NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 1 फ़्रांसीसी क्रांति

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NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 1 फ़्रांसीसी क्रांति

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Chapter: 1

भारत और समकालीन विश्व-१
खण्ड I: घटनाएँ और प्रक्रियाएँ
क्रियाकलाप

1. इस अध्याय में आपने जिन क्रांतिकारी व्यक्तियों के बारे में पढ़ा है उनमें से किसी एक के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। उस व्यक्ति की संक्षिप्त जीवनी लिखें।

उत्तर: ओलम्प दे गूज़ का जन्म 7 मई, 1748 को मोंटौबन (दक्षिण-पश्चिमी फ्रांस के ऑक्सिटेनी क्षेत्र) में हुआ था। ओलम्प दे गूज़ क्रांतिकालीन फ़्रांस की राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण थीं। उन्होंने संविधान तथा ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ का विरोध किया क्योंकि उसमें महिलाओं को मानव मात्र के मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया था। इसलिए उन्होंने सन् 1791 में ‘महिला एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ तैयार किया जिसे महारानी और नैशनल असेंबली के सदस्यों के पास यह माँग करते हुए भेजा कि इस पर कार्रवाई की जाए। सन् 1793 में ओलम्प दे गूज़ ने महिला क्लबों को ज़बर्दस्ती बंद कर देने के लिए जैकोबिन सरकार की आलोचना की। उन पर नैशनल कन्वेंशन द्वारा देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। इसके तुरंत बाद उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। जब सन् 1789 में “मानव अधिकारों की घोषणा” फ़्रांसीसी संविधान की प्रस्तावना बन गई, तो उसी वर्ष गौजेस ने अपना संस्करण लिखा। यह महिलाओं को सिटॉयने (नागरिक) के रूप में शामिल करने के अलावा लगभग समान था। फ़्रांसीसी क्रांति की भ्रामक राजनीति को उजागर करने के लिए, गौजेस को सभी तरफ से नफरत थी। उन्हें उदारवादियों द्वारा बहुत कट्टरपंथी और चरम वामपंथियों द्वारा राजभक्त के रूप में माना जाता था, हालाँकि उनकी निष्ठा और सहानुभूति स्पष्ट रूप से अधिक उदारवादी गिरोंडिस्टों के साथ थी, सीधे शब्दों में कहें तो वह एक आदर्शवादी थीं, जिन्होंने न केवल महिला अधिकारों के लिए बल्कि फ़्रांसीसी उपनिवेशों में गुलामी की संस्था के खिलाफ भी जमकर लड़ाई लड़ी।

2. फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान ऐसे अखबारों का जन्म हुआ जिनमें हर दिन और हर हफ़्ते की घटनाओं का व्यौरा दिया जाता था। किसी एक घटना के बारे में जानकारियाँ और तस्वीरें इक‌ट्ठा करें तथा अखबार के लिए एक लेख लिखें। आप चाहें तो मिराब्यो, ओलम्प दे गूज़ या रोबेस्प्येर के साथ काल्पनिक साक्षात्कार भी कर सकते हैं। दो या तीन का समूह बना लें। हर समूह फ़्रांसीसी क्रांति पर एक दीवार पत्रिका बना कर बोर्ड पर लटकाए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न:

1. फ़्रांस में क्रांति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?

उत्तर: फ़्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने 5 मई 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई। प्रतिनिधियों की मेज़बानी के लिए वर्साय के एक आलीशान भवन को सजाया गया। पहले और दूसरे एस्टेट ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने-सामने की कतारों में बिठाए गए। तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए। तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे। किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था। फिर भी लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाई गई, जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे। 

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निम्नलिखित परिस्थितियों में फ़्रांस में क्रांति की शुरुआत हुई: 

सामाजिक असमानता – अठारहवीं शताब्दी में फ़्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा था कुलीन, पादरी और तीसरा एस्टेट्स जो व्यापारी, वकील, किसान, कारीगर, भूमिहीन मज़दूर और नौकरों से निर्मित था। केवल तीसरे एस्टेट्स के लोग ही कर देते थे। कुलीन एवं पादरी वर्ग को राज्य को दिए जाने वाले कर से छूट थी। जीविका संकट – फ़्रांस की जनसंख्या सन् 1715 में 2.3 करोड़ थी जो सन् 1789 में बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई। परिणामतः अनाज उत्पादन की तुलना में उसकी माँग काफ़ी तेज़ी से बढ़ी। अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य-पावरोटी की कीमत में तेज़ी से वृद्धि हुई। अधिकतर कामगार कारखानों में मज़दूरी करते थे और उनकी मज़दूरी मालिक तय करते थे। लेकिन मज़दूरी महँगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी। फलस्वरूप, अमीर-गरीब की खाई चौड़ी होती गई। स्थितियाँ तब और बदतर हो जातीं जब सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार गिर जाती। इससे रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाता था। ऐसे जीविका संकट प्राचीन राजतंत्र के दौरान फ्रांस में काफ़ी आम थे।

2. फ़्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फ़ायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्राति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?

उत्तर: फ़्रांसीसी समाज के तीसरे एस्टेट के अमीर तबकों को क्रांति का फ़ायदा मिला। कुलीन और पादरी समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। समाज के गरीब समूहों तथा महिलाओं को निराशा हुई होगी।

3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ़्रांसीसी क्रांति कौन-सी विरासत छोड़ गई?

उत्तर: स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार फ़्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्त्वपूर्ण विरासत थे। ये विचार उन्नीसवीं सदी में फ़्रांस से निकल कर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण वहाँ सामंती व्यवस्था का नाश हुआ। औपनिवेशिक समाजों ने संप्रभु राष्ट्र राज्य की स्थापना के अपने आंदोलनों में दासता से मुक्ति के विचार को नयी परिभाषा दी। टीपू सुल्तान और राजा राममोहन रॉय क्रांतिकारी फ़्रांस में उपजे विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो ठोस उदाहरण थे। मताधिकार का संघर्ष उन्नीसवीं सदी के अंत एवं बीसवीं सदी के प्रारंभ तक अंतर्राष्ट्रीय मताधिकार आंदोलन के जरिए जारी रहा। क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान फ़्रांसीसी महिलाओं की राजनीतिक सरगर्मियों को प्रेरक स्मृति के रूप में जिंदा रखा गया। अंततः सन् 1946 में फ़्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया।

4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्‌गम फ़्रांसीसी क्रांति में है।

उत्तर: (i) समानता का अधिकार। 

(ii) भाषण तथा विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार। 

(iii) समानता का अधिकार।

(iv) न्याय का अधिकार।

(v) संपत्ति का अधिकार।

(vi) शोषण विरुद्ध अधिकार।

(vii) मत देने तथा किसी खास कार्यालय के लिए चुने जाने का अधिकार।

5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे?

उत्तर: हाँ, सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे, पुरुषों एवं नागरिकों के अधिकारों की घोषणा इतने विशाल स्तर पर सार्वभौमिक अधिकारों का खाका तैयार करने का विश्व में शायद प्रथम प्रयास था। घोषणापत्र के अनुसार ‘कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। इसने स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे के तीन मौलिक सिद्धांतों पर बल दिया। लेकिन फ़्रांस के संवैधानिक राजतंत्र बनने के बाद, महिलाओं, पुरुष जो पर्याप्त कर देने में असमर्थ थे तथा जिनकी उम्र 25 वर्ष से छोटी थी जैसे करीब 30 लाख व्यक्तियों से वोट देने का अधिकार छीन लिया गया। सभी लोकतांत्रिक देशों द्वारा ऐसे सिद्धांतों को अपनाया गया है। किंतु यह सत्य है कि सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश विरोधाभासों से घिरा था। “पुरुष एवं नागरिक” अधिकार घोषणापत्र में कई आदर्श संदिग्ध अर्थों से भरे पड़े थे। संविधान केवल अमीरों के लिए उपलब्ध रह गया। महिलाओं को इनसे कुछ हासिल नहीं हुआ।

6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?

उत्तर: नेपोलियन बोनापार्ट का उदय फ्रांसीसी क्रांति के बाद के राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के संदर्भ में समझा जा सकता है। नेपोलियन ने अपनी सैन्य कुशलता और नेतृत्व क्षमता के माध्यम से सत्ता हासिल की। उन्होंने फ्रांस की अस्थिर सरकार का लाभ उठाया और 1799 में एक तख्तापलट के माध्यम से सत्ता में आए। 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ़्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की। पुराने राजवंशों को हटा कर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी। नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था। उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप तौल की एक समान प्रणाली चलायी। शुरू-शुरू में बहुत सारे लोगों को नेपालियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतंत्रता दिलाने की उम्मीद थी। पर जल्दी ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे। आखिरकार 1815 में वॉटरलू में उसकी हार हुई। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा पुनः शुरू कर दी।

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