NCERT Class 9 Science Chapter 12 खाद्य संसाधनों में सुधार

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NCERT Class 9 Science Chapter 12 खाद्य संसाधनों में सुधार

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Chapter: 12

Page no – 159 Questions

1. अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है?

उत्तर: अनाज से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है जो हमें ऊर्जा प्रदान करता है। दालों से प्रोटीन प्राप्त होता है। फलों तथा सब्जियों से विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते हैं, कुछ मात्रा में प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट भी प्राप्त होते हैं।

Page no – 160 Questions

1. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?

उत्तर: जैविक कारक जैसे- रोग, कीट तथा निमेटोड के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है। कीड़ें हमारे फसल को खाकर नुकसान पहुँचाते हैं। खर-पतवार पोषक तत्वों तथा प्रकाश के लिए स्पर्धा करते हैं जिससे फसलों की वृद्धि कम हो जाती है। उसी तरह, अजैविक कारक जैसे- सूखा, क्षारता, जलाक्रान्ति, गरमी तथा ठंड भी फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, कभी-कभी सूखे और बाढ़ का फसल पर काफी प्रभाव पड़ता है, फसल नष्ट हो जाता है।

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2. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या हैं?

उत्तर: ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण-चारे वाली फ़सलों के लिए लंबी तथा सघन शाखाएँ ऐच्छिक गुण हैं। अनाज के लिए बौने पौधे उपयुक्त हैं ताकि इन फसलों को उगाने के लिए कम पोषकों की आवश्यकता हो। इस प्रकार सस्य विज्ञान वाली किस्में अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं।

Page no -161 Questions

1. वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत्-पोषक क्यों कहते हैं?

उत्तर: पौधों को अनेक पोषक पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होते हैं। इन पोषकों में से कुछ पोषक तत्त्व नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैगनीशियम, सल्फ़र को वृहत् पोषक कहा जाता है। चूंकि इनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़ती है इसलिए इन्हें वृहत् पोषक कहा जाता है।

2. पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?

उत्तर: पौधे अपना पोषक जल, वायु तथा मिट्टी से प्राप्त करते हैं। पोषक का मुख्य स्रोत मिट्टी है। 13 पोषक पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होते हैं तथा शेष तीन पोषक तत्व (कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन) हवा तथा पानी से प्राप्त होते हैं। 

Page no – 162 Questions

1. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।

उत्तर:

खाद की उपयोगिताउर्वरक का उपयोग
(i) खाद को जैविक अपशिष्ट और पौधों के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है।(i) उर्वरक व्यावहारिक रूप में तैयार पाया जाता है।
(ii) खाद में कार्बोनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है।(ii) नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम अधिक मात्रा में होते है।
(iii) मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, रेतीली मिट्टी में पानी को रखने की क्षमता बढाता है।(iii) इनके उपयोग से अच्छी कायिक वृ‌द्धि होती है और स्वस्थ पौधों की प्राप्ति होती है।
(iv) जल प्रदूषण नहीं होता है तथा पर्यावरण संरक्षण होता है।(iv) अधिक प्रयोग जल प्रदूषण का कारण है।

Page no – 165 Questions 

1. निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा? क्यों?

(a) किसान उच्च कोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई ना करें अथवा उर्वरक का उपयोग ना करें।

(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।

(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ।

उत्तर: (c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ। केवल इसी परिस्थिति में अधिक लाभ होगा क्योंकि उच्च कोटि के बीज होने पर भी जब तक सही तरीकों से सिंचाई, उर्वरकों का प्रयोग और फसल की सुरक्षा नहीं की जाए तो उत्पादकता में कमी आती है।

Page no – 165 Questions

1. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?

उत्तर: पीड़कों पर नियंत्रण के लिए प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्मों का उपयोग तथा ग्रीष्मकाल में हल से जुताई की जाती है। गहराई तक जुताई करने से खरपतवार तथा पीक नष्ट हो जाते हैं। यह एक प्रकार की निरोधक विधि है। जैव नियंत्रण विधि में जानबूझकर कीटों या अन्य जीवों का उपयोग किया जाता है जो खर-पतवार को खासकर नष्ट कर देता है।

जैसे-प्रिंकले पियर कैक्टस उपर्युक्त विधियाँ अच्छी इसलिए हैं क्योंकिः

(i) पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है।

(ii) किसी अन्य पौधों और जानवरों को हानि नहीं पहुँचती है।

(iii) यह सस्ता एवं सरल तरीका है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती है।

2. भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं?

उत्तर: जैविक कारक-कीट, कुंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु। अजैविक कारक-भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी व ताप का अभाव होना। ये कारक उत्पादन की गुणवत्ता को खराब करते हैं। वजन कम कर देते हैं। अंकुरण की क्षमता कम कर देते हैं। उत्पादन को बदरंग कर देते हैं। ये सब लक्षण बाज़ार में उत्पादन की कीमत को कम कर देते हैं।

Page no – 166 Questions

1. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?

उत्तर: पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः नस्लों के संकरण विधि का उपयोग किया जाता है। दो अच्छे नस्लों के पशुओं में संकरण कराकर नई उन्नत किस्म की संतति का उत्पादन कराया जाता है। उदाहरण के लिए, दो अलग नस्लों विदेशी नस्ल जैसे जर्सी, ब्राउन स्विस तथा देशी नस्ल जैसे रेडसिंधी, साहीवाल में संकरण कराने से ऐसी संतति प्राप्त होगी जिसमें दोनों ऐच्छिक गुण होंगे।

Page no – 167 Questions

1. निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए- “यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।”

उत्तर: अल्प रेशे के खा‌द्य पदार्थ में पौष्टिकता की कमी होती है जो मनुष्यो के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। इस सब के इलवा कुक्कुट और ब्रॉलर के आहार करने से हमे भरपूर मात्रा में प्रोटीन, वसा तथा विटामिन मिलने है। इस प्रकार अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए कुक्कुट सबसे अधिक सक्षम है।

Page no – 168 Questions 

1. पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में क्या समानता है?

उत्तर: पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में समानता-

(i) ठीकठाक आवास तथा उसकी सफाई की सुव्यवस्था।

(ii) उनका आवास सुरक्षित और रोगाणुमुक्त होना चाहिए।

(iii) आवास का सतह ढलवाँ, जिससे कि वह सूखा रह सके।

(iv) संक्रामक रोगो से बचने के लिए टीका लगवाना।

(v) आहार ठीक तरह से होना।

(vi) तापमान नियंत्रण कि व्यवस्था रहना।

2. ब्रौलर तथा अंडे देने वाली लेयर में क्या अंतर है। इनके प्रबंधन के अंतर को भी स्पष्ट करो।

उत्तर: 

ब्रौलरलेयर
(i) मांस के लिए ब्रौलर को पाला जाता है।(i) अंडों के लिए अंडे देने वाली (लेयर) मुर्गी पालन किया जाता है।
(ii) अधिक मात्रा में प्रोटीन और वसा युक्त आहार दिया जाता है।(ii) प्रोटीन और वसा के साथ-साथ विटामिन A एवं K युक्त आहार का मात्रा भी अधिक होते हैं।
(iii) चूजो कि वृद्धि तीव्र होती है।(iii) चूजो कि वृद्धि अपेक्षाकृत धीमी मात्रा से होती है।
(iv) इनकी वृद्धि तीव्र गति से होती है और 6-7 हफ्तों के बाद इनका उपयोग मांस के रूप में किया जा सकता है।(iv) यह 20 हफ्ते की उम्र में अंडे दे सकते हैं।
(v) इन्हें अधिक स्थान तथा प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है।(v) इन्हें वृद्धि के लिए अधिक स्थान तथा प्रकाश की आवश्यकता होती है।

Page no – 169 Questions

1. मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं?

उत्तर: मछलियाँ दो तरीको से प्राप्त किया जाता है।

(i) प्राकृतिक स्रोत – इससे मछली प्राप्त करने को मछली पकड़ना कहते है। जैसे नदी, समुद्र तथा ताजा जल से।

(ii) मछली पालन या मछली संवर्धन – मछली पालन समुद्र और ताजे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में किया जाता है।

2. मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ हैं?

उत्तर: (i) मछली संवर्धन विशेष रूप से धान की फसल के साथ किया जा सकता है।

(ii) अधिक मछली संवर्धन संभव है क्योंकि फसल के मौसम में प्रचुर मात्रा में पानी की उपलब्धता होती है।

(iii) इस प्रक्रिया में देशी तथा आयातित प्रकार की मछलियों का संवर्धन किया जा सकता है।

Page no – 170 Questions

1. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन-से ऐच्छिक गुण होने चाहिए?

उत्तर: मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में ऐच्छिक गुण-

(i) मधु एकत्र करने की क्षमता अधिक होने चाहिए।

(ii) निर्धारित क्षेत्र में काफी समय तक रहेगा।

(iii) प्रजनन तीव्रता से करती है।

(iv) डंग कम मारता है।

2. चरागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे संबंधित है?

उत्तर: चरागाह वे स्थान हैं जहाँ बहुत सारे फूलों के पौधे होते हैं, जिनसे मधुमक्खियाँ फूलों से मकरंद तथा पराग एकत्र करती हैं। चरागाह की पर्याप्त उपलब्धता मधुमक्खियों को अधिक मात्रा में शहद देती है और फूलों की किस्में मधु की गुणवत्ता और स्वाद को निर्धारित करती हैं। इसलिए जितने अधिक प्रकार के फूल होंगे, उतनी ही किस्मों में मधु के स्वाद की भी विविधता होगी। अतः मधु उत्पादन का चरागाह से संबंध है।

अभ्यास

1. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।

उत्तर: फसल उत्पादन में अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए मिश्रित फसल तथा अंतराफसलीकरण दो उपायों का प्रयोग किया जा सकता है।

2. खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं?

उत्तर: एक ही खेत में लगातार फसल उगाने के लिए खेत की उत्पादन शक्ति कम हो जाता है। एक फसल खेत के मिट्टी मे उपस्थित सारी पोषको का इस्तेमाल करता है, फिर दूसरे फसल के लिए बहुत ही कम पोषक तत्व रह जाती है। पोषको की कमी के कारण पौधो की शारीरिक प्रक्रियाओं सहित वृ‌द्धि पर प्रभाव पड़ता है। तब खेतो में खाद तथा उर्वरक का उपयोग किया जाता है मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने तथा पोषक तत्व को पुनः उपलब्ध करवाने के लिए।

3. अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं?

उत्तर: अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र दोनों का उपयोग सीमित भूमि पर अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अंतराफसलीकरण द्वारा पीड़ित व रोगों को एक प्रकार की फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है। यह मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है जबकि फसल चक्र मृदा की कमी को रोकता है, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और मिट्टी का अपरदन कम करता है। इन दोनों विधियों से उर्वरक की आवश्यकता कम हो जाती है। यह खर-पतवार के नियंत्रण में भी मदद करता है और फसलों में रोगाणुओं और कीटों के विकास को नियंत्रित करता है।

4. आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं? कृषि प्रणालियों में ये कैसे उपयोगी हैं?

उत्तर: जिस प्रक्रिया से किसी एक स्रोत के फसल में ऐच्छिक गुणों को प्राप्त करने के लिए दूसरे स्रोत से प्राप्त जीन को प्रवेश करवा कर उसका गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता तथा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाया जाता है, उसे आनुवंशिक फेरबदल कहा जाता है।

कृषि प्रणालियों का उपयोग-

(i) रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता है।

(ii) उत्पादकता तथा गुणवत्ता बढ़ाता है।

(iii) फसल को उगाने से कटाई तक का समय कम कर देता है।

(iv) विषम जलवायु में प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता है।

(v) जैविक तथा अजैविक प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता है।

(vi) पौष्टिकता बढ़ाई जाती है।

5. भंडार गृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है?

उत्तर: भंडार ग्रहों में हानि जैविक कारक जैसे कि कवक, जीवाणु आदि से होती है तथा अजैविक कारक भंडारण के स्थान पर नमी की उपस्थिति तथा ताप की कमी के कारण होते हैं।

यह कारक उत्पादक की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं वजन कम कर देते हैं तथा अंकुरण करने की क्षमता को भी हानि पहुंचाते हैं जिस कारण से बाजार में उत्पाद की कीमत बहुत कम हो जाती है।

6. किसानों के लिए पशु पालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं?

उत्तर: किसानों के लिए पशु पालन प्रणालियाँ निम्नलिखित उपाय से लाभदायक है-

(i) पशु पालन से दूध, अंडा, मांस के उत्पादन बढ़ता है, जो किसानों के लिए उनके आर्थिक स्थिति सुधारने का एक उपाय है।

(ii) पश्यों के रहने की स्थान, भोजन, रोगों से सुरक्षा के बारे में ध्यान रखा जाता है।

(iii) देशी और विदेशी नस्लो मे संकरण करवाया जाता है जिसस ऐच्छिक गुण सम्पन्न नस्ले प्राप्त होता है, उसका रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ता है, लंबी जीवनकाल प्राप्त होता है, दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ती है।

7. पशु पालन के क्या लाभ हैं?

उत्तर: पशुपालन के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं-

(i) किसान खेती के साथ-साथ दूध देने वाले पशुओं को पालकर अतिरिक्त आय कमा सकता है।

(ii) पशुपालन के अंतर्गत जानवरों द्वारा खाद बनाने में सहायता मिलती है।

(iii) बेहतर नस्लों के पशुपालन से दूध भी बेहतर मात्रा में प्राप्त होता है।

(iv) बहुत से पशुओं का इस्तेमाल बोझा ढोने तथा कृषि के अन्य कामों के लिए भी किया जा सकता है।

8. उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं?

उत्तर: (i) उन्नत किस्मों का चुनाव करना।

(ii) रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होनी चाहिए।

(iii) सर्वश्रेष्ठ नस्लों का उपयोग करना ताकि उत्पादन अधिक हो।

9. प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अंतर है?

उत्तर:  

प्रग्रहण मत्स्यनमेरीकल्चरजल संवर्धन
(i) मछली को प्रकृतिक स्रोतों से (नदी, तालाब, झील) पकड़ा जाता है।(i) सामुद्रिक मछलिओ का समुद्र में संवर्धन किया जाता है।(i) ताजा तथा सामुद्रिक जल से मछली का उत्पादन किया जाता है।
(ii) मछली का पता लगाना आसान होता है।(ii) सैटिलाइट से मछली का पता किया जाता है।(ii) आसानी से मछली का पता चलता है।
(iii) मछली को जाल से पकड़ा जाता है।(iii) विभिन्न जाल और नाव की उपयोग किया जात।(iii) मछली को जाल से पकड़ा जाता है।
(iv) मछली को खिलना अथवा पालन करने की जरूरत नहीं होती है।(iv) मछली को खिलना अथवा पालन करने की जरूरत होता है।(iv) मछली को खिलना अथवा पालन करने की जरूरत होता है।

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