मज्जा रश्मियों में विभेदित होता है।

(v) संवहन बण्डल संयुक्त, बहिः फ्लोएमी या उभय फ्लोएमी और वर्धा (open) होते हैं।

3. सूक्ष्मदर्शी किसी पौधे के भाग की अनुप्रस्थ काट निम्नलिखित शारीर रचनाएँ दिखाती है।

(अ) संवहन बंडल संयुक्त, फैले हुए तथा उसके चारों ओर स्केलेरेंकाइमी आच्छद हैं

(ब) फ्लोएम पैरेंकाइमा नहीं है।

आप कैसे पहचानोगे कि यह किसका है?

उत्तर: एकबीजपत्री तने की विशेषता संयुक्त, संपार्श्विक और बंद संवहनी बंडलों द्वारा होती है, जो पैरेन्काइमा युक्त जमीन के ऊतकों में बिखरे होते हैं। प्रत्येक संवहनी बंडल दृढ़ोतकीय बंडल-आच्छद कोशिकाओं से घिरा होता है। मोनोकोट तनों में फ्लोएम पैरेन्काइमा और मेडुलरी किरणें अनुपस्थित होती हैं।

4. रंध्रीतंत्र क्या है? रंध्र की रचना का वर्णन करो और इसका चिह्नित चित्र बनाओ।

उत्तर: रंध्रीतंत्र पौधों की पत्तियों और हरे तनों की ऊपरी और निचली सतह पर पाए जाने वाले सूक्ष्म छिद्रों रंध्रों और उनके चारों ओर की कोशिकाओं का समूह होता है। प्रत्येक रंध्र (stoma = एकवचन) में सेम के आकार की दो कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। एकबीरपत्री पौधों में द्वार कोशिकाएँ डम्बलाकार होती हैं। द्वार कोशिका की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। द्वार कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है और यह रंध्र के खुलने तथा बंद होने के क्रम को नियमित करता है। कभी-कभी कुछ बाह्य त्वचीय कोशिकाएँ भी रंध्र के साथ लगी रहती हैं, इन्हें उप कोशिकाएँ (accessory cells) कहते हैं। रन्ध्रीय छिद्र, द्वार कोशिका तथा सहायक कोशिकाएँ मिलकर रंधी तंत्र (stomatal system) का निर्माण करती हैं।

5. पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र बताओ। प्रत्येक तंत्र के ऊतक बताओ।

उत्तर: पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र निम्नवत् हैं:

(i) बाह्य त्वचीय ऊतक तंत्र-मृदूतक।

(ii) भरण ऊतक तंत्र-पैरेन्काइमा, कोलेनकाइमा तथा स्क्लेरेनकाइमा।

(iii) संवहन ऊतक तंत्र-जाइलम तथा फ्लोएम।

6 . पादप शारीर का अध्ययन हमारे लिए कैसे उपयोगी है?

उत्तर: पादप शरीर रचना का अध्ययन हमें विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुरूप पादपों में होने वाले संरचनात्मक अनुकूलनों को समझने में मदद करता है। यह अध्ययन एकबीजपत्री, द्विबीजपत्री तथा जिम्नोस्पर्म पादपों के बीच भिन्नताओं को पहचानने में सहायक होता है। यह विषय प्लांट फिजियोलॉजी से संबंधित है और खाद्य फसलों के सुधार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पादप संरचना का विश्लेषण हमें लकड़ी की मजबूती का अनुमान लगाने में सक्षम बनाता है, जिससे उसके सही उपयोग की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है। इसी प्रकार, जूट, पटसन जैसे विभिन्न पादप रेशों का अध्ययन उनके व्यावसायिक उपयोग में सहायक सिद्ध होता है।

7. पृष्ठाधर पत्ती की भीतरी रचना का वर्णन चिह्नित चित्रों की सहायता से करो।

उत्तर:  पृष्ठाधर या द्विबीजपत्री पत्ती की संरचना द्विबीजपत्री पौधों की पत्ती की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देते हैं:

(क) बाह्यत्वचा (Epidermis): बाह्यत्वचा सामान्यतः दोनों सतहों पर एक कोशिकीय मोटे स्तर के रूप में होती है।

(i) ऊपरी बाह्यत्वचाः यह एक कोशिका मोटा स्तर है। इसकी कोशिकाएँ ढोलकनुमा परस्पर एक-दूसरे से सटी हुई होती हैं। इन कोशिकाओं की बाहरी भित्ति उपचर्म-युक्त होती है। कोशिकाओं में साधारणतः हरित लवक नहीं होते हैं। कुछ पौधों (प्रायः शुष्क स्थानों में उगने वाले पौधों में) में बहुस्तरीय बाह्यत्वचा (multiple epidermis) पाई जाती हैं।

(ii) निचली बाह्यत्वचाः निचली बाह्यत्वचा एक कोशिका मोटे स्तर रूप में पाई जाती है। इस पर पतला उपचर्म होता है। रन्ध्र बहुतायत में पाए जाते हैं। रन्ध्रों की रक्षक कोशिकाओं में हरित लवक पाए जाते हैं। कुछ पत्तियों की ऊपरी बाह्यत्वचा पर भी रंध्र होते हैं, किन्तु इनकी संख्या सदैव कम होती है।

(ख) पर्णमध्योतक (Mesophyll) : दोनों बाह्यत्वचाओं के मध्य स्थित सम्पूर्ण ऊतक (संवहन बंडलों को छोड़कर) पर्णमध्योतक कहलाता है। पृष्ठाधर पत्तियों में पर्णमध्योतक दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता है I

(i) खम्भ ऊतक (Palisade tissue) : ऊपरी बाह्यत्वचा के नीचे लम्बी, खम्भाकार कोशिकाएँ दो-तीन पर्यो में लगी होती हैं। इन कोशिकाओं के मध्य अंतर कोशिकीय स्थान बहुत कम या नहीं होते हैं। ये रूपान्तरित मृदूतकीय कोशिकाएँ होती हैं। यह प्रकाश संश्लेषी (photosynthetic) ऊतक है।

(ii) स्पंजी ऊतक (Spongy tissue) : खम्भ मृदूतक से लेकर निचली बाह्यत्वचा तक स्पंजी

मृदूतक ही होता है। ये कोशिकाएँ सामान्यतः गोल और ढीली व्यवस्था में अर्थात् काफी और स्पष्ट अन्तराकोशिकीय स्थान वाली होती हैं। इन कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट्स कम संख्या में होते हैं। मध्य शिरा में संवहन पूल के ऊपर तथा नीचे दृढ़ोतक या स्थूलकोण ऊतक पाया जाता है।

(ग) संवहन पूल (Vascular bundles) : पत्ती की अनुप्रस्थ काट में अनेक छोटी-छोटी शिराएँ संवहन पूलों के रूप में दिखाई पड़ती हैं। संवहन पूल जाइलम और फ्लोएम के मिलने से बनता है। आदि दारु (protoxylem) सदैव ऊपरी बाह्यत्वचा की ओर होती है. जबकि अनु दारु (metaxylem) निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। फ्लोएम निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। जाइलम और फ्लोएम के मध्य एधा (cambium) होती है। इस प्रकार संवहन पूल संयुक्त (conjoint), समपार्श्व (collateral) तथा वध (open) होते हैं। प्रत्येक संवहन पूल दृढ़ोतक रेशों से घिरा होता है तथा इसके बाहर मृदूतकीय कोशिकाओं का पूलीय आच्छद होता है। यह बंडल आच्छद सामान्यतः छोटी-से-छोटी शिरा के चारों ओर भी होता है।

8. त्वक कोशिकाओं की रचना तथा स्थिति उन्हें किस प्रकार विशिष्ट कार्य करने में सहायता करती है?

उत्तर: यह पादप शरीर के सभी भागों पर सबसे बाहरी रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। यह सामान्यतः एक कोशिका मोटी परत होती है। अनुप्रस्थ काट में इनकी कोशिकाएँ ढोलक के आकार की (barrel shaped) दिखाई देती हैं। ऊपर से देखने पर ये कोशिकाएँ फर्श की टाइल्स की तरह अनियमित या बहुभुजीय आकार की प्रतीत होती हैं। ये आपस में सघनता से जुड़कर एक अखंड सतह का निर्माण करती हैं। ये कोशिकाएँ मृदूतकीय कोशिकाओं के रूपान्तरण से उत्पन्न होती हैं। इनमें कोशिकाद्रव्य बहुत कम मात्रा में होता है और प्रत्येक कोशिका में एक बड़ी रिक्तिका होती है।

पौधे के वायवीय भागों की त्वचा की कोशिकाएँ उपचर्म (cuticle) नामक परत से ढकी होती हैं, जबकि जड़ों की त्वचा की कोशिकाओं पर यह परत नहीं पाई जाती। तने और पत्तियों की त्वचा में रन्ध्र (stomata) पाए जाते हैं, जो द्वार कोशिकाओं (guard cells) द्वारा घिरे रहते हैं। ये द्वार कोशिकाएँ सामान्यतः वृक्काकार होती हैं और इनके चारों ओर सहायक कोशिकाएँ पाई जाती हैं। रन्ध्रों का खुलना और बंद होना द्वार कोशिकाओं की त्वरित जल-संतुलन स्थिति पर निर्भर करता है। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रन्ध्रों की स्थिति, संख्या, संरचना और उपचर्म की मोटाई वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है।

जड़ की त्वचा की कोशिकाओं से एककोशिकीय मूल रोम (root hairs) उत्पन्न होते हैं जो मृदा से जल और खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। तनों और पत्तियों की त्वचा की कोशिकाओं से बहुकोशिकीय रोम बनते हैं, जो वाष्पोत्सर्जन की दर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। मरुद्भिद पौधों में रन्ध्र रोमों से ढके रहते हैं, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। त्वचा की ये कोशिकाएँ पौधों को बाहरी पर्यावरणीय दुष्प्रभावों से भी सुरक्षा प्रदान करती हैं।

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