Assam Jatiya Bidyalay Class 6 Hindi Chapter 5 मीराँबाई

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मीराँबाई

Chapter – 5

অসম জাতীয় বিদ্যালয়

পাঠভিত্তিক ক্রিয়াকলাপৰ প্রশ্নোত্তৰ


মীৰাঁবাঈ দ্বাৰা ৰচিত ভজন সুমধুৰ হোৱাৰ লগতে অনন্য ভক্তি পৰিচায়ক। নিজৰ আৰাধ্যৰ প্ৰতি অসীম অনুৰাগ আৰু প্ৰেমেই মীৰাঁ ভজন’ৰ মূল প্ৰতিপাদ্য। ভক্ত আৰু ভগৱানৰ অদ্ভুত মিলনৰ সাক্ষী হ’ল ‘মীৰা ভজন’।

অসমীয়া ভাঙনি : “পালোঁ, মই ৰাম ৰত্নধন পালোঁ। অমূল্য বস্তু দিলা হে সত্গুৰু, কৃপা কৰি মোক নিজৰ কৰি লোৱা।” এই ধৰণৰ মীৰাঁ ভজন আজিকালি আমি সদায় শুনিবলৈ পাওঁ। মীৰাঁবাঈৰ দ্বাৰা বিৰচিত এই ধৰণৰ ভক্তিমূলক গীতেই মীৰাঁভজন।

মীৰাবাঈৰ জন্ম ১৪৯৮ চনৰ আশে-পাশে ৰাজপুতনাৰ মেড়তা প্রাপ্তৰ সমীপৱৰ্তী গাঁওত ‘কুড়কী’ নামৰ ঠাইত হৈছিল। তেওঁৰ দেউতাকৰ নাম ৰত্নসিংহ আছিল। ৰাও দুদা এওঁৰ পিতামহ। শৈশৱতে মাতৃৰ মৃত্যু হোৱাত এওঁৰ পালন-পোষণ পিতামহ দাদুৰ দ্বাৰা হৈছিল। দাদুজী পৰম বৈষ্ণৱ ভক্ত আছিল। তেওঁৰ ৰাজ পৰিয়াল অনবৰত যুদ্ধ আৰু সাম্রাজ্য বিস্তাৰত ব্যস্ত হৈ আছিল। শিক্ষা-দীক্ষাৰ কোনো ব্যৱস্থাই নাছিল। সেইবাবে পাৰিবাৰিক বাতাবৰণ, সমাজত প্ৰচলিত লোকগীত আৰু ৰাজমহললৈ অহা সন্ন্যাসী আৰু সাধুব উপদেশেই মীৰাৰ পাঠশালাত পৰিণত হৈছিল।

মাত্র ১২ বছৰ বয়সতে মীৰাবাঈৰ চিতৌৰৰ ৰাজকুমাৰ ভোজৰাজৰ লগত বিবাহ সম্পন্ন হয়। ভোজৰাজা চিতৌৰৰ মহাৰাজ ৰাণা সাংগাৰ জ্যেষ্ঠ পুত্ৰ আছিল। কিন্তু বিয়াৰ সাত বছৰ পিছতেই স্বামীৰ মৃত্যু হৈছিল। মীৰাই সেই সময়ৰ সামাজিক প্রথা অনুসৰি সতী নহ’ল। কিয়নো তেওঁ নিজে অজৰ অমৰ কৃষ্ণৰ চিৰসধৱা বুলি মানিছিল। ৰাজৰাণী মীৰাৰ এনে নির্ণয় মেৱাৰৰ ৰজাৰ পৰিয়ালে পছন্দ কৰা নাছিল। কিন্তু মীৰাই সাধু-সংগ আৰু ভক্তি-পূজাত সময় কটাবলৈ ধৰিলে। বাণা সাংগাৰ মৃত্যুৰ পিছত মীৰাক বহুতো যাতনা দিবলৈ ধৰিলে, কিন্তু মীৰাৰ প্ৰভুভক্তি অচল আছিল।

শেষত তেওঁ মেৱাড়ৰ পৰা মেড্‌তালৈ গুচি আহিল। পিছত কৃষ্ণ-ভক্তিৰ গীত গাই গাই বৃন্দাবনলৈ গুচি গ’ল। বৃন্দাবনৰ পৰা মথুৰালৈ গ’ল। তাতেই এটা মন্দিৰত ভগৱানৰ মূৰ্তিৰ সন্মুখত একাগ্ৰ ভাবেৰে ভজন-কীৰ্তন কৰি মীৰাই শেষ জীৱন কটালে। ১৫৪৬ চনৰ আশে-পাশে তেওঁ মৃত্যু বৰণ কৰে।

মীৰাবাঈৰ ভজন ‘মীৰা ভজন’ ৰূপে মানুহে বৰ আদৰেৰে গায়। তেওঁ প্ৰায় ২০০ এনে ভজন ৰচনা কৰিছিল। ইয়াৰ বাহিৰে তেওঁ মুঠ ১১খন গ্ৰন্থ ৰচনা কৰিছিল। তেওঁৰ ভজন ‘মীৰা ‘বাঈ’ৰ পদাৱলী’ নামেৰে জনা যায়। এওঁৰ ভাষা ৰাজস্থানী মিশ্রিত ব্রজভাষা।

शब्द (শব্দ)अर्थ (অর্থ)
पितामहदादाককা
संसर्गसम्पर्कসম্পর্ক, সান্নিধ্য
महैंमैंমই
रतनरत्नৰত্ন
अमोलकअमूल्य, अनमोलঅমূল্য
किरपाकृपा, दयाকৃপা

प्रश्न- अभ्यास (প্ৰশ্ন অভ্যাস)

प्रश्न : मीराँबाई कृष्ण को स्वामी तथा आराध्य के रूप में मानती थी। तुम कृष्ण को किस रूप में मानते हो ?

उत्तर : हम कृष्ण को सृष्टिकर्ता भगवान के रूप में मानते है। 

प्रश्न : 2. मीराँबाई के भजन कक्षा में गाकर सुनाओ। (মীৰাবাঈৰ ভজন শ্ৰেণীত গাই শুনোৱা)

उत्तर :

पायो जी म्हैं तो राम रतन धन पायो 

वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु,

किरपा कर अपनायो ॥

…………………….

…………………….

…………………….

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख हरख जास गायो। 

प्रश्न : 3. (i) मीराँबाई कौन थी? उनकी शादी किसके साथ हुई थी ?

उत्तर : मीराँबाई कृष्णभक्त कवयित्री थी और भोजराज की पत्नी थी। चितौड़ के महाराज राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज से मीराँबाई की शादी हुई थी। 

(ii) राणा सांगा कौन थे ?

उत्तर : राणा सांगा चितौड़ के महाराज थे।

(iii) पारिवारिक परिवेश ने किस प्रकार मीराँबाई के जीवन पर प्रभाव डाला ? लिखो।

उत्तर : मीराँबाई की दादूजी कृष्णभक्त थे। शैशव में माता का देहान्त हो जाने के कारण दादूजी ने ही उनकी पालन-पोषण किया। दादूजी परम वैष्णव भक्त होने के कारण उनकी संसर्ग में मीरा के हृदय कृष्णभक्ति भाव से उदित हुआ। उनका राजपरिवार अनवरत युद्ध और साम्राज्य विस्तार में व्यस्त रहता था शिक्षा-दीक्षा का कोई विशेष प्रबंध ही नहीं था। अत: पारिवारिक वातावरण, समाज में प्रचलित लोकगीत, एवं राजमहल में आनेवाले संन्यासी एवं साधु के उपदेश ही मीरा की पाठशाला बने।

(iv) तत्कालीन प्रथा के अनुसार मीराँबाई क्यों सती नहीं बनी ? 

उत्तर : तत्कालीन प्रथा के अनुसार मीराँबाई सती नहीं बनी क्योंकि मीराँबाई कृष्ण को स्वामी मानती थी और स्वयं को अजर-अमर कृष्ण की चिर सुहागिनी मानती थी। 

(v) मीराँबाई द्वारा विरचित पद और भजन किस नाम से प्रसिद्ध है ?

उत्तर : मीराँबाई द्वारा विरचित पद और भजन ‘मीराँबाई को पदावली’ नाम से जाना जाते है। 

(vi) मीराँबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

उत्तर : मीराँबाई का जन्म सन् 1498 ई. के आस-पास में प्राचीन राजपूताने के मेड़ता प्रान्त के ‘कुड़की’ नामक गाँव में हुआ था।

(vii) मीराँबाई किसे अमूल्य रत्न-धन समझती है ?

उत्तर : मीराँबाई कृष्ण को अमूल्य रत्न-धन समझती है।

प्रश्न : 4. वाक्य बनाओ : (বাক্য সাজা) 

प्रबंध, स्वर्गवास, सुहागिनी, प्रथा, रचना

उत्तर : प्रबंध- मीराँबाई भजन गाने की प्रबंध की।

स्वर्गवास- सन् 1546 ई. के आस-पास उसकी स्वर्गवास हुई। 

सुहागिनी- वह कृष्ण की सुहागिनी थी।

प्रथा- मीराँबाई के समय सती जाने की प्रथा थी। 

रचना- मीराँबाई ने कुल 11 ग्रन्थों की रचना की थी।

प्रश्न : 5. पर्यायवाची शब्द लिखो (दो-दो करके ) (সমৰ্থক শব্দ লিখা দুটাকৈ) 

देहान्त, वातावरण, रोज, विवाह

उत्तर : देहान्त- मृत्यु, स्वर्गवास 

वातावरण- परिवेश, अवस्था

रोज- प्रतिदिन, सदा 

विवाह- शादी, व्याह

प्रश्न : 6. पढ़ो और समझो (পঢঢ়া আৰু বুজা) 

उत्तर : (i) गांधीजी की मृत्यु सन् 1948 ई. में हुई थी। (मृत्यु- स्त्रीलिंग)

(ii) कबीरदासजी का देहांत सन् 1518 ई. को हुआ था। (देहान्त- पुंलिंग)

(iii) महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई. को हुआ था। (जन्म- पुलिंग) 

प्रश्न : 7. नीचे दिए गए वाक्यों में आये कारक और विभक्ति पहचानो :(তলত দিয়া বাক্যবিলাকত ব্যৱহাৰ হোৱা কাৰক আৰু বিভক্তি চিনাক্ত কৰা) 

(i) पुलिच ने चोर को पकड़ा। 

उत्तर : ने विभक्ति कर्ता कारक, को विभक्ति कर्म कारक।

(ii) पेड़ से पत्ता गिरा।

उत्तर : से विभक्ति अपादान कारक।

(iii) बच्चे को दूध पिलाओ।

उत्तर : को विभक्ति सम्प्रदान कारक। 

(iv) हम कलम से लिखते हैं।

उत्तर : से विभक्ति, करण कारक। 

(v) घर में कौन है ?

उत्तर : में विभक्ति, अधिकरण कारक। 

(vi) रमेश रीता का भाई है।

उत्तर : का विभक्ति सम्बन्ध कारक। 

(vii) श्याम के लिए पानी लाओ।

उत्तर : के लिए विभक्ति, सम्प्रदान कारक। 

प्रश्न : 8. कारक और विभक्ति

कारकविभक्ति चिह्न
कर्तने
कर्मको
करणसे
सम्प्रदानको, के लिए, के वास्ते
अपादानसे
सम्बन्धका, के, की, (रा, रे, री, ना, ने, नी)
अधिकरणमें, पर, पै
सम्बोधनहै, अरे, अजी

प्रश्न : 9 आओ जान ले कवि और रचना

कविकाव्य
सूरदाससूरसागर
तुलसीदासरामचरित मानस
कबीरदासबीजक
जयशंकर प्रसादकामायनी
मैथिली चरण गुप्तसाकेत
मलिक मुहम्मद जायसीपदमावत

प्रश्न : 10 टिप्पणी (চমুটোকা) : 

सतीदाह प्रथा : भारतीय समाज में स्वामी की मृत्यु के बाद पत्नी द्वारा : उनकी चिता में प्राणों की आहुति देने की प्रथा सन् 1829 ई. में राजा राममोहन राय, करुणानाथ ठाकुर आदि के सहयोग से लर्ड विलियम बैंटिक ने सतीदाह प्रथा का विलुप्त किया।

श्रीकृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण दैवकी-बसुदेव का पुत्र था। भाद्र महीने की अष्टमी तिथि में उनका जन्म हुआ था। उनको नन्द-यशोदा ने पालन पोषण किया था। कृष्ण ने बड़े होकर विभिन्न अलौकिक तथा ऐश्चरिक काम किये थे। कुरुक्षेत्र में कृष्ण की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। ‘श्रीमद्भागवद् गीता’ कृष्ण के असीम गुणों की सृष्टि है।

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