NCERT Class 11 Psychology Chapter 7 चिंतन

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NCERT Class 11 Psychology Chapter 7 चिंतन

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Chapter: 7

समीक्षात्मक प्रश्न

1. चिंतन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: चिंतन सभी संज्ञानात्मक गतिविधियों या प्रक्रियाओं का आधार है तथा एकमात्र मानव जाति में ही पाया जाता है। इसमें वातावरण से प्राप्त सूचनाओं का प्रहस्तन एवं विश्लेषण सम्मिलित है। उदाहरण के लिए, एक पेंटिंग (चित्र) को देखते समय हम मात्र पेंटिंग के रंग अथवा रेखा एवं स्पर्श पर ही ध्यान नहीं देते हैं, बल्कि हम उसके अर्थ को समझने के लिए चित्र से परे जाते हैं तथा सूचना को अपने वर्तमान ज्ञान से जोड़ने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार पेंटिंग की व्याख्या में नए अर्थ उत्पन्न होते हैं जो आपके ज्ञान में वृद्धि करते हैं। चिंतन एक उन्नत मानसिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम उपलब्ध या अर्जित सूचना का पुनर्गठन एवं विश्लेषण करते हैं। ऐसा विश्लेषण सार प्रस्तुत करने, तर्क, कल्पना, समस्या समाधान, समझ और निर्णय लेने के माध्यम से विकसित होता है।

चिंतन प्रायः संगठित और लक्ष्य निर्देशित होता है। खाना बनाने से लेकर गणित की समस्या का हल करने तक दिन-प्रतिदिन की सभी गतिविधियों का एक लक्ष्य होता है। एक व्यक्ति यदि कार्य से सुपरिचित है तो योजना बना कर, पूर्व में अपनाए गए उपायों को पुनःस्मरण कर (यदि कृत्य सुपरिचित है), या यदि कृत्य नया है तो रचना कौशल का अनुमान कर लक्ष्य तक पहुँचना चाहता है।

चिंतन एक आंतरिक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य सूचना ग्रहण, विश्लेषण, संश्लेषण तथा पुनर्गठन करता है। यह न केवल बाहरी अनुभवों पर आधारित होता है बल्कि आंतरिक भावनाओं, स्मृतियों और ज्ञान के आधार पर भी विकसित होता है।

2. संप्रत्यय क्या है? चिंतन प्रक्रिया में संप्रत्यय की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

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उत्तर: संप्रत्यय मानसिक संरचनाएँ होती हैं, जो किसी वस्तु, घटना या विचार के सामान्य लक्षणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह ज्ञान को व्यवस्थित या संगठित करने में सहायता करता है जिससे कि हमें जब भी अपने ज्ञान के उपयोग की आवश्यकता पड़े तो हम इसे कम समय एवं प्रयास में कर सकें। यह कुछ वैसा ही है जैसा कि हम घर में अपने सामानों को व्यवस्थित करने के लिए करते हैं।

चिंतन प्रक्रिया में भूमिका:

(i) संप्रत्यय नई सूचना को व्यवस्थित करने और उसे वर्गीकृत करने में मदद होता है।

(ii) यह निर्णय लेने और कोई भी समस्या समाधान में मदद करता है।

(iii) यह भाषा और संचार का आधार प्रदान करता है।

3. समस्या समाधान की बाधाओं की पहचान कीजिए।

उत्तर: समस्या समाधान में कई आंतरिक और बाह्य बाधाएँ हो सकती हैं, जैसे कि मानसिक स्थिरता, कार्यात्मक निश्चितता, पूर्वाग्रह, अपर्याप्त या अधूरी जानकारी तथा अनिश्चितता, जो नए समाधान खोजने में बाधा डालती हैं। जिसमें वह पहले से प्रयोग की गई मानसिक संक्रियाओं या उपायों का अनुसरण करता है। किसी विशिष्ट युक्ति की पूर्व सफलता नयी समस्या के समाधान में कभी-कभी सहायक होती है। यद्यपि यह प्रवृत्ति मानसिक दृढ़ता भी उत्पन्न करती है जो समस्या के समाधानकर्ता के लिए नए नियमों या युक्तियों के बारे में सोचने में बाधक बनती है। अतः कुछ स्थितियों में जहाँ मानसिक विन्यास समस्या समाधान की गुणवत्ता और गति में वृद्धि करता है वहीं अन्य स्थितियों में यह समस्या समाधान को बाधित करता है।

4. समस्या समाधान में तर्कना किस प्रकार सहायक होती है?

उत्तर: तर्कना (Reasoning) समस्या समाधान का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो व्यक्ति को तर्कसंगत ढंग से सोचने और निर्णय लेने में मदद करता है।

(i) विश्लेषणात्मक तर्कना: समस्या को छोटे भागों में विभाजित कर उसके समाधान की रणनीति तैयार की जाती है।

(ii) प्रयोगात्मक तर्कना: पिछले अनुभवों से सीखकर समाधान निकाला जाता है।

(iii) न्यायसंगत तर्कना: उपयुक्त प्रमाण और तर्कों के आधार पर निर्णय लिया जाता है।

(iv) सर्जनात्मक तर्कना: सर्जनात्मक प्रक्रिया का प्रारंभिक बिंदु है कुछ नयी चीज़ों को सोचने या उत्पन्न करने की आवश्यकता जिससे प्रयास आरंभ होता है।

5. क्या निर्णय लेना एवं निर्णयन अंतः संबंधित प्रक्रियाएँ हैं? व्याख्या कीजिए।

उत्तर: हाँ, निर्णयन और निर्णय परस्पर संबंधित प्रक्रियाएँ हैं। निर्णयन में हमारे समक्ष जो समस्या होती है वह है प्रत्येक विकल्प से संबंधित लागत-लाभ का मूल्यांकन करते हुए विकल्पों में से चयन करने का विकल्प जब हमारे पास है। इस प्रकार, हमारा निर्णय हमारी रुचि, भविष्य के अवसरों, पुस्तकों की उपलब्धता और अध्यापकों की दक्षता आदि पर निर्भर करेगा।

6. सर्जनात्मक चिंतन प्रक्रिया में अपसारी चिंतन क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर: सर्जनात्मक चिंतन प्रक्रिया में अपसारी चिंतन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें प्रवाह, लचीलापन, यांत्रिकता एवं विस्तरण आते हैं। यह नए और विविध विचारों को उत्पन्न करने में मदद करता है, जो रचनात्मकता और नवाचार के लिए आवश्यक है। 

7. सर्जनात्मक चिंतन को कैसे बढ़ाया जा सकता है?

उत्तर: सर्जनात्मक चिंतन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न अभ्यास किए जा सकते हैं, जैसे कि ब्रेनस्टॉर्मिंग, विभिन्न विषयों और अनुभवों से परिचित होना, पारंपरिक सोच से हटकर नए दृष्टिकोण अपनाना, और प्रश्नों को नए तरीके से पूछना।

8. क्या चिंतन भाषा के बिना होता है? परिचर्चा कीजिए।

उत्तर: व्यापक अवधारणाओं के विकास में मौलिक सोच हेतु भाषा की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि मौखिक भाषा नियमों का एक सुव्यवस्थित सेट प्रदान करती है। जो हमारे विचारों को संगठित व मरम्मत करने में तथ्यात्मक विचारों के साथ सहायता करते हैं। भाषाएं दुनिया को देखने या दुनिया के बारे में सोचने की हमारी क्षमता को सीमित नहीं करती हैं, लेकिन वे हमारी अनुभूति, ध्यान और दुनिया के विशिष्ट पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं। वहीं, अन्य मत के अनुसार भाषा चिंतन को आकार देती है और इसे अधिक संरचित बनाती है। अतः, यह माना जाता है कि दोनों – भाषायी और गैर-भाषायी – चिंतन प्रक्रियाएँ मानव मस्तिष्क में सह-अस्तित्व में हैं।

9. मनुष्यों में भाषा का अर्जन किस प्रकार होता है?

उत्तर: मनुष्यों में भाषा का अर्जन एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें शिशु जन्म के तुरंत बाद अपने आस-पास के वातावरण से भाषा सीखता है। सामाजिक संपर्क, अनुकरण, और प्राकृतिक संवेदी अनुभवों के माध्यम से शिशु ध्वनियों, शब्दों, और व्याकरण के नियमों को आत्मसात करता है, जिससे वह समय के साथ पूर्ण भाषा कौशल विकसित कर लेता है। परंतु जब हम संपूर्ण विश्व के बच्चों के भाषा अर्जन के एक सामान्य दृष्टिकोण को लेते हैं तो भाषा के लगभग न के बराबर उपयोग से लेकर भाषा के दक्ष उपयोगकर्ता बनने तक बच्चे जिस प्रकार अग्रसर होते हैं उसमें हम कुछ पूर्वकथनीय प्रारूप पाते हैं। 

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