NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

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NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

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Chapter: 2

भारत और समकालीन विश्व-१
खण्ड I: घटनाएँ और प्रक्रियाएँ
प्रश्न:

1. रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले कैसे थे?

उत्तर: रूसी किसान यूरोप के बाकी किसानों के मुकाबले एक और लिहाज़ से भिन्न थे। यहाँ के किसान समय-समय पर सारी जमीन को अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की ज़रूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बाँटता था। ग्रामीण क्षेत्रों में समाज मजदूरों, अभिजात वर्ग और चर्च के बीच बँटा हुआ था। अभिजात वर्ग व चर्च के सदस्यों के पास विशाल भूमिखंड थे। शहरों में समाज मालिकों और नौकरों में विभाजित था। श्रमिक अपने-अपने कौशलों के अनुसार समूहों में बँटे हुए थे। जब रूसी रेल नेटवर्क का विस्तार किया जा रहा था तो सन् 1890 के दशक में कई कारखाने स्थापित किए गए और कारखानों में विदेशी निवेश बढ़ गया। बीसवीं सदी के प्रारंभ में 85 प्रतिशत रूसी कृषक थे। महिला श्रमिक कुल श्रमिक संख्या का 31 प्रतिशत थे। शहरों में कारखानों के मजदूरों को बहुत कम तनख्वाहें दी जाती थीं। उनकी आय उनके सामाजिक जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए पर्याप्त न थी। श्रमिक लगातार 12-15 घंटे कार्य करते रहते थे।

2. 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?

उत्तर: सन् 1917 से पहले रूस की कामकाज करने वाली जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों से भिन्न थी क्योंकि सभी रूसी कामगार कारखानों में काम करने के लिए गांव से शहर नहीं आए थे। अन्य यूरोपीय देशों में कृषि-संबंधी कार्यों में लिप्त श्रमिक जनसंख्या बहत कम थी। उदाहरण के लिए फ्रांस और जर्मनी में यह जनसंख्या 40 से 50 प्रतिशत थी। रूसी श्रमिकों का सामाजिक जीवन अन्य यरोपीय श्रमिकों से अलग था। रूस में छोटे किसान कम्यून में रहकर सामुदायिक कृषि करते थे, कुछ रूसी समाजवादियों को लगता था कि रूसी किसान जिस तरह समय-समय पर जमीन बाँटते हैं उससे पता चलता है कि वह स्वाभाविक रूप से समाजवादी भावना वाले लोग हैं। धातुकर्मी मजदूरों में खुद को साहब मानते थे। उनके काम में ज्यादा प्रशिक्षण और निपुणता की जरूरत जो रहती थी। कारखाना मजदूरों की स्थिति भी इतनी ही खराब थी। वे अपनी शिकायतों को प्रकट करने के लिए कोई ट्रेड यूनियन अथवा कोई राजनीतिक दल नहीं बना सकते थे।

3. 1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया?

उत्तर: 1917 से पूर्व रूस में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ अत्यंत विचारणीय थीं। 1917 तक 70 लाख लोग मारे जा चुके थे। पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहाँ टिक ही न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से ज़्यादा लोग शरणार्थी हो गए। इन हालात ने सरकार और ज़ार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। सैनिक युद्ध लड़ने के पक्ष में नहीं थे, इसीलिए वे युद्ध को जारी रखने के सरकारी निर्णय के विरुद्ध थे। 22 फरवरी को सरकारी अधिकारियों ने एक फैक्ट्री में तालाबंदी कर दी, जिसके कारण 50 फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने हड़ताल कर दी। सरकार ने घुड़सवार फौज को प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसाने का आदेश दिया ताकि स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके। परंतु फौज ने यह आदेश मानने से इंकार कर दिया और मजदूरों से हाथ मिला लिया। अंत में फौज और श्रमिकों ने मिलकर ‘सोवियत’ या ‘पेत्रोग्राद सोवियत’ का निर्माण किया। इस प्रकार, फरवरी क्रांति ने ज़ार के शासन का अंत कर दिया।

4. दो सूचियाँ बनाइए: एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्तूबर क्राति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।

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उत्तर: फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभाव: 22 फरवरी को दाएँ तट पर स्थित एक फ़ैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फ़ैक्ट्री के मज़दूरों के समर्थन में पचास फ़ैक्ट्रियों के मज़दूरों ने भी हड़ताल का एलान कर दिया। बहुत सारे कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थीं। इसी दिन को बाद में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का नाम दिया गया। आंदोलनकारी जनता बस्ती पार करके राजधानी के बीचोंबीच नेव्स्की प्रोस्पेक्ट (Nevsky Prospekt) तक आ गई। रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया। सरकार के इस फ़ैसले के खिलाफ़ राजनीतिज्ञ बयान देने लगे। 26 तारीख को प्रदर्शनकारी बहुत बड़ी संख्या में बाएँ तट के इलाके में इकट्ठा हो गए। 27 को उन्होंने पुलिस मुख्यालयों पर हमला करके उन्हें तहस-नहस कर दिया। रोटी, तनख्वाह, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए। सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण कायम करने के लिए एक बार फिर घुड़सवार सैनिकों को तैनात कर दिया। लेकिन घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। क्रोधीत सिपाहियों ने एक रेजीमेंट की बैरक में अपने ही एक अफ़सर पर गोली चला दी। तीन दूसरी रेजीमेंटों ने भी बगावत कर दी और हड़ताली मजदूरों के साथ आ मिले। उस शाम को सिपाही और मजदूर एक सोवियत या ‘परिषद्’ का गठन करने के लिए उसी इमारत में जमा हुए जहाँ अब तक ड्यूमा की बैठक हुआ करती थी। यहीं से पेत्रोग्राद सोवियत का जन्म हुआ। फरवरी 1917 में राजशाही को गद्दी से हटाने वाली क्रांति का झंडा पेत्रोग्राद की जनता के हाथों में था।

अक्तूबर क्राति की प्रमुख घटनाओं और प्रभाव: 16 अक्तूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए राजी कर लिया। सत्ता पर कब्ज़े के लिए लियॉन ट्रॉट्स्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया। 24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हो गया। संकट की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री केरेंस्की सैनिक टुकड़ियों को इकट्ठा करने शहर से बाहर चले गए। तड़के ही सरकार के वफ़ादार सैनिकों ने दो बोल्शेविक अखबारों के दफ़्तरों पर घेरा डाल दिया। टेलीफ़ोन और टेलीग्राफ़ दफ़्तरों पर नियंत्रण प्राप्त करने और विंटर पैलेस की रक्षा करने के लिए सरकार समर्थक सैनिकों को रवाना कर दिया गया। पलक झपकते क्रांतिकारी समिति ने भी अपने समर्थकों को आदेश दे दिया कि सरकारी कार्यालयों पर कब्ज़ा कर लें और मंत्रियों को गिरफ़्तार कर लें। उसी दिन ऑरोरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस पर बमबारी शुरू कर दी। अन्य युद्धपोतों ने नेवा के रास्ते से आगे बढ़ते हुए विभिन्न सैनिक ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया। पेत्रोग्राद में अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस की बैठक हुई जिसमें बहुमत ने बोल्शेविकों की कार्रवाई का समर्थन किया। अन्य शहरों में भी बगावतें होने लगीं। दोनों तरफ़ से जमकर गोलीबारी हुई, खास तौर से मास्को में, लेकिन दिसंबर तक मास्को-पेत्रोग्राद इलाके पर बोल्शेविकों पर बोल्शे का नियंत्रण स्थापित हो चुका था।

5. बोल्शेविकों ने अक्तूबर क्रांति के फ़ौरन बाद कौन-कौन-से प्रमुख परिवर्तन किए?

उत्तर: बोल्शेविक निजी संपत्ति की व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ थे। ज़्यादातर उद्योगों और बैंकों का नवंबर 1917 में ही राष्ट्रीयकरण किया जा चुका था। उनका स्वामित्व और प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में आ चुका था। जमीन को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया। किसानों को सामंतों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने की खुली छूट दे दी गई। शहरों में बोल्शेविकों ने मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़कर उनके बड़े मकानों के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए ताकि बेघरबार या जरूरतमंद लोगों को भी रहने की जगह दी जा सके।

बोल्शेविक पार्टी का नाम बदल कर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया। नवंबर 1917 में बोल्शेविकों ने संविधान सभा के लिए चुनाव कराए लेकिन इन चुनावों में उन्हें बहुमत नहीं मिल पाया। जनवरी 1918 में असेंबली ने बोल्शेविकों के प्रस्तावों को खारिज कर दिया और लेनिन ने असेंबली बर्खास्त कर दी। उनका मत था कि अनिश्चित परिस्थितियों में चुनी गई असेंबली के मुकाबले अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस कहीं ज्यादा लोकतांत्रिक संस्था है। मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोल्शेविकों ने ब्रेस्ट लिटोस्क में जर्मनी से संधि कर ली। आने वाले सालों में बोल्शेविक पार्टी अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने वाली एकमात्र पार्टी रह गई। अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को अब देश की संसद का दर्जा दे दिया गया था।

6. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए:

(i) कुलक।

उत्तर: 1928 में पार्टी के सदस्यों ने अनाज उत्पादक इलाकों का दौरा किया। उन्होंने किसानों से जबरन अनाज खरीदा और ‘कुलकों’ के ठिकानों पर छापे मारे। रूस में संपन्न किसानों को कूलक कहा जाता था। जब इसके बाद भी अनाज की कमी बनी रही तो खेतों के सामूहिकरण का फ़ैसला लिया गया। इस फैसले के पक्ष में एक तर्क यह दिया गया कि अनाज की कमी इसलिए है क्योंकि खेत बहुत छाटे-छोटे हैं। 1917 के बाद जमीन किसानों को सौंप दी गई थी। फलस्वरूप ज्यादातर किसानों के पास छोटे खेत थे जिनका आधुनिकीकरण नहीं किया जा सकता था। आधुनिक खेत विकसित करने और उन पर मशीनों की सहायता से औद्योगिक खेती करने के लिए ‘कुलकों का सफ़ाया’ करना, किसानों से जमीन छीनना और राज्य नियंत्रित यानी सरकारी नियंत्रण वाले विशालकाय खेत बनाना जरूरी माना गया।

(ii) ड्यूमा।

उत्तर: 1905 की क्रांति के दौरान जार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद या ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दे दी। क्रांति के समय कुछ दिन तक फ़ैक्ट्री मजदूरों की बहुत सारी ट्रेड यूनियनें और फ़ैक्ट्री कमेटियाँ भी अस्तित्व में रहीं। 1905 के बाद ऐसी ज़्यादातर कमेटियाँ और यूनियनें अनधिकृत रूप से काम करने लगीं क्योंकि उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। ज़ार ने पहली ड्यूमा को मात्र 75 दिन के भीतर और पुनर्निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया। रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया। 

(iii) 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार।

उत्तर: महिला कामगार, अकसर अपने पुरुष सहकर्मियों को प्रेरित करती रहती थीं। फैक्ट्री मजदूरों का 31 प्रतिशत महिला कामगारों का था। परंतु, उन्हें पुरुष श्रमिकों से कम मजदूरी मिलती थी। अधिकतर फैक्ट्रियों में उन्हें पुरुषों की मजदूरी का आधा या तीन-चौथाई ही दिया जाता था। इसी कारण उन्होंने विद्रोह में पुरुषों का साथ दिया। 1917 की अक्तूबर क्रांति के बाद समाजवादियों ने रूस में सरकार बनाई। 1917 में राजशाही के पतन एवं अक्तूबर की घटनाओं को ही सामान्यतः रूसी क्रांति कहा जाता है। 22 फरवरी, 1917 को कई फैक्ट्रियों में महिला कामगारों ने हड़ताल की। इसीलिए इस दिन को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के नाम से जाना जाता है।

(iv) उदारवादी।

उत्तर: समाज परिवर्तन के समर्थकों में एक समूह उदारवादियों का था। उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले। उदारवादी समूह वंश-आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे। वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। उनका कहना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो शासकों और अफ़सरों के प्रभाव से मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन-कार्य चलाए। 

(v) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।

उत्तर: लेनिन के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे स्तालिन ने स्थिति से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए। उन्हें लगता था कि अमीर किसान और व्यापारी कीमत बढ़ने की उम्मीद में अनाज नहीं बेच रहे हैं। स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम स्तालिन ने लेनिन के बाद जब सत्ता संभाली तब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सामूहिकीकरण कार्यक्रम अपनाया। उन्होंने व्यपारियो व् कुलको से अनाज जप्त किया, ताकि अंनाज की कीमते कम हो। अनाज की कमी दूर करने के लिए 1929 में सभी किसानो को सामूहिक खेतो (कोलखोज) पर काम करने का आदेश दिया। ज्यादातर जमीन और साजो-सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए। सभी किसान सामूहिक खेतों पर काम करते थे और कोलखोज के मुनाफ़े को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था।

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