NCERT Class 11 Biology Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

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NCERT Class 11 Biology Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

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Chapter: 5

अभ्यास

1. एक पिच्छाकार संयुक्त पत्ती हस्ताकार संयुक्त पत्ती से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: 

पिच्छाकार संयुक्त पत्तीहस्ताकार संयुक्त पत्ती
(i) पत्ती की आकृति पंख सदृश  होती है।(i) पत्ती की आकृति हाथ की हथेली जैसी प्रतीत होती है।
(ii) पर्णक (leaflets) रेकिस (rachis) पर दोनों ओर लगे रहते हैं।(ii) पर्णक पर्णवृन्त के छोर पर एक ही बिंदु पर लगे रहते हैं।
(iii) उदाहरणों में नीम और कैसिया फिस्टुला (जिसे गोल्डन शावर प्लांट भी कहा जाता है) शामिल हैं।(iii) उदाहरणों में सिल्क कॉटन (बॉम्बेक्स) और कैनबिस शामिल हैं।

2. विभिन्न प्रकार के पर्णविन्यास का उदाहरण सहित वर्णन करो।

उत्तर: पर्ण विन्यास तने या शाखा की पर्वसन्धियों पर पत्तियाँ एक विशिष्ट क्रम में लगी होती हैं। इसे पर्ण विन्यास कहते हैं। पर्वसन्धि पर पत्तियों की संख्या एक, दो अथवा दो से अधिक होती है। पर्ण विन्यास निम्नलिखित प्रकार का होता है:

(i) एकान्तर (Alternate): जब एक पर्वसन्धि पर एक पत्ती होती है तथा अगले और पिछले पर्वसन्धि पर लगी पत्ती से इसकी दिशा विपरीत होती है: जैसे-गुड़हल, सरसों आदि।

(ii) अभिमुख (Opposite): जब एक पर्वसन्धि पर दो पत्तियाँ होती हैं, तब दो प्रकार की स्थिति हो सकती हैं।

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(क) अध्यारोपित (Superposed): जब पत्तियों की दिशा प्रत्येक पर्वसन्धि पर एक ही होती है; जैसे अमरूद।

(ख) क्रॉसित (Decussate): जब दो पत्नियों की दिशा प्रत्येक पर्वसन्धि पर पिछले तथा अगली पर्वसन्धि की अपेक्षा समकोण पर होती है; जैसे-आक।

(iii) चक्रिक (Whorled): जब एक पर्वसन्धि पर दो से अधिक पत्तियाँ होती हैं; जैसे कनेर।

3. निम्नलिखित की परिभाषा लिखो।

(अ) पुष्प दल विन्यास।

उत्तर: पुष्प दल विन्यास’ शब्द उस विधा को संदर्भित करता है जिसमें अन्य पुष्प सदस्यों के संबंध में एक पुष्प कली में बाह्यदल या पंखुड़ियाँ व्यवस्थित होती हैं। पौधों में पुष्पन चार प्रकार के होते हैं, कोर स्पर्शी, व्यावर्तित, कोरछादी, और ववैकजीलेरी

(ब) बीजांडासन ऊर्ध्ववर्ती।

उत्तर: अंडाशय में जरायु (placenta) पर बीजाण्डों की व्यवस्था को बीजाण्डन्यास कहते हैं। बीजाण्डन्यास सीमान्त, स्तम्भीय, भित्तीय, मुक्त स्तम्भीय, आधार-लग्न या धरातलीय प्रकार का होता है।

(स) त्रिज्या सममिति। 

उत्तर: जब पुष्प को किसी भी मध्य लम्ब अक्ष से काटने पर दो सम अर्द्ध-भागों में विभक्त किया जा सके तो इसे त्रिज्यासममित (actinomorphic) कहते हैं।

(द) एकव्यास सममित।

उत्तर: जाइगोमोर्फिक फूल वे फूल होते हैं जिन्हें एक ही ऊर्ध्वाधर तल द्वारा दो समान हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है। इन फूलों के उदाहरणों में मटर और फलियाँ शामिल हैं।

(इ) ऊर्ध्ववर्ती। 

उत्तर : जब पुष्प के अन्य भाग अंडाशय के नीचे से निकलते हैं तो पुष्प को अधोजाय तथा अंडाशय को ऊर्ध्ववर्ती (superior) कहते हैं।

(एफ) परिजायांगी पुष्प। 

उत्तर: यदि पुष्पीय भाग पुष्पासन से अंडाशय के समान ऊँचाई से निकलते हैं तो इस प्रकार के पुष्प परिजायांगी (perigynous) कहलाते हैं। इसमें अंडाशय आधा ऊर्ध्ववर्ती (half superior) होता है।

(जी) दललग्न पुंकेसर।

उत्तर: दललग्न पुंकेसर पंखुड़ियों से जुड़े पुंकेसर होते हैं। ये बैंगन में पाए जाते हैं।

4. निम्नलिखित में अंतर लिखो।

(अ) असीमाक्षी तथा ससीमाक्षी पुष्पक्रम।

उत्तर: 

असीमाक्षी पुष्पक्रमससीमाक्षी पुष्पक्रम
(i) मातृ अक्ष की वृद्धि असीमित होती है।(i) मातृ अक्ष के शिखर पर पुष्प निर्माण से वृद्धि रुक जाती है।
(ii) असीमाक्षी पुष्पक्रम में मुख्य धुरी बढ़ती रहती है और बाद में फूल पैदा करती है।(ii) ससीमाक्षी पुष्पक्रम में मुख्य धुरी में सीमित वृद्धि होती है, जो बाद में एक फूल में समाप्त हो जाती है।
(iii) पुष्प परिधि से केंद्र की ओर(iii) पुष्प केन्द्र से परिधि की ओर

(ब) वियुक्तांडपी तथा युक्तांडपी अंडाशय।

उत्तर: 

वियुक्तांडपी अंडाशययुक्तांडपी अंडाशय
(i) वियुक्तांडपी अंडाशय वाले फूलों में एक से अधिक अंडप होते हैं। ये कार्पेल मुक्त हैं।(i) युक्तांडपी अंडाशय वाले फूलों में एक से अधिक अंडप होते हैं। हालांकि, ये कार्पेल जुड़े हुए हैं।
(ii) फूल में कई अंडाशय होते हैं जो स्वतंत्र होते हैं।(ii) यहाँ सिर्फ एक अंडाशय है।
(iii) पूर्ण रूप से विकसित होने पर यह समुच्चय-प्रकार के फलहीन पैदा करता है।(iii) पूर्ण विकसित होने पर यह एक साधारण फल बनता हैं।

5. निम्नलिखित के चिह्नित चित्र बनाओ।

(अ) चने के बीज तथा।

उत्तर: 

(ब) मक्के के बीज का अनुदैर्घ्यकाट।

उत्तर: 

6. सोलैनेसी कुल के एक पुष्प को उदाहरण के रूप में लो तथा उनका अर्द्धतकनीकी विवरण प्रस्तुत करो। पुष्पीय चित्र भी बनाओ।

उत्तर: कुल सोलैनेसी: कुल सोलेनेसी का सामान्य पौधा सोलेनम नाइग्रम (मकोय) है। यह एक जंगली शाकीय पौधा है जो स्वतः आलू, टमाटर के खेतों में उग आता है। आवास एवं स्वभाव: जंगली, वार्षिक शाकीय पादप।

(i) मूल: शाखामय मूसला: जड़ तन्त्र।

(ii) स्तम्भः वायवीय, शाकीय, बेलनाकार, शाखामय, चिकना, हरा।

कायिक अभिलक्षण

(iii) तनाः शाकीय, कभी-कभी काष्ठीय; वायवीय, सीधा, सिलिंडिराकर, शाखित, ठोस अथवा खोखला, रोमयुक्त अथवा अरोमिल, भूमिगत जैसे आलू (सोलैनम टयूबीरोसम).

(iv) त्तियाँः एकांतर, सरल, कर्मी संयुक्त पिच्छाकार अनुपर्णी, जालिका विन्यास

(v) पुष्पी अभिलक्षणः पुष्पक्रमः एकल, कक्षीय, ससीमाक्षी जैसे सोलैनम में;

(vi) फूलः उभयलिंगी, त्रिज्यसममिति

(vii) केल्किसः पाँच बाह्य दल, संयुक्त, दीर्घस्थायी, कोरस्पर्शी पुष्प दल विन्यास

(viii) कोरोलाः पाँच दल, संयुक्त, कोरस्पर्शी पुष्पदल विन्यास

(ix) पुमंगः पाँच पुंकेसर, दललग्न

(x) जायांगः द्विअंडपी, युक्तांडपी, तिरछी अंडाशय ऊर्ध्वावर्ती, द्विकोष्ठी, बीजांडासन फूला हुआ जिसमें बहुत से बीजांड

(xi) लः संपुट अथवा सरस

(xii) बीजः भ्रूणपोषी, अनेक

(xiii) 

7. पुष्पी पादयों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के बीजांडासन्यासों का वर्णन करो।

उत्तर: बीजाण्डन्यास अंडाशय में मृदूतकीय जरायु (placenta) पर बीजाण्डों के लगाने के क्रम को बीजाण्डन्यास (placentation) कहते हैं। यह निम्नलिखित प्रकार का होता है:

(i) सीमान्त (Marginal): यह एकाण्डपी अण्डाशय में पाया जाता है। अंडाशय एक कोष्ठीय होता है, बीजाण्ड अक्षीय संधि पर विकसित होते हैं, जैसे-चना, मटर, सेम आदि के लम्बे फलों में।

(ii) स्तम्भीय (Axile): यह द्विअण्डपी, त्रिअण्डपी या बहुअण्डपी, युक्ताण्डपी अंडाशय में पाया जाता है। अंडाशय में जितने अण्डप होते हैं, उतने ही कोष्ठकों का निर्माण होता है। बीजाण्ड अक्षवर्ती जरायु से लगे रहते हैं, जैसे- आलू, टमाटर, मकोय, गुड़हल आदि में।

(iii) भित्तीय (Parietal): यह बहअण्ड्यी, एक कोष्ठीय अंडाशय में पाया जाता है। इसमें जहाँ अंडों के तट मिलते हैं, वहां जरायु विकसित हो जाता है। जरायु (बीजाण्डासन) पर बीजाण्ड लगे होते हैं, अर्थात् बीजांड अंडाशय की भीतरी सतह पर लगे रहते हैं; जैसे-पपीता, सरसों, मूली आदि में।

(iv) मुक्त स्तम्भीय (Free central): यह बहुअण्डपी, एक कोष्ठीय अंडाशय में पाया जाता है। इसमें बीजाण्ड केन्द्रीय अक्ष के चारों ओर लगे होते हैं। केन्द्रीय अक्ष का सम्बन्ध अंडाशय भित्ति से नहीं होता; जैसे-डायन्थस, प्रिमरोज आदि।

(v) आधारलग्न (Basifixed): यह द्विअण्डपी, एक कोष्ठीय अंडाशय में पाया जाता है जिसमें केवल एक बीजांड पुष्पाक्ष से जुड़ा रहता है; जैसे-कम्पोजिटी कुल के सदस्यों में।

(vi) धरातलीय (Superficial): यह बहुअण्डपी, बहु कोष्ठीय अंडाशय में पाया जाता है। इसमें बीजाण्डासन या जरायु कोष्ठकों की भीतरी सतह पर विकसित होते हैं, अर्थात् बीजाण्ड कोष्ठकों की भीतरी सतह पर व्यवस्थित रहते हैं; जैसे कुमुदिनी (water lily) में।

बीजांडन्यास के प्रकार:

(अ) सीमांत।

(ब) स्तंभीय।

(स) भित्तीय।

(द) मुक्तस्तंभीय।

(य) आधारी।

8. पत्तियों के विभिन्न रूपांतरण पौधे की केसे सहायता करते हैं?

उत्तर: पत्तियों के रूपान्तरण पत्तियों का प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन निर्माण करना है। इसके अतिरिक्त वाष्पोत्सर्जन, श्वसन आदि सामान्य कार्य भी पत्तियाँ करती है, किन्तु कभी-कभी विशेष कार्य करने के लिए इनका स्वरूप ही बदल जाता है। ये रूपान्तरण सम्पूर्ण पत्ती या पत्ती के किसी भाग या फलक के किसी भाग में होते हैं। 

उदाहरण के लिए:

(i) प्रतानः सम्पूर्ण पत्ती या उसका कोई भाग, लम्बे, कुण्डलित तन्तु की तरह की रचना में बदल जाता है। इसे प्रतान कहते हैं। प्रतान दुर्बल पौधों की आरोहण में सहायता करते हैं। जैसे

(क) जंगली मटर में सम्पूर्ण पत्ती प्रतान में बदल जाती है।

(ख) मटर में अगले कुछ पर्णक प्रतान में बदल जाते हैं।

(ग) ग्लोरी लिली में पर्णफलक का शीर्ष प्रतान में बदल जाता है।

(ii) कंटक या शूल: वाष्पोत्सर्जन को कम करने और पौधे की सुरक्षा के लिए पत्तियों अथवा उनके कुछ भाग कॉटों में बदल जाते हैं। जैसे-

(क) नागफनीः इसमें प्राथमिक पत्तियाँ छोटी तथा शीघ्र गिरने वाली (आशुपाती) होती हैं। कक्षस्थ कलिका से विकसित होने वाली अविकसित शाखाओं की पत्तियाँ काँटों में बदल जाती हैं।

(ख) बारबेरी (barberry) में पर्वसन्धि पर स्थित पत्तियाँ स्पष्टतः काँटों में बदल जाती हैं। इनके कक्ष से निकली शाखाओं पर उपस्थित पत्तियाँ सामान्य होती हैं।

(ग) बिगोनिया की एक जाति (Bignonia unguis cati) में पत्तियाँ संयुक्त होती हैं। इनके ऊपरी कुछ पर्णक अंकुश (hooks) में बदल जाते हैं और आरोहण में सहायता करते हैं।

(iii) पर्ण घट (Leaf Pitcher): कुछ कीटाहारी पौधों में कीटों को पकड़ने के लिए सम्पूर्ण पत्ती प्रमुखतः पर्णफलक एक घट (pitcher) में बदल जाता है; जैसे-नेपेन्थीज (Nepenthes)।

डिस्को दिया (Dischidia rafflesiana) – एक उपरिरोही पादप है। इसकी कुछ पत्तियाँ घंटे (pitchers) में बदल जाती हैं। इसमें वर्षा का जल तथा अन्य कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ एकत्रित होते रहते हैं। पर्वसन्धि से जड़े निकालकर घट के अन्दर घुस जाती हैं तथा विभिन्न पदार्थों को अवशोषित करती हैं।

(iv) पर्ण थैली (Leaf bladder) : कुछ पौधों में पत्तियाँ या उसके कुछ भाग रूपांतरित होकर थैलियों में बदल जाते हैं। इस प्रकार का अच्छा उदाहरण ब्लैडरवर्ट या यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) है। यह पौधा इन थैलियों के द्वारा कीटों को पकड़ता है। अन्य कीटाहारी पौधों में पत्तियाँ विभिन्न प्रकार से रूपांतरित होकर कीट को पकड़ती हैं। उदाहरण-ड्रॉसेरा (Drosera), डायोनिया (Dioned), बटरवर्ट या पिन्यूयीक्यूला (Pinguicula) आदि।

(v) पर्णाभ वृन्त (Phyllode): इसमें पर्णवृन्त हरा, चपटा तथा पर्णफलक के समान हो जाता है; और पत्ती की तरह भोजन निर्माण का कार्य करता है; जैसे-ऑस्ट्रेलियन बबूल में।

(vi) शल्क पत्र (Scale Leaves): ये शुष्क भूरे रंग की, पर्णहरित रहित, अवृन्त छोटी-छोटी पत्तियाँ होती हैं। ये कक्षस्थ कलिकाओं की सुरक्षा करती हैं, जैसे-अदरक, हल्दी आदि में।

9. पुष्पक्रम की परिभाषा करो। पुष्पी पादपों में विभिन्न प्रकार के पुष्पक्रमों के आधार का वर्णन करो।

उत्तर: पुष्पक्रम वह तरीका है जिसमें फूलों को पुष्पन अक्ष पर व्यवस्थित किया जाता है। फूलों के मौसम के दौरान, तने का वानस्पतिक शीर्ष पुष्प विभज्योतक में परिवर्तित हो जाता है। इस आधार पर कि पुष्प अक्ष बढ़ता रहता है या फूल में समाप्त होता है, पुष्पक्रम को रेसमोस और साइमोस में वर्गीकृत किया जाता है। रेसमोस पुष्पक्रम में, पुष्प अक्ष बढ़ता रहता है और बाद में फूल पैदा करता है। दूसरी ओर, साइमोस पुष्पक्रम में, मुख्य अक्ष एक फूल में समाप्त हो जाती है। इसलिए, यह विकास में सीमित है।

10. पुष्पासन पर स्थिति के अनुसार लगे पुष्पी भागों का वर्णन करो।

उत्तर: पुष्पासन (receptacle) पर स्थिति के अनुसार पुष्पी भागों का वर्गीकरण और वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

(i) अवस्थिति (Hypogynous):  इस स्थिति में पुष्पासन समतल या थोड़ा उभरा हुआ होता है, और सभी पुष्पी भाग जैसे कि बाह्यदलपुंज (sepals), दलपुंज (petals), पुंकेसर (stamens) अंडाशय (ovary) के नीचे लगे होते हैं।

उदाहरण: सरसों, टमाटर, गुड़हल।

(ii) उपस्थित (Perigynous): इस स्थिति में पुष्पासन प्याले या कटोरे के आकार का होता है, जिसमें दलपुंज, बाह्यदलपुंज और पुंकेसर अंडाशय के चारों ओर किनारे पर स्थित होते हैं।

उदाहरण: गुलाब, चंपा।

(iii) अधस्थिति (Epigynous): इस स्थिति में अंडाशय पुष्पासन में धंसा होता है और अन्य सभी पुष्पी भाग (सेपल्स, पंखुड़ियाँ, पुंकेसर) अंडाशय के ऊपर से निकलते हैं।

उदाहरण: सूरजमुखी, ककड़ी, सेब।

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