NIOS Class 12 Political Science Chapter 4 प्रमुख राजनीतिक सिद्धांत

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NIOS Class 12 Political Science Chapter 4 प्रमुख राजनीतिक सिद्धांत

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Chapter: 4

मॉड्यूल – 1 व्यक्ति एवं राज्य

पाठगत प्रश्न 4.1

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) ज्ञानोदय ने नैतिक लक्ष्यों को ________________ सत्य के रूप में स्वीकार नहीं किया।

उत्तर: ज्ञानोदय ने नैतिक लक्ष्यों को परम सत्य के रूप में स्वीकार नहीं किया।

(ख) फ्रांसीसी क्रांति ने ________________ समानता और भाईचारे को महान राजनीतिक मूल्य घोषित किया।

उत्तर: फ्रांसीसी क्रांति ने स्वतंत्रता समानता और भाईचारे को महान राजनीतिक मूल्य घोषित किया।

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(ग) 17वीं और 18वीं सदी के ________________ को ऋणात्मक उदारवाद भी कहते हैं।

उत्तर: 17वीं और 18वीं सदी के उदारवाद को ऋणात्मक उदारवाद भी कहते हैं।

(घ) मैकगर्वन ने कहा कि उदारवाद दो तत्वों से मिलकर बना हुआ है: लोकतंत्र और ________________।

उत्तर: मैकगर्वन ने कहा कि उदारवाद दो तत्वों से मिलकर बना हुआ है: लोकतंत्र और व्यक्तिवाद

(ङ) उदारवादी अर्थव्यवस्था _______________ अर्थव्यवस्था है।

उत्तर: उदारवादी अर्थव्यवस्था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है।

(च) उदारवादी राज्य एक सामाजिक ______________ राज्य है।

उत्तर: उदारवादी राज्य एक सामाजिक सेवा राज्य है।

(छ) उदारवाद ________________ वर्ग का राजनीतिक दर्शन है।

उत्तर: उदारवाद पूंजीपति वर्ग का राजनीतिक दर्शन है।

पाठगत प्रश्न 4.2

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) मार्क्सवाद _______________ विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है। (सामान्यवाद/पूंजीवाद)

उत्तर: मार्क्सवाद पूंजीवाद विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है।

(ख) मार्क्सवाद को ______________ वर्ग का राजनीतिक दर्शन माना जाता है। (कामगार, पूंजीपति)

उत्तर: मार्क्सवाद को कामगार वर्ग का राजनीतिक दर्शन माना जाता है।

(ग) मार्क्सवादियों के लिए _______________ कारक व्यक्तिगत, सामाजिक जीवन के निर्णायक कारक हैं। (समाज, भौतिक)

उत्तर: मार्क्सवादियों के लिए भौतिक कारक व्यक्तिगत, सामाजिक जीवन के निर्णायक कारक हैं।

(घ) मार्क्सवादी योजना में उत्पादन के संबंध _______________ की ________________ को जन्म देते हैं। (उत्पादन, शक्ति/वाद, संवाद)

उत्तर: मार्क्सवादी योजना में उत्पादन के संबंध उत्पादन की शक्ति को जन्म देते हैं।

(ङ) ‘प्रत्येक से उसकी योग्यता के अनुसार और प्रत्येक को उसकी _______________ के अनुसार’ यह समाजवाद का सार-संक्षेप है। (आवश्यकता, कार्य)

उत्तर: ‘प्रत्येक से उसकी योग्यता के अनुसार और प्रत्येक को उसकी कार्य के अनुसार’ यह समाजवाद का सार-संक्षेप है।

(च) मार्क्स के लिए क्रांतियां इतिहास का _______________ हैं। (इन्जिन, साध्य)

उत्तर: मार्क्स के लिए क्रांतियां इतिहास का इन्जिन हैं।

पाठगत प्रश्न 4.3

1. निम्नलिखित का उत्तर केवल एक शब्द में दीजिए।

(क) गांधी जी ने किस प्रकार के राज्य की वकालत की थी?

उत्तर: गांधी जी ने राम राज्य की वकालत की थी।

(ख) मालिक और कर्मचारी के बीच संबंधों को मधुर बनाने के लिए गांधी जी किस रणनीति को प्रस्तावित करते हैं।

उत्तर: मालिक और कर्मचारी के बीच संबंधों को मधुर बनाने के लिए गांधी जी ट्रस्टीशिप रणनीति को प्रस्तावित करते हैं।

(ग) अनुसूचित जातियों के लोगों को गांधी जी किस नाम से सम्बोधित करते थे?

उत्तर: अनुसूचित जातियों के लोगों को गांधी जी हरिजन नाम से सम्बोधित करते थे।

(घ) गांधी जी ने किन साधनों और साध्यों में से किसकी वकालत की।

उत्तर: गांधी जी ने साधन की वकालत की।

(ङ) सभी व्यक्तियों के अधिकतम कल्याण विशेष रूप निर्धन, निर्धनों में निर्धनतम के कल्याण को गांधी जी क्या कहते थे?

उत्तर: सभी व्यक्तियों के अधिकतम कल्याण विशेष रूप निर्धन, निर्धनों में निर्धनतम के कल्याण को गांधी जी सर्वोदय कहते थे।

पाठांत प्रश्न

1. उदारवाद का क्या अर्थ है?

उत्तर: उदारवाद एक लचीली, गतिशील और व्यापक राजनीतिक-सामाजिक विचारधारा है जिसे किसी एक संकीर्ण परिभाषा में बाँधना कठिन है। यह किसी निश्चित सिद्धांतों का समूह नहीं, बल्कि सोचने-समझने का एक तरीका, अर्थात दिमाग की आदत है। उदारवाद का मूल केन्द्र व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानव अधिकार, न्यायिक सुरक्षा, और संवैधानिक तथा लोकतांत्रिक शासन पर आधारित है।

यह सुधारों का सिद्धांत है, क्योंकि यह आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक— तीनों क्षेत्रों में प्रगतिशील परिवर्तनों का समर्थन करता है।

सामाजिक क्षेत्र में उदारवाद धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक भेदभाव के विरोध को बढ़ावा देता है। आर्थिक क्षेत्र में यह पूँजीवादी व्यवस्था, निजी स्वामित्व और अधिकतम लाभ के सिद्धांत का समर्थन करता है।

राजनीतिक क्षेत्र में यह लोकतंत्र, व्यक्तिगत अधिकारों, कानून के शासन, उत्तरदायी सरकार, और स्वतंत्र न्यायपालिका पर जोर देता है।

2. राज्य के विलुप्त होने से आप का अभिप्राय क्या है?

उत्तर: मार्क्सवादियों के अनुसार राज्य का स्वतः विलुप्त होना (Withering away of the State) का अर्थ यह है कि समाजवादी समाज के पूर्ण रूप से साम्यवादी अवस्था में बदल जाने पर राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है और राज्य का पूरा ढाँचा धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।

मार्क्सवादी मानते हैं कि राज्य एक वर्ग संस्था है, जो प्रभुत्वशाली वर्ग के हितों की रक्षा करता है। जब समाज वर्गहीन बन जाएगा अर्थात न शोषक रहेंगे न शोषित तब राज्य के दमनकारी और नियंत्रणकारी कार्यों की कोई जरूरत नहीं बचेगी। इस अवस्था में न कोई विरोधी वर्ग होगा और न ही संघर्ष, इसलिए राज्य की भूमिका स्वतः कम होती जाएगी और अंत में राज्य पूरी तरह लुप्त हो जाएगा।

अर्थात, राज्य का विलुप्त होना मतलब समाज के वर्गहीन, साम्यवादी रूप में पहुँचने पर राज्य की संस्थाएँ, कानून, दमन-तंत्र और शासन की जरूरत समाप्त हो जाना तथा राज्य का क्रमशः पूर्ण रूप से समाप्त हो जाना।

3. द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की मार्क्सवाद की विशेषता के रूप में विवेचना कीजिए।

उत्तर: मार्क्सवाद की केंद्रीय विशेषताओं में से एक द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है। यह वह सिद्धांत है जो यह समझाता है कि सामाजिक परिवर्तन क्यों और कैसे होते हैं। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद यह मानता है कि समाज में होने वाले सभी परिवर्तन भौतिक (आर्थिक) कारकों के कारण होते हैं और वे परिवर्तन एक द्वंद्वात्मक प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ते हैं।

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद एक त्रिस्तरीय प्रक्रिया है जिसे मार्क्स इस प्रकार समझते है—

(i) उत्पादन संबंध किसी भी समाज का आधार होते हैं। यह लोगों के बीच मौजूद वे सामाजिक संबंध हैं जो उत्पादन के दौरान बनते हैं।

(ii) उत्पादक शक्तियाँ उत्पादन संबंधों के भीतर से ही पैदा होती हैं, लेकिन समय के साथ ये उन्हीं संबंधों के खिलाफ संघर्ष करने लगती हैं क्योंकि नई शक्तियाँ अधिक उत्पादन की मांग करती हैं।

(iii) समाज में विकास विरोधियों के संघर्ष के कारण होता है और इसका आधार पूरी तरह आर्थिक परिस्थितियाँ होती हैं।

जब उत्पादक शक्तियाँ (नई तकनीक, नए साधन, नई उत्पादन विधि) पुरानी उत्पादन संबंधों से टकराती हैं, तब संघर्ष पैदा होता है। यह संघर्ष अंततः नई उत्पादन पद्धति को जन्म देता है, जो आर्थिक विकास की उच्चतर अवस्था होती है।

इस सिद्धांत के अनुसार, इतिहास स्वयं उत्पादन शक्तियों के विकास का रिकॉर्ड है। जैसे-जैसे आर्थिक संरचनाएँ बदलती हैं, वैसे-वैसे समाज दासप्रथा → सामंतवाद → पूँजीवाद → समाजवाद → साम्यवाद की ओर बढ़ता है।

अतः, द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्सवाद की वह वैज्ञानिक व्याख्या है जो बताती है कि समाज का पूरा इतिहास आर्थिक विरोधाभासों और संघर्षों की प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ता है और हर नई अवस्था पिछली अवस्था से अधिक विकसित तथा उच्चतर होती है।

4. क्या मार्क्सवाद आज भी प्रासंगिक है? स्पष्ट करें।

उत्तर: मार्क्सवाद ने एक दर्शन और व्यवहार दोनों रूपों में राजनीतिक एवं सामाजिक चिंतन को गहराई से प्रभावित किया है। इसका प्रभाव इतना व्यापक है कि इसके समर्थक और विरोधी दोनों ही इसकी शक्ति को स्वीकार करते हैं। फिर भी, व्यवहारिक स्तर पर मार्क्सवाद अपनी कई कमियों के कारण आज पूरी तरह प्रासंगिक नहीं माना जाता।

सबसे पहले, मार्क्सवाद यह मानता है कि सभी परिवर्तन केवल विरोधी वर्गों के संघर्ष से होते हैं, जबकि इतिहास यह दर्शाता है कि सामाजिक परिवर्तन वर्ग सहयोग से भी संभव हुए हैं। इसी प्रकार, मार्क्सवाद ने समाज के भौतिक (आर्थिक) घटकों पर अत्यधिक जोर दिया, जबकि समाज की जटिलताओं की पूरी व्याख्या केवल आर्थिक तत्व नहीं कर सकते।

मार्क्सवाद ने राष्ट्रीय भावनाओं और देशभक्ति के महत्व को भी कम करके आँका, जबकि यह भावनाएँ सामाजिक स्थिरता और एकता का महत्वपूर्ण आधार रही हैं। इसी तरह, मार्क्सवाद ने राज्य की भूमिका को दमनकारी मानकर अत्यधिक सरल कर दिया, जबकि राज्य अनेक सकारात्मक कार्य भी करता है।

व्यवहार में मार्क्सवाद कई स्थानों पर असफल हुआ है। सर्वहारा की तानाशाही अंततः पार्टी की तानाशाही और फिर एक व्यक्ति की तानाशाही में बदल गई, जैसे— सोवियत संघ में स्टालिन और चीन में माओ के दौर में देखने को मिला। सोवियत संघ में गोर्बाचोव के सुधारों (विशेषतः ग्लासनोस्ट) ने विश्व स्तर पर साम्यवादी आंदोलन के पतन को तेज किया। चीन ने भी अपनी अर्थव्यवस्था और शासन में कई उदारवादी नीतियाँ अपनाई हैं, जिससे शुद्ध मार्क्सवादी ढाँचा कमजोर हुआ।

इस प्रकार, आधुनिक युग में मार्क्सवाद की प्रासंगिकता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं। इसके सिद्धांत अब व्यवहारिक रूप से सफल नहीं माने जाते और एक वैकल्पिक विचारधारा के रूप में इसकी महत्ता पहले की तरह सुदृढ़ नहीं रह गई है।

5. क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि गांधीवाद पश्चिमी सभ्यता की आलोचना है?

उत्तर: हाँ, गांधीवाद निश्चित रूप से पश्चिमी सभ्यता की आलोचना है। गांधीजी पश्चिमी सभ्यता को उस प्रणाली के रूप में देखते थे जो अध्यात्मवाद, नैतिकता और आत्मा के मूल्यों को नष्ट करती है। वे पश्चिमी मनुष्य को केवल भौतिक शरीर तक सीमित मानते थे, जिसमें आत्मा का महत्व कम हो जाता है।

6. गांधी जी की राम राज्य की अवधारणा क्या थी?

उत्तर: गांधी जी का रामराज्य एक आत्म-नियंत्रित, अहिंसक और विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था का आदर्श था, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपना शासक स्वयं होता है और किसी दूसरे के लिए बाधा नहीं बनता। वे पश्चिमी राज्य को हिंसा पर आधारित “आत्मा-रहित मशीन” मानते थे, इसलिए उन्होंने ऐसे राज्य का विरोध किया।

गांधी जी के रामराज्य की मुख्य विशेषताएँ थीं—

(i) अहिंसा पर आधारित राज्य: हिंसक, केंद्रीकृत सत्ता की जगह ऐसा राज्य जो लोगों की सहमति और समाज की एकता पर आधारित हो।

(ii) पूर्ण विकेन्द्रीकरण: राजनीतिक और आर्थिक दोनों शक्तियाँ नीचे से ऊपर की ओर जाएँ।

शक्ति व्यक्ति से → गाँव

गाँव से → क्षेत्र/प्रांत

और वहाँ से → केन्द्र तक पहुँचकर समाप्त हो जाती है।

(iii) स्वराज की भावना: व्यक्ति और गाँव सभी गतिविधियों का केन्द्र हों।

(iv) आत्मनिर्भर ग्राम-व्यवस्था: कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, और स्वदेशी के आधार पर आर्थिक विकेन्द्रीकरण।

(v) शोषण-मुक्त अर्थव्यवस्था: ऐसी व्यवस्था जिसमें धन कुछ हाथों में न सिमटे।

(vi) ट्रस्टीशिप का सिद्धांत: पूँजीपति स्वामी नहीं, बल्कि समाज के “ट्रस्टी” हों, और लाभ समुदाय का माना जाए।

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