NCERT Class 8 Social Science Hamare Atit Chapter 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

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NCERT Class 8 Social Science Hamare Atit Chapter 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

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Chapter: 7

हमारे अतीत – III

फिर से याद करें

1. निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया-

राममोहन रॉय

दयानंद सरस्वती

वीरेशलिंगम पंतुलु

ज्योतिराव फुले

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पंडिता रमाबाई

पेरियार

मुमताज अली

ईश्वरचंद्र विद्यासागर

2. निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ-

(क) जब अंग्रेज़ों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।

उत्तर: सही।

(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था।

उत्तर: गलत।

(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।

उत्तर: गलत।

(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था।

उत्तर: सही।

आइए विचार करें

3. प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?

उत्तर: प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में पहली बार किताबें, अखबार, पत्रिकाएँ, पर्चे और पुस्तिकाएँ छप रही थीं, ये चीजें पुराने साधनों के मुकाबले सस्ती थीं, इसलिए ज्यादा लोगों की पहुँच में भी थी। ऐसे सुधारक अक्सर पुराने ग्रंथों की बातों का उल्लेख करके अपने पक्ष में लोगों को समझाते थे। प्राचीन ग्रंथों के प्रति लोगों के मन बहुत सम्मान होता था। इसलिए उन ग्रंथों की बातों के इस्तेमाल से लोगों को समझाने में सहूलियत होती थी।

4. लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?

उत्तर: लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कई कारण होते थे जैसे–

(i) लोगो को डर था कि स्कूल वाले लड़कियाँ घरों से दूर भागने लगेंगी। उन्हें घरेलू कामकाज नहीं करने देंगे।

(ii) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से गुजर कर जाना पड़ता था। लड़कियों के आचरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और वे बिगड़ जाएँगी।

(iii) उनकी मान्यता थी कि लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रहना चाहिए। इससे उनके आचरण पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

5. ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा? यदि हाँ तो किस कारण?

उत्तर: ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग इसलिए आलोचना करते थे क्योंकि उन पर देश के कई भागो में हमला भी किया गया क्योंकि उन पर जनजातीय समूहों तथा निम्न जाती के लोगों का ज़बरन धर्म परिवर्तित करने का संदेह था। प्रचारकों ने कुछ आदिवासी समुदायों तथा निम्न जाति के लोगों का धर्म परिवर्तन कर रहे थे। हां, कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया।

हाँ, कुछ लोगों ने ईसाई प्रचारकों का समर्थन भी किया होगा क्योंकि ये प्रचारक जनजातीय लोगों तथा निम्न जाती के लोगों के लिए स्कूलों की स्थापना कर रहे थे जिससे उनके बच्चों के लिए शिक्षा के उचित अवसर प्राप्त हो सकते थे।

6. अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन-से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?

उत्तर: अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कुछ लोग असम, मॉरिशस, त्रिनिदाद और इंडोनेशिया आदि स्थानों पर बागानों में काम करने भी चले गए। परन्तु गरीबों, निचली जातियों के लोगों को यह गाँवों में स्वर्ण ज़मींदारों द्वारा उनके जीवन पर दमनकारी कब्ज़े और दैनिक अपमान से छूट निकलने का एक मौका था। शहरों में नालियाँ बनाई जानी थीं, सड़कें बिछनी थीं, इमारतों का निर्माण होना था और शहरों को साफ किया जाना था। इसके लिए कुलियों, खुदाई करने वालों, बोझा ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नालियाँ साफ़ करने वालों, सफाईकर्मियों, पालकी ढोने वालों, रिक्शा खींचने वालों की ज़रूरत थी। इन कामो को सँभालने के लिए गाँवों और छोटे कस्बो के गरीब शहरों की तरफ जाने लगे जहाँ मज़दूरी की माँग पैदा हो रही थी। शहर जाने वालों में से बहुत सारे निम्न जातियों के लोग भी थे।

7. ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?

उत्तर: ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को कुछ इस तरह सही ठहराया था कि उन्नीसवीं सदी के आख़िरी हिस्से में आर्य समाज द्वारा पंजाब में और ज्योतिराव फुले द्वारा महाराष्ट्र में लड़कियों के लिए स्कूल खोले गए। उनका दृढ़ विश्वास था कि महिलाओं और निचली जातियों के अन्य लोगों को शिक्षा तक पहुँच मिलनी चाहिए, और उन्होंने स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करके इसे वास्तविकता बनाने के लिए काम किया। वह जाति व्यवस्था और महिलाओं और निचली जातियों के लोगों के साथ व्यवहार के मुखर विरोधी थे, साथ ही उनकी स्वतंत्रता और विकास के लिए प्रयास करते थे।

8. फुले ने अपनी पुस्तक ग़ुलामगीरी को ग़ुलामों की आज़ादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया?

उत्तर: 1873 में फुले ने ग़ुलामगीरी (गुलामी) नामक एक किताब लिखी। इससे लगभग दस साल पहले अमेरिकी गृह युद्ध हो चुका था जिसके फलस्वरूप अमरीका में दास प्रथा खत्म कर दी गई थी। फुले ने अपनी पुस्तक उन सभी अमरीकियों को समर्पित की जिन्होंने ग़ुलामों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया था। इस तरह उन्होंने भारत की “निम्न” जातियों और अमरीका के काले ग़ुलामों की दुर्दशा को एक-दूसरे से जोड़ दिया।

जैसा कि इस उदाहरण से पता चलता है, फुले नै जाति व्यवस्था की अपनी आलोचना को सभी प्रकार की गैर-बराबरी से जोड़ दिया था। वह “उच्च” जाति महिलाओं की दुर्दशा, मज़दूरों की मुसीबतों और “निम्न” जातियों के अपमानपूर्ण हालात के बारे में गहरे तौर पर चिंतित थे। जाति सुधार का यह आंदोलन बीसवीं सदी में भी पश्चिम भारत में बी. आर. अम्बेडकर और दक्षिण में ई.वी. रामास्वामी नायकर जैसे महान दलित नेताओं के नेतृत्व में चलता रहा।

9. मंदिर प्रवेश आंदोलन के ज़रिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे?

उत्तर: 1927 में अंबेडकर ने मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया, जिसमें उनके महार जाति के अनुयायियों ने भाग लिया। जब दलितों ने मंदिर के तालाब से पानी का इस्तेमाल किया तो ब्राह्मण पुजारी भड़क गए। उनका लक्ष्य सभी को समाज के भीतर जातिगत पूर्वाग्रहों की ताकत दिखाना था।

10. ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?

उत्तर: ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना इसलिए करते थे क्योंकि उनको लगता था कि राष्ट्रीय आंदोलन जातीय असमानता पर आधारित है। इस आंदोलन में सभी जातियों को सामान दर्जा हासिल नहीं है। हां, उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में काफी मदद मिली।

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