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NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 3 अपना मालवा खाऊ-उजाड़ू सभ्यता में
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अपना मालवा खाऊ-उजाड़ू सभ्यता में
Chapter: 3
अंतराल भाग-२ |
प्रश्न-अभ्यास |
1. मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालवा के जनजीवन पर इसका क्या असर पड़ता है?
उत्तर: मालवा में व्याप्त बाबड़ी, तालाब, कुएँ तथा तलैया सब पानी से लबालब भर जाते हैं। बरसात का पानी घरों में घुस आता है। तब कुएँ, बावड़ी और तालाब-तलैया पानी से लबालब भर जाते हैं। नदी-नाले उफनने लगते हैं। फसलें खूब लहलहाने लगती हैं। इससे गाँव की विपुलता का पता चलता है। तब लगता है मालवा खूब पाक्यो है। इस बरसात से जहाँ जन-जीवन प्रभावित होता है, वहीं यह लोगों के जीवन में समृद्धि लाता है। अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था। इसलिए पहले का औसत पानी भी गिरे तो लोगों को लगता है कि ज्यादा गिर गया। इस बार भी बरसात वही चालीस इंच गिरी है। कहीं ज्यादा है कहीं थोड़ी कम। लेकिन लोग टीवी की समझ में अत्ति की बोलने लगे हैं। उज्जैन से देवास होते हुए इंदौर जाना मालवा के आँगन में से निकलना है। क्वार की धूप होती तो भरी पूरी गदराई हरियाली से तबीयत झक हो जाती, लेकिन कुएँ-बावड़ी और तालाब-तलैया के लबालब भरे, नदी-नालों को बहते और फसलों को लहराते देखो तो क्या गजब की विपुलता की आश्वस्ति मिलती है।
2. अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था। उसके क्या कारण हैं?
उत्तर: अब मालवा में वैसी बरसात नहीं होती, जैसी पहले हुआ करती थी।
इसके कारण हैं–
(i) औद्योगिक विकास: आज मानव विकास के नए-नए प्रतिमान छू रहा है। वैसे तो विकास हर क्षेत्र में हुआ है, लेकिन उद्योगों के क्षेत्र में यह विकास अन्यन्त तीव्र गति से हुआ। लगातार बढ़ते उद्योगों ने वातावरण पर बुरा प्रभाव डाला। इन उद्योगों से निकलने वाली गैसों ने पृथ्वी के तापमान को तीन डिग्री सेल्यियस बढ़ा दिया है, जिससे मौसम में काफी परिवर्तन आ गया। सर्दी, गर्मी तथा बरसात तीनों की मात्र और समय में भी बदलाव हुआ। अब वर्षा की मात्रा बीते सालों से काफी कम रह गई है।
(ii) कार्बन डाईऑक्साइड: वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड गैस की अधिकता के कारण भी मौसम पर प्रभाव पड़ रहा है। यह गर्म होती है, जिसके कारण वायुमण्डल और ओजन परत को नुकसान पहुँच रहा है।
(iii) वायु-प्रदूषण: मनुष्य के विकास के साथ प्रदूषण भी काफी अधिक बढ़ गया है, जिसमें वायु-प्रदूषण तो बहुत अधिक फैला रहा है। फैक्ट्रियों तथा वाहनों के धुएँ ने वातावरण को दूषित कर लिया है। ये धुएँ वायुमंडल में जाकर वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं।
3. हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले ज़माने के लोग कुछ नहीं जानते थे?
उत्तर: हमारे आज के इंजीनियर अज्ञानतावश ऐसा समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले जमाने के लोग कुछ नहीं जानते थे। हमारे आज के इंजीनियर अपने आपको बहुत चतुर और बुद्धिमान मानते हैं। उन्हें अपने बारे में बहुत बड़ी गलतफहमी है। उन्हें ज्ञात नहीं है कि पहले ऐसे-ऐसे राजा हुए, जिन्होंने बरसात के पानी को एकत्रित करने के लिए बड़े-बड़े तालाब तथा बावड़ियाँ बनवाई जिससे इस पानी का उचित प्रयोग हो सके और भूमिगत जल को सुरक्षित रखा जा सके। उनके अनुसार ज्ञान पश्चिम से आया था भारत के लोग कुछ नही जानते-समझते थे।
4. ‘मालवा में विक्रमादित्य और भोज और मुंज रिनेसां के बहुत पहले हो गए।’ पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए?
उत्तर: मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज आदि राजा पानी का महत्त्व भली प्रकार समझते थे। ये राजा जानते थे कि पठार पर पानी को रोक कर रखना होगा। इन राजाओं ने पठारों की कमज़ोरी को समझा और पानी को रोकने के लिए बेहतर इंतज़ाम किए। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले वहाँ पर तालाब, कुएँ, बावड़ियों का निर्माण करवाया। इस तरह वह बरसात का पानी जमा करके रख सकते थे। हमारे आज के इंजीनियरों ने तालाबों को गाद से भर जाने दिया गया और जमीन के पानी को पाताल से भी निकाल दिया। इससे नदी नाले सूख गए। जिस मालवा में पग-पग पर पानी था, वही मालवा सूखा हो गया।
5. ‘हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रही है।’ क्यों और कैसे?
उत्तर: हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को गंदे पानी के नाले बना रही है। इसका कारण है आज का औद्योगिक विकास। उद्योग-धंधों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ नदियों में बहाए जाने लगे, जिससे ये गंदे नालों के रूप में परिवर्तित हो गयी अर्थात विकास के कारण हम विनाश की ओर बढ़ गये। हम भी अपने शहर की गंदगी को इन नदियों में बहाकर इन्हें गंदे नाले के रूप में परिणत कर रहे हैं। हमारे देश में विभिन्न धर्म है। सभी धर्मो की अनेक मान्यताएँ और परम्पराएँ हैं। त्योहारों तथा उत्सवों के अवसर पर हम नदियों में पूजा के बाद मूर्तियाँ आदि विसर्जित करते हैं। हवन-पूजा करने के बाद बची हुई राख तथा अन्य पदार्थ भी हम नदियों में फेंक देते हैं जिससे इनका जल दूषित होता है और ये नाले के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। आज की औद्योगिक सभ्यता ने अपसंस्कृति को बढ़ावा दिया है। यह अपसंस्कृति नदियों की पवित्रता पर ध्यान नहीं देती।
6. लेखक को क्यों लगता है कि ‘हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है’? आप क्या मानते हैं?
उत्तर: हम लेखक के इस कथन से बिलकुल सहमत है। ऐसी औद्योगिक सभ्यता जिसने विकास के नाम पर प्रदूषण, प्रकृति दोहन, पृथ्वी का विनाश ही किया है। वातावरण में परिवर्तन औद्योगिक सभ्यता के विकास के परिणामस्वरूप वातावरण में काफी परिवर्तन हुआ है। उद्योगों से निर्माण कार्य के दौरान निकलने वाली दूषित गैसों के कारण धरती का तापमान तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। नदी-तालाबों की दुर्दशा-उद्योगों के तीव्र विकास से नदियों तथा तालाबों का पानी दूषित हो गया है। उद्योग-धंधों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ इन जल-स्रोतों में बहा दिए जाते हैं। जिससे पानी सुचारु रूप से नही बह पाता और वह अपनी सीमाएँ तोड़कर बाढ़ आदि की स्थिति पैदा करता है इन उद्योगों का कूड़ा कचरा नदियों में बह जाने से ये गंदे नालों के रूप में परिवर्तित हो गई हैं। पेड़ों को काटा, आवास के लिए ईंट के निर्माण के लिए मिट्टी का प्रयोग किया, कोयले, सीमेंट, धातु, हीरे इत्यादि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने पृथ्वी को खोदा। यह कैसा विकास है, जिसमें स्वयं की जड़ काटी जा रही है। अतः हम इसे अपसभ्यता कहेंगे।
7. धरती का वातावरण गरम क्यों हो रहा है? इसमें यूरोप और अमेरिका की क्या भूमिका है? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: धरती का वातावरण गरम हो रहा है क्योंकि वातावरण को गरम करनेवाली कार्बन डाइऑक्साइड गैसों ने मिलकर धरती के तापमान को तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ा दिया है। ये गैसें सबसे ज्यादा अमेरिका और फिर यूरोप के विकसित देशों से निकलती हैं। अमेरिका इन्हें रोकने को तैयार नहीं है। वह नहीं मानता कि धरती के वातावरण के गरम होने से सब गड़बड़ी हो रही है। अमेरिका की घोषणा है कि वह अपनी खाऊ-उजाडू जीवन पद्धति पर कोई समझौता नहीं करेगा। लेकिन हम अपने मालवा की गहन गंभीर और पग-पग नीर की डग-डग रोटी देनेवाली धरती को उजाड़ने में लगे हुए हैं।
योग्यता-विस्तार |
1. क्या आपको भी पर्यावरण की चिंता है? अगर है तो किस प्रकार? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: हाँ, मुझे भी पर्यारवण की चिंता है। यहाँ पर शुद्ध वायु लेना तो जैसे सपने की बात है। इस कारण लोगों की आयु भी कम हो रही है। मैं सोचता हूँ यदि ऐसा रहा, तो भारत का दिल कहा जाने वाला यह शहर कैसे बचेगा। इसके अतिरिक्त यदि मेरे देश के हर राज्य और शहर का यही हाल रहा, तो हमारी आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा। हमें शीघ्र ही कुछ करना पड़ेगा। वरना वो समय दूर नहीं है, जब मेरा देश प्रदूषण के जहर से त्रस्त हो जाएगा।
2. विकास की औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता है। खाऊ -उजाड़ू सभ्यता के संदर्भ में हो रहे पर्यावरण के विनाश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: विकास की औद्योगिक सभ्यता के कारण वायु प्रदूषण हुआ। विभिन्न उद्योगों की स्थापना करने के लिए बड़े-बड़े कारखाने लगाए गए। इन कारखानों में वस्तुएँ के निर्माण के दौरान अनेक जहरीली गैसें निकलती हैं जो वायुमण्डल में फैलकर वायु प्रदूषण का कारण बनती हैं।
3. पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? उसे कैसे बचाया जा सकता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर: पर्यावरण की रक्षा करना केवल एक जिम्मेदारी नहीं है, यह एक मौलिक कर्तव्य है जो हमें अपने ग्रह, स्वयं और आने वाली पीढ़ियों के प्रति देना है। हम सभी में बदलाव लाने की शक्ति है और सरल कदम उठाकर हम अपने ग्रह की रक्षा कर सकते हैं और अपने बच्चों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।
पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकते है:
(i) पेड़ पौधे लगाएं, हरियाली बढ़ाएं और वातावरण को शुद्ध बनाने में अपना योगदान दें।
(ii) बिजली बचाएं, एनर्जी एफिशिएंट इक्विपमेंट्स का प्रयोग करें। जरूरत न होने पर बल्ब, पंखा बंद रखें, ए.सी. 24 ℃ पर चलाएं।
(iii) सार्वजनिक वाहनों, ग्रीन फ्यूल/इलेक्ट्रिसिटी बेस्ड वाहनों का, साइकिल आदि का प्रयोग करें।
(iv) प्लास्टिक का प्रयोग ना करें। जूट/कपड़े के थैलों को प्रयोग में लाएं।
कूड़ा इधर उधर न फेंके। कूड़े को कम करने का प्रयास करें।