Assam Jatiya Bidyalay Class 6 Hindi Chapter 2 दानवीर शिवि

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दानवीर शिवि

Chapter – 2

অসম জাতীয় বিদ্যালয়

পাঠভিত্তিক ক্রিয়াকলাপৰ প্রশ্নোত্তৰ


जमानाসময়ख्यातिখ্যাতিदरबारৰাজসভাशरणागतশৰণাগত
विपत्ति বিপদखाद्यान्न খাদ্যান্নअसमजस অসুবিধাवरदान আশীর্বাদ
প্ৰস্তুত কাহিনীত মহাৰাজ শিবিৰ দানবীৰতাৰ কথা প্ৰকাশ পাইছে। দানশীলতাৰ গুণত মানুহ পুৰুষোত্তম হ’ব পাৰে।

অসমীয়া ভাঙনি : পুৰণি কালৰ কথা। শিবি নামৰ এজন বৰ ধাৰ্মিক ৰজা আছিল। তেওঁ বব দানী আছিল। তেওঁৰ দানশীলতাৰ যশস্যা চাৰিওফালে বিয়পি পৰিছিল। স্বৰ্গৰ দেৱতাইও তেওঁৰ দানশীলতাৰ প্ৰশংসা কৰিছিল।

এবাৰ দেবতাসকলৰ ৰজা ইন্দ্ৰই অগ্নি দেৱতাক লগত লৈ ৰজা শিবিৰ পৰীক্ষা ল’ব বিচাৰিছিল। অগ্নিয়ে পাৰ চৰাইৰ ৰূপ ল’লে আৰু ইন্দ্ৰই বাজ পক্ষী হল। পাৰ চৰায়ে নিজৰ প্ৰাণ বচাবৰ বাবে উৰিবলৈ ধৰিলে আৰু বাজ পক্ষীয়েও পাৰ চৰাইক ধৰিবলৈ পিছে পিছে দৌৰিবলৈ আৰম্ভ কৰিলে।

ৰজা শিবি ৰাজসভাও বহি আছিল। পাৰ চৰাইটো উৰি উৰি ৰাজসভাত উপস্থিত হ’ল আৰু মহাবাজক প্ৰাৰ্থনা কৰিলে যে তেওঁৰ প্ৰাণ যাতে বচায়। ৰজাই পাৰ চৰাইটোক ক’লে যে সি ভয় খাব নালাগে। নিজে মৰি হ’লেও শৰণাগতক ৰক্ষা কৰিব। শৰণাগতক ৰক্ষা কৰাটো ৰজাৰ ধৰ্ম।

ৰজাৰ কথা শুনি বাজে ক’লে— হে ৰজা, এইটো কেনে বাজধর্ম। আপুনি মোৰ মুখৰ খাদ্য কাঢ়ি লৈ গৈছে। যদি আপুনি খাদ্য ওভোতাই নিদিয়ে তেন্তে মই নোখোৱাকৈ মৰিম।

মহাৰাজ বিবুদ্ধিত পৰিল। কিয়নো শরণাগতক ৰক্ষা কৰাটো বাজধর্ম। শেষত তেওঁ শৰীৰৰ মাংসকেই দিবলৈ স্থিৰ কৰিলে। তবজু এখনৰ এফালে পাৰ চৰাইটো বহাই দিলে আৰু আনটো ফালে তেওঁ নিজৰ শৰীৰৰ মাংস কাটি দিবলৈ আৰম্ভ কৰিলে। ৰজাই যিমানেই মাংস দিছিল তথাপি পাৰ চৰাইৰ সমান ওজন হোৱা নাছিল। শেষত ৰজা শিবিয়ে নিজেই ভৰজুৰ এটা ফালে বহি গ’ল। নিজৰ প্ৰাণ দি তেওঁ পাৰ চৰাইক বচাবলৈ অলপো সংকোচ নকৰিলে।

ৰজা শিবিৰ দানশীলতা দেখি দেৱৰাজ ইন্দ্ৰ আৰু অগ্নিদেৱ বৰ প্ৰসন্ন হ’ল। সেইবাবে তেওঁলোকে নিজৰ নিজৰ ৰূপ ধাৰণ কৰি প্রকট হ’ল আৰু ৰজাক বৰ দি স্বৰ্গলৈ গুচি হ’ল। আজিও মহাৰাজ শিবিৰ নাম শ্রদ্ধাপূর্বক লোৱা হয়।

शब्द (শব্দ)अर्थ (অৰ্থ)
जमानासमय, कालসময়
ख्यातियश, कीर्तिযশস্যা
दरबारराजसभाৰাজসভা
शरणागतआश्रितশৰণাগত
विपत्तिआफतবিপদ
खाद्यान्नभोजनআহাৰ
असमंजसविव्रत होनाবিবুদ্ধিত পৰা

पशन-अभयस (প্রশ্ন অভ্যাস)

प्रश्न : 1. हमारे देश के दो महान दानबीरों के नाम बताओ।(আমাৰ দেশৰ দুজন মহান দানবীৰৰ নাম কোৱা।)

उत्तर : हमारे देश के दो महान दानबीर हैं कर्ण और बलि।

प्रश्न : 2. प्रस्तुत कहानी को सरल हिन्दी में लिखो। (ত্বত কাহিনীটো সবল হিন্দীত লিখা)

उत्तर : पुराने जमाने में शिवि नाम के एक धार्मिक और दानशील राजा थे। उसकी दानशीलता के बारे में सुनकर स्वर्ग से इन्द्र और अग्निदेवता उनको परीक्षा लेनी चाही। इन्द्र ने बाज और अग्निदेवता ने कबुतर बन कर पृथिवी पर प्रवेश की।

बाज पक्षी ने कबुतर को खाने के लिए पीछे-पीछे भागा और कबुतर आतुर होकर भाग कर महाराज शिवि के राजसभा में आ पहुँचा। उस समय राजा शिवि राजसभा में थे। कबुतर प्राणों को बचाने के लिए राजा शिवि के पास जाकर बोला- मुझे बचा लीजिए। तब शिवि ने कहा कि वह भय न करें। शरणागत को बचाना राजा का धर्म होता है।

तब बाज ने बोला कि महाराज आपने मेरे मुँहसे खाद्य छीन रहे है। यह कैसा न्याय है? राजा ने कहा कबुतर को छोड़कर क्या खाना चाहते है तब बाजने मनुष्य का मांस माँगा राजा दुविधा में पड़ गये। उसने मन में ठान ली कि अपने प्राण देकर भी शरणागत के रक्षा करेंगे। तब उसने एक तराजु मंगाया। तराजु में अपने शरीर का मांस काटकर देने लगा। कबुतर के वजन के समान अपने शरीर का मांस देने लगा। किंतु आश्चर्य की बात है कि कबुतर के बराबर नहीं होता था। तब उन्होंने स्वयं तराजू के एक ओर बैठ गए।

राजा शिवि की दानशीलता देखकर देवराज इन्द्र और अग्निदेवता बहुत प्रसन्न हो गए। वे अपने रूप प्रकट करते हुए और राजा को बरदान देकर स्वर्ग में चले गए। आज भी राजा शिवि की नाम श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। 

प्रश्न : 3. सम्पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखो। (সম্পূৰ্ণ বাক্যত উত্তৰ লিখা) 

(i) शिवि कैसे राजा थे ?

उत्तर : शिवि धार्मिक और दानशील राजा थे। 

(ii) स्वर्ग के कौन-कौन देवता शिवि की परीक्षा लेने आये थे ? 

उत्तर : स्वर्ग के देवता इन्द्र और अग्निदेवता ने शिवि की परीक्षा लेने आये थे। 

(iii) बाज और कबुतर आचल में कौन थे ? 

उत्तर : बाज आचल में देवराज इन्द्र और कबुतर अग्निदेवता थे।

(iv) बाज ने महाराज से क्या शिकायत की थी ? 

उत्तर : बाज ने महाराज से शिकायत की थी कि उसके प्राणों को बचाएं l

(v) राजा शिवि ने कौन-सा निर्णय लिया ? 

उत्तर : राजा शिथि ने मरकर भी शरणागत की रक्षा करने का निर्णय लिया।

प्रश्न : 4. खाली जगहों की पूर्ति करो : (খালী ঠাই পূৰণ কৰা)

(i) शरणागत की रक्षा करना ही ___धर्म होता है। 

(ii) राजा ___ में पड़ गये।

(iii) राजा शिवि की ___देखकर ___और अग्निदेवता बहुत प्रसन्न हो गए l

उत्तर : (i) राजा का (ii) असमंजस (iii) दानशीलता, देवराज इन्द्र 

प्रश्न : 5 वाक्य बनाओ : (বাক্য সাজা)

दानशीलता, वरदान, संकोच, राजधर्म, असमंजस, शरणागत

उत्तर : दानशीलता- दानशीलता का गुण मनुषों का पुरुषोत्तम बना देते हैं। 

वरदान- उसको दानशीलता की वरदान मिली। 

संकोच- तुम जरा भी संकोच न करना । 

राजधर्म- राजा शिवि ने रजधर्म पालन की।

असमंजस- वह अंसमंजस में पड़ गया। 

शरणागत- शरणागत को आश्रय देना चाहिए।

प्रश्न : 6. विपरीत शब्द लिखो : (বিপৰীত শব্দ লিখা)

दानी, स्वर्ग, संकोच, धर्म, पाप, पुराना, देवता, डर, प्रार्थना

उत्तर : 

दानीकंजुसस्वर्गनरक
संकोचनिसंकोचधर्मअधर्म
पापपुण्यपुरानानुतन
देवतादानवडरनिडर
प्रार्थनाककर्थना

प्रश्न : 7. “क्योंकि शरणागत की रक्षा करना राजधर्म है” में किस धर्म के बारे में बताया गया है ? शरणागत से क्या समझते हो ? 

उत्तर : शरणागत अर्थात जो मनुष्य विपद में पड़ गया और दूसरों के आश्रय में आया उसे शरणागत कहता है। यह मनुष्य के मानवता का एक धर्म है। राजा का धर्म होता है सभी प्राणीओं को रक्षा करें। इसलिए जो उनके शरण या आश्रय में रहे उसकी रक्षा करना पड़ेगा।

शरणागत का अर्थ दूसरों के आश्रय या शरण में आना। शरण अर्थात अपने को दूसरों को सौंप देना। मनुष्य जब विप में पड़ जाते है तो वह अपना सर्वस्व दूसरों के पास दे देते हैं।

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