NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

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NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

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Chapter: 3

भारत और समकालीन विश्व-१
खण्ड I: घटनाएँ और प्रक्रियाएँ
प्रश्न:

1. वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?

उत्तर: वाइमर गणराज्य के सामने निम्नलिखित समस्याएँ थीं: 

(i) संविधान में कुछ खामियाँ थीं, जिसके कारण हमेशा तानाशाह का खतरा बना रहता था।

(ii) पुराने साम्राज्य द्वारा किए गए अपराधों का हर्जाना नवजात वाइमर गणराज्य से वसूल किया जा रहा था।

(iii) रूढ़िवादी/पुरातनपंथी राष्ट्रवादी मिथकों की आड़ में उन्हें तरह तरह के हमलों का निशाना बनाया जाने लगा।

(iv) आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुच्छेद के कारण किसी भी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाता था और गठबंधन सरकारें बनती थीं।

(v) युद्ध से संबंधित हर्जाने को अदा करने के चक्कर में अर्थव्यवस्था की हालत खराब थी।

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2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?

उत्तर: राजनीतिक रैडिकलवादी विचारों को 1923 के आर्थिक संकट से और बल मिला। जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था। और युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा। इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग समाप्त होने की स्थिति में पहुँच गए थे। आखिरकार 1923 में जर्मनी ने कर्ज़ और हर्जाना चुकाने से इनकार कर दिया। इसके जवाब में फ्रांसीसियों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्जा कर लिया। यह जर्मनी के विशाल कोयला भंडारों वाला इलाका था। जर्मनी ने फ्रांस के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध के रूप में बड़े पैमाने पर कागज़ी मुद्रा छापना शुरू कर दिया। जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी कि उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेज़ी से गिरने लगा। अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 3,53,000 मार्क, अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसंबर में 9,88,60,000 मार्क हो गई। इस तरह एक डॉलर में खरबों मार्क मिलने लगे। जैसे-जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीज़ों की कीमतें आसमान छूने लगीं। 

जर्मनी को इस संकट से निकालने के लिए अमेरिकी सरकार ने हस्तक्षेप किया। इसके लिए अमेरिका ने डॉव्स योजना बनाई। इस योजना में जर्मनी के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए हर्जाने की शर्तों को दोबारा तय किया गया। 1929 में वॉल स्ट्रीट एक्सचेंज (शेयर बाज़ार) धराशायी हो गया तो जर्मनी को मिल रही यह मदद भी रातों-रात बंद हो गई। युद्ध संबंधित हर्जाने की भारी राशि चुकाने के कारण अर्थव्यवस्था खराब हालत में थी और लोगों के कष्ट बढ़े हुए थे। ऐसे में हिटलर ने अपने आप को किसी मसीहा की तरह पेश किया। भाषण देने की कला में उसका कोई जोड़ नहीं था। अपने लोकलुभावने वादों से उसने जनता का दिल जीत लिया और 1930 आते आते नात्सीवाद लोकप्रिय होने लगा।

3. नात्सी सोच के खास पहलू कौन-से थे?

उत्तर: नात्सी सोच के खास पहलू इस प्रकार थे—

(i) निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली ‘आर्य’ औरतों की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती थी।

(ii) उन्हें कड़ा दंड दिया जाता था। 

(iii) बहुत सारी औरतों को गंजा करके, मुँह पर कालिख पोत कर और उनके गले में तख्ती लटका कर पूरे शहर में घुमाया जाता था। 

(iv) उनके गले में लटकी तख्ती पर लिखा होता था ‘मैंने राष्ट्र के सम्मान को मलिन किया है।’ 

(v) इस आपराधिक कृत्य के लिए बहुत सारी औरतों को न केवल जेल की सजा दी गई बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार भी छीन लिए गए।

4. नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ़ नफ़रत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?

उत्तर: नात्सी प्रोपेगैंडा में लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी। 1929 में नात्सी पार्टी को जर्मन संसद-राइख़स्टाग-के लिए हुए चुनावों में महज 2.6 फ़ीसदी वोट मिले थे। 1932 तक आते-आते यह देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी और उसे 37 फ़ीसदी वोट मिले।

हिटलर जबर्दस्त वक्ता था। उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना, वर्साय संधि में हुई नाइंसाफ़ी के प्रतिशोध और जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था। उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा। उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी ‘साजिशों’ का मुँहतोड़ जवाब देगा।

5. नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ़्रांसीसी क्रांति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें फ़्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फ़र्क था? एक पैराग्राफ़ में बताएँ।

उत्तर: नात्सी समाज में महिलाओं की भूमिका एक बड़े पैमाने पर पितृसत्तात्मक या पुरुष प्रधान समाज के नियमों का पालन करने की थी। हिटलर ने महिलाओं को उसके जर्मनी की सबसे महत्त्वपूर्ण नागरिक कहा था किंतु यह केवल उन आर्य महिलाओं तक ही सच था जो शुद्ध एवं वांछित आर्य बच्चे पैदा करती थी। उन्हें अच्छी पत्नी बनने और पारंपरिक रूप से घर को संभालने व अच्छी पत्नी बनने के अतिरिक्त एकमात्र मातृत्व लक्ष्य की प्राप्ति की ही शिक्षा दी जाती थी। नाजी जर्मनी में महिलाएँ पुरुषों से मूलतः भिन्न थी। उन्हें अपने घर की देख-रेख करनी पड़ती और अपने बच्चों को नाजी मूल्य पढ़ाने होते थे।

फ़्रांसीसी क्रांति में किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था। फिर भी लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाई गई, जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे। क्रांतिकारी युद्धों से जनता को भारी क्षति एवं आर्थिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। पुरुषों के मोर्चे पर चले जाने के बाद घर-परिवार और रोजी-रोटी की जिम्मेवारी औरतों के कंधों पर आ पड़ी।

लेकिन नात्सी जर्मनी में सारी माताओं के साथ एक जैसा बर्ताव नहीं होता था। जो औरतें नस्ली तौर पर अवांछित बच्चों को जन्म देती थीं उन्हें दंडित किया जाता था जबकि नस्ली तौर पर वांछित दिखने वाले बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को इनाम दिए जाते थे। ऐसी माताओं को अस्पताल में विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं, दुकानों में उन्हें ज्यादा छूट मिलती थी और थियेटर व रेलगाड़ी के टिकट उन्हें सस्ते में मिलते थे। हिटलर ने खूब सारे बच्चों को जन्म देने वाली माताओं के लिए वैसे ही तमगे देने का इंतजाम किया था जिस तरह के तमगे सिपाहियों को दिए जाते थे। चार बच्चे पैदा करने वाली माँ को काँसे का, छः बच्चे पैदा करने वाली माँ को चाँदी का और आठ या उससे ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली माँ को सोने का तमगा दिया जाता था।

6. नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?

उत्तर: नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए: 

(i) 3 मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग ऐक्ट) पारित किया गया। इस कानून के जरिए जर्मनी में बाकायदा तानाशाही स्थापित कर दी गई।

(ii) मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया गया ताकि नात्सी विचारधारा का प्रचार हो और समाज के अवांछित तत्वों के खिलाफ दुष्प्रचार हो सके। 

(iii) पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए।

(iv) पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टॉर्म दूपर्स (एसए) के अलावा गेस्तापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एसएस (अपराध नियंत्रण पुलिस) और सुरक्षा सेवा (एसडी) का भी गठन किया गया।

(v) स्कूलों में सिलेबस बदल दिया गया और यहूदी शिक्षकों और बच्चों को हटा दिया गया ताकि स्कूल शुद्ध और पवित्र हो जाये।

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