NIOS Class 12 Political Science Chapter 16 स्थानीय शासनः शहरी और ग्रामीण

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Chapter: 16

मॉड्यूल – 3 सरकार की संरचना

पाठगत प्रश्न 16.1

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में ________________ उनके शहरी स्थानीय निकाय हैं। (नगर निगम, नगर पालिकाएं, नगर पंचायतें)

उत्तर: दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में नगर निगम उनके शहरी स्थानीय निकाय हैं।

(ख) स्थानीय निकायों में अब _________________ सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। (आधी/एक तिहाई/एक चौथाई)

उत्तर: स्थानीय निकायों में अब एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।

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(ग) राज्य चुनाव आयोग ________________ के चुनाव करवाते हैं। (राज्यपाल/विधान सभा/नगर निगम और नगर पालिकाओं)

उत्तर: राज्य चुनाव आयोग नगर निगम और नगर पालिकाओं के चुनाव करवाते हैं।

(घ) स्थानीय शहरी निकायों का सामान्य कार्यकाल ________________ वर्ष है। (तीन/चार/पांच)

उत्तर: स्थानीय शहरी निकायों का सामान्य कार्यकाल पांच वर्ष है।

(ङ) नगर निगम के प्रशासनिक मुखिया का पदनाम ________________ है। (चैयरमैन/महापौर/निगम आयुक्त)

उत्तर: नगर निगम के प्रशासनिक मुखिया का पदनाम निगम आयुक्त है।

(च) ______________ शहरी स्थानीय निकायों का एक अनिवार्य कार्य है। (अनाथालयों का रख-रखाव/कम आय वर्ग के लिए घरों का निर्माण/पीने के पानी की आपूर्ति)

उत्तर: पीने के पानी की आपूर्ति शहरी स्थानीय निकायों का एक अनिवार्य कार्य है।

(छ) _______________ शहरी स्थानीय निकायों की आय का एक मुख्य स्रोत है। (सम्पत्ति कर/अग्नि कर/शिक्षा कर)

उत्तर: सम्पत्ति कर शहरी स्थानीय निकायों की आय का एक मुख्य स्रोत है।

पाठगत प्रश्न 16.2

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) पंचायती राज अवधारणा की पैरवी _______________ ने की थी। (महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु, सरदार पटेल)

उत्तर: पंचायती राज अवधारणा की पैरवी महात्मा गांधी ने की थी।

(ख) त्रिस्तरीय प्रणाली की सबसे पहले _________________ कमेटी ने वकालत की थी। (अशोक मेहता कमेटी/बलवंत राय मेहता/सुरेश मेहता)

उत्तर: त्रिस्तरीय प्रणाली की सबसे पहले बलवंत राय मेहता कमेटी ने वकालत की थी।

(ग) पंचायती राज का मध्यवर्ती स्तर _________________ है। (जिला परिषद/पंचायत समिति/ग्राम पंचायत)

उत्तर: पंचायती राज का मध्यवर्ती स्तर पंचायत समिति है।

(घ) 73वें संशोधन ने स्थानीय निकायों के वित्त को नियमित करने के लिए _________________ का प्रावधान किया। (राज्य योजना बोर्ड, राज्य निर्वाचन आयोग, राज्य वित आयोग)

उत्तर: 73वें संशोधन ने स्थानीय निकायों के वित्त को नियमित करने के लिए राज्य वित आयोग का प्रावधान किया।

(ङ) पंचायत समिति क्षेत्रों में विकास गतिविधियों में तालमेल करने के लिए _________________ उत्तरदायी है। (जिला मजिस्ट्रेट, उप मण्डल अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी)

उत्तर: पंचायत समिति क्षेत्रों में विकास गतिविधियों में तालमेल करने के लिए खण्ड विकास अधिकारी उत्तरदायी है।

(च) ________________ प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रतीक है। (ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, जिला परिषद)

उत्तर: ग्राम सभा प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रतीक है।

(छ) पंचायत समितियों के अध्यक्ष _________________ के पदेन सदस्य होते हैं। (न्याय पंचायत/ग्राम सभा/जिला परिषद)

उत्तर: पंचायत समितियों के अध्यक्ष जिला परिषद के पदेन सदस्य होते हैं।

पाठगत प्रश्न 16.3

1. प्रत्येक प्रश्न के बाद दिए गए कोष्ठक से सही उत्तर चुनिए:

(क) गोबर, कूड़ा और जानवरों के मृत शरीरों के विक्रय से आय कौन प्राप्त करता है?

(जिला परिषद/पंचायत समिति/ग्राम पंचायत)

उत्तर: ग्राम पंचायत।

(ख) टोल टैक्स क्या है?

(सार्वजनिक सम्पति के विक्रय पर कर/पुल अथवा सड़क प्रयोग करने पर कर/बिजली पर कर)

उत्तर: पुल अथवा सड़क प्रयोग करने पर कर।

(ग) कमीशन एजेन्टों (दलालों/आढ़तियों) पर टैक्स कौन लगाता है?

(जिला परिषद/पंचायत समिति/न्याय पंचायत)

उत्तर: जिला परिषद।

(घ) अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का क्या उद्देश्य था।

(अर्थव्यवस्था के विकास के लिए/सहयोग बढ़ाने के लिए/गाँव के सामाजिक ढांचे को बदलने के लिए)

उत्तर: गाँव के सामाजिक ढांचे को बदलने के लिए।

(ङ) स्वशासी संस्थाओं के रूप में पंचायतें अपनी भूमिका पूरी करने में क्यों अक्षम हैं।

(संसाधनों की कमी/युवाओं की भागीदारी की कमी/राजनीतिक वर्ग का हस्तक्षेप)

उत्तर: संसाधनों की कमी।

(च) कौन-सी संस्था लोकतांत्रित ढंग से निर्वाचित प्रतिनिधियों की भागीदारी का सुनिश्चित कर सकती है?

(राज्य विधान सभा/जिला परिषद/ग्राम सभा)

उत्तर: ग्राम सभा।

पाठांत प्रश्न

1. शहरी स्थानीय शासन क्या है?

उत्तर: शहरी स्थानीय शासन वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत कस्बों और शहरों में नगरपालिकाएं और नगर निगम जैसी स्थानीय संस्थाएं नागरिकों को आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। ये संस्थाएं शहरी क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति, जल निकासी, कूड़ा प्रबंधन, जन स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, सड़क निर्माण एवं रख-रखाव तथा सफाई जैसी मूलभूत सेवाओं का प्रशासन करती हैं।

लोकतांत्रिक ढांचे के तहत नगरपालिकाओं को कर लगाने और वसूलने, भवन और सड़क निर्माण को नियमित करने तथा नारी–बाल विकास और झुग्गी बस्तियों के विकास जैसे कार्य करने का अधिकार होता है। इस प्रकार शहरी स्थानीय शासन शहरों के विकास और जन सुविधाओं के प्रबंधन में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करता है।

2. 74वें संविधान संशोधन के द्वारा लागू किए गए मुख्य सुधार क्या हैं?

उत्तर: 74वें संविधान संशोधन एक्ट, 1992 ने शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने तथा उनकी कार्यप्रणाली को वैधानिक रूप देने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए।

इसके मुख्य सुधार इस प्रकार हैं—

अनिवार्य सुधार (सभी राज्यों के लिए आवश्यक):

(i) शहरी क्षेत्रों की श्रेणी के अनुसार नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम का गठन।

(ii) SC/ST के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण।

(iii) महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों का आरक्षण।

(iv) राज्य चुनाव आयोग द्वारा सभी शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव कराना।

(v) शहरी स्थानीय निकायों के वित्तीय मामलों के लिए राज्य वित्त आयोग की व्यवस्था।

(vi) निकायों का पाँच वर्ष का निश्चित कार्यकाल, तथा भंग होने पर 6 महीने के भीतर नए चुनाव।

ऐच्छिक (वैकल्पिक) सुधार:

(i) संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्यों को स्थानीय निकायों में मताधिकार देना।

(ii) पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देना।

(iii) कर, शुल्क और फीस संबंधी वित्तीय शक्तियाँ प्रदान करना।

(iv) नगरीय स्वशासन संस्थाओं को अधिक स्वायत्त बनाना, तथा 12वीं अनुसूची के कार्यों तथा विकास योजनाओं के अधिकार उन्हें देना।

3. शहरी स्थानीय निकायों के प्रमुख कार्य लिखिए।

उत्तर: शहरी स्थानीय निकाय जैसे– नगर निगम और नगर पालिकाएँ दो भागों में काम करती हैं- (क) विचारक भाग और (ख) कार्यकारी भाग। इन दोनों के माध्यम से वे शहर के विकास और नागरिक सुविधाओं का प्रबंधन करती हैं।

इनके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं—

(क) विचारक (निर्वाचित) भाग के कार्य:

(i) नगर की नीतियाँ बनाना और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा-विमर्श करना।

(ii) नगर बजट पारित करना तथा टैक्स लगाने और संसाधन जुटाने संबंधी निर्णय लेना।

(iii) सेवाओं की दरें तय करना और प्रशासन के कार्यों की समीक्षा करना।

(iv) प्रशासन को उत्तरदायी बनाना, जैसे जल आपूर्ति खराब होने या रोग फैलने पर सुधार की मांग करना।

(ख) कार्यकारी (प्रशासनिक) भाग के कार्य:

(i) निगम आयुक्त/कार्यकारी अधिकारी द्वारा पूरे प्रशासन की देखरेख।

(ii) अभियंता, स्वास्थ्य अधिकारी, वित्तीय अधिकारी आदि विभागों का संचालन।

(ग) अनिवार्य (Mandatory) कार्य: ये वे कार्य हैं जिन्हें करना नगर निकायों के लिए आवश्यक है—

(i) जल आपूर्ति।

(ii) सड़क व गलियों में प्रकाश व्यवस्था।

(iii) जल निकासी और सीवर प्रबंधन।

(iv) कूड़ा संग्रह और निपटान।

(v) संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण।

(vi) टीकाकरण, प्रसूति केंद्र, अस्पताल और दवाखानों की देखभाल।

(vii) खाद्य सामग्री की जांच (मिलावट रोकना)।

(viii) गंदी बस्तियों का सुधार/हटाना।

(ix) श्मशान और कब्रिस्तान की देखभाल।

(x) बिजली की आपूर्ति।

(xi) नगर योजना (Town Planning)।

(घ) ऐच्छिक (Optional) कार्य: ये कार्य कोष उपलब्ध होने पर किए जाते हैं—

(i) उद्धार गृह और अनाथालय चलाना।

(ii) कम आय वर्ग के लिए घर बनाना।

(iii) इलाज की अतिरिक्त सुविधाएं प्रदान करना।

(iv) सार्वजनिक कार्यक्रम/अभिनंदन समारोह आयोजित करना।

(ङ) बड़े नगर निगमों के अतिरिक्त कार्य: दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद आदि नगर निगम—

(i) सार्वजनिक परिवहन।

(ii) पार्क, खुले स्थल, चिड़ियाघर।

(iii) दूध एवं बिजली आपूर्ति जैसे बड़े कार्य भी करते हैं।

4. शहरी स्थानीय निकायों की आय के महत्वपूर्ण स्रोतों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: शहरी स्थानीय निकाय अपनी गतिविधियों और नागरिक सेवाओं को संचालित करने के लिए कई प्रकार के वित्तीय संसाधनों पर निर्भर करते हैं। इनका सबसे प्रमुख स्रोत कर होते हैं। नगर निगम और नगरपालिकाएँ संपत्ति पर लगाए जाने वाले सम्पत्ति कर से सर्वाधिक आय प्राप्त करती हैं, जो इनकी आय का मुख्य आधार माना जाता है। इसके अतिरिक्त वे विज्ञापन कर, व्यवसायिक कर, जल कर, सीवर कर, अग्नि कर, वाहन एवं पशु कर, थिएटर कर, संपत्ति के स्थानांतरण पर कर तथा शहर में लाई गई वस्तुओं पर चुंगी कर भी वसूल करती हैं। कई पश्चिम भारतीय नगरों में चुंगी अभी भी एक महत्वपूर्ण आय का माध्यम है, यद्यपि अब इसे समाप्त करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है क्योंकि यह यातायात को प्रभावित करती है।

करों के अलावा शहरी निकायों का एक अन्य प्रमुख स्रोत शुल्क और जुर्माने हैं। नगरपालिकाएँ तहबाजारी शुल्क (फुटपाथ या चबूतरे पर व्यापार के लिए), साइकिल और रिक्शा के लाइसेंस शुल्क, नगरपालिका की दुकानों और बाजारों का किराया तथा नगरपालिका के नियमों का उल्लंघन करने वालों से वसूले जाने वाले जुर्माने से भी आय प्राप्त करती हैं। इसी तरह नगर पालिका के पास मौजूद संपत्तियाँ जैसे— भूमि, तालाब, बाजार, दुकानें, विश्राम गृह आदि भी उसकी आय में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। इनसे होने वाली आय को नगर पालिका के उद्यमों की आय माना जाता है।

इसके अतिरिक्त, शहरी स्थानीय निकायों को राज्य सरकार से अनुदान भी प्राप्त होता है। ये अनुदान कभी–कभी तदर्थ आधार पर दिए जाते हैं, लेकिन कई बार राज्य सरकार कुछ निश्चित सिद्धांतों के आधार पर अनुदान देती है, जैसे— नगर की जनसंख्या, गंदी बस्तियों की संख्या, नगर की आर्थिक स्थिति, संसाधनों की कमी आदि। इन अनुदानों का उद्देश्य नगर निकायों की राजस्व स्थिति को मजबूत करना और उन्हें अपने अनिवार्य तथा ऐच्छिक कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सहायता प्रदान करना है।

5. पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढांचे का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर: (i) ग्राम स्तर पर पंचायत: यह पंचायती राज का आधार अथवा आधारभूत स्तर है। किसी एक गांव अथवा गांवों के समूह के लिए पंचायत में (क) ग्राम सभा, (प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रतीक) और (ख) ग्राम पंचायत होती हैं।

(a) ग्राम सभा: प्रत्यक्ष लोकतंत्र की संस्था ग्राम सभा को मान्यता देना, 73वें संशोधन की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। गांवों के सभी वयस्क निवासी ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। अतः देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की यह अकेली संस्था है।

सामान्यतः ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठकें/सभाएं होती हैं। इन सभाओं में ग्राम सभा लोगों की आम सभा होने के नाते पंचायतों की वार्षिक आय-व्यय का व्यौरा, लेखा निरीक्षण अथवा पंचायतों की प्रशासनिक रिपोर्ट को सुनती है। यह पंचायतों द्वारा लिए जाने वाली नई विकासात्मक परियोजनाओं को भी स्वीकृति प्रदान करती है। यह गांव के गरीब लोगों की पहचान करने में भी सहायता प्रदान करती है ताकि उन्हें आर्थिक सहायता दी जा सके।

(b) ग्राम पंचायत: देश में पंचायती राज का निचला स्तर ग्राम स्तरीय पंचायत है। अधिकांश राज्यों में इसे ग्राम पंचायत के रूप में जाना जाता है। ग्राम पंचायत के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या को गांव की जनसंख्या के आधार पर निश्चित किया जाता है। अतः यह प्रत्येक गांव के लिए भिन्न-भिन्न होती है। एकल सदस्य चुनाव क्षेत्र के आधार पर चुनाव करवाए जाते हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि कुल सीटों की संख्या का एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित है और कुछ अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए जिनमें एक तिहाई अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाओं के लिए है।

अलग-अलग राज्यों में ग्राम पंचायतों के अध्यक्ष को अलग-अलग नाम से जैसे सरपंच, प्रधान अथवा मुखिया पुकारा जाता है। एक उपाध्यक्ष भी होता है। दोनों को पंचायत के सदस्य चुनते हैं। ग्राम पंचायतें साधारणतया महीने में एक बार अपनी बैठक करती हैं। पंचायतें सभी स्तरों पर अपना काम चलाने के लिए समितियां गठित करती हैं।

(ii) पंचायत समितिः पंचायती राज का दूसरा अथवा मध्यम स्तर पंचायत समिति है जो ग्गाम पंचायत और जिला परिषद के बीच की कड़ी है। पंचायत समिति की सदस्य संख्या भी समिति क्षेत्र की जनसंख्या पर निर्भर करती है। पंचायत समिति में कुछ सदस्य सीधे निर्वाचित होते हैं। ग्राम पंचायतों के अध्यक्ष पंचायत समिति के पदेन सदस्य होते हैं। परंतु सभी पंचायतों के अध्यक्ष एक ही समय पर पंचायत समिति के सदस्य नहीं होते। इसका अर्थ यह है कि एक समय पर कुछ ही ग्राम पंचायतों के अध्यक्ष इसके सदस्य होते हैं। कुछ पंचायतों में क्षेत्र से संबंधित विधायकों, विधान परिषद के सदस्यों और सांसदों को भी समिति के सदस्य के रूप में शामिल किया जाता है। पंचायत समिति के अध्यक्ष को प्रायः प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता है।

(iii) जिला परिषद: जिला स्तर पर जिला परिषद पंचायती राज का सबसे उच्च स्तर है। इस संस्था के अलग कुछ सदस्य प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाते हैं जिनकी संख्या एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग होती है क्योंकि यह भी जनसंख्या पर आधारित है। पंचायत समितियों के अध्यक्ष जिला परिषद के पदेन सदस्य होते हैं। जिला से संबंध रखने वाले सांसद, विधान सभा और विधान परिषद के सदस्यों को भी जिला परिषद का सदस्य नामांकित किया जाता है।

जिला परिषद के चैयरपर्सन, जिसे अध्यक्ष कहा जाता है, को प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता है। वाईस चैयरमैन या उपाध्यक्ष को भी इसी प्रकार चुना जाता है। जिला परिषद की मीटिंग मास में एक बार की जाती है। विशेष मामलों पर चर्चा के लिए विशेष बैठकें की जा सकती हैं।

6. भारत के संविधान के 73वें संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की संक्षेप में चर्चा कीजिए।

उत्तर: भारत के संविधान के 73वें संशोधन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं—

नये कानून की कुछ अनिवार्य आवश्यकताएं हैं:

(i) ग्राम सभाओं का गठन।

(ii) जिला, ब्लॉक और ग्राम स्तरों पर पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढांचे की रचना।

(iii) सभी स्तरों पर लगभग सभी पदों को सीधे चुनाव द्वारा भरना।

(iv) पंचायती राज संस्थाओं के लिए चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष करना।

(v) जिला और ब्लॉक स्तर पर अध्यक्ष (चैयरमैन) पद को अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरना।

(vi) पंचायतों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण करना और पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना।

(vii) प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव करवाने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग का गठन करना।

(viii) पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष है; यदि अवधि पूरी होने से पहले वे भंग हों तो नए चुनाव छह मास के भीतर करवाना। और

(ix) प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का प्रत्येक 5 वर्ष में गठन करना।

कुछ ऐसे प्रावधान जो बाध्यकारी नहीं है, परंतु केवल मार्गदर्शक हैं:

(i) केन्द्रीय और राज्य विधायिकाओं को इन संस्थाओं में मत देने का अधिकार देना।

(ii) पिछड़े वर्ग को आरक्षण प्रदान करना।

(iii) पंचायती राज संस्थाओं को टैक्स और शुल्क लगाने के संबंध में वित्तीय शक्तियां दी जानी चाहिए और पंचायती राज संस्थाओं को स्वायत निकाय बनाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।

7. बलवंत राय मेहता कमेटी की सिफारिशों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर: बलवंत राय मेहता कमेटी की सिफारिशों का विश्लेषण नीचे किया गया है—

(i) त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की सिफारिश: कमेटी ने ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को मजबूत करने के लिए पंचायती राज की तीन-स्तरीय संरचना का प्रस्ताव दिया—

  • जिला स्तर पर जिला परिषद।
  • ब्लॉक/मध्यवर्ती स्तर पर ब्लॉक समिति (पंचायत समिति)।
  • गांव स्तर पर ग्राम पंचायत।

(ii) पंचायत समिति को मुख्य इकाई मानना: कमेटी ने तीनों संस्थाओं में से सबसे अधिक महत्व पंचायत समिति को दिया। वह प्रशासनिक और विकास कार्यों का मुख्य केंद्र होनी चाहिए।

(iii) तीनों स्तरों का परस्पर संबंध: प्रत्येक निचले स्तर की संस्था को ऊपरी संस्था में अध्यक्ष के माध्यम से प्रतिनिधित्व मिले, ताकि तीनों इकाइयों में तालमेल और समन्वय बना रहे।

(iv) पर्याप्त शक्तियों और संसाधनों की आवश्यकता: कमेटी ने कहा कि पंचायतों को वास्तविक रूप से प्रभावी बनाने के लिए उन्हें पर्याप्त अधिकार व आर्थिक संसाधन दिए जाने चाहिए।

(v) राजस्थान में पहला प्रयोग: 1959 में सबसे पहले राजस्थान ने इस मॉडल को लागू किया, और बाद में अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाया।

8. लोकतंत्र की आधारभूत संस्थाओं के रूप में पंचायतों की कार्य प्रणाली का मूल्याकंन कीजिए।

उत्तर: पंचायतों के मूल्यांकन को निम्न बिंदुओं में स्पष्ट किया जा सकता है—

(i) तृणमूल लोकतंत्र का पूर्ण विकास नहीं हो पाया: पंचायतों से अपेक्षित स्तर पर लोकतांत्रिक शासन नहीं उभर पाया। राजनीतिकरण, अपराधियों का प्रवेश, भ्रष्टाचार और जातीय-वर्गीय विभाजन जैसी समस्याओं ने इनके कामकाज को कमजोर किया।

(ii) सामाजिक समूहों का सशक्तिकरण सीमित: 73वें संविधान संशोधन द्वारा SC, ST, OBC और महिलाओं के लिए आरक्षण दिया गया, लेकिन शिक्षा, प्रशिक्षण और आर्थिक क्षमता की कमी के कारण ये समूह पूरी तरह अपनी शक्ति नहीं दिखा पाए।

(iii) महिलाओं की आंशिक प्रगति: कई मामलों में पुरुषों द्वारा महिलाओं की सीटों का दुरुपयोग हुआ, फिर भी महिलाओं में जागरूकता और भागीदारी बढ़ी है— यह एक सकारात्मक परिवर्तन है।

(iv) वित्तीय संसाधनों की कमी: यद्यपि संशोधनों ने पंचायतों के वित्तीय अधिकार बढ़ाए हैं, लेकिन वास्तविकता में ये पर्याप्त कर संग्रह नहीं कर पातीं। संसाधनों की कमी के कारण पंचायतें विकास कार्यों को प्रभावी रूप से नहीं कर पातीं।

(v) राज्य सरकार का अत्यधिक नियंत्रण: राज्य सरकारें पंचायतों के प्रस्ताव रद्द कर सकती हैं और उन्हें भंग भी कर सकती हैं। यह उनकी स्वायत्तता को सीमित करता है। हालांकि 73वें संशोधन ने 6 माह के भीतर चुनाव करवाना अनिवार्य किया है।

(vi) ग्राम सभा का महत्व और सीमाएँ: ग्राम सभा लोकतांत्रिक भागीदारी और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकती है, लेकिन इसके अधिकार और सक्रियता अभी भी पर्याप्त नहीं है।

(vii) सशक्त पंचायतों की आवश्यकता: ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास मजबूत पंचायतों पर निर्भर करता है। प्रशासनिक-वित्तीय शक्तियों में वृद्धि और लोगों की सक्रिय भागीदारी से ही पंचायतें लोकतंत्र की मजबूत नींव बन सकती हैं।

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