NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 7 बारहमासा

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NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 7 बारहमासा

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Chapter: 7

अंतरा काव्य खंड
प्रश्न-अभ्यास

1. अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: अगहन मास में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें बड़ी हो जाती हैं। विरहिणी नायिका के लिए ये लंबी रातें काटनी अत्यंत दुःखदायी होती हैं। रात में उसे रह-रहकर प्रिय की याद सताती है। वह घर में अकेली होती है। अतः यह स्थिति उसे वियोग के चरम तक ले जाती है। वह तो विरहागिन में दीपक की बत्ती के समान जलती रहती है। उसकी स्थिति ऐसे ही है जैसे दीपक की बाती। दीपक की बाती पूरी रात जलती रहती है। नागमती भी वैसी ही विरहाग्नि में जल रही है। अगहन मास की ठंड जमाने वाली होती है। नागमती के हृदय को तो यह ठंड कंपा रही है। वह सोचती है कि यदि उसके पति उसके साथ होते, तो वह इस ठंड को भी झेल जाती। इस मास में शीत से बचने के लिए जगह-जगह आग जलाई जा रही है, पर विरहिणियों को तो विरह की आग ज़ला रही है। जब वह अन्य स्त्रियों को सं-बिंगे वस्त्रों में सजी-धजी देखती है तब उसकी व्यथा और भी बढ़ जाती है। उसके पति परदेश को गए हैं। अतः वह किसके लिए यह बनाव-श्रृंगार करे।

2. ‘जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा’ पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: नागमती (नायिका) विरह को बाज के समान बताती है। नागमति का पति परदेश गया हुआ है। पति की अनुपस्थिति उसे भयंकर लगती है। वह पति के वियोग में जल रही है। नायिका विरह-दशा को झेलते-झेलते तंग आ चुकी है। अब इसे सहना कठिन हो गया है। जिस तरह बाज़ अपने शिकार को नोच-नोचकर खा जाता है, वैसे ही विरह रूपी बाज़ नागमती को जीवित नोच-नोचकर खा रहा है। यह विरह रूपी बाज भी नायिका के शरीर पर नजर गढ़ाए हुए है। वह उसे जीते-जी खा रहा है। जब तक यह बाज़ उसे पूर्ण रूप से खा नहीं लेगा, तब तक वह उसका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। इस विरह के कारण नायिका के शरीर का सारा रक्त बहता चला जा रहा है। उसका सारा मांस गल चुका है और हड्डुयाँ शंख के समान सफेद दिखाई देने लगी हैं।

3. माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?

उत्तर: माघ के महीने में ठंड अपने विकराल रूप में विद्यमान होती है। चारों और पाला अर्थात कोहरा छाने लगता है। माघ महीने में विरहिणी को विरह की पीड़ा मौत के समान होती है। इस स्थिति में विरहिणी को लगता है कि प्रियतम के वियोग में वह इन शीतल और तेज़ हवा के झोंकों का सामना नहीं कर पाएगी। उसकी पीली पड़ी देह भी उसी प्रकार से विरह के झोंकों से नष्ट हो जाएगी, जैसे तेज़ हवा से वृक्षों के पीले पत्ते झड़ जाते हैं। माघ मास में वर्षा भी होती है। वर्षा के कारण नायिका के कपड़े गीले हो जाते हैं और वे बाण के समान चुभते हैं। विरह में वह सूखकर तिनके की भाँति हो गई है। विरह उसे जलाकर राख बनाकर उड़ा देने पर तुला प्रतीत होता है।

4. वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?

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उत्तर: वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें फागुन मास में गिरते हैं। विरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुख देने वाला है। चारों ओर गिरती पत्तियाँ उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही हैं। उसकी आशाएँ भी पत्तों के समान झड़ती चली जा रही हैं। पत्तों का पीला रंग उसके शरीर की स्थिति को दर्शा रहा है। विरहिणी शरीर भी पत्ते के समान पीला पड़ता जा रहा है। अतः फागुन मास उसे दुख को शांत करने के स्थान पर बड़ा ही रहा है। फागुन मास के अंत में वृक्षों पर तो नए पत्ते और फूल आ जाएँगे पर उस विरहिणी के जीवन में खुशियाँ कब लौट पाएँगी, यह अनिश्चित है।

5. निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए–

(क) पिय सीं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग।

सो धनि विरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।

उत्तर: दुखी नागमती भौरों और कौओं से निवेदन कर रही है कि वे उसके प्रियतम के पास संदेश लेकर जाएँ। वह चाहती है कि वे उसके विरह के गहन दुख को उसके प्रियतम तक पहुँचाएँ। नागमती कह रही है कि तुम दोनों वहाँ जाकर उसे बताओ कि उसकी पत्नी इस विरह की अग्नि में जलते-जलते मर रही है। इस अग्नि से उठने वाले काले धुएँ के कारण उसका रंग भी पूरी तरह काला पड़ गया है। प्रियतम को उसकी इस पीड़ा का एहसास होना चाहिए, ताकि वे उसकी स्थिति को समझ सकें।

(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।

धनि सारस होड़ ररि मुई, आइ समेटहु पंख।।

उत्तर: नागमती अपने प्रियतम को अपने विरह की स्थिति का वर्णन करते हुए कहती हैं, “हे प्रियतम! तुमसे अलग होने के बाद मेरी हालत बहुत दयनीय हो गई है। तुम्हारे वियोग में मैंने इतना रोया है कि मेरी आँखों से आँसू के रूप में सारा रक्त बह चुका है। इस पीड़ा से मेरा सारा माँस गल गया है और मेरी हड्डियाँ शंख के समान श्वेत हो गई हैं। तुम्हारा नाम लेते-लेते मैं सारसों की जोड़ी की तरह तड़प-तड़प कर मर गई हूँ। अब मैं मृत्यु के निकट हूँ। कृपया शीघ्र आकर मेरे पंखों को समेट लो।”

(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।

तेहि पर बिरह जराई कै, चहै उड़ावा झोल।।

उत्तर: नागमती कहती हैं, “हे प्रियतम! तुम्हारे वियोग में मैं धीरे-धीरे सूखती जा रही हूँ। मेरी स्थिति अब तिनके के समान हो गई है, अर्थात मैं अत्यंत कमज़ोर हो चुकी हूँ। इतनी दुर्बल हो गई हूँ कि मेरा शरीर वृक्ष की तरह हिलने लगता है, जैसे हवा के हल्के झोंके से वृक्ष हिलता है। इस अवस्था में भी यह विरह की अग्नि मुझे पूरी तरह से राख बनाने को व्यग्र है और मेरी तन की राख को भी उड़ा रही है।”

(घ) यह तन जारों छार कै, कहाँ कि पवन उड़ाड।

मक् तेहि मारग होइ परों, कंत धेरै जहें पाउ।

उत्तर: नागमती अपने मन के दुख को व्यक्त करते हुए कहती हैं, “मैं अपने तन को विरह की अग्नि में जलाकर भस्म कर देना चाहती हूँ, ताकि मेरा शरीर राख का रूप धारण कर ले। फिर पवन उस राख को उड़ाकर मेरे प्रियतम के रास्ते में बिखेर देगी। इस प्रकार मार्ग में चलते हुए, मैं अपने प्रियतम को राख के रूप में स्पर्श कर सकूँगी।”

6. प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: पहला पद– यह दुःख दगध न जानै कंतू। जोबन जरम करै भसमंतू।

प्रस्तुत पद की भाषा अवधी है। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। इसमें ‘दुःख दगध’ तथा ‘जोबर जर’ में अनुप्रास अलंकार है। वियोग से उत्पन्न विरह को बहुत मार्मिक रूप में वर्णन किया गया है। विरहणि के दुख की तीव्रता पूरे पद में दिखाई देती है।

दूभर दुख – अनुप्रास अलंकार

किमि काढ़ी – अनुप्रास अलंकार

घर-घर – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

‘जिय जारा’ में अनुप्रास अलंकार है। (‘ज’ वर्ण की आवृत्ति)

‘सुलगि सुलगि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

‘जरै बिरह ज्यौं दीपक बाती ‘ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

दूसरा पद– बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि-कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ।

प्रस्तुत पद की भाषा अवधी है। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया गया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। ‘बिरह बाढ़ि’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कँपि-कँपि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। पूस के माह में ठंड की मार का सजीव वर्णन किया गया है।

बिरह सैचान (विरह रूपी बाज) – रूपक अलंकार (विरह को बाज के रूप में दर्शाया गया है।)

‘रकत ‘संख’ में अतिशयोक्ति अलंकार है। (वियोग की पीड़ा का बढ़-चढ़कर वर्णन है।)

‘सौर सुपेती,’ ‘बासर बिरह’ में अनुप्रास अलंकार है।

कंत कहाँ – अनुप्रास अलंकार

‘कॅपि काँप’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

योग्यता-विस्तार

1. किसी अन्य कवि द्वारा रचित विरह वर्णन की दो कविताएँ चुनकर लिखिए और अपने अध्यापक को दिखाइए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

2. ‘नागमती वियोग खंड’ पूरा पढ़िए और जायसी के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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