NCERT Class 10 Social Science Loktantrik Rajniti Chapter 3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

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NCERT Class 10 Social Science Loktantrik Rajniti Chapter 3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

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Chapter: 3

लोकतांत्रिक राजनीति-१

1. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का ज़िक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमज़ोर स्थिति में होती हैं।

उत्तर: हमारे देश में आज़ादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन वे अभी भी पुरुषों से काफी पीछे हैं। हमारा समाज अब भी पितृसत्तात्मक है और औरतों के साथ कई प्रकार के भेदभाव होते हैं। महिलाओं में साक्षरता दर अब भी केवल 54 फीसदी है, जबकि पुरुषों में यह 76 फीसदी है। स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती है। आज भी माता-पिता अपने संसाधनों को लड़कों और लड़कियों पर समान रूप से खर्च करने की बजाय लड़कों पर अधिक खर्च करना पसंद करते हैं। साक्षरता दर कम होने के कारण ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है। भारत में महिलाएं पुरुषों से अधिक श्रम करती हैं, लेकिन अक्सर उनके काम को महत्व नहीं दिया जाता।

काम के सभी क्षेत्रों में, चाहे वह खेल-कूद हो, सिनेमा हो, कल-कारखाने हों, या खेत-खलिहान हों, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है, भले ही दोनों ने समान काम किया हो। महिलाओं के उत्पीड़न, शोषण और हिंसा की खबरें हमें हर रोज़ सुनने को मिलती हैं। शहरी इलाकों में विशेष रूप से महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं। वे अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि वहां भी उन्हें घरेलू हिंसा और शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

2. विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण भी दें।

उत्तर: सांप्रदायिकता की सोच अक्सर अपने धार्मिक समुदाय के प्रभुत्व को राजनीति में बनाए रखने की कोशिश करती है। जब यह सोच बहुसंख्यक समुदाय के लोग अपनाते हैं, तो यह बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है। इसका एक उदाहरण श्रीलंका का सिंहलियों का बहुसंख्यकवाद है, जहां लोकतांत्रिक सरकार ने सिंहली समुदाय की प्रभुता बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए। जैसे – 1956 में सिंहली को एकमात्र राजभाषा के रूप में घोषित करना, विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्राथमिकता देना, और बौद्ध धर्म के संरक्षण के लिए विभिन्न उपायों का पालन करना।

सांप्रदायिकता के आधार पर राजनीति गोलबंदी का दूसरा रूप है, जिसमें पवित्र प्रतीकों, धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपील का सहारा लिया जाता है। उदाहरण स्वरूप, चुनावों के दौरान किसी विशेष धर्म के अनुयायियों से किसी पार्टी के पक्ष में मतदान करने की अपील की जाती है।

सांप्रदायिकता का सबसे भयावह रूप तब होता है जब इसके आधार पर हिंसा, दंगे और नरसंहार होते हैं। विभाजन के समय हमने इस त्रासदी का सामना किया था, और आज़ादी के बाद भी कई स्थानों पर सांप्रदायिकता बड़े पैमाने पर फैली थी।

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3. बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानाताएँ जारी हैं।

उत्तर: (i) आर्थिक असमानता: जाति का सबसे महत्वपूर्ण असर आर्थिक संसाधनों तक पहुँच पर है। ऊँची जातियों के लोग आमतौर पर बेहतर आर्थिक स्थिति में होते हैं, जबकि दलितों और आदिवासियों की स्थिति सबसे खराब रहती है। भले ही कुछ बदलाव आए हैं, जैसे कि आज ऊँची और नीची दोनों जातियों में अमीर और गरीब लोग मौजूद हैं, फिर भी जाति और आर्थिक स्थिति का संबंध मजबूत बना हुआ है। उदाहरण के लिए, सरकारी गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले अधिकांश लोग निचली जातियों से आते हैं, जबकि ऊँची जातियों में गरीबी का प्रतिशत बहुत कम है।

(ii) शिक्षा और रोजगार: पहले ‘अछूत’ माने जाने वाले समुदायों को शिक्षा और रोजगार में कोई अवसर नहीं मिलता था। अब हालांकि कुछ सुधार हुआ है, फिर भी जाति आधारित भेदभाव ने उन समुदायों को पूरी तरह से समान अवसर नहीं दिए हैं। उच्च शिक्षा और उच्च पदों पर पहुँचने में आज भी निचली जातियों के लोगों को संघर्ष करना पड़ता है।

(iii) सामाजिक भेदभाव: जातिगत भेदभाव अब भी समाज में गहरे हैं। कई स्थानों पर शादी, दोस्ती और सामाजिक मेलजोल में जाति का ध्यान रखा जाता है। इससे यह साबित होता है कि समाज में जाति आधारित भेदभाव की मानसिकता अभी भी बरकरार है।

(iv) राजनीति: भारतीय राजनीति में भी जाति की भूमिका महत्वपूर्ण है। कुछ राजनीतिक दल खासकर अपने चुनावी लाभ के लिए जातिवाद को बढ़ावा देते हैं। जाति आधारित आरक्षण जैसे उपायों के बावजूद, ये समुदायों में असमानता को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर पाते हैं।

4. दो कारण बताएँ कि क्यों सिर्फ़ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।

उत्तर: भारत में जाति के आधार पर चुनावी नतीजों का निर्धारण केवल दो कारणों से नहीं हो सकता:

(i) देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति का बहुमत नहीं होता। इसलिए हर पार्टी और उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए कई जातियों और समुदायों का समर्थन प्राप्त करना पड़ता है।

(ii) कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट नहीं पा सकती। जब लोग किसी विशेष जाति को किसी पार्टी का वोट बैंक कहते हैं, तो इसका मतलब यह होता है कि उस जाति के अधिकांश लोग उस पार्टी को वोट देते हैं। इस प्रकार, चुनाव में जाति की भूमिका महत्त्वपूर्ण जरूर है, लेकिन अन्य कारक भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। मतदाताओं का झुकाव केवल जाति के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों के प्रति भी होता है।

5. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?

उत्तर: भारत की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 2019 में पहली बार 14.36 प्रतिशत तक पहुँच पाई है, जबकि राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से भी कम है। इस मामले में भारत का स्थान दुनिया के देशों में काफी नीचे है, और वह अफ्रीका और लातिन अमेरिका के कई विकासशील देशों से भी पीछे है। हालांकि, कुछ अवसरों पर महिलाएं प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनी हैं, लेकिन मंत्रिमंडलों में पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है।

इस समस्या को हल करने के लिए एक कदम उठाया गया है, जैसे कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं। इसके परिणामस्वरूप, आज भारत के ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 10 लाख से अधिक है। बावजूद इसके, विधायिकाओं में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत सीमित है और इसके लिए और सुधार की आवश्यकता है।

6. किन्हीं दो प्रावधानों का ज़िक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।

उत्तर: (i) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। 

(ii) अनुच्छेद 15 धर्म के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है।

7. जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है:

(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अंतर।

(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ।

(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।

(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना।

उत्तर: (ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ।

8. भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है:

(क) लोकसभा।

(ख) विधानसभा।

(ग) मंत्रिमंडल।

(घ) पंचायती राज की संस्थाएँ।

उत्तर: (घ) पंचायती राज की संस्थाएँ।

9. सांप्रदायिक राजनीति के अर्थ संबंधी निम्नलिखित कथनों पर गौर करें। सांप्रदायिक राजनीति इस धारणा पर आधारित है कि:

(अ) एक धर्म दूसरों से श्रेष्ठ है।

(ब) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रह सकते हैं।

(स) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।

(द) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम करने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

इनमें से कौन या कौन-कौन सा कथन सही है?

(क) अ, ब, स और द।

(ख) अ, ब और द।

(ग) अ और स।

(घ) ब और द।

उत्तर: (ग) अ और स।

10. भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन सा कथन गलत है?

(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।

(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।

(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आज़ादी देता है।

(घ) एक धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।

उत्तर: (ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।

11. ………….. पर आधारित सामाजिक विभाजन सिर्फ़ भारत में ही है।

उत्तर: जाती।

12. सूची । और सूची II का मेल कराएँ और नीचे दिए गए कोड के आधार पर सही जवाब खोजें।

सूची Iसूची II 
1अधिकारों और अवसरों के मामले में स्त्री और पुरुष की बराबरी मानने वाला व्यक्ति(क) सांप्रदायिक
2धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति(ख) नारीवादी
3जाति को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति(ग) धर्मनिरपेक्ष
4व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था के आधार पर भेदभाव न करने वाला व्यक्ति(घ) जातिवादी
1234
(सा)ग क 
(रे)ग 
(गा)घ ग क 
(मा)ग क 

उत्तर: 

(रे)ग 

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