Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 15 बरगीत

Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 15 बरगीत Question Answer to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter Assam Board Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 15 बरगीत Notes and select needs one.

Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 15 बरगीत

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बरगीत

पाठ – 15

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन कीजिए: 

(क) पठित बरगीतों में किसकी प्रधानता है?

(i) धर्म।

(ii) भक्त्ति।

(iii) शौर्य।

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(iv) वात्सल्य।

उत्तरः (ii) भक्ति।

(ख) शंकरदेव के अनुसार यह संसार कैसा है?

(i) सुखदायक।

(ii) आनंददायक।

(iii) ज्ञानदायक।

(iv) कष्टदायक।

उत्तरः (iv) कष्टदायक।

(ग) मनुष्य को मुक्ति किससे प्राप्त होती हैं?

(i) नाम-कीर्तन।

(ii) पूजा-पाठ।

(iii) जप-तप।

(iv) धर्म-कर्म।

उत्तर: (i) नामकीर्तन।

(घ) बरगीत में ठाकुर किसे कहा गया है ?

(i) हरि।

(ii) पंडित।

(iii) भक्त।

(iv) शंकरदेव।

उत्तर: (i) हरि।

(ङ) शंकरदेव के अनुसार वास्तविक भक्ति का पता किसे होता है?

(i) पुजारी।

(ii) भगवान।

(iii) ब्राह्मण।

(iv) भक्त।

उत्तर: (iv) भक्त।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) शंकरदेव ने प्रथम बरगीत में किस बात का वर्णन किया है?

उत्तर: शंकरदेव ने प्रथम बरगीत में भगवान की नाम-महिमा का वर्णन किया है। उनके अनुसार भगवान के नाम कीर्तन से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

(ख) शंकरदेव के अनुसार ‘सारतत्व’ क्या है? 

उत्तर: शंकरदेव के अनुसार ईश्वर यानी परमात्मा ही सारतत्व हैं, जिनकी कृपा से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिलती है। 

(ग) दूसरे बरगीत में शंकरदेव ने स्वयं को किसका दास बताया है?

उत्तर: दूसरे बरगीत में शंकरदेव ने स्वयं को प्रभु श्रीकृष्ण का दास बताया है। सर्वगुणसंपन्न प्रभु श्रीकृष्ण ही उनके परम पूज्य व स्वामी हैं।

(घ) भक्तों के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु क्या है?

उत्तर: भक्तों के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु भक्ति है। ईश्वर का नाम भक्ति ही भक्तों के लिए मुक्ति का कारण है।

(ङ) “अंतर जल छुटय कमल मधु मधुकर पीयै”- यहाँ’ मधुकर’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर: “अंतर जल छुटय कमल मधु मधुकर पीयै” यहाँ’ मधुकर’ शब्द भ्रमर रूपी भक्तों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) शंकरदेव ने ‘राम’ नाम बोलने के लिए क्यों कहा है? 

उत्तरः शंकरदेव के अनुसार राम नाम यानी ईश्वर भक्ति ही सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिला सकता है। भगवान का नाम ही मुक्ति का कारण बनता है। यह संसार वैतरणी नदी के समान कष्टदायक है। जिस प्रकार वैतरणी नदी में पापियों को कष्ट भोगना पड़ता है, उसी प्रकार इस संसार में भी मनुष्य को कष्ट सहने पड़ते हैं। इस कष्टपूर्ण संसार से उद्धार या मुक्ति पाने के लिए ईश्वर भक्ति के समान दूसरा कुछ भी उपाय सही नहीं है। राम नाम बड़ा ही शक्तिशाली और सहज है। राम का नाम लेनेवाले और सुननेवाले दोनों लाभान्वित होते हैं। जिस प्रकार सिंह का गर्जन सुनकर हाथी भय से भाग जाता है, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनकर ही मन का कुसंस्कार भय से भाग जाता है। ईश्वरीय नाम का लक्षण अद्भुत है, क्योंकि एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करे तो उसे सुनकर सौ व्यक्ति इस संसार के क्लेश से मुक्त हो जाते हैं। अतः श्रीमंत शंकरदेव ने मनुष्य को राम का नाम बोलने के लिए उपदेश दिया है।

(ख) शंकरदेव ने संसार को दुखमय क्यों कहा है? 

उत्तर: शंकरदेव ने संसार को दुखमय कहा है, क्योंकि संसार मायामय है। मायामय इस संसार में चारों तरफ लोभ, मोह, काम, क्रोध आदि फैले हुए हैं। कुसंस्कारों के कारण मनुष्य का चित्त अशुद्ध हो जाता है। ऐसे सांसारिक मायाजाल में आवद्ध लोगों को अंतकाल यानी मृत्यु के समय पश्चाताप करना पड़ता है। और उन्हें सहजता से मुक्ति प्राप्त नहीं होती है। शंकरदेव कहते हैं कि यह संसार वैतरणी नदी के समान कष्टदायक है। इनसे उद्धार या मुक्ति पाने के लिए भगवान का नाम ही एकमात्र सहज उपाय है।

(ग) ‘ नाम पंचानन नादे पलावत’- इस पंक्ति में ‘नाम’ की तुलना ‘पंचानन’ से क्यों की गई है?

उत्तर: ‘नाम पंचानन नादे पलावत’ इस पंक्ति में ‘नाम’ की तुलना ‘पंचानन’ से की गई है क्योंकि नाम (ईश्वर का नामोच्चारण) और सिंह (सिंह का गर्जन) के गुणों में समानता है। जिस प्रकार सिंह का गर्जन सुनकर हाथी डर के मारे भाग जाता है, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनकर पाप यानी मन का कुसंस्कार भी डर के मारे भाग जाता है। इस पंक्ति के माध्यम से शंकरदेव ईश्वरीय नाम शक्ति और सामर्थ्य का बोध करा रहे हैं। उनका कहना है कि नाम की महिमा अद्भुत और विस्मयकर है। एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करता है तो उसे सुननेवाले सौ व्यक्तियों की सांसारिक पीड़ा दूर हो जाती है। इसलिए शंकरदेव ने नाम की शक्ति का एहसास कराने के लिए पंचानन यानी सिंह से इसकी तुलना की है।

(घ) ‘याहे भकति ताहे मुकुति’- शंकरदेव ने ऐसा क्यों कहा है? अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तर: ‘याहे भकति ताहे मुकुति’ शंकरदेव ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ईश्वर की भक्ति करने वालों को मुक्ति की प्राप्ति होती है। श्रीशंकरदेव यह भलीभाँति जानते थे कि भक्ति के बिना शास्त्रों का सारतत्व समझ में नहीं आता। वे कहते हैं कि कमल के फूल अपने हृदय में स्थित मधुरस को निकाल देते हैं, परंतु उसका रसपान मधुकर ही करता है। भक्तगण यह तत्वसार जानते हैं कि ‘याहे भकति ताहे मुकुति’ अर्थात् भक्ति जिसकी है, मुक्ति भी उसकी ही है। 

(ङ) शंकरदेव के अनुसार असली पंडित कौन है? उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर: शंकरदेव के अनुसार असली पंडित वही है जो शास्त्रों के सारतत्व को ग्रहण करते हैं। अर्थात् भक्तगण ही असली पंडित हैं क्योंकि इन्होंने शास्त्रों और नाम धर्म के सारतत्व को आत्मसात किया है। इनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(क) वे ईश्वर का नाम-कीर्तन गाते हैं।

(ख) राम नाम के सारतत्व से वे भलीभाँति परिचित हैं।

(ग) वे भगवान की महिमा से परिचित होकर उनके गुणों का गान करते हैं।

4. निम्नलिखित पद्यांशों के भावार्थ लिखिए:

(क) बुलिते एक शुनिते शत नितरे।

उत्तर: इस पंक्ति का भावार्थ यह है कि एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करे तो उसे सुनकर सौ व्यक्ति संसार के क्लेश से मुक्त हो जाते हैं।

(ख) सबकहु परम सुहृद हरिनाम। 

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ यह है कि हरि का नाम ही सबके लिए सुहृद की भाँति हितसाधक है।

(ग) याहे भकति ताहे मुकुति भकते ए तत्व जाना।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ यह है कि भक्ति जिसकी है, मुक्ति भी उसकी है – भक्तों ने यह तत्वसार जान लिया है।

(घ) सोहि पण्डित सोहि मण्डित यो हरि गुण गावै। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ यह है कि जो हरि के गुण गाते हैं, वे ही असली पंडित, ज्ञानी और यशस्वी कहलाते हैं।

भाषा एवं व्याकरण:

1. निम्नलिखित सामासिक शब्दों का समास-विग्रह करते हुए उसके भेद भी लिखिए:

दशानन, भयभीत, चौराहा, नीलकमल, पीतांबर, आजीवन, दिन-रात, सुहृद

उत्तर: दशानन: दश हैं आनन (मुख) जिसके, अर्थात् रावण – बहुब्रीहि समास।

भयभीत: भय से भीत – तत्पुरुष समास। 

चौराहा: चार राहों का समूह – द्विगु समास।

नीलकमल: नीला है जो कमल – कर्मधारय समास।

पीतांबर: पीत (पीला) है अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात् विष्णु – बहुब्रीहि समास।

आजीवन: जीवन पर्यंत – अव्ययीभाव समास। 

दिन-रात: दिन और रात – द्वंद्व समास।

सुहृद: सुंदर है जो हृदय – कर्मधारण समास।

2. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए: 

भव, तरणी, सार, पंडित, कमल, जल

उत्तरः भव – संसार, जगत।

तरणी – नाव, नौका।

सार – मूलवस्तु, रस।

पंडित – जानकार, ज्ञानी 

कमल – पंकज, नीरज।

जल – पानी, नीर।

3. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए: 

प्रकाश, मुक्ति, एक, सुख, पाप, भयभीत

उत्तर: प्रकाश – अंधकार

मुक्ति – बंधन

एक  – अनेक

सुख – दुःख

पाप  – पुण्य

भयभीत – निर्भय

कवि संबंधित प्रश्न उत्तर 

(1) बारगीत के रचयिता के नाम क्या है?

उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव।

(2) भारतीय – साहित्य  में शंकरदेव का क्या योगदान है?

उत्तर: भारतीय – साहित्य  में शंकरदेव का उल्लेखनीय योगदान रहा है। कबीर, सुर, तुलसी की तरह वे भी एक शीर्षस्थ भक्त कवि थे।

(3) उनका जन्म कहा हुआ था?

उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव का जन्म असम के नगांव के अखिलपुखी नमक स्थान में हुआ था।

(4) उनके माता और  पिता का नाम क्या था?

उत्तर: उनके माता का नाम सत्यसंध्या और पिता कुसुंबर भूयां।

(5) उनका पालन – पोषण किसने किया था?

उत्तर: बचपन में ही उनके माता – पिता की मृत्यू होने के कारण बालक शंकरदेव का का पालन – पोषण उनकी दादी खेरसुती ने किया था।

(6) शंकरदेव के गुरु का नाम क्या था?

उत्तर: शंकरदेव के गुरु महेंद्र कंदली थे।

(7) शंकरदेव के जीवन का कीर्तिस्तंभ क्या है?

उत्तर: “कीर्तन – घोषा”। 

(8) शंकरदेव किस धर्म के प्रवर्तक थे?

उत्तर: नववैष्णव धर्म के प्रवर्तक थे।

(9) असम साहित्य के निर्माता किसे कहते है?

उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव।

(10) श्रीमंत शंकरदेव के नाम के पहले श्रीमंत, महापुरुष, गुरु आदि शब्द क्यों जोड़े जाते हैं?

उत्तर: शंकरदेव असाधारण व्यक्तित्व के अधिकारी थे इसी कारण श्रद्धापूर्वक उनके नाम के पहले सदैव श्रीमंत, महापुरुष, गुरु आदि शब्द जोड़ते है।

(11) उनका निधन कहा हुआ था?

उत्तर: उनका निधन मधुपुर सत्र, कोचबिहार में हुआ था।

(12) भारतीय नाटक – साहित्य में शंकरदेव के योगदान को लिखिए?

उत्तर: भारतीय नाटक – साहित्य में में भी शंकरदेव का स्तुत्य योगदान रहा है। उन्होंने चिह्नयात्रा, रुक्मिणीहरण, परिजात – हरण, केलीगोपाल, कालिया – दमन, और रामविजय नामक अंकिया नाटकों की रचना की। “भक्ति- रत्नाकर” शंकरदेव द्वारा रचित एक अनमोल ग्रंथ है। संवादविहीन नाटक “चिह्नयात्रा” के जरिए शंकरदेव ने असामीय नाटक के इतिहास का श्रीगणेश किया था।

(13) श्रीमंत शंकरदेव के असमिया साहित्य के योगदान का उल्लेख किजिए?

उत्तर: भारतीय भक्ति – साहित्य में असमिया साहित्य का उल्लेखनीय योगदान रहा है। वे केवल धर्मगुरु ही नही, बल्कि एक महान युगद्रष्टा कवि, साहित्यकार, नाटककार, टिकाकार, अनुवादक, गीतकार, अभिनेता तथा समाज – सुधारक व संगठक थे। इन्होंने सम्पूर्ण असमिया जाती के एक सूत्र में पिरोकर एकता, मैत्री और संस्कार की भावना को सुदृढ़ किया। धर्म के अतिरिक्त साहित्य – संस्कृति के प्रचारार्थ संस्कृत ग्रंथों का शंकरदेव ने गहन अध्ययन कर उनसे सारतत्व ग्रहण किए और गीत, पद, नाटक, उपाख्यान आदि की रचना की। इस प्रकार उन्होंने असमिया साहित्य के भंडार की श्रीवृद्धि की।

(14) उनके काव्य रचनाओं के नाम लिखिए?

उत्तर: उनके काव्य रचनाओं के नाम है: रुक्मिणीहरण और हरीशचंद्र उपाख्यान।

(15) उनके किन्हीं दो ग्रंथ के नाम लिखिए?

उत्तर: कीर्तन घोषा  और भक्ति – रत्नाकर।

अतिरिक्त प्रश्न उत्तर

(1) पण्डिते पढ़ें शास्त्र मात्र सार भकते लीयै इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए?

उत्तर: उक्त पंक्तियां अंबर भाग 2 के बरगीत नमक कविता से ली गई है इसके कवि श्रीमंत शंकरदेव जी है।

उक्त पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते है की जिस प्रकार कमल के फूल अपने अंतर में स्थित मधुररस निकल देते है, परंतु उसका पान कर आनंद लूटनेवाला मधुकर होता है ठीक उसी प्रकार पंडित केवल शास्त्रों का पाठ करते है परंतु उनके सारतत्व को भक्त ग्रहण करते है।

(2)  बोलहु राम नामेसे मुकुति निदाना भव _________ नाम समान। इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए?

उत्तर: उक्त पंक्तियां अंबर भाग 2 के बरगीत नमक कविता से ली गई है इसके कवि श्रीमंत शंकरदेव जी है।

उक्त पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते है की भगवान का नाम ही मुक्ति यानी मोक्ष का रास्ता प्रशस्त करता है। इसलिए मनुष्य को सदा राम का नाम लेना चाहिए। यह संसार दुखमयी है। वैतरणी नदी में पापियों को जो कष्ट भोगना पड़ता है, उसी प्रकार यह संसार भी कष्टपूर्ण है, इससे उद्धार पाने के लिए भगवान का नाम उच्चारण के सिवा दूसरा कोई सुलभ साधन कुछ भी नही है।

(3) संकलित बरगीत किस प्रकार के बरगीत है?

उत्तर: संकलित बरगीत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा विचारित भक्तिमुलक बरगीत है। दोनो बरगीत में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति शंकरदेव का अदभुत और अनन्य व्यक्त हुई है।

(4) भगवान श्रीकृष्ण के बारे में शंकरदेव ने क्या कहा है?

उत्तर: शंकरदेव ने श्रीकृष्ण को सर्वगुण सम्पन्न बताते हुए कहा है की वे मेरे स्वामी है और मैं उनका दास हूं।

(5) शंकरदेव के मुताबिक संसार कैसा है?

उत्तर: शंकरदेव के मुताबिक यह संसार कष्टदायक है, सांसारिक माया के कारण संसार ने कष्ट ही कष्ट दिखाई देता है।

सही विकल्प का चयन कीजिए

(1) कवि का जन्म कब हुआ था?

(i) सन्  1439

(ii) सन् 1449

(iii) सन् 1450

(iv) सन् 1448

उत्तर: सन् 1449

(2) करीब कितने वर्ष की आयु में कवि का देहांत हुआ था?

(i) 110 वर्ष।

(ii) 125 वर्ष।

(iii) 100 वर्ष।

(iv) 120 वर्ष।

उत्तर: 120 वर्ष।

(3) कवि का देहांत कब हुआ था?

(i) सन् 1567

(ii) सन् 1548

(iii) सन् 1568

(iv) सन् 1569

उत्तर: सन् 1568

(4) वे असाधारण व्यक्तित्व के अधिकारी थे इसी कारण उनके नाम के पहले __________ आदि शब्द जोड़ते हैं, खाली स्थान भरिए।

(i) श्रीमंत।

(ii) महापुरुष।

(iii) गुरु।

(iv) उपरोक्त सभी।

उत्तर: उपरोक्त सभी।

(5) उन्होंने कौन से नाटक के जरिए असमिया नाटक के इतिहास का श्रीगणेश किया था?

(i) रुक्मिणीहरण।

(ii) रामविजय।

(iii) चिह्नयात्रा।

(iv) कालिया – दमन।

उत्तर: कालिया – दमन।

(6) श्रीमंत शंकरदेव ने खुद को क्या कहा है?

(i) चिंतामणि।

(ii) गोविंद।

(iii) कृष्ण कंकर।

(iv) कृष्ण भक्त।

उत्तर: कृष्ण कंकर।

(7) पठित बरगीत में नारद और शुकमुनि ने क्या संदेश दिया है?

(i) राम नाम रटो, कर्म मत करो।

(ii) राम का नाम लेने से धन की प्राप्ति होती है।

(iii) राम नाम के बिना मुक्ति का दूसरा उपाय नहीं है।

(iv) राम नाम से मुक्ति नहीं मिलती।

उत्तर: राम नाम के बिना मुक्ति का दूसरा उपाय नहीं है।

(8) शास्त्र पंडित पढ़ते है और सार किसे मिलता है?

(i) पंडित को।

(ii) भक्त को।

(iii) भक्तगण को।

(iv) किसी को नहीं।

उत्तर: भक्तगण को।

(9) भक्त ही असली __________ होते है, खाली स्थान भरिए। 

(i) पंडित।

(ii) ज्ञानी।

(iii) यशस्वी।

(iv) उपरोक्त सभी।

उत्तर: उपरोक्त सभी।

(10) मधुकर का अर्थ क्या है?

(i) मधु बेचने वाला।

(ii) मधु निकलने वाला।

(iii) भैंरे।

(iv) इनमे से एक भी नहीं।

उत्तर: भैंरे।

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