NCERT Class 10 Social Science Bharat Aur Samakalin Vishav Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

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NCERT Class 10 Social Science Bharat Aur Samakalin Vishav Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

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Chapter: 1

भारत और समकालीन विश्व-२
खण्ड I: घटनाएँ और प्रक्रियाएँ

संक्षेप में लिखें:

1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-

(क) ज्युसेपे मेत्सिनी।

उत्तर: ज्युसेपे मेत्सिनी एक महान इतालवी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने इटली के एकीकरण और स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 1805 में जेनोआ (इटली) में हुआ और उन्होंने अपनी युवावस्था में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। मेत्सिनी का मानना था कि इटली को छोटे राज्यों और प्रदेशों में बांटकर नहीं रखा जा सकता, बल्कि उसे एक एकीकृत गणराज्य के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।

(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर।

उत्तर: काउंट कैमिलो दे कावूर इटली के एक महान राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने इटली के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह एक क्रांतिकारी विचारक नहीं थे, बल्कि एक कूटनीतिक नेता थे, जिन्होंने फ्रांस के साथ संधि की और इटली के विभिन्न राज्यों को एकजुट करने के लिए यूरोपीय देशों का समर्थन प्राप्त किया। उनके नेतृत्व में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने सैन्य और आर्थिक सुधार किए, जिससे इटली का एकीकरण संभव हुआ। उनकी मृत्यु 1861 में हुई, लेकिन उन्होंने इटली को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।

(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध।

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उत्तर: ग्रीस की आज़ादी की लड़ाई ने यूरोप के शिक्षित वर्ग में राष्ट्रवाद की भावना को और प्रगाढ़ किया। ग्रीस का स्वतंत्रता संग्राम 1821 में शुरू हुआ था। इस संघर्ष को ग्रीस के निर्वासित लोगों के साथ-साथ पश्चिमी यूरोप के कई लोगों का भी समर्थन प्राप्त हुआ, जो प्राचीन ग्रीक संस्कृति का सम्मान करते थे। मुस्लिम साम्राज्य के खिलाफ इस संघर्ष का समर्थन बढ़ाने के लिए कवियों और कलाकारों ने भी अपनी भूमिका निभाई। ध्यान देने योग्य है कि उस समय ग्रीस, ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। अंततः, 1832 में कॉन्स्टैंटिनोपल की संधि के तहत ग्रीस को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता मिल गई।

(घ) फ्रैंकफ़र्ट संसद।

उत्तर: जर्मनी में कई राजनैतिक गठबंधन थे जिनमें मध्यम वर्गीय पेशेवर, व्यापारी और धनी कलाकार शामिल थे। वे फ्रैंकफ़र्ट शहर में एकत्रित होकर एक सकल जर्मन एसेंबली के गठन का प्रस्ताव लेकर आगे बढ़े। 18 मई 1848 को 831 चुने हुए प्रतिनिधियों ने जश्न मनाते हुए एक जुलूस निकाला और फ्रैंकफ़र्ट पार्लियामेंट की शुरुआत की, जिसका आयोजन सेंट पॉल चर्च में हुआ था। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र का संविधान तैयार किया, जिसमें इस राष्ट्र का प्रमुख कोई राजपरिवार का व्यक्ति होगा, जो पार्लियामेंट के प्रति जवाबदेह होगा। इन शर्तों पर प्रसिया के राजा फ्रेडरिक विलहेम (चतुर्थ) को शासन सौंपने का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उसने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और चुनी हुई संसद के खिलाफ अन्य राजाओं से समर्थन प्राप्त किया।

(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका।

उत्तर: राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका है–

(i) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं ने पूरे संसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) हालांकि राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया, फिर भी उदारवादी आंदोलनों के भीतर महिलाओं को राजनीतिक अधिकार देने का मुद्दा विवादास्पद बना रहा।

(iii) महिलाओं ने अपने राजनीतिक संगठनों की स्थापना की, समाचार पत्रों का प्रकाशन किया और राजनीतिक बैठकों में भाग लेना शुरू किया।

(iv) इसके परिणामस्वरूप महिलाओं के अधिकारों के प्रति उदारवादियों और शासकों के दृष्टिकोण में बदलाव आया और उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए रास्ते खोलने में मदद मिली।

2. फ़्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ़्रांसीसी कांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?

उत्तर: फ़्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ़्रांसीसी क्रांतिकारियों ने कई कदम उठाए, जैसे कि राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण, समान कानून व्यवस्था, राष्ट्रीय गान, और समान शिक्षा प्रणाली। संधीय शासन व्यवस्था आम तौर पर दो तरीकों से घटित होती है, एक संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा और दूसरा राजनीतिक समझौते द्वारा। रोमांटिसिज्म एक सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक खास तरह की राष्ट्रवादी भावना का विकास करना चाहता था। रोमांटिक कलाकार सामान्यतया तर्क और विज्ञान को बढ़ावा देने के खिलाफ होते थे।

3. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्व था?

उत्तर: फ्रांसीसी क्रांति के समय कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी प्रतीकों का उपयोग किया, जिनमें मारीआन और जर्मेनिया अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।

मारीआन: यह एक लोकप्रिय ईसाई नाम है, जिसे फ्रांस ने अपने स्वतंत्रता के नारी प्रतीक के रूप में अपनाया। मारीआन की छवि जन राष्ट्र के विचार का प्रतीक मानी जाती थी। इसके चिह्न स्वतंत्रता और गणतंत्र के प्रतीक के रूप में लाल टोपी, तिरंगा और कलगी थे। मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहों और अन्य प्रमुख स्थानों पर स्थापित की गईं ताकि जनता को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक की याद दिलाई जा सके और वह उससे अपनी तादात्मय (तालमेल) स्थापित कर सके। मारीआन की छवि सिक्कों और डाक टिकटों पर भी अंकित की गई थी।

जर्मेनिया: यह जर्मन राष्ट्र की नारी रूपक थी। चित्रात्मक अभिव्यक्तियों में उसे बलूत के पत्तों का मुकुट पहने हुए दिखाया गया, क्योंकि जर्मनी में बलूत वीरता का प्रतीक है। उसने हाथ में जो तलवार पकड़ी हुई थी, उस पर यह लिखा हुआ था, “जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है।” इस प्रकार, जर्मेनिया जर्मनी में स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र की प्रतीक नारी छवि के रूप में उभरी।

4. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।

उत्तर: जर्मनी का एकीकरण एक लंबी और जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएँ और संघर्ष शामिल थे। 1848 में जर्मन राष्ट्रवादी आंदोलन ने जर्मन महासंघ के विभिन्न राज्यों को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन इसे राजशाही और सेना ने दबा दिया। इसके बाद, प्रशासन ने एकीकरण की प्रक्रिया का नेतृत्व करना शुरू किया, और इसमें प्रमुख भूमिका निभाई ऑटो वॉन बिस्मार्क ने।

बिस्मार्क ने अपनी कूटनीतिक नीतियों और सैन्य रणनीतियों का उपयोग किया। उन्होंने तीन प्रमुख युद्धों के माध्यम से जर्मन एकीकरण को संभव बनाया:

(i) डेन्मार्क के खिलाफ युद्ध (1864): प्रशा ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर डेन्मार्क को हराया और श्लेस्विग और होल्स्टीन जैसे क्षेत्रों पर कब्जा किया।

(ii) ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध (1866): प्रशा ने अकेले ऑस्ट्रिया को हराया और उत्तरी जर्मन महासंघ का गठन किया, जिसमें कई जर्मन राज्यों को शामिल किया गया।

(iv) फ्रांस के खिलाफ युद्ध (1870-71): फ्रांस के खिलाफ युद्ध में जीत ने जर्मन राज्यों को एकजुट किया और जर्मनी का राष्ट्रीय एकीकरण पूरा हुआ।

5. अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?

उत्तर: अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन यह बदलाव किए की आधुनिकीकरण, राजतंत्र जैसी पारंपरिक संस्थाओं को मजबूत बनाने में सक्षम था। वह राज्य की ताक़त को ज्यादा कारगर और मजबूत बना सकता था। एक आधुनिक सेना, कुशल नौकरशाही, गतिशील अर्थव्यवस्था, सामंतवाद और भूदासत्व की समाप्ति यूरोप के निरंकुश राजतंत्रों को शक्ति प्रदान कर सकते थे।

चर्चा करें:

1. उदारवादियों को 1848 को कांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?

उत्तर: उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना उदारवाद से गहरे रूप से प्रभावित थी। नए मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता।

(i) राजनीतिक विचार: राजनीतिक दृष्टिकोण से, उदारवाद का अर्थ था सरकार का संचालन आम सहमति और प्रतिनिधित्व पर आधारित हो। उदारवादियों का मानना था कि तानाशाही का अंत हो और पादरियों को मिलने वाले विशेषाधिकारों को समाप्त किया जाए। वे एक संविधान और प्रतिनिधि पर आधारित सरकार की आवश्यकता महसूस करते थे, जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने निजी संपत्ति के अधिकार का भी समर्थन किया।

(ii) सामाजिक विचार: सामाजिक विचार से, उदारवाद का मतलब था समाज में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों का होना, जिससे हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता और अपने अधिकारों का सम्मान मिल सके। पादरियों और शासकों के विशेषाधिकारों को समाप्त करना भी उदारवाद का हिस्सा था।

(iii) आर्थिक विचार: आर्थिक विचार से, उदारवाद ने नेपोलियन कोड की सराहना की, जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता और निजी संपत्ति की सुरक्षा की बात की गई थी। नवोदित मध्यम वर्ग ने आर्थिक उदारवाद को समर्थन दिया, जिसमें विभिन्न मुद्राओं, मापों और व्यापारिक अवरोधों के कारण हो रही समस्याओं को समाप्त करने की आवश्यकता महसूस की गई। नया व्यापारी वर्ग एक एकीकृत और खुले आर्थिक बाजार की मांग कर रहा था, जिससे माल, पूँजी और श्रम का निर्बाध आवागमन हो सके।

2. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण है।

उत्तर: यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने वाले तीन उदाहरण हैं–

(i) भाषा का इस्तेमाल: भाषा ने राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित करने में अहीम भूमिका निभाई है। जैसे पोलैंड में रूसी कब्ज़े के बाद, पोलिश भाषा को स्कूलों से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद, पादरियों ने चर्च की सभाओं और धार्मिक निर्देशों में पोलिश का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पोलिश भाषा का इस्तेमाल रूसी प्रभुत्व के ख़िलाफ़ संघर्ष का प्रतीक बन गया।

(ii) लोककथाएं, लोकगीत, और लोकनृत्य: लोक संस्कृति के इन रूपों को एकत्रित करके राष्ट्र की सच्ची भावना को लोकप्रिय बनाया गया। जैसे पोलैंड में कैरोल कुर्पिंस्की ने अपने ओपेरा और संगीत के ज़रिए राष्ट्रीय संघर्ष का जश्न मनाया। उन्होंने पोलेनेज़ और माज़ुरका जैसे लोक नृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।

(iii) रोमांटिकवाद: रोमांटिकवाद एक सांस्कृतिक आंदोलन था जिसने राष्ट्रवादी भावना के एक विशेष रूप को विकसित करने की कोशिश की थी। रोमांटिक कलाकारों और कवियों ने तर्क और विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय भावनाओं, अंतर्ज्ञान, और रहस्यवादी भावनाओं पर ज़ोर दिया।

3. किन्हों दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कताई कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।

उत्तर: 19 वीं शताब्दी में लगभग पूरे यूरोप में राष्ट्रीयता का विकास हुआ जिस कारण राष्ट्र राज्यों का उदय हुआ। जर्मनी और इटली के राष्ट्रों को 19 वीं सदी के मध्य तक राजनीतिक रूप से खंडित किया गया था जिसके बाद वे कई विद्रोहों और युद्धों के बाद एकीकृत हो गए थे। जर्मनी और इटली दोनों में कई क्रांतिकारी सबसे आगे आए और जर्मनी के साथ-साथ इटली के एकीकरण के लिए कई विद्रोह शुरू कर दिया।

जर्मनी में राष्ट्रवाद का उदय मुख्य रूप से ओटो वॉन बिस्मार्क के नेतृत्व में हुआ। उन्होंने “लोहा और रक्त” की नीति अपनाकर छोटे-छोटे राज्यों को एकीकृत किया। 1871 में, फ्रेंको-प्रशिया युद्ध के बाद, जर्मन साम्राज्य की स्थापना हुई। इस एकीकरण में भाषा, संस्कृति, और औद्योगिकीकरण ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। जर्मन राष्ट्रवाद ने न केवल राजनीतिक एकता को बढ़ावा दिया, बल्कि आर्थिक सुधारों के माध्यम से इसे स्थिरता भी प्रदान की।

दूसरी ओर, इटली में राष्ट्रवाद का नेतृत्व ग्यूसेपे माज़िनी, कवूर और ग्यूसेपे गैरिबाल्डी जैसे नेताओं ने किया। 1861 में, विभिन्न राज्यों और राजशाहियों को एकीकृत करके आधुनिक इटली का गठन किया गया। इस प्रक्रिया में माज़िनी के आदर्श, कवूर की कूटनीति, और गैरिबाल्डी के सैन्य अभियानों ने अहम भूमिका निभाई। भाषा और सांस्कृतिक एकता ने इटली में राष्ट्रवाद को सुदृढ़ किया, जबकि औद्योगिकीकरण और रेल नेटवर्क ने इसे आर्थिक रूप से मजबूती दी।

4. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?

उत्तर: कुछ इतिहासकार ग्रेट ब्रिटेन को यूरोप के लिए राष्ट्र-राज्य के आदर्श या मॉडल के रूप में देखते हैं। ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण अचानक हुई कोई क्रांति या उथल-पुथल का परिणाम नहीं था, बल्कि यह एक लंबी और निरंतर प्रक्रिया का फल था। 18वीं शताब्दी से पहले, ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य की कोई स्पष्ट पहचान नहीं थी। ब्रिटिश द्वीप समूह में अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट्स और आयरिश जैसी विभिन्न जातियाँ रहती थीं, और इनकी पहचान मुख्य रूप से नृजातीय थी। इन जातियों की अपनी-अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थीं। जैसे-जैसे इंग्लैंड की संपत्ति, शक्ति और महत्व में वृद्धि हुई, उसने धीरे-धीरे द्वीप समूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

5. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्र‌वादी तनाव क्यों पनपा?

उत्तर: 1871 के बाद बाल्कन क्षेत्र यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का प्रमुख स्रोत बन गया। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, यूनान, मैसेडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया, हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया, और मोंटेनेग्रो आदि प्रदेश शामिल थे। इस क्षेत्र के निवासियों को सामान्यत: स्लाव कहा जाता था। बाल्कन क्षेत्र का अधिकांश भाग लंबे समय तक ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था।

इस क्षेत्र में तनाव उत्पन्न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:

(i) ऑटोमन साम्राज्य का प्रभुत्व: बाल्कन क्षेत्र का बड़ा हिस्सा लंबे समय तक ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था, जो धीरे-धीरे कमजोर होता गया।

(ii) ऑटोमन साम्राज्य की कमजोरी: समय के साथ ऑटोमन साम्राज्य अत्यधिक कमजोर हो चुका था, जिससे बाल्कन क्षेत्रों में स्वतंत्रता की आकांक्षाएँ और भी प्रबल हो गईं।

(iii) राष्ट्रवाद की भावना: साम्राज्य के अधीन विभिन्न राष्ट्रों में राष्ट्रवाद की भावना तीव्र हो गई थी। वे स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में संघर्ष करने लगे थे।

(iv) इतिहास का आधार: इन देशों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वे कभी स्वतंत्र थे, लेकिन विदेशी शक्तियों ने उन्हें अपना अधीन किया था। इसलिए, उनका मानना था कि अब उन्हें स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

(v) राजनैतिक ईर्ष्या: बाल्कन क्षेत्र के विभिन्न राज्यों के बीच आपसी ईर्ष्या थी। हर राज्य अपने लिए अधिक-से-अधिक भूमि प्राप्त करना चाहता था, जिससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ गया।

(vi) यूरोपीय शक्तियों का हस्तक्षेप: बाल्कन क्षेत्र में यूरोपीय शक्तियों जैसे रूस, जर्मनी, इंग्लैंड और ऑस्ट्रिया-हंगरी के बीच प्रतिस्पर्धा ने तनाव को और भी बढ़ा दिया। इन देशों ने ऑटोमन साम्राज्य की कमजोरी का फायदा उठाते हुए वहां अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास किया।

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