NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Solutions, in Hindi Medium to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Notes and select need one. NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Question Answers Download PDF. NCERT Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa – 1 Class 9 Solutions.

NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. CBSE Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa – 1 Textual Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Notes. CBSE Class 9 Social Science Bharat Aur Samkalin Vishwa – 1 Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 5

भारत और समकालीन विश्व-१
खण्ड II: जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज
प्रश्न:

1. स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?

उत्तर: घुमंतू ऐसे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि रोजी-रोटी के जुगाड़ में यहाँ से वहाँ घूमते रहते हैं। देश के कई हिस्सों में हम घुमंतू चरवाहों को अपने जानवरों के साथ आते-जाते देख सकते हैं। चरवाहों की किसी टोली के पास भेड़-बकरियों का रेवड़ या झुंड होता है तो किसी के पास ऊँट या अन्य मवेशी रहते हैं। जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। इस समुदाय के अधिकतर लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में भटकते-भटकते उन्नीसवीं सदी में यहाँ आए थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वे यहीं के होकर रह गए; यहीं बस गए। इसके बाद वे सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग चरागाहों में जाने लगे। जाड़ों में जब ऊँची पहाडियाँ बर्फ से ढक जातीं तो वे शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आकर डेरा डाल लेते। जाड़ों में निचले इलाके में मिलने वाली सूखी झाड़ियाँ ही उनके जानवरों के लिए चारा बन जातीं। अप्रैल के अंत तक वे उत्तर दिशा में जाने लगते गर्मियों के चरागाहों के लिए। इस सफ़र में कई परिवार काफ़िला बना कर साथ-साथ चलते थे। वे पीर पंजाल के दरों को पार करते हुए कश्मीर की घाटी में पहुँच जाते। जैसे ही गर्मियाँ शुरू होतीं, जमी हुई बर्फ़ की मोटी चादर पिघलने लगती और चारों तरफ़ हरियाली छा जाती। इन दिनों में यहाँ उगने वाली तरह-तरह की घास से मवेशियों का पेट भी भर जाता था और उन्हें सेहतमंद खुराक भी मिल जाती थी।

2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा:

(i) परती भूमि नियमावली।

उत्तर: अंग्रेज़ अफ़सरों को बिना खेती की जमीन का कोई मतलब समझ में नहीं आता था उससे न तो लगान मिलता था और न ही उपज। अंग्रेज़ ऐसी ज़मीन को ‘बेकार’ मानते थे। उसे खेती के लायक बनाना जरूरी था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में परती भूमि विकास के लिए नियम बनाए जाने लगे। इन कायदे-कानूनों के ज़रिए सरकार गैर-खेतिहर ज़मीन को अपने कब्जे में लेकर कुछ खास लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को कई तरह की रियायतें दी गईं और इस जमीन को खेती के लायक बनाने और उस पर खेती करने के लिए जम कर बढ़ावा दिया गया। ऐसे कुछ लोगों को गाँव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्ज़े में ली गई ज़्यादातर ज़मीन चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्याएँ पैदा होने लगीं।

(ii) वन अधिनियम।

उत्तर: उन्नीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते देश के विभिन्न प्रांतों में वन अधिनियम भी पारित किए जाने लगे थे। इन कानूनों की आड़ में सरकार ने ऐसे कई जंगलों को ‘आरक्षित’ वन घोषित कर दिया जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई। कई जंगलों को ‘संरक्षित’ घोषित कर दिया गया। इन जंगलों में चरवाहों को चरवाही के कुछ परंपरागत अधिकार तो दे दिए गए लेकिन उनकी आवाजाही पर फिर भी बहुत सारी बंदिशें लगी रहीं। औपनिवेशिक अधिकारियों को लगता था कि पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधे और पेड़ों की नई कोपलें नष्ट हो जाती हैं। उनकी राय में, चरवाहों के रेवड़ छोटे पौधों को कुचल देते हैं और कोंपलों को खा जाते हैं जिससे नए पेड़ों की बढ़त रुक जाती है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

(iii) अपराधी जनजाति अधिनियम।

उत्तर: 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) पारित किया। इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया। उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया। इस कानून के लागू होते ही ऐसे सभी समुदायों को कुछ खास अधिसूचित गाँवों/बस्तियों में बस जाने का हुक्म सुना दिया गया। उनकी बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई। ग्राम्य पुलिस उन पर सदा नज़र रखने लगी।

(iv) चराई कर।

उत्तर: चराई-कर का चरवाहा समुदाय पर प्रभाव-भारत में अंग्रेज सरकार ने 19 वीं शताब्दी के मध्य अपनी आय बढ़ाने के लिए अनेक नए कर लगाए। चरवाहों को चरागाहों पर चरने वाले हर जानवर पर कर देना पड़ता था। भारत के ज़्यादातर चरागाह क्षेत्रों में चरागाह कर उन्नीसवीं सदी के मध्य में लागू किया गया था।  कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ-साथ यह कर निरंतर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परंतु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया। ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को एक निश्चित कर ही देते थे। अतः बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी।

3. मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ।

उत्तर: मासाई पशुपालक मोटे तौर पर पूर्वी अफ़्रीका के निवासी हैं। इनमें से लगभग 3,00,000 दक्षिणी कीनिया में और करीब 1,50,000 तंज़ानिया में रहते हैं। अभी हम देखेंगे कि नए कानूनों और बंदिशों ने किस तरह न केवल उनकी ज़मीन उनसे छीन ली बल्कि उनकी आवाजाही पर भी बहुत सारी पाबंदियाँ थोप दी हैं। इन कानूनों के कारण सूखे के दिनों में उनकी ज़िंदगी गहरे तौर पर बदल गई है और उनके सामाजिक संबंध भी एक नई शक्ल में ढल गए हैं।

अंग्रेज़ों के आने से पहले मासाई आर्थिक और राजनीतिक, दोनों स्तर पर अपने किसान पड़ोसियों पर भारी पड़ते थे। औपनिवेशिक शासन के अंत तक आते-आते यह समीकरण बिल्कुल उलट चुका था। कीनिया में मासाई मारा व साम्बूरू नैशनल पार्क और तंज़ानिया में सेरेंगेटी पार्क जैसे शिकारगाह इसी तरह अस्तित्व में आए थे। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों का आना मना था। इन इलाकों में न तो वे शिकार कर सकते थे और न अपने जानवरों को चरा सकते थे। ऐसे बहुत सारे आरक्षित जंगलों में अब तक मासाई अपने ढोर-डंगर चराया करते थे।

4. आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ़्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।

उत्तर: (i) भारत और पूर्वी अफ़्रीका के चरवाहा समुदाय खानाबदोश थे और इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ उन्हें अत्यधिक संदेह की दृष्टि से देखती थीं। यह उनके और अधिक पतन का कारण बना।

(ii) 1885 में उपनिवेशी शक्तियों के बीच अफ्रीकी महाद्वीप का बँटवारा हो जाने के बाद मसाई लोगों का इलाका कम हो गया। नये वन अधिनियम: भारत में वन अधिनियम लागू होने के बाद कुछ वनों में चरवाहों के जाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

Scroll to Top