NCERT Class 12 Sociology Chapter 3 संविधान एवं सामाजिक परिवर्तन

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NCERT Class 12 Sociology Chapter 3 संविधान एवं सामाजिक परिवर्तन

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Chapter: 3

भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास
प्रश्नावली

1. क्या आपने बाल मज़दूर और मज़दूर किसान संगठन के बारे में सुना है? यदि नहीं तो पता कीजिए और उनके बारे में 200 शब्दों में एक लेख लिखिए। 

उत्तर: बाल मजदूर का अर्थ – 14 साल से कम आयु के बच्चे जो ढाबे, होटलों, कारखानों में कार्य करते हैं, बाल मजदूर कहलाते हैं।

(i) बाल मज़दूर के रूप में कार्य करने वाले बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और पढ़-लिख नहीं पाते।

(ii) ये बच्चे अक्सर नशा, शराब जैसी बुरी आदतों की चपेट में आ जाते हैं।

(iii) इन्हें जीवन की बुनियादी सुविधाएँ, जैसे– भोजन, स्वास्थ्य, स्वच्छ पानी और सुरक्षा, उपलब्ध नहीं होतीं।

(iv) अधिकतर बाल मज़दूर सड़कों या झुग्गी-बस्तियों में रहते हैं, जहाँ का वातावरण गंदा और असुरक्षित होता है।

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बाल मज़दूर और मज़दूर किसान संगठन:

बाल मज़दूरी भारत में एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जो गरीबी, शिक्षा की कमी और सामाजिक असमानता से उत्पन्न होती है। संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा भी शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि बाल मज़दूरी से मुक्त जीवन और शिक्षा प्राप्त करना बच्चों का मौलिक अधिकार है। संविधान और कानूनों के माध्यम से कई बच्चों को बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किया गया और पुनर्वास योजनाओं से जोड़ा गया।

वहीं, मज़दूर किसान संगठन ग्रामीण भारत के किसानों और खेत मज़दूरों की समस्याओं को सामने लाने और उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए कार्यरत हैं। ये संगठन न्यूनतम वेतन, फसल बीमा, भूमि अधिकार और सामाजिक सुरक्षा की माँग करते हैं। अध्याय 3 में यह बताया गया है कि लोकतंत्र में ऐसे संगठन दबाव समूह के रूप में सरकार को अपनी माँगों के प्रति सचेत करते हैं। इन संगठनों ने संविधान में दिए गए सामाजिक न्याय के सिद्धांत को व्यवहार में लाने में अहम भूमिका निभाई है।

इस प्रकार, बाल मज़दूरी के विरुद्ध कानून और किसान-मज़दूर संगठनों का संघर्ष, दोनों ही समाज में समानता और न्याय की स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

2. ग्रामीणों की आवाज़ को सामने लाने में 73वाँ संविधान संशोधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।

उत्तर: 1992 में 73वें संविधान संशोधन के रूप में मौलिक व प्रारंभिक स्तर पर लोकतंत्र और विकेंद्रीकृत शासन का परिचय मिलता है। इस अधिनियम ने पंयाचती राज संस्थाओं को संवैधानिक प्रस्थिति प्रदान की। अब यह अनिवार्य हो गया है कि स्थानीय स्वशासन के सदस्य गाँवों तथा नगरों में हर पाँच साल में चुने जाएँ। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि स्थानीय संसाधनों पर अब चुने हुए निकायों का नियंत्रण होता है।

73 वें और 74 वें संविधान संशोधन ने ग्रामीण व नगरीय दोनों ही क्षेत्रों के स्थायी निकायों के सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया। इनमें से 17 प्रतिशत सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। यह संशोधन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके अंतर्गत पहली बार निर्वाचित निकायों में महिलाओं को शामिल किया गया जिससे उन्हें निर्णय लेने की शक्ति मिली। स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों, नगर निगमों, जिला परिषदों आदि में एक तिहाई पदों पर महिलाओं का आरक्षण है। 73वें संशोधन के तुरंत बाद 1993-94 के चुनाव में 8,00,000 महिलाएँ एक साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं से जुड़ीं। वास्तव में महिलाओं को मताधिकार देने वाला यह एक बड़ा कदम था। स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का प्रावधान करने वाला संवैधानिक संशोधन पूरे देश में 1992-93 से लागू है।

3. एक निबंध लिखकर उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइए जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता के दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं और उनकी समस्याओं का अनुभव किया है।

उत्तर: भारतीय संविधान: आम जनता के जीवन में परिवर्तन के उपाय भारतीय संविधान न केवल देश की शासन व्यवस्था की आधारशिला है, बल्कि यह आम जनता के जीवन में सामाजिक न्याय, समानता और गरिमा सुनिश्चित करने का एक सशक्त साधन भी है। संविधान में निहित सिद्धांतों और प्रावधानों के माध्यम से भारतीय समाज में कई स्तरों पर सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं, जिनका अनुभव रोजमर्रा की जिंदगी में किया जा सकता है।

(i) मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: संविधान द्वारा प्रदत्त अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिकार की व्याख्या करते हुए इसे गरिमापूर्ण जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसे मूलभूत अधिकारों से जोड़ा है। उदाहरण के लिए, बंधुआ मजदूरी और बाल श्रमिकों के पुनर्वास हेतु लिए गए निर्णय इस बात के प्रमाण हैं कि संविधान ने वंचितों को न्याय दिलाने में प्रभावी भूमिका निभाई है।

(ii) सूचना का अधिकार: 1993 में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के अधिकार को अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग माना। इससे आम नागरिकों को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता की मांग करने का अधिकार मिला। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों द्वारा लगाए गए बोर्ड यह दर्शाते हैं कि कितनी राशि कहां खर्च हुई, जिससे जनता सरकार से सीधे सवाल कर सकती है।

(iii) पंचायती राज और लोकतांत्रिक भागीदारी: 1992 में 73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा मिला। इससे ग्राम स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना हुई और महिलाओं व अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को प्रतिनिधित्व मिला। एक दलित महिला जो पहले ‘रामू की माँ’ या ‘हीरालाल की पत्नी’ के नाम से जानी जाती थी, अब एक निर्वाचित पंचायत सदस्य बन चुकी है। इससे न केवल उसका आत्मविश्वास बढ़ा, बल्कि समाज में उसकी पहचान भी बनी।

(iv) महिलाओं का सशक्तिकरण: संविधान के संशोधन के बाद पंचायतों में महिलाओं को 33% आरक्षण मिला, जिससे लाखों महिलाएं निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में शामिल हुईं। वन पंचायतों में महिलाएं वनों की रक्षा कर रही हैं, पेड़ लगा रही हैं, और अवैध कटाई को रोक रही हैं – यह सब संविधान द्वारा दिए गए अवसरों की देन है।

(v) सामाजिक न्याय की स्थापना: समान कार्य के लिए समान वेतन जैसे निर्देशात्मक सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों के समान माना। इसके चलते बागान मजदूरों और कृषि श्रमिकों को उनके अधिकार दिलाने के प्रयास हुए।

4. लोकतंत्र में राजनैतिक दलों की महत्ता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: सरकार के लोकतांत्रिक प्रारूप में राजनीतिक दल मुख्य भूमिका अदा करते हैं। एक राजनीतिक दल को निर्वाचन प्रक्रिया द्वारा सरकार पर न्यायपूर्ण नियंत्रण स्थापित करने की ओर उन्मुख संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। राजनीतिक दल एक ऐसा संगठन होता है जो सत्ता हथियाने और सत्ता का उपयोग कुछ विशिष्ट कार्यों को संपन्न करने के उद्देश्य से स्थापित करता है। राजनीतिक दल समाज की कुछ विशेष समझ और यह कैसे होना चाहिए पर आधारित होते हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली में विभिन्न समूहों के हित राजनीतिक दलों द्वारा ही प्रतिनिधित्व प्राप्त करते हैं जो उनके मुद्दों को उठाते हैं। विभिन्न हित समूह राजनीतिक दलों को प्रभावित करने के लिए कार्य करेंगे। जब किसी समूह को लगता है कि उसके हित की बात नहीं की जा रही है तो वह एक अलग दल बना लेता है। या फिर ये दबाव समूह बना लेते हैं जो सरकार से अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं। हित समूह राजनीतिक क्षेत्र में कुछ निश्चित हितों को पूरा करने के लिए बनाए जाते हैं। ये प्राथमिक रूप से वैधानिक अंगों के सदस्यों का समर्थन प्राप्त करने के लिए बनाए जाते हैं। कुछ स्थितियों में राजनीतिक संगठन शासन सत्ता पाना तो चाहते हैं लेकिन वे इंकार कर देते हैं क्योंकि उन्हें कुछ मानक माध्यमों द्वारा ऐसा अवसर नहीं मिलता है। ऐसे संगठन तब तक आंदोलन में बने रहते हैं जब तक उन्हें मान्यता नहीं मिलती।

5. लोकतांत्रिक व्यवस्था में दबाव समूह की भूमिका का वर्णन करें।

उत्तर: लोकतांत्रिक व्यवस्था में दबाव समूह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये समूह ऐसे संगठित लोग होते हैं जो सरकार पर प्रभाव डालने का प्रयास करते हैं ताकि उनके विशेष हितों की रक्षा हो सके। यद्यपि लोकतांत्रिक प्रणाली में राजनीतिक दल प्रमुख भूमिका निभाते हैं और विभिन्न सामाजिक समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, परंतु जब किसी समूह को लगता है कि उसकी बात को उचित रूप से नहीं उठाया जा रहा, तो वह या तो नया राजनीतिक दल बनाता है या फिर दबाव समूह के रूप में संगठित होता है। ये दबाव समूह सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि नीति निर्माण में अपने हितों को सम्मिलित करवाने के लिए काम करते हैं। वे वैधानिक संस्थाओं पर प्रभाव डालकर अपने हितों की पूर्ति का प्रयास करते हैं। हालांकि, यह भी सत्य है कि सभी दबाव समूह समान प्रभावशाली नहीं होते, और अक्सर सामाजिक रूप से सशक्त वर्ग ही इनका संचालन करते हैं, जिससे अन्य वर्गों की भागीदारी सीमित हो जाती है। इसके बावजूद, लोकतंत्र में सामाजिक आंदोलनों और दबाव समूहों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि ये नागरिकों की आवाज़ उठाने, जन-सरोकारों को सामने लाने और सत्ता को उत्तरदायी बनाने में सहायता करते हैं।

6. दबाव समूह का गठन किस प्रकार होता है?

उत्तर: दबाव समूह का गठन विशेष रूप से तब होता है जब किसी समाज के एक वर्ग या समूह को यह महसूस होता है कि उनके हितों की राजनीतिक दलों द्वारा सही तरीके से प्रतिनिधित्व नहीं किया जा रहा है। ऐसे में वे या तो एक नया राजनीतिक दल बना लेते हैं या फिर एक स्वतंत्र संगठन के रूप में दबाव समूह का गठन करते हैं। ये दबाव समूह सरकार पर प्रभाव डालने तथा नीति निर्माण की प्रक्रिया में अपने हितों को शामिल करवाने के उद्देश्य से कार्य करते हैं। इनका उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि अपने विशेष मांगों और मुद्दों को सरकार के समक्ष रखना होता है। आमतौर पर इनका निर्माण वैधानिक संस्थाओं के सदस्यों के समर्थन को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। कभी-कभी कुछ राजनीतिक संगठन जो शासन में भाग लेना चाहते हैं, लेकिन जिनके पास वह अवसर नहीं होता, वे भी दबाव समूह के रूप में कार्य करते हैं और तब तक आंदोलनरत रहते हैं जब तक उन्हें मान्यता नहीं मिल जाती। इस प्रकार, दबाव समूहों का गठन समाज में विशेष हितों की अभिव्यक्ति और संरक्षण हेतु होता है, जो लोकतंत्र में जन-सरोकारों को सशक्त रूप से प्रस्तुत करने का कार्य करते हैं।

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