NIOS Class 12 Political Science Chapter 15 उच्च न्यायालय और अधीनस्त न्यायालय

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Chapter: 15

मॉड्यूल – 3 सरकार की संरचना

पाठगत प्रश्न 15.1

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) वर्तमान में भारत में कुल ________________ उच्च न्यायालय हैं। (18, 20, 21)

उत्तर: वर्तमान में भारत में कुल 21 उच्च न्यायालय हैं।

(ख) केन्द्रीय शासित प्रदेश ________________ का अपना अलग उच्च न्यायालय है। (चंडीगढ़, दमन और द्वीप, दिल्ली)

उत्तर: केन्द्रीय शासित प्रदेश दिल्ली का अपना अलग उच्च न्यायालय है।

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(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति ________________ करता है। (राज्यपाल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री)

उत्तर: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

(घ) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु _______________ वर्ष है। (60, 62, 65)

उत्तर: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष है।

पाठगत प्रश्न 15.2

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) यद्यपि _________________ एक राज्य नहीं हैं, परन्तु इसका एक उच्च न्यायालय है।

उत्तर: यद्यपि दिल्ली एक राज्य नहीं हैं, परन्तु इसका एक उच्च न्यायालय है।

(ख) उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना किस सजा को अधीनस्थ न्यायालय लागू नहीं कर सकता?

उत्तर: उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना मृत्युदंड सजा को अधीनस्थ न्यायालय लागू नहीं कर सकता।

पाठगत प्रश्न 15.3

(क) जिले के सर्वोच्च सिविल न्यायालय का नाम बताईये।

उत्तर: जिले के सर्वोच्च सिविल न्यायालय का नाम है— जिला न्यायाधीश का न्यायालय (जिला न्यायालय)।

(ख) जिले में सबसे बड़ा फौजदारी न्यायालय कौन-सा होता है?

उत्तर: जिले में सबसे बड़ा फौजदारी न्यायालय राज्यीय न्यायाधीश का न्यायालय (सेशन कोर्ट) होता है।

(ग) रिक्त स्थान भरिए-

(i) ________________ न्यायालय के फैसलों के विरुद्ध कहीं भी अपील नहीं की जा सकती।

उत्तर: सूक्ष्म मामले संबंधित न्यायालय के फैसलों के विरुद्ध कहीं भी अपील नहीं की जा सकती।

(ii) राज्य में राजस्व संबंधी सबसे बड़ा न्यायालय _________________ है।

उत्तर: राज्य में राजस्व संबंधी सबसे बड़ा न्यायालय राजस्व बोर्ड है।

पाठांत प्रश्न

1. उच्च न्यायालय की संरचना का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: उच्च न्यायालय की संरचना निम्न प्रकार है—

(i) प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होता है, परन्तु दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त उच्च न्यायालय भी बनाया जा सकता है।

उदाहरण—

(क) पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के लिए चंडीगढ़ में एक ही उच्च न्यायालय है।

(ख) गुवाहाटी उच्च न्यायालय सात उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए कार्य करता है।

(ii) कुछ केन्द्र शासित प्रदेशों, जैसे दिल्ली, का भी अपना अलग उच्च न्यायालय होता है।

(iii) उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश होते हैं। 

(क) न्यायाधीशों की संख्या प्रत्येक राज्य में भिन्न-भिन्न होती है। 

(ख) न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है।

(iv) नियुक्ति प्रक्रिया: मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल की सलाह से की जाती है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल से सलाह लेता है।

(v) न्यायाधीशों का स्थानांतरण भी राष्ट्रपति कर सकता है, परंतु इसके लिए उसे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह लेना आवश्यक है।

(vi) वास्तविक चयन प्रक्रिया: 1993 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, न्यायाधीशों का वास्तविक चयन सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों के समूह (कॉलेजियम), जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश करते हैं, द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति इन सिफारिशों को अस्वीकार नहीं कर सकता।

2. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को किस प्रकार हटाया जा सकता है?

उत्तर: उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया इस प्रकार है—

(i) न्यायाधीश को 62 वर्ष की आयु से पहले भी हटाया जा सकता है, यदि— वह असक्षम पाया जाए या उसका दुर्व्यवहार सिद्ध हो जाए।

(ii) न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद में विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है— लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को अलग-अलग अपनी कुल सदस्य संख्या के पूर्ण बहुमत से तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से एक हटाने का प्रस्ताव (इम्पीचमेंट जैसा प्रक्रिया) पारित करना पड़ता है।

(iii) जब यह प्रस्ताव दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है, तो— प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा जाता है और राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा देता है।

(iv) यह प्रक्रिया लगभग वही है जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के लिए अपनाई जाती है।

3. उच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए।

उत्तर: उच्च न्यायालय का प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार सीमित होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उच्च न्यायालय मूल अधिकारों के हनन से संबंधित मामलों की सीधे सुनवाई कर सकता है और इन अधिकारों को पुनः लागू करने के लिए रिट जारी कर सकता है। जनहित याचिकाएँ भी उच्च न्यायालय में दायर की जा सकती हैं, जब राज्य या किसी अन्य द्वारा लोगों के मूल अधिकारों की उपेक्षा की जा रही हो। संविधान ने उच्च न्यायालय को ऐसे आदेश देने की शक्ति दी है जो राज्य सरकार के अधिकारियों और पदाधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश के रूप में बाध्यकारी होते हैं।

इसके अंतर्गत उच्च न्यायालय सांसद या विधायक के चुनाव के विरुद्ध दायर याचिकाओं को भी सुनता है और यदि यह सिद्ध हो जाए कि चुनाव भ्रष्ट तरीके से जीता गया है, तो वह उसे रद्द कर सकता है। राज्य के सभी निम्न स्तरीय न्यायालय उच्च न्यायालय के नियंत्रण और निर्देशों के अधीन कार्य करते हैं।

सिविल मामलों में भी उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार महत्वपूर्ण है, विशेषकर वे मामले जिनकी अनुमानित राशि पाँच लाख रुपये से अधिक हो। पेटेंट और डिज़ाइन, उत्तराधिकार, भूमि अधिग्रहण तथा अभिभावकता से जुड़े मामलों की अपीलें भी उच्च न्यायालय में सुनी जाती हैं। आपराधिक मामलों में सेशन कोर्ट के फैसलों के विरुद्ध अपील की सुनवाई उच्च न्यायालय करता है। वह सजा को स्वीकार, बदल या समाप्त कर सकता है। यदि सेशन कोर्ट द्वारा मृत्यु-दंड दिया जाता है, तो उसे लागू करने से पहले उच्च न्यायालय से उसकी अनिवार्य पुष्टि ली जाती है, चाहे अभियुक्त ने अपील की हो या नहीं। इस प्रकार उच्च न्यायालय का प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था की निगरानी में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

4. उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: उच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार वह अधिकार है जिसके अंतर्गत वह निम्न स्तरीय (जिला या सेशन) न्यायालयों के फैसलों के विरुद्ध दायर अपीलों की सुनवाई करता है।

यह अधिकार इस प्रकार है—

(i) सिविल मामलों में अपील: उच्च न्यायालय उन सिविल मामलों की अपीलें सुनता है जिनकी अनुमानित राशि 5 लाख रुपये से अधिक होती है। जिला स्तर के न्यायालय के फैसले से असहमत कोई भी पक्ष उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। साथ ही पेटेंट और डिजाइन, उत्तराधिकार, भूमि-अधिग्रहण, तथा अभिभावकता से जुड़े मामलों की अपील भी उच्च न्यायालय में की जाती है।

(ii) आपराधिक मामलों में अपील: उच्च न्यायालय सेशन कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों और सजाओं के विरुद्ध अपील की सुनवाई करता है। यदि सेशन कोर्ट में कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो वह उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। कभी-कभी राज्य सरकार भी सजा बढ़ाने हेतु अपील कर सकती है। उच्च न्यायालय सेशन कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर सकता है, सजा बदल सकता है या आरोपी को मुक्त भी कर सकता है।

(iii) फांसी की सजा की पुष्टि: यदि सेशन कोर्ट किसी दोषी को फांसी की सजा देता है, तो उसे लागू करने से पहले उच्च न्यायालय द्वारा उसकी पुष्टि आवश्यक होती है। दोषी अपील न करे, तब भी राज्य सरकार ऐसे मामले को पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय भेजती है।

5. किसी जिले में निचली अदालतों का गठन किस प्रकार होता है।

उत्तर: किसी जिले में निचली अदालतों का गठन मुख्य रूप से न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया के माध्यम से होता है। अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति उस राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है, जो राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर नियुक्ति करते हैं।

आजकल अधिकांश राज्यों में निचली अदालतों के न्यायिक अधिकारियों का चयन राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से किया जाता है। इन परीक्षाओं में सफल होने के बाद उम्मीदवारों को राज्यपाल द्वारा अंतिम रूप से नियुक्त किया जाता है।

इसके अतिरिक्त, जो व्यक्ति कम से कम 7 वर्षों तक वकालत कर चुका हो या राज्य अथवा केंद्र सरकार में कार्यरत रहा हो, और आवश्यक न्यायिक योग्यता रखता हो, वह जिला न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए पात्र होता है।

6. किसी जिले में दीवानी न्यायालय किस प्रकार फौजदारी न्यायालयों से शक्तियों और कार्य प्रणाली में भिन्न हैं?

उत्तर: किसी जिले में दीवानी (सिविल) न्यायालय और फौजदारी (क्रिमिनल) न्यायालय अपने कार्यों और शक्तियों दोनों में एक-दूसरे से स्पष्ट रूप से अलग होते हैं—

विषयदीवानी न्यायालयफौजदारी न्यायालय
मामलों की प्रकृति में अंतरयह न्यायालय दिवानी विवादों की सुनवाई करता है, जैसे— संपत्ति विवाद, पारिवारिक विवाद, तलाक, अभिभावकता, छोटी राशि के दावे आदि।यह अपराधों से संबंधित मामलों की सुनवाई करता है, जैसे— चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या, जेबकतरी, शारीरिक चोट आदि।
सर्वोच्च न्यायालय का भिन्न स्वरूपजिले का सर्वोच्च अदालत जिला जज न्यायालय होता है।जिले में सर्वोच्च फौजदारी अदालत सेशन जज का न्यायालय होता है।
न्यायालय की संरचनादीवानी न्यायालयों के नीचे उप-न्यायाधीश, मुसिफ न्यायालय, पारिवारिक न्यायालय, सूक्ष्म मामलों के न्यायालय आदि आते हैं।फौजदारी न्यायालयों के नीचे प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी मजिस्ट्रेटों की अदालतें और महानगरों में मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट होते हैं।
दी जाने वाली सज़ाएँ/निर्णयसंपत्ति, धनराशि, अभिभावकता आदि मामलों पर दिवानी निर्णय देता है। इसमें सजा नहीं बल्कि अधिकारों से जुड़े फैसले होते हैं।दोषी पाए जाने पर जुर्माना, कैद, या मृत्युदंड जैसी सज़ाएँ दे सकता है।
मुकदमे की प्रक्रियापक्षकार स्वयं मुकदमा दायर करते हैं।पुलिस अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है। मजिस्ट्रेट छोटे मामलों का निपटारा करता है और गंभीर मामलों को सेशन कोर्ट भेजता है।
विशेष प्रावधानसूक्ष्म मामलों की अदालतों के निर्णयों पर अपील नहीं की जा सकती।सेशन कोर्ट द्वारा दिए गए मृत्युदंड को उच्च न्यायालय की पुष्टि के बिना लागू नहीं किया जा सकता।

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