Class 9 Hindi Elective Chapter 8 मणि-कांचन संयोग

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Class 9 Hindi Elective Chapter 8 मणि-कांचन संयोग

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मणि-कांचन संयोग

पाठ – 8

अभ्यासमाला

बोध एवं विचार

(अ) सही विकल्प का चयन करो:

1. धुवाहाता-बेलगुरि नामक पवित्र स्थान कहाँ स्थित है?

(i) बरपेटा में।

(ii) माजुलि में।

(iii) पाटबाउसी में।

(iv) कोचबिहार में।

उत्तर: (ii) माजुलि में।

2. शंकरदेव के साथ शास्त्रार्थ से पहले माधवदेव थे –

(i) शाक्त।

(ii) शैव।

(iii) वैष्णव।

(iv) सूर्योपासक।

उत्तर: (i) शाक्त।

3. सांसारिक जीवन में शंकरदेव और माधवदेव का कैसा संबंध था?

(i) चाचा-भीतजे।

(ii) भाई-भाई का।

(iii) मामा-भांजे का।

(iv) मित्र-मित्र का।

उत्तर: (iii) मामा-भांजे का।

4. शंकरदेव के मुँह से किस ग्रंथ का श्लोक सुनकर माधवदेव निरुत्तर हो गए थे?

(i) ‘गीता’ का।

(ii) ‘रामायण’ का।

(iii) ‘महाभारत’ का।

(iv) ‘भागवत’ का।

उत्तर: (iv) ‘भागवत’ का।

2. किसने किससे कहा, बताओ:

(क) ‘माँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।’

उत्तर: माधव देवने देवी गोसानी से कहा।

(ख) ‘बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है।’

उत्तर: रामदास ने माधवदेव से कहा।

(ग) ‘अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है।’

उत्तर: माधवदेव ने रामदास से कहा।

(घ) ‘वे एक ही बात से तुम्हें निरुत्तर कर देंगे।’

उत्तर: रामदास ने माधव देव से कहा।

(ङ) ‘यह दीघल-पुरीया गिरि का पुत्र माधव है।’

उत्तर: रामदास ने शंकरदेव से कहा।

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुलि कहाँ बसा हुआ है?

उत्तर: विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुलि ब्रम्हपुत्र नदी के गोद में बसा है।

(ख) श्रीमंत शंकरदेव का जीवन काल किस ई. से किस ई. तक व्याप्त है?

उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव का जीवन काल 1449–1568 ई. से 1489–1596 ई तक व्याप्त है।

(ग) शंकर-माधव का मिलना असम-भूमि के लिए कैसा सावित हुआ?

उत्तर: शंकर माधव का मिलना असम भूमि के लिए “मणि कांचन संयोग” जैसा था।

(घ) महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र क्या देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था?

उत्तर: महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र शंकर माधव के मिलन को देखकर देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था।

(ङ) माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव क्या बोले?

उत्तर: माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद  शंकरदेव ने कहा था “तुम्हे पाकर आज मैं पूरा हुआ।

(च) किस घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था?

उत्तर: शंकर-माधव दोनों महापुरुषों के महामिलन से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था।

4. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):

(क) ब्रह्मपुत्र नद किस प्रकार शंकरदेव माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था?

उत्तर: महाबहू ब्रह्मपुत्र नद की गोद में बसा विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है माजुलि। इसी दीप में धुवाहाता बेलगुरि नामक पवित्र स्थान है, जहाँ भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधव देव का महामिलन हुआ था। इस कारण ब्रह्मपुत्र इस महामिलन का साक्षी बना।

(ख) धुवाहाटा-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे?

उत्तर: धुवाहाता-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव उस समय हो रहे शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि विधान एवं अनेकानेक कठोर धार्मिक बाह्याचारों से जकड़े हुए असमीया समाज को मुक्ति का नया पथ दिखाने तथा उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने के महान प्रयास में जुटे हुए थे।

(ग) माधवदेव ने कब और क्या मनौती मानी थी?

उत्तर: माधवदेव जब अपनी सारी पैत्रिक संपत्ति बांडुका में बसे बड़े भाई दामोदर को सौंपकर भांडारीडुबि की ओर वापस आ रहे थे तो उनको खबर मिली कि उनके माँ सख्त बीमार है। यह खबर सुनकर माधवदेव अपनी विधवा माँ के स्वास्थ्य को लेकर अत्यंत चिंतित हो उठे। तो उन्होंने तुरंत मनौती मानी की ‘हे देवी गोसानी! तुम्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेट करूँगा। माँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।’

(घ) ‘इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।’- प्रस्तुत पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो।

उत्तर: बहनोई रामदास को दो बकड़ी खरीद ने के लिए आवश्यकीय धन देकर मांधवदेव चल गये थे। बकड़ी देवी गोंसानी के पास मनौती के लिए माँगी थी।

(ङ) ‘माधवदेव आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।’ किसने किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था?

उत्तर: यह कथन रामदास ने शंकरदेव को कहा था। जब रामदास ने माधवदेव को कहा कि बलि चढ़ाना विनाशकारी है। माधवदेव ने यह बात ना मानी थी। इसलिए शंकरदेव से शास्त्रार्थ करने चलपड़े थे। शंकरदेव के वहाँ पहुँचकर रामदास ने शंकरदेव को यह बात कहा था।

5. संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में):

(क) शंकर-माधव के महामिलन के संदर्भ में ‘मणि-कांचन संयोग’ आख्या की सार्थकता स्पष्ट करो।

उत्तर: शंकर माधव का महामिलन पवित्र असमभूमि के लिए मणिकांचन संयोग हुआ अर्थात सोने और सुगंध का मिलन था। इस मिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरी भू-खंड में भागवती वैष्णव धर्म अथवा एकशरण नाम-धर्म का प्रचार-प्रसार कार्य में एक अदभुत गति आ गई थी। असमीया जाति शंकर गुरु और माधवगुरु दोनों की आभा से उद्भाषित है। जिस प्रकार धरती के लिए सूर्य और चंद्र की किरणों का अपना-अपना महत्व है, उसी प्रकार महान असमिया समाज के लिए शंकर भास्कर और माधव मृगांक की प्रतिभाएँ अपने-अपने ढंग से कल्पतरु के समान कल्याणकारी हैं।

(ख) बहनोई रामदास के घर पहुँचने पर माधवदेव ने क्या पाया और उन्होंने क्या किया?

उत्तर: माधवदेव जब बहनोई रामदास के घर पहुँचे तब उन्होंने पाया कि देवी गोसानी की कृपा से रामदास की माँ स्वस्थ होने लगी थी। और मन ही मन उन्होने देवी को प्रणाम किया साथ ही साथ अपने माँ को स्वस्थ कर देने के लिये दो सफेद बकरों देवी को देने की मनौती मानी।

(ग) रामदास ने बलि-विधान के विरोध में माधवदेव से क्या-क्या कहा?

उत्तर: रामदास ने कहा बकरो से क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटने वाले को उस लोक में बकरो के हाथों कटना पड़ता है। बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। इससे किसकी प्राप्ति होगी? दुसरी जीव की हत्या बेकार ही क्यों करना।

(घ) शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा उद्धृत ‘भागवत’ के श्लोक का अर्थ सरल हिन्दी में प्रस्तुत करो?

उत्तर: प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वोचनमच्युतेभ्यः एल ‘इस श्लोक का हिंदी में अर्थ है जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से टहनियाँ, पत्ते, फूल, फल सब संजीवित होते हैं अथवा अन्न ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव- शरीर की सारी इंद्रियाँ तृप्त होती है, उसी प्रकार परब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।

(ङ) शंकरदेव की साहित्यिक देन के बारे में बताओ?

उत्तर: शंकरदेव की साहित्यिक देन असमीया समाज में ही नहीं अपितु असम भूमि के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास की संभवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया और उन्होंने अधिक उन्मुक्त भाग से साहित्य-सृष्टि, संगीत-रचना आदि के जरिए असमीया भाषा-साहित्य-संस्कृत को परिपुष्ट बनाने में सक्षम हुए।उन्होंने कीर्तन-घुषा, गुणमाला, भक्ति-प्रदीप, हरिचंद्र उपाख्यान, रुक्मिणी-हरण काव्य, बलिछलन, कुरुक्षेत्र आदि काव्य रचनाएँ की है। उनके द्वारा रचित अंकिया नाट जिसमें पत्नीप्रसाद।

(च) माधवदेव की साहित्यिक देन को स्पष्ट करो?

उत्तर: माधवदेवी भी शंकरदेव की तरह अपनी अनमोल देन से असमीया समाज को हमेशा के लिए गौरव के अधिकारी बनाने के काम में सफल प्रमाणित हुए। आप की काव्य रचनाओं में नामघोषा, जन्मरहस्य, राजसूर्य, भक्ति रत्नावली आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपने चोर-धरा, पिंपरा- गुचोवा, भोजन-बिहार, भूमि-लेटोवा, दधि-मंथन आदि नाटक भी रखे हैं। अपने गुरु की आशा से आपने नी कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग एक सो इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध है।

6. सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):

(क) माधवदेव की माँ की बीमारी के प्रसंग को सरल हिन्दी में वर्णित करो।

उत्तर: माधवदेव अपनी सारी संपत्ति अपने बड़े भाई दामोदर को सौंप कर टेंबुवानि की ओर वापस आ रहे थे तो उन्हें खबर मिली कि उनकी मां बहुत बीमार है। बीमार की खबर पाते ही वह अत्यंत चिंतित हो गए। उन्होंने तुरंत देवी गोसानी से प्रार्थना की और मनौती मांगी की उन्हें शीघ्र स्वस्थ कर दे। ऐसा करने पर वे उन्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेंट में देंगे।माधवदेव जब बहनोई रामदास के घर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी माँ स्वस्थ हो गई है। माँ को स्वस्थ देख उन्होंने चैन की सांस ली। जब कुछ दिन बाद माँ संपूर्ण स्वस्थ हो चली तो माधवदेव ने अपने बहनोई रामदास को सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए अनुरोध किया।

(ख) बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो।

उत्तर: परम शाक्त माधवदेव बलि विधान पर विश्वास करते थे। इसीलिए मनौती के अनुसार देवी पूजा के दिन सफेद बकरों के जोड़े को बलि देना चाहते थे। दूसरी ओर उनके बहनोई रामदास शंकरदेव के शिष्य होने के कारण वैष्णव धर्म को अपना आधार मानते थे। रामदास बलि विधान के विरोधी थे। इसीलिए उन्होंने माधवदेव के अनुरोध से जो सफेद बकरों का जोड़ा खरीदा था उसे मालिक के पास ही छोड़ आए थे। तो माधवदेव ने इसका कारण पूछा तो रामदास ने उत्तर में कहा कि ‘बकरे लाकर क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटनेवाले को उस लोग में बकरे के हाथों काटना पड़ता है। साथ में यह भी कहा कि बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। इसलिए तुम दूसरी जीव की हत्या बेकार में मत करो। अगर ऐसा करोगे तो इसका परिणाम तुम्हें अवश्य मिलेगा। परंतु रामदास की बातों से माधवदेव पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उल्टा क्रोधित होकर बहनोई से कहने लगे कि उन्होंने जितनी धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है उनमें उसके द्वारा कहे गए बातों का कहीं भी जिक्र नहीं है। और कहा कि वे जानना चाहते हैं कि उसे किस शास्त्र में ऐसी बातें मिली है।

(ग) रामदास और माधवदेव गुरु शंकरदेव के पास कब और क्यों गए थे?

उत्तर: रामदास और माधवदेव ने बकरे खरीदने को लेकर दोनो के बीच बहस हुया। गुरु शंकरदेव से मिली ज्ञान ज्योति के बलपर रामदास ने माधवदेव को बहुत समझाया पर उन बातों से माधवदेव जरा भी प्रभावित नहीं हुए बल्कि उनका ज्ञान-दंभ जाग उठा। माधवदेव के ज्ञान-दंभ से रामदास थोड़ा आहत हुए। फिर बोले तुम और हम क्यों ऐसे ही शास्त्रार्थ करें। चलो उनके पास ही चले, जिनसे हमने ये बातें सुनीं है और अगले दिन ही रामदास और माधवदेव धुवाहाता बेलगुरी सत्र में श्रीमत शंकरदेव के पास गए।

(घ) शंकरदेव और माधवदेव के बीच किस बात पर शास्त्रार्थ हुआ था? उसका क्या परिणाम निकला?

उत्तर: शंकर देव और माधव के बीच बलि-विधान की बात पर शास्त्रार्थ हुआ था। दोनी में शास्त्रार्थ होने लगा। शंकर देव निवृत्ति मार्ग के पक्ष में और माधवदेव प्रवृत्ति मार्ग के पक्ष में बिवध शास्त्रो से प्रमाण प्रस्तुत करते रहे। सुबह से राम हुए। कोई भी कम नहीं थे। जब शंकर देव ने ‘भागवत’ के श्लोक की उद्धत किया तो माधव देव निरुत्तर ही गए। उसका परिणाम यह निकला कि माधव देवने कृष्ण संबंधी ज्ञान-भक्ति के दाता श्रीमंत शंकरदेव को गुरु मान लिया और गदगदत्त से प्रणाम किया। शंकर देव ने माधव देब की शिश्य के रूप  में स्वीकार कर लिया और आनंद मग्न होकर वे बील उठे-तुम्हें पाकर आज मैं पुरा हुआ।

(ङ) शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम किन रूपों में निकले?

उत्तर: शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम स्वरुप एकशरण नाम धर्म का प्रचार और प्रसार तेजी से बढ़ता गया और कृष्ण-भक्ति की धाराएँ जन-मन को भिगोती हुई चारी दिशाओं में बहने लगी। माधव देव ने कृष्ण-भक्ति, गुरु-भक्ति और एकशरण नाम-धर्म के प्रचार प्रसार कार्य में अपनि तरह समर्पित कर दिया। 

7. प्रसंग सहित व्याख्या करो(लगभग 100 शब्दों में):

(क) ‘ऐसी स्तिथि में योग्य गुरु शंकर को योग्य शिष्य मिल गए।’

उत्तर: यहाँ शंकर माधव के मिलन के बारे में कहा गया है। व्याख्या के अनुसार कहा गया है कि वैष्णव गुरु शंकर को माधव जैसे ज्ञानी पंडित शिष्य एक ऐसी स्थिति में मिला है जिसको मणिकांचन संयोग कहा जाता है। शंकर माधव के मिलनोपरांत एकशरण नाम धर्म का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ता गया। माधवदेव ने कृष्ण भक्ति, गुरु-भक्ति और एकशरण नाम-धर्म के प्रचार-प्रसार कार्य में अपने को पूरी तरह समर्पित कर दिया। दोनों महापुरुषों के महामिलन ने असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश कर दिया था। भक्ति-धर्म के प्रचार कार्य में श्री माधवदेव का सहयोग पाने के पश्चात् श्रीमंत शंकरदेव अधिक उन्मुक्त भाव से साहित्य सृष्टि, संगीत रचना आदि के जरिए असमीया भाषा-साहित्य संस्कृति को परिपुष्ट बनाने में सक्षम हुए।

(ख) ‘उसने इस महामिलन के उमंग-रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिंद महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जल- धारा को आदेश दिया था।’

उत्तर: शंकर-माधव का मिलन पावन असम-भूमि के लिए सोने में सुगंध-जैसा साबित हुआ। इस मिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरी भू- खंड में भागवती वैष्णव-धर्म अथवा एकशरण नाम-धर्म के प्रचार- प्रचार-कार्य में एक अद्भुत गति आ गई थी। शंकर-माधव के सम्मिलित प्रयास से इस पावन कार्य में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी होने लगी थी। सांसारिक जीवन में शंकर-माधव मामा-भांजे थे, पर इस महामिलन के उपरांत दोनों गुरु-शिष्य के पवित्र बंधन में बंध गए थे। इसका साक्षी बना था ब्रह्मा का वरद पुत्र ब्रह्मपुत्र नद। महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद में मामा-भांजे को गुरु-शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था। उसने इस महामिलन के उमंग-रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिंद महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जल-धारा को आदेश दिया था।

(ग) ‘उत्तर भारतीय समाज में ‘रामचरितमानस’ का आदर जितना है, असमीया समाज में ‘कीर्त्तनघोषा नामघोषा’ का भी आदर उतना ही है।’

उत्तर: वैष्णव-गुरु श्रीमंत शंकरदेव और शाक्त माधवदेव का महामिलन असम के सांस्कृतिक इतिहास की कदाचित् सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। इस अतुल्य घटना से एक ओर दोनों महान विभूतियों के जीवन और कर्म प्रभावित हुए तो दूसरी ओर इसके परिणामस्वरूप असम-भूमि का सांस्कृतिक जीवन व्यापक रूप से संजीवित हो उठा। प्रस्तुत लेख में इस महामिलन की पृष्ठभूमि में घटित घटनाओं का सजीव एवं रोचक वर्णन किया गया है। श्री माधवदेव की मातृ-भक्ति, बलि-विधान की असारता, पूर्ण समर्पण पर पर आधारित भक्ति की महत्ता, गुरु-शिष्या का पवित्र संबंध जैसी बातें इस लेख में मूर्त हो उठी हैं।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान

(क) निम्नलिखित अभिव्यक्तियों के लिए एक-एक शब्द दो:

विष्णु का उपासक, शक्ति का उपासक, शिव का उपासक, जिसकी कोई तुलना न हो, संस्कृति से संबंधित, बहन के पति, जिस स्त्री का पति मर गया हो, ऐसा व्यक्ति, जो शास्त्र जानता हो।

उत्तर: (i) विष्णु का उपासक ― वेष्णब।

(ii) शक्ति का उपासक ― शाक्त।

(iii) शिव का उपासक ― शैव।

(iv) जिसकी कोई तुलना न हो ― अतुलनीय।

(v) संस्कृति से संबंधित ― सांस्कृतिक। 

(vi) बहन के पति ― बहनोई।

(vii) जिस स्त्री का पति मर गया हो ― बिधवा।

(viii) ऐसा व्यक्ति जो शास्त्र जानता हो ― शास्त्रज्ञ।

(ख) निम्नांकित शब्दों से प्रत्ययों को अलग करो:

मनौती, वार्षिक, कदाचित्, बुढ़ापा, चचेरा, पूर्वोत्तरी, आध्यात्मिक, आधारित।

उत्तर: (i) मनौती―ई।   

(ii) वार्षिक―इक।   

(iii) कदाचित्―इत। 

(iv) बुढ़ापा―आ।   

(v) चचेरा―आ,     

(vi) पूर्वोत्तरी―ई।

(vii) आध्यात्मिक―इक।   

(viii) आधारित―इत।

(ग) निम्न लिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में इस प्रकार करो, ताकि उनका लिंग स्पष्ट हो:

महामिलन, उपासना, बढ़ोत्तरी, मोल-भाव, विनती, वाणी, तिरोभाव, संस्कृति।

उत्तर: (i) महामिलन: धुवाहाता-बेलगुरि सत्र में शंकरदेव और माधवदेव का महामिलन हुआ थ।

(ii) उपासना: परब्रह्म कृष्ण की उपासना से जीवों का कल्याण निहित है।

(iii) बढ़ोत्तरी: शंकर-माधव के प्रयास से इस पावन कार्य में दिन दुनी बढ़ोत्तरी होने लगी थी।

(iv) मोल-भाव: मोल-भाव करके बकरों को मालिक के पास ही रख छोड़ा है।

(v) विनती: माधवदेव देवी गोसानी से विनती की अपनी माँ को शीघ्र स्वस्थ कर देने के लिए।

(vi) वाणी: शंकर माधव की वाणी जन-मन को भिगोती हुई चारों दिशाओं में बहने लगी। 

(vii) तिरोभाव: १५६८ ई के भाद्र महीने में शंकरदेव का तिरोभाव हुआ था। 

(viii) संस्कृति: ब्रह्मपुत्र असम की संस्कृति का पोषक भी है।

योग्यता-विस्तार

(क) श्रीमंत शंकरदेव और श्रीश्री माधवदेव के जीवन-वृत्तों का अध्ययन करो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(ख) शंकरदेव और माधवदेव की साहित्यिक देन के संदर्भ में अधिक जानकारी एकत्र करो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(ग) अपने गुरुजी की सहायता से एकशरण भागवती वैष्णव धर्म की मूलभूत बातों को जानने का प्रयास करो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(घ) बलि-विधान की निरर्थकता पर कक्षा में एक परिचर्चा का आयोजन करो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

(ङ) शंकर-माधव के महामिलन की तरह ही रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का मिलन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रस्तकालय की मदद से इस मिलन के बारे में सम्यक जानकारी प्राप्त करो।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

शब्दार्थ एवं टिप्पणी
शब्दअर्थ
कदाचित्
पावन 
सोने में सुंगध 
प्रयास
बढ़ोत्तरी
वरद
उमंग
मनौती
जान में जन जाना 
फौरन
प्रवृत्ति
निवृत्ति
तिरोभाव
कोड़ी
मृगांक

उत्तर: 

शब्दअर्थ
कदाचित्संभवतः, शायद
पावन पवित्र
सोने में सुंगध एक उत्ताम वस्तु में और एक उत्तम गुण का आ जाना
प्रयासचेष्टा
बढ़ोत्तरीवृद्धि
वरदशुभ, वर देने वाला
उमंगउत्साह, जोश
मनौतीमन्नत
जान में जन जाना राहत मिलना
फौरनतुरंत, शीघ्र ही
प्रवृत्तिसांसारिक वातों के प्रति झुकाव, आसक्ति
निवृत्तिसांसारिक बातों के प्रति विराग-भाव, अनासक्ति
तिरोभावमहापुरुष का देहावसान
कोड़ीबीस का समूह, बीसी
मृगांकचाँद, चंद्र

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