NCERT Class 9 Social Science Arthashastra Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

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NCERT Class 9 Social Science Arthashastra Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

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Chapter: 4

अर्थशास्त्र
अभ्यास

1. भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?

उत्तर: भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई योजनाएँ और नीतियाँ लागू की हैं। 

इनमें मुख्यत: निम्नलिखित उपाय शामिल हैं:

(i) गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें से एक प्रमुख है खाद्यान्नों का भंडारण: इसके तहत आपदा प्रबंधन के लिए अनाज को बड़े गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है, ताकि बाढ़ और सूखे जैसी स्थितियों में जरूरतमंदों को सहायता प्रदान की जा सके।

(ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली: इस प्रणाली के माध्यम से संग्रहीत अनाज को जरूरतमंद लोगों तक पहुँचाया जाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

(iii) गरीबी हटाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम: सरकार द्वारा चलाए गए ये कार्यक्रम सुनिश्चित करते हैं कि कमजोर वर्गों को भोजन की कमी का सामना न करना पड़े।

2. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?

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उत्तर: यद्यपि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है, परंतु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

(i) भूमिहीन जो थोड़ी बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं। 

(ii) पारंपरिक दस्तकार।

(iii) पारंपरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग। 

(iv) अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार और निराश्रित तथा भिखारी। 

शहरी क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः 

(i) कम वेतन वाले व्यवसायों।

(ii) अनियत श्रम-बाज़ार में काम करते हैं।

3. भारत में कौन से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?

उत्तर: वास्तव में, उत्तर प्रदेश (पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी हिस्से), बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की सर्वाधिक संख्या है।

4. क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे?

उत्तर: हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1960 के दशक में, भारत खाद्यान्न संकट का सामना कर रहा था और आयात पर निर्भर था। ऐसे में हरित क्रांति, विशेष रूप से गेहूँ और चावल के उत्पादन में, भारत की कृषि प्रणाली के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हुई।

हरित क्रांति के तहत उन्नत किस्म के बीजों, रासायनिक उर्वरकों, सिंचाई की आधुनिक तकनीकों और कृषि उपकरणों का उपयोग किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का कुल अनाज उत्पादन लगातार बढ़ा। उदाहरण के लिए, 2020-21 में कुल अनाज उत्पादन 310 करोड़ टन था, जो 2021-22 में बढ़कर 315 करोड़ टन हो गया। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने गेहूँ उत्पादन में विशेष प्रगति की, जबकि पश्चिम बंगाल और पंजाब ने चावल उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

हालांकि, हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की, लेकिन यह वृद्धि सभी क्षेत्रों में समानुपातिक नहीं थी। हरित क्रांति के प्रभाव मुख्य रूप से उत्तर भारत के सिंचित क्षेत्रों तक सीमित रहे, जबकि दक्षिण और पूर्वी भारत में इसका अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ा। इसके अलावा, अधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा हुईं। इसके बावजूद, हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया। आज भारत न केवल अपनी आबादी का पेट भरने में सक्षम है, बल्कि खाद्यान्न का निर्यात भी करता है।

5. भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।

उत्तर: भारत में खाद्य असुरक्षा की समस्या सामाजिक और आर्थिक असमानता के कारण अब भी एक गंभीर मुद्दा बनी हुई है। भूमिहीन मजदूर, पारंपरिक दस्तकार, सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, छोटे-मोटे कामगार, निराश्रित व्यक्ति और भिखारी ऐसे वर्ग हैं, जो खाद्य असुरक्षा से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इनके पास न तो पर्याप्त भूमि होती है और न ही स्थायी आय का स्रोत, जिससे वे अपने परिवार के लिए पर्याप्त पोषण प्राप्त कर सकें।

शहरी क्षेत्रों में भी कई परिवार खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। इन परिवारों के सदस्य अक्सर अस्थायी और कम वेतन वाले कामों में लगे होते हैं, जिनसे उनकी आय इतनी कम होती है कि वे केवल जीवित रहने भर के लिए ही भोजन जुटा पाते हैं। मौसमी कामगारों और अनियमित श्रम बाजार में कार्यरत लोगों को स्थिर आय नहीं मिलती, जिससे उनकी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।

सामाजिक संरचना भी खाद्य असुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कई वर्ग, विशेष रूप से निम्न जातियाँ, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण इस समस्या से जूझते हैं।

6. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?

उत्तर: किसी प्राकृतिक आपदा जैसे, सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्र में खाद्य की कमी हो जाती है। खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते। अगर यह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लंबे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है।

अकाल के दौरान बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं जो भुखमरी तथा विवश होकर दूषित जल या सड़े भोजन के प्रयोग से फैलने वाली महामारियों तथा भुखमरी से उत्पन्न कमज़ोरी से रोगों के प्रति शरीर की प्रतिरोधी क्षमता में गिरावट के कारण होती है।

7. मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए?

उत्तर: मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद:

मौसमी भुखमरीदीर्घकालिक भुखमरी
मौसमी भुखमरी फसल उपजाने और काटने के चक्र से संबद्ध है।दीर्घकालिक भुखमरी मात्रा एवं/या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है।
यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है।गरीब लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
जैसे, बरसात के मौसम में अनियत निर्माण श्रमिक को कम काम रहता है।दीर्घकालिक भुखमरी, लगातार कम आहार लेने की स्थिति है।
इस तरह की भुखमरी तब होती है, जब कोई व्यक्ति पूरे वर्ष काम पाने में अक्षम रहता है।दीर्घकालिक भुखमरी, गरीबी के कारण होती है।

8. गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर: गरीबों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं।

इनमें से दो प्रमुख योजनाओं का विवरण निम्नलिखित है:

(i) अंत्योदय अन्न योजना: अंत्योदय अन्न योजना भारत सरकार द्वारा 2000 में शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य समाज के सबसे गरीब और वंचित वर्ग को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। यह योजना उन परिवारों के लिए है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं और जिनकी आय अत्यंत सीमित है। इस योजना के तहत प्रत्येक परिवार को प्रति माह 35 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया जाता है। इसमें चावल ₹3 प्रति किलोग्राम, गेहूं ₹2 प्रति किलोग्राम, और मोटा अनाज ₹1 प्रति किलोग्राम की दर से दिया जाता है। योजना का संचालन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से किया जाता है और इसका लाभ वृद्ध, विधवा, विकलांग, भूमिहीन मजदूर, और अन्य बेहद जरूरतमंद परिवारों को दिया जाता है।

(ii) अन्नपूर्णा योजना: अन्नपूर्णा योजना भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में शुरू की गई एक महत्वपूर्ण योजना है, जिसका उद्देश्य गरीब और वंचित बुजुर्ग नागरिकों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। यह योजना विशेष रूप से उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए बनाई गई है, जो 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं, गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं, और जिन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत कोई पेंशन नहीं मिलती। इस योजना के अंतर्गत पात्र लाभार्थियों को प्रति माह 10 किलोग्राम मुफ्त अनाज (चावल या गेहूं) प्रदान किया जाता है। यह अनाज सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरित किया जाता है और इसका उद्देश्य बुजुर्गों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, ताकि वे भूख और कुपोषण से बच सकें।

9. सरकार बफ़र स्टॉक क्यों बनाती है?

उत्तर: बफ़र स्टॉक का उपयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां अनाज की कमी होती है और समाज के गरीब वर्गों को सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराना आवश्यक होता है। सरकार इस अनाज को बाज़ार मूल्य से कम कीमत पर वितरित करती है, जिसे निर्गम मूल्य कहा जाता है। यह स्टॉक विशेष रूप से खराब मौसम या आपदा जैसी स्थितियों में खाद्य संकट को दूर करने और अनाज की कमी की समस्या को हल करने में सहायक होता है।

10. टिप्पणी लिखें:

(क) न्यूनतम समर्थित कीमत।

उत्तर: भारतीय खाद्य निगम (एफ़.सी.आई.) अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से निर्धारित मूल्य दिया जाता है, जिसे न्यूनतम समर्थित मूल्य (MSP) कहा जाता है। सरकार का उद्देश्य किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य सुनिश्चित करना और उत्पादन को प्रोत्साहित करना है, इसलिए बुआई के मौसम से पहले यह न्यूनतम समर्थित मूल्य घोषित किया जाता है। खरीदी गई फसलें फिर खाद्य भंडारण में रखी जाती हैं।

(ख) बफ़र स्टॉक।

उत्तर: बफ़र स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, जैसे गेहूँ और चावल का भंडार होता है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों से किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है, और किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतों पर भुगतान करता है। इसे न्यूनतम समर्थित मूल्य (MSP) कहा जाता है। सरकार बुआई के मौसम से पहले इस न्यूनतम समर्थित मूल्य की घोषणा करती है, ताकि फ़सलों के उत्पादन को प्रोत्साहन मिल सके। खरीदी गई अनाज को खाद्य भंडारों में संग्रहित किया जाता है, ताकि कमी वाले क्षेत्रों और गरीब वर्गों को बाजार मूल्य से कम कीमत पर अनाज वितरित किया जा सके। इसे निर्गम मूल्य कहा जाता है।

(ग) निर्गम कीमत।

उत्तर: जब सरकार द्वारा कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाज़ार कीमत से कम कीमत पर अनाज का वितरण किया जाता है तब उस कीमत को निर्गम कीमत कहते है।

(घ) उचित दर की दुकान।

उत्तर: भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इन दुकानों को उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, जहाँ चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी का तेल जैसे सामान उपलब्ध होते हैं। ये सामान आमतौर पर बाज़ार की तुलना में कम कीमत पर गरीबों को प्रदान किए जाते हैं। वर्तमान में, अधिकांश क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें स्थापित हैं।

11. राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ है?

उत्तर: राशन की दुकानों के संचालन में विभिन्न समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जो निम्नलिखित हैं:

(i) कुछ राशन डीलर गरीब लोगों को कम तोल कर राशन देने की कोशिश करते हैं, जिससे वे ठगने का प्रयास करते हैं।

(ii) निर्धन लोगों को राशन की दुकानों से जो सामग्री मिलती है, वह अक्सर घटिया गुणवत्ता की होती है। ऐसे में, उन्हें अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाज़ार से ही सामान खरीदना पड़ता है।

(iii) इसके अलावा, कई बार राशन के डीलर अपने लाभ के लिए राशन के सामान को खुले बाज़ार में बेच देते हैं। उन्हें चक्की वालों को बेचते हुए देखा जा सकता है, जिससे गरीब लोगों को वांछित वस्तुएं प्राप्त नहीं होतीं।

12. खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।

उत्तर: खाद्य और संबंधित वस्तुओं की उपलब्धता में सहकारी समितियों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, विशेषकर देश के दक्षिण और पश्चिमी भागों में, जहाँ ये समितियां खाद्य सुरक्षा में अहम योगदान देती हैं।

(i) उदाहरण के तौर पर, तमिलनाडु जैसे राज्यों में राशन की दुकानों का लगभग 94% संचालन सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है।

(ii) दिल्ली जैसे शहरों में भी सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरणस्वरूप, दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर दूध और कभी-कभी सब्जियां जैसी वस्तुएं भी प्रदान करती है।

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