NIOS Class 12 Political Science Chapter 17 वयस्क मताधिकारः चुनाव प्रक्रिया तथा प्रतिनिधित्व की प्रणालियाँ

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Chapter: 17

मॉड्यूल – 4 व्यवहार में लोकतंत्र

पाठगत प्रश्न 17.1

1. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि वोट का अधिकारः

(क) सभी वयस्क महिलाओं तथा पुरुषों को है।

(ख) केवल पुरुषों को है।

(ग) केवल महिलाओं को है।

(घ) अवयस्कों को है।

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उत्तर: (क) सभी वयस्क महिलाओं तथा पुरुषों को है।

2. निम्न में से किसे वोट डालने का अधिकार प्राप्त नहीं है?

(क) अवयवस्कों को।

(ख) मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को।

(ग) पागल अथवा दिवालिए को।

(घ) उपरोक्त सभी को।

उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी को।

3. भारत में मतदान की न्यूनतम आयु क्या है?

(क) 16 वर्ष।

(ख) 18 वर्ष।

(ग) 21 वर्ष।

(घ) 25 वर्ष।

उत्तर: (ख) 18 वर्ष।

4. स्विटजरलैंड ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार किस वर्ष लागू किया?

(क) 1914

(ख) 1945

(ग) 1928

(घ) 1971

उत्तर: (घ) 1971

पाठगत प्रश्न 17.2

1. रिक्त स्थानों को भरिए-

(क) फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली को ________________ के नाम से जाना जाता है।

उत्तर: फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली को सामान्य बहुमत प्रणाली के नाम से जाना जाता है।

(ख) बहुसदस्यीय प्रणाली को _______________ प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।

उत्तर: बहुसदस्यीय प्रणाली को सामान्य टिकट प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।

(ग) भारत में _______________ प्रणाली द्वारा लोक सभा और राज्य सभा के चुनाव होते हैं।

उत्तर: भारत में क्षेत्रीय प्रणाली द्वारा लोक सभा और राज्य सभा के चुनाव होते हैं।

(घ) आनुपातिक प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने के तरीके ________________ और _______________ हैं।

उत्तर: आनुपातिक प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने के तरीके एकल संक्रमणीय मत प्रणाली और सूची प्रणाली हैं।

(ङ) अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने की निर्वाचन पद्धति _________________ और _______________ हैं।

उत्तर: अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने की निर्वाचन पद्धति मत प्रणाली और सीमित मत प्रणाली हैं।

पाठांत प्रश्न

1. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ और महत्व स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक अपना मत देने और अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार प्राप्त हो। इसे अंग्रेज़ी में एडल्ट फ्रेंचाइज कहा जाता है, जिसका संबंध स्वतंत्र रूप से अपनी पसंद का प्रतिनिधि चुनने से है। मताधिकार वास्तव में जनतंत्र का आधार है, क्योंकि लोकतंत्र की आत्मा तभी सुरक्षित रह सकती है जब सभी नागरिकों को समान रूप से वोट डालने का अधिकार मिले। किसी व्यक्ति को उसके समुदाय, वर्ग या स्थिति के आधार पर मताधिकार से वंचित करना समानता के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।

इसका महत्व इसलिए भी है कि नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर अपनी पसंद की सरकार बनाते हैं और शासन की नीतियों के निर्धारण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होती है। संसद और विधान मंडलों के लिए निश्चित अवधि पर चुनाव कराना भी इसी सिद्धांत पर आधारित है, जिससे जनता की शक्ति बनी रहती है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

2. सामान्य बहुमत प्रणाली की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: सामान्य बहुमत प्रणाली के अंतर्गत किसी एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है। कई बार इस प्रणाली में बहु-कोणीय मुकाबला हो जाता है यदि प्रत्याशी एक से अधिक हों तो। ऐसे भी कई उदाहरण हैं जहां चार, पांच या उससे भी अधिक प्रत्याशी होते हैं। इस स्थिति में संपूर्ण मतों के 50 प्रतिशत से भी कम मत प्राप्त करने वाला प्रत्याशी विजयी होता है। भारत में आम चुनाव में ऐसा ही देखने को मिलता है। सामान्य बहुमत प्रणाली ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और अन्य कुछ देशों में प्रचलित है। इस प्रणाली को ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ भी कहते हैं। हमारी लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य इसी प्रणाली से चुने जाते हैं।

3. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्याख्या कीजिए। इसे निर्धारित करने के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: आनुपातिक प्रतिनिधित्व वह चुनाव प्रणाली है जिसमें हर वर्ग, समूह या राजनीतिक दल को उसके द्वारा प्राप्त मतों के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाता है। इस पद्धति में उद्देश्य यह रहता है कि विधानमंडल में प्रत्येक वर्ग की आवाज़ शामिल हो सके और अल्पसंख्यक मतदाता भी प्रतिनिधित्व से वंचित न रहें। सामान्य बहुमत प्रणाली में अक्सर ऐसा होता है कि किसी दल को कम वोट मिलने के बावजूद वह अधिक सीटें जीत लेता है, जबकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व में सीटें ठीक उसी अनुपात में मिलती हैं जिस अनुपात में मत प्राप्त होते हैं। इसी कारण जे.एस. मिल ने इसे वास्तविक लोकतंत्र का आधार माना है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को निर्धारित करने के दो प्रमुख तरीके हैं—

(i) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System): इसमें मतदाता एक ही वोट देता है, लेकिन वह अपनी वरीयता 1, 2, 3… के रूप में दर्ज कर सकता है। यह प्रणाली राज्यसभा और राष्ट्रपति चुनाव में अपनाई जाती है।

(ii) सीमित मत व्यवस्था (Limited Vote System): इसमें बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होता है और मतदाता सीमित संख्या में विभिन्न प्रत्याशियों को वोट दे सकता है, ताकि अल्पसंख्यक वर्ग को भी प्रतिनिधित्व मिल सके।

4. आनुपातिक प्रतिनिधित्व से अलग अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित करने के किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अतिरिक्त विधानमण्डलों में अल्पसंख्यकों को समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए कुछ अन्य तरीके भी ढूंढ़ निकाले गए हैं।

अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की ये प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं—

(i) बहुसंख्यक मत प्रणाली: इस प्रणाली में मतदाता उतने मत देने का अधिकार रखता है जितनी निर्वाचन क्षेत्र में सीटें निर्धारित होती हैं। इस प्रणाली में मतदाताओं के पास विकल्प होते हैं। कोई भी महिला अथवा पुरुष मतदाता अपने सभी मत प्रत्याशियों में बाँट सकता है या फिर सारे के सारे मत एक ही प्रत्याशी को दे सकता है।

उदाहरण के लिए यदि एक निर्वाचन क्षेत्र से पांच सदस्य चुने जाते हैं तो मतदाता अपने पांच मत पांच प्रत्याशियों में बांट सकता है या फिर पांच मत एक ही प्रत्याशी को दे सकता है। इस प्रकार इस प्रणाली में एक सुसंगठित अल्पसंख्यक समूह अपने मतदाताओं में ग्राम सहमति बनाकर अपने प्रत्याशी के पक्ष में सारे मत दिलवा कर उसे जितवा सकता है।

(ii) सीमित मत प्रणाली: यह प्रणाली उन निर्वाचन क्षेत्रों में अपनाई जाती है जहां तीन या तीन से अधिक सदस्यों का चुनाव होना है। इसमें एक मतदाता एक से अधिक प्रत्याशियों को मत दे सकता है, परंतु सभी प्रत्याशियों को नहीं। इसलिए इसे सीमित मत प्रणाली कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 6 सीटें हैं तो प्रत्येक मतदाता चार प्रत्याशियों को मत दे सकता है न कि किसी एक प्रत्याशी को सारे मत।

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