Class 9 Hindi Elective Chapter 10 दोहा दशक

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Class 9 Hindi Elective Chapter 10 दोहा दशक

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दोहा दशक

पाठ – 10

अभ्यासमाला

बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन करो:

(क) कवि बिहारीलाल किस काल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं?

(i) आदिकाल के।

(ii) रीतिकाल के।

(iii) भक्तिकाल के।

(iv) आधुनिक काल के।

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उत्तर: (ii) रीतिकाल के।

(ख) कविवर बिहारी की काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होने वाले मुगल सम्राट थे –

(i) औरंगजेब।

(ii) अकबर।

(iii) शाहजहाँ।

(iv) जहाँगीर।

उत्तर: (iii) शाहजहाँ।

(ग) कवि बिहारी का देहावसान कब हुआ?

(i) 1645 ई. को।

(ii) 1660 ई. को।

(iii) 1662 ई. को।

(iv) 1663 ई को।

उत्तर: (iv) 1663 ई को।

(घ) श्रीकृष्ण के सिर पर क्या शोभित है?

(i) मुकुट।

(ii) पगड़ी।

(iii) टोपी।

(iv) चोटी।

उत्तर: (i) मुकुट।

(ङ) कवि बिहारी ने किन्हें सदा साथ रहने वाली संपत्ति माना है?

(i) राधा को।

(ii) श्रीराम को।

(iii) यदुपति कृष्ण को।

(iv) लक्ष्मी को।

उत्तर: (iii) यदुपति कृष्ण को।

2. निम्नलिखित कथन शुद्ध हैं या अशुद्ध, बताओ:

(क) हिन्दी के समस्त कवियों में भी बिहारीलाल अग्रिम पंक्ति के अधिकारी हैं।

उत्तर: शुद्ध।

(ख) कविवर बिहारी को संस्कृत और प्राकृत के प्रसिद्ध काव्य-ग्रंथों के अध्ययन का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।

उत्तर: अशुद्ध।

(ग) 1645 ई. के आस-पास कवि बिहारी वृत्ति लेने जयपुर पहुँचे थे।

उत्तर: शुद्ध।

(घ) कवि बिहारी के अनुसार ओछा व्यक्ति भी बड़ा बन सकता है।

उत्तर: शुद्ध।

(ङ) कवि बिहारी का कहना है कि दुर्दशाग्रस्त होने पर भी धन का संचय करते रहना कोई नीति नहीं है।

उत्तर: अशुद्ध।

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) कवि बिहारी ने मुख्य रूप से कैसे दोहों की रचना की है?

उत्तर: कवि बिहारी ने मुख्य रूप में प्रेम, श्रृंगार, भक्ति और नीति बिषयक दोहों की रचना की है।

(ख) कवि बिहारी किनके आग्रह पर जयपुर में ही रुक गए?

उत्तर: कवि बिहारी महाराज जयसिंह और चौहानी राणी की आग्रह पर बिहारी जी जयपुर में रुक गए।

(ग) कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार-ग्रंथ किस नाम से प्रसिद्ध है।

उत्तर: कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार-ग्रंथ बिहारी सतसई ग्रंथ नाम से प्रसिद्ध है।

(घ) किसमें किससे सौ गुनी अधिक मादकता होती है?

उत्तर: बिहारीलाल जी के दोहा में वर्णित भक्ति के मादकता सोना और धुतुरा से अधिक होता है।

(ङ) कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से क्या-क्या न गिनने की प्रार्थना की है?

उत्तर: कवि गोपीनाथ कृष्ण से कृष्ण के गुण और अवगुण गिनने की प्रार्थना की है।

4. अति संक्षेप्त में उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):

(क) किस परिस्थिति में कविवर बिहारी काव्य-रचना के लिए जयपुर में ही रुक गए थे?

उत्तर: बिहारी का संपर्क मुगल साम्राज्य के अधीनस्थ अन्य राजाओं से भी हुआ। कई राज्यों से उनको वृत्ति मिलने लगी। 1645 ई. के आस-पास वे वृत्ति लेने जयपुर पहुँचे थे। वहाँ के महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर कवि बिहारी जयपुर में ही रुक गए तथा प्रत्येक दोहे के लिए एक अशर्फी की शर्त पर काव्य-रचना करने लगे।

(ख) ‘यहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल’ का भाव क्या है?

उत्तर: तत्कालीन दरबारी भाषा फारसी में भी अधिकार प्राप्त करके वे अपनी एक फारसी रचना के साथ कलाप्रिय मुगल बादशाह शाहजहाँ से मिले थे। बिहारी की काव्य-प्रतिभा से सम्राट बड़े ही प्रसन्न हुए और उनके कृपापात्र बने। अब तो कवि बिहारी का संपर्क मुगल साम्राज्य के अधीनस्थ अन्य राजाओं से भी हुआ। कई राज्यों से उनैको वृत्ति मिलने लगी।

(ग) ‘ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई’ का आशय स्पष्ट करो।

उत्तर: ‘ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई’ का आशय यह है कि कृष्ण की लीला देखकर हर कोई का मन प्रसन्न हो जाता है बल्कि उनकी खुदकी मां यशोदा भी उनके छोटे छोटे नन्हे से हातो से जब माखन खाकर वह दोने की अपने पीछे छुपा लेते है।

(घ) ‘आँटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय’ के जरिए कवि क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर: हिन्दी के समस्य कवियों में भी आप अग्रिम पंक्ति के अधिकारी हैं। उन्होंने प्रमुख रूप से प्रेम श्रृंगार और गौण रूप से भक्ति एवं नीति के दोहों की रचना करके अपार लोकप्रियता प्राप्त की थी। उनकी यह लोकप्रियता आज भी बनी हुई है और आगे भी बनी रहेगी।

(ङ) ‘मन काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै राम’ का तात्पर्य बताओ।

उत्तर: प्रस्तुत दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि बाहरी दिखा, पाखड व्यर्थ है। भगवान भाव से प्रसन्न होते हैं, पाखण्ड से नहीं। जप करना, माला पहनना, छापा और तिलक लगाना इन सब प्रकार के पाखण्डों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।

5. संक्षेप्त में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में):

(क) कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव कैसा होता है?

उत्तर: कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव इस तरह है दोहे संख्या की दृष्टि से कम होने पर भी भाव, भाषा और अभिव्यक्ति भंगिमा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और बिहारी की काव्य–प्रतिभा से सम्राट बड़े हू प्रसन्न हुए और उनके कृपापात्र बने। अब तो कवि बिहारी का संपर्क मुगल साम्राज्य के अधीनस्थ अन्य राजाओं से भी हुआ।

(ख) सज्जन का स्नेह कैसा होता है?

उत्तर: सज्जन का स्नेह गंभीरता से भरा हुआ होता है। सज्जन की स्नेह की गंभीरता कभी कम नहीं होती। जिस तरह मंजीठ के रंग से बना कपड़ा भले ही पुराना भोकर फट जाए उसका रंग कभी भी फीका नहीं पड़ता।

(ग) धन के संचय के संदर्भ में कवि ने कौन-सा उपदेश दिया है?

उत्तर: धन के संचय के संदर्भ में कवि ने उपदेश दिया है कि वह धन किस काम का जो विपत्ति के समय काम ही न आए। अर्थात धन संचय करना चाहिए लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने बुरे परिस्थितियों या दुर्दशा ग्रस्त होने पर भी ध्यान का प्रयोग नहीं करते। यहाँ तक कि बेकार पड़े धन को मदद के लिए दूसरों को भी नहीं देते। इसीलिए कवि का उपदेश है कि उतना ही धन संचय करो जितना जीवन जीने के काम आए। बिना किसी काम आए धन की संचय से हमें क्या मिलेगा। इससे अच्छा उस धन को विपत्ति में पड़े लोगों की सहायता में लगाएं।

(घ) दुर्जन के स्वभाव के बारे में कवि ने क्या कहा है?

उत्तर: दुर्जन शीशे के समान होते हैं तो इस बात को ध्यान से देख लेना चाहिए क्योंकि दोनों ही जब सामने होते हैं तब तो और होते हैं और जब पीछ पीछे होते हैं तब कुछ और हो जाते हैं। 

(ङ) कवि बिहारी किस वेश में अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते हैं?

उत्तर: कवि बिहारी कृष्ण के समान सिर पर मोरपंखों का मुकुट धारण करें। गले में गुंजों की माला पहने। तन पर पीले वस्त्र पहने अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते हैं।

(च) अपने उद्धार के प्रसंग में कवि ने गोपीनाथ कृष्णजी से क्या निवेदन किया है?

उत्तर: कवि बिहारी अपने को उद्धार करने के लिए गोपीनाथ कृष्णजी से यह निवेदन करते हैं कि जिस तरह उन्होंने महा पापियों को उद्धार किया है, उसी प्रकार उन्हें भी उद्धार करें। उनके द्वारा किए गए सब गुण-अवगुण यानी पाप-पुण्य को क्षम कर दे।

(छ) कवि बिहारों को लोकप्रियता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत करो।

उत्तर: कविवर बिहारीलाल हिन्दी साहित्य के अंतर्गत रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनकी ख्याति का आधार ‘बिहारी सतसई’ नामक एकमात्र ग्रंथ  है। बिहारी सतसई को शृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी भी कहते है। उन्होंने प्रमुख रुप से प्रेम शृंगार और गौण रुप से भक्ति एवं नीति के दोहों की रचना करके अपार लोकप्रियता प्राप्त की थी।

6. सम्बक उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):

(क) कवि बिहारीलाल का साहित्यिक परिचय दो।

उत्तर: कवि बिहारीलाल का जन्म 1595 ई में ग्वालियर के निकट बसुवा गोविन्दपुर नामक गांव में हुआ था। कविवर बिहारीलाल हिंदी साहित्य के अंतर्गत रितिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते है। हिंदी के समस्य कवियों में भी आप अग्रिम पंक्ति के अधिकारी है। उन्होंने प्रमुख रूप से प्रेम–श्रृंगार और गौण रूप से भक्ति एवं नीति के दोहों की रचना अपार लोकप्रियता प्राप्त की थी। उनकी यह लोकप्रियता आज भी बनी हुई है और आगे भी बने रहेगी।

(ख) ‘बिहारी सतसई’ पर एक टिप्पणी लिखो।

उत्तर: कवि बिहारीलाल की ख्याति का आधार उनका एकमात्र ‘सतसई’ ग्रंथ है, जो बिहारी सतसई नाम से प्रसिद्ध है। यह लगभग सात सौ दोहों का अनुपम संग्रह है। इसे श्रृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी भी कहते हैं। इस ग्रंथ की लोकप्रियता के संदर्भ में यूरोपीय विद्वान डॉ. ग्रियर्सन ने कहा है कि यूरोप में इसके समकक्ष कोई भी रचना नहीं है। गागर में सागर भरने के समान कविवर बिहार ने दोहे जैसे छोटे-से छंद में लंबी-चौड़ी बात भी संक्षेप में कह दी है। सरस, सुमधुर और प्रौढ़ ब्रजभाषा में रचित ये दोहे काव्य-रसिकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।

(ग) कवि बिहारी ने अपने भक्तिपरक दोहों के माध्यम से क्या कहा है? पठित दोहों के आधार पर स्पष्ट करो।

उत्तर: कवि श्रीकृष्ण के सुन्दर स्वरुप का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं की माथे पर मुकुट, पीली धोती और हाथों में बाँसुरी पकड़े इस मोहक मूर्ति को अपने हृदय में बसा लेना चाहते है। मनुष्य कितना भी धन संग्रह करके रखे पर विपद में दुःख दूर करने वाला यदुपति ही श्रेष्ठ सम्पत्ति है। शरीर पर गेरुआ वस्त्र पहनकर तिलक माथे पर लगा कर और माला जपने से कोई साधु नहीं हो जाता।

(घ) पठित दोहों के आधार पर बताओ कि कवि बिहारी के नीतिपरक दोहों का प्रतिपाद्य क्या है?

उत्तर: सज्जन आदमी का भगवत प्रेम गंभीर होता है। वह कभी भी निष्प्रभ नहीं हो सकता। जैसे रंगीन वस्त्रखण्ड कभी निष्प्रभ नहीं होता। और वह यह भी उपदेश देते है कि मित्र और दुर्दशाग्रस्त के लिए खर्च करने के बाद जो बचता उसीको संचय करना चाहिए।

7. सप्रसंग व्याख्या  करो (लगभग 100 शब्द में):

(क) ‘कोऊ कोरिक संग्रहों ________ बिपती बिदारनहार।।’

उत्तर: संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-1 के अंतर्गत कवि बिहारीलाल द्वारा रचित कविता शीर्षक ‘दोहा दशक’ से लिया गया है।

प्रसंगः प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि ने अपना समस्त संपत्ति कृष्ण को ही माना है।

व्याख्या: कवि यह कहना चाहते हैं कि इस संसार में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने लाख तथा करोड़ों संपत्ति कमाए हैं। पर उस धन दौलत का क्या काम जो विपत्ति के समय काम ही न आए। इसलिए कवि ने कृष्ण को ही अपना संपत्ति माना है। क्योंकि कवि के हर मुसीबत में कृष्ण उनका साथ देते हैं और हर मुसीबत से छुटकारा दिलाते हैं। इसीलिए उन्हें धन दौलत से कोई मतलब नहीं है। उनकी संपत्ति विपत्तियों का नाश करने वाले श्री कृष्ण से ही है।

(ख) ‘जय माला, छाएँ, तिलक ________ साँचे राचे रामु ॥’

उत्तर: संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-1 के अंतर्गत कवि बिहारी लाल जी द्वारा रचित कविता शीर्षकदो ‘दोहा दशक’ से लिया गया है।

प्रसन्नः इस दोहे के माध्यम से भक्ति किस प्रकार होनी चाहिए उसका वर्णन है।

व्याख्या: प्रस्तुत दोहों के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि वह भक्ति किस काम का जो दिखावे पन से किया जाए। ऐसे कई व्यक्ति है जो हाथ में माला जब माथे में तिलक लगाकर अपने को भगवान का भक्त बताकर दिखावा करते हैं। कवि ने इस प्रकार की भक्ति को बेकार माना है। जिस भक्ति में सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति होती है, जिसमें निस्वार्थ की भावना होती है वहीं सच्ची भक्ति कहलाता है। इसीलिए हमें अपने चंचल मन को त्यागकर सच्चे तथा शुद्ध मन से भक्ति करनी चाहिए। और जो सच्चे मन से भक्ति करता है भगवान भी उसका साथ देता है।

(ग) ‘कनक कनक तैं सौ गुनी ________ इहि पाएँ बौराइ॥’

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आलोक भाग १’ के अन्तर्गत कवि बिहारी रचित “दोहा दशक” शीर्षक कविता से ली गयी है। यह बिहारीलाल का एक उल्लेखनीय नीति परक दोहा है। इसके जरिए कवि ने धन के नैशा और धतुरे के मद पर अपना विचार व्यक्त किया है। इसमें कवि ने यह कहने जा रहे है कि धन का मद बड़ा गहरा होता है। धतुरे के खाने पर मादकता आती है पर स्वर्ण या सम्पत्ति की प्राप्ति के साथ ही ज्यादा मादकता आती है। अतः धतुरे की अपेक्षा सम्पत्ति में अधिक मादकता होती है। कवि ने इस छोटे दोहें के इसमें कवि ने यह कहने जा रहे है कि धन का मद बड़ा गहरा होता है। धतुरे के खाने पर मादकता आती है पर स्वर्ण या सम्पत्ति की प्राप्ति के साथ ही ज्यादा मादकता आती है। अतः धतुरे की अपेक्षा सम्पत्ति में अधिक मादकता होती है। कवि ने इस छोटे दोहें के माध्यम से जीवन में आनेवाले सामाजिक और पारिवारिक नीतियों को उभार दिया है।

(घ) ‘ओले बड़े न त्वे सकें ________ फारि निहारै नैन।’

उत्तर: यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आलोक भाग-२’ के अन्तर्गत कवि बिहारीदेव रचित “दोहा-दशक” कविथा से ली गई है। इसमें कविने नीच व्यक्ति को उपहास किया है। कवि का कहना है कि जो ओछे है अर्थात नीच प्रकृति का है वे कभी बड़े नहीं बन सकते। लाख प्रयत्न के बावजूद आकाश की सीमा का विस्तार नहीं किया जा सकता है। हम चाहे अपनी आँखों को जितना फैला लें पर उससे आँखों की दीर्घता बड़ता नहीं जाती है।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान

(क) संधि-विच्छेद करो: 

देहावसान, लोकोक्ति, उन्न्वल, सन्धान, दुर्जन।

उत्तर: (i) देहावसान = देह + अवसान।

(ii) लोकोक्ति = लोक + उक्त।

(iii) उज्जल = उत + ज्वल।

(iv) सज्जन = सत् + जन। 

(v) आईदुर्जन = दु: + जन।

(ख) विलोम शब्द लिखो। 

अनुराग, पाप, गुण, प्रेम, सज्जन, मित्र, गगन, श्रेष्ठ।

उत्तर: (i) अनुराग―विराग। 

(ii) पाप ― पुण्य।

(iii) गुण ― दोष।

(iv) प्रेम ― हिंसा।

(v) मित्र ― शत्रु। 

(vi) गगन ― पाताल। 

(vii) श्रेष्ठ ― सामान्य।

(ग) निम्नलिखित दोहों को खड़ीबोली (मानक हिन्दी) गद्य में लिखो:

मीत न नौत गलीत हवै, जो धरियै धन जोरि। खाए खरचें जो जुरै, तौ जोरिए करोरि ॥ न ए बिससिये लखि नये, दुर्जन दुसह सुभाय। ऑर्ट पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय॥

उत्तर: मित्र और दुर्दशाग्रस्त को मदद और खाने-पीने में खर्च करने के बाद जो धन बचता है उसीको संचय करने को कवि बिहारीलालने उपदेश दिया हैं। दुर्जन भयंकर रूप की होता है, उसे कभी भी विश्वास करना नहीं चाहिए। जिस तरह पैर में काँटा चुगने से कष्ट होना है। ऐसे ही दुर्जनो से भी दुख पहुंचा है।

(घ) निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का नाम बताओ:

सतमई, गोपीनाथ, गुन-औगुन, काव्य-रसिक, आजीवन।

उत्तर: (i) सतमई = (सत्य के साई ― भगवान) ― बहुव्रीहि समास।

(ii) गोपीनाथ = (गोपी के नाथ ― कृष्ण) ― बहुव्रीहि समास।

(iii) गुन औगुन = (गुन और अवगुण) ― द्वन्द समास।

(iv) काव्य–रसिक = (काव्य के रसिक) ― तत्पुपुष समास। 

(v) आजीवन = (जीवन भर) ― अत्वयीभाव समास।

(ङ) अंतर बनाए रखते हुए निम्नलिखित शब्द जोरों के अर्थ बताओ:

कनक–कनक, हार–हार, स्नेह–स्नेह, हल–हल, कल–कल।

उत्तर: (i) कनक – कनक = स्वर्ण, धतूरा।

(ii) हार – हार = युद्ध, क्रीड़ा।

(iii) स्नेह – स्नेह = किसी को, किसी चीज।

(iv) हल – हल = समाधान, सुलझाव।

(v) कल – कल = बोलचाल, झगड़ा।

योग्यता विस्तार

(क) पठित दोहों को कंठस्थ करके अपने माता-पिता को सुनाओ।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(ख) कवि बिहारीलाल द्वारा रचित अन्य दोहों का संग्रह करके कक्षा में अंत्याक्षरी का खेल खेलो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(ग) ‘ज्यों ज्यों बड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई॥’

‘कनक कनक हैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।’

उपरोक्त काव्य पंक्तियों में आए अलंकारों के बारे में अपने शिक्षक से जानकारी प्राप्त करो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(घ) ‘दोहा’ छंद की विशेषता के बारे में अपने शिक्षक से जान लो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(ङ) कवि बिहारी द्वारा रचित निम्नलिखित श्रृंगारपरक दोहों का भाव अपने शिक्षक की सहायता से जानने का प्रयास करो:

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत लजियात। भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सब बात ॥ 1 ॥

बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ। सौह करें भौहनु हँसै, दैन कहै नटि जाइ। ॥ 2॥

शब्दार्थ एवं टिप्पणी
शब्दअर्थ 
(1) सीस सिर
कटि कमर
काछनीपीतांबर, घुटनों तक पहनी हुई धोती
करहाथ
मालमाला, वैजयंती माला
उर वक्षस्थल
बनाक वेश, रूप, बनाव
मोमेरा
बसौनिवास कीजिए, बसा हुआ है 
बिहारीलालकृष्ण कवि का नाम
(2) कोऊ कोई
कोरीककरोड़
संग्रहोंसंग्रह/एकत्र करना
मो मेरी
संपतिसंपत्ति
जदूपति यदुपति, कृष्ण
बिपति विपत्ति, विपदा
बिदारनहारनष्ट/दूर करने वाला
(3) याइस
अनुरागीअनुरगगमयी, प्रेमी, लाल
चित्तहृदय
गति स्वभाव
नहिंनहीं
बूडैडूबता है 
स्याम कृष्ण, काला 
उज्जलु उज्ज्वल
(4) जपमंत्र का स्मरण
छापैंशरीर के किसी अंग पर चित्र बना लेना
तिलक सरैटीका, मस्तक पर चंदन आदि का चिह्न लगाना सिद्ध होना
नहीं 
एकौएक भी
कामु काम, कार्य
काँचैकच्चा, काँच का, चंचल
बुथाबेकार
साँचैसच्चा, साँचा, दृढ
राँचैनिचस करके प्रसन्न होता है
रामुरामजी, आराध्य
(5) कीजैकीजिए, करुणा लाइए
चित चित्त/हृदय में 
सोईवही
तरे उद्धार हो 
जिहि पतितनु के साथजैसा बर्ताव अन्य पापियों के साथ किया
गुन गुण, अच्छाई
औगुनअवगुण, दोष, बुराई
गन्नूसमूहों को
गनौ नन गिनिए, गणना मत कीजिए
गोपीनाथगोपियों के नाथ श्रीकृष्ण 
(6) चटकचमक, सहानुभूति
न छाँड़नुनहीं छोड़ता
घटक हूगंभीरता घटने पर भी
सजन्न सत्पुरुष
नेहु स्नेह, प्यार
गंभीरुगंभीरता, गहराई
फीको पर नफीका नहीं पड़ता,
बरुभले ही
घटे हास हो, फट जाए
रंग्यौरँगा हुआ
चोलमंजिष्ठ, मंजीठ
रंगु रंग से
चीरु चीर, वस्त्र, कपड़ा
(7) न ए बिससियेइन पर विश्वास न कीजिए
लखिदेखकर, देखते ही
नयेनम्र होते हुए 
दुर्जनदुष्ट लोग
दुसहदुस्सह
सुभायस्वभाव
आँटे परअंटे/दुःख में पड़ने पर, अवसर मिलने पर
प्रानन हरेप्राणों का हरण करते हैं
कॉटकाँटा
लॉकी तरह, के समान
लगि पाय पाँव/पैर में चुभकर
(8) कनकसोने/स्वर्ण में, धन-संपत्ति में
कनक तौंधतूरे से
मादकताउन्मत्तता, बावलापन, पागल बनाने की क्षमता
अधिकाइ अधिक, ज्यादा होती है
उहिउसे, धतूरे को
खाएखाने पर
बौराएपागल होता है
जगु जगत, दुनिया
इहिंइसे, सोने को
पाएँपाने पर ही
बौराइपागल हो/अहंकार से भर जाता है
(9) मीत मित्र, दोस्त
न नीत नीति नहीं है 
गलीत ह्वैदुर्दशाग्रस्त होने पर भी
धन जोरिधन/रुपये-पैसे का संचय करके
खाए खरचें जो जुरैखाने और खर्च करने के बाद अगर बच आए
तौ तो, उस स्थिति में
जोरिए संचय कीजिए
करोरिकरोड़ की संख्या में
(10) ओछेछोटा/निकृष्ट व्यक्ति, नीचे स्वभाव वाला
बड़ेबड़ा, महान
न वै सकेंनहीं हो सकता
लगौलग जाए, छू ले
सतर ह्वैऊँचा होकर, बढ़ कर
गैनगगन, आकाश
दीरघदीर्घ, बड़ा, विशाल
होंहि नहो नहीं पाता
बैंक हूँकभी भी
फारि निहारैफाड़ कर देखा जाए, बड़ा करके देखा जाए
नैननयन,  आँख
दीरघ होंहि निहारे नैनआँखों को भले ही फाड़कर देखा जाए परंतु वे कभी भी अपने स्वाभाविक आकार से बड़ी नहीं हो पातीं

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