Class 12 Hindi Chapter 9 बादल- राग

Class 12 Hindi Chapter 9 बादल- राग Question answer to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter AHSEC Class 12 Hindi Chapter 9 बादल- राग and select needs one.

Class 12 Hindi Chapter 9 बादल- राग

Join Telegram channel

Also, you can read the SCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per SCERT (CBSE) Book guidelines. These solutions are part of SCERT All Subject Solutions. Here we have given AHSEC Class 12 Hindi Chapter 9 बादल- राग Solutions for All Subject, You can practice these here…

बादल- राग

Chapter – 9

काव्य खंड

कवि परिचय: सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1899 महिषादल (बंगाल के मोदिनीपुर जिले में) में हुआ। इनका घर उन्नाव जिला उत्तर प्रदेश में था। इनके पिता बंगाल प्रदेश के मदनीपुर रियासत में काम करते थे। इन्होंने मैट्रिकुलेशन तक की शिक्षा यहीं प्राप्त की। 16-17 वर्ष की अवस्था तक आप की माता और पिता का निधन इन्फ्यून्जा के विकराल प्रकोप के कारण हो गया। इनकी पत्नी का भी देहान्त हो गया जिससे ये काफी टूट गए। बंगाल से ये उन्नाव गाँव में आ गए। सन् 1930 से 1942 तक आप लखनऊ में भी रहे। निराला ने अपने जीवन में घनघोर कष्ट सहे। इनके परिवार के कई सदस्य असमय काल के ग्रास बन गए। इन्होंने घनघोर आर्थिक अभाव का कष्ठ भी झेला। इनकी पुत्री सरोज के निधन के बाद इन्होंने ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता रचना की। तरह-तरह के प्रयोग और विशेष रूप से मुक्त छन्द लिखने के कारण आपका विरोध हुआ। लेकिन निराला ने बड़े साहस से सभी विरोधों का सामना किया। ये निरंतर अपराजित योद्धा की तरह जीवन संघर्ष करते रहें। इनकी मृत्यु सन् 1961 में इलाहाबाद में हुई।

प्रमुख रचनाएँ:

कविता-संग्रह: अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता।

गद्य: चतुरी चमार, प्रभावती, बिल्लेसुर बकरिहा, चोटी की पकड़, काले कारनामे । निराला जी ने समन्वय मतवाला पत्रिका संपादन भी किया।

प्रश्नोत्तर

1. अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और कयो? 

उत्तर: यहाँ कवि ने प्रलय के बादलों को दुख की छाया कहा है। कवि कहते है, प्रस के बादल वायु रूपी सागर के ऊपर सदैव इस प्रकार मँडराता है, जिस प्रकार नश्वर सुखी ऊपर दुःख की छाया सदैव घिरी रहती है। सुख समीर (हवा) के समान चंचल और असि उ होता है। और इस अस्थिर सुख पर दुख की छाया मँडराती रहती है। 

2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत  किया गया है? 

उत्तर: कवि यहाँ क्रान्ति के समय धराशायी होने वाले गर्वीले वीरों की ओर संके किया है। कवि ने बादलों को वीरों के साथ तुलना करते हुए कहा है, ये बादल वीरों समान अपना मस्तक ऊपर को उठाए हुए उन सैकड़ों पर्वतों पर बिजलियां गिराकर उन अचल शरीरों को वितीर्ण कर देते है, जो ऊंचाई और धैर्य में आसमान की बराबरी कर वाले होते हैं।

3. विप्लव – रव से छोटे ही, शोभा पाते पंक्ति में विप्लव रव से क्या तात्पर्य है छोटे ही है शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है? 

उत्तर: विप्लव का तात्पर्य है, क्रान्ति और रव का अर्थ है शब्द। अतः विप्लव रख तात्पर्य है, विप्लव शब्द । विप्लव-रव से छोटे ही है शोभा पाते इसलिए कहा गया है क्यो क्रान्ति सदैव वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है।

4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है? 

उत्तर: बादलों के आगमन से आसमान में भारी गर्जन होने लगता है। गर्जन के प मूसलाधार बारिश होने लगती है, और पानी की बूंदे पाकर प्रकृति हरी-भरी हो जाती. बारिश की बूंदों के पाकर धरती के भीतर सोए अंकुर नवजीवन की आशा में सिर करके बादल की उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं।

5. निराला जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: सन् 1899 महिषादल नामक स्थान में हुआ था जो बंगाल के मेदिनीपुर जिले में गया है अवस्थित है।

6. निराला ने किन पत्रिकाओं का सम्पादक किया था? 

उत्तर: निराला ने समन्वय तथा मतवाला नामक पत्रिका का संपादन किया था।

7. बादल किसका प्रतीक है?

उत्तर: बादल विप्लव, क्रान्ति का प्रतीक है।

8. बादल राग किसका सूचक है?

उत्तर: बादल राग एक ओर जीवन निर्माण के नए राग का सूचक है तो दूसरी ओर उस भैरव संगीत का, जो नवनिर्माण का कारण बनता है।

व्याख्या कीजिए

1. तिरती है समीर……..फिर-फिर।

शब्दार्थ: तिरती है- मंडराना, समीर- हवा, सागर-समुद्र, अस्थिर – नश्वर, दग्ध – जला हुआ, विप्लव प्रलय, प्लावित – डूबी, रण-तरी- रण रुपी नौका, घन- बादल, – सुप्त सोये हुए, अविकासित, उर हृदय, ताक देखना।

भावार्थ: कवि कहते है कि प्रलय के बादल वायु रूपी सागर के ऊपर सदैव इस प्रकार भिंडराता है, जिस प्रकार नश्वर सुख के ऊपर दुःख की छाया सदैव घिरी रहती है। समीर के समान सुख भी चंचल और अस्थिर होता है। सुख के वातावरण पर दुख छा जाता है। ग्रीष्म के भयंकर ताप से दग्ध संसार से हृदय पर निर्दय क्रान्ति के रूप में क्रान्ति का दूत बादल छा जाता है। कवि कहते है, जिस प्रकार क्रान्ति संसार के कष्टों पर विनाश करके सुख से पूर्ण एक नवीन वातावरण की सृष्टि कर देती है, उसी प्रकार क्रान्ति का प्रतीक बादल भी ग्रीष्म ताप से पीड़ित संसार को भव जीवन का सुख-संदेश देता है। यह बादल युद्ध की आकांक्षाओं से भरा हुआ है। बादल की नगाड़ों के समान गर्जन को सुनकर पृथ्वी के अन्दर सोए हुए अंकुर जल-कणों के रूप में नया जीवन प्राप्त करने की आशा से अपना सिर ऊँचा करके बादल की ओर ताक रहे हैं।

2. बार-बार गर्जन ….. गगन स्पर्शी स्पर्द्धा धीर।

शब्दार्थ: गर्जन- गरजना, वर्षन वर्षा, मूसलधार घनघोर वर्षा, ब्रज हुँकार भयानक गर्जना, अशनि-पात-बज्रपात, शायित गिराया हुआ, शत-शत – सौ-सौ, क्षत विक्षत घायल, अचल पर्वत, गगन स्पर्शी – आकाश छूने वाला, स्पर्द्धा घोर स्पर्धा करने वाला। 

भावार्थ: कवि ने आसमान के बादलों को विप्लव के बादल कहा है। वे कहते है कि अ ये विप्लव के बादल बार-बार गरजते और मुसलाधार वर्षा करते है। कवि कहते है, इनके घोर और भयंकर गर्जन को सुनकर और वर्षा से ग्रस्त होकर संसार के प्राणी अपना हृदय थाम लेते है, अर्थात डर के मारे सिहर उठते है। कवि कहते है, ये विप्लव के बादल वीरों के समान अपना मस्तक ऊपर उठाए उन सैकड़ों पर्वतों पर बिजलियाँ गिराकर उनके अचल शरीरों को वित्तीर्ण कर देते है, जो ऊँचाई और धैर्य में आसमान की बराबरी करने वाले होते हैं।

3. हंसते हैं, छोटे…….. शोभा पाते।

शब्दार्थ: लघु- छोटा, शस्य हरा, विप्लव क्रान्ति, रव – शब्द।

भावार्थ: कवि कहते है कि हे विप्लव के बादल जब भी तुम गरज कर बरसते हो। तब बड़े-बड़े वृक्ष तो धराशायी हो जाते है, परंतु फूलों और बीजों को धारण किए हुए अनाज के छोटे-छोटे अगणित पौधे अपने छोटे से भार को लिए हुए खिल उठते है और ये छोटे छोटे पौधे हिलते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे है, मानो प्रसन्नतापूर्वक वे हाथ हिलाते हुए बादलों को अपने पास बुला रहे है। इन विप्लवी बादलों की विनाश लीला से उन पौधों को डर नहीं लगता, क्योंकि क्रान्ति-कालमें छोटे पदार्थ ही शोभा पाते है।

4. अट्टालिका नहीं ……. मुख ढाँप रहे हैं।

शब्दार्थ: अट्टालिका महल, आतंक भय, पंक कीचड़, प्लावन – प्रलय, क्षुद्र – छोटा, प्रफुल्ल खिला हुआ, शैशव बचपन, सुकुमार कोमल, रुद्ध रुका हुआ, क्षुब्ध – दुःखी और क्रुद्ध आदि।

भावार्थ: कवि ने बादलों को क्रान्ति दूत बताया हैं। वे कहते है इसके आगमन से ये अट्टालिकाएँ अब केलिक्रीड़ा की जगह नहीं रह गई बल्कि ये अब भय के निवास स्थान बन गई है। जल प्लावन हमेशा कीचड़ पर होता है और कीचड़ में ही खिलने वाले छोटे-छोटे कमल पुष्पों से निर्मल जल ढरकता है। कवि कहते है, कि बादल का जीवन दान ऊंचे महलों में रहने वालों के लिए नहीं होता है बल्कि वह तो कीचड़ सदृश दलित तथा सर्वहारा वर्ग के लिए होता है। भीषण जल-प्लावन के समय जिस प्रकार छोटे-छोटे कमल खिले रहते है, उसी प्रकार समाज के तथाकथित छोटे रोगों और दुखों से पीड़ित रहते हुए भी उसी प्रकार प्रसन्न बने रहते है, जिस प्रकार कष्ट के समय भी बालक के शरीर पर सुकुमारता बनी रहती है। और अट्टालिकाओं में रहने वाले धनिक लोग जो अपनी शैय्या पर नारी के अंग से लिपटे होते है, डर के मारे काँपने लगते है। क्रान्ति रूपी बादल का कठोर गर्जन उन्हें भयभीत करता है। वे भयभीत होकर अपने नयन तथा मुख बन्द कर लेते है।

5. जीर्ण बाहु है……. जीवन के पारावार।

शब्दार्थ: जीर्ण- पुरानी, शीर्ण शिथिल, पका हुआ, पारावार समुद्र।

भावार्थ: कवि ने बादलों को विप्लव के वीर कहा है। वे कहते है कि शक्तिहीन श्रुजा और शिथिल शरीर वाले व्याकुल कृषक तेरा आह्वान करते है। कृषकों की दयनीय हालत बताते हुए कहा है कि धनिक वर्ग के लोगों ने उनका खून चूस (शोषण) लिया है। अब तो * मात्र हड्डियों का ढांचा ही अवशेष है। कवि ने बादलों को संबोधित करते हुए कहा हे जीवन के अथाह भण्डार किसान तुझे अधीर होकर बुला रहा है।

6. व्याख्या कीजिए:

1. तिरती है समीर-सागर पर 

अस्थिर सुख पर दुख की छाया

जग के दग्ध हृदय पर

 निर्दय विप्लव की प्लावित माया –

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह (भाग-2) के काव्य खंड के ‘बादल राग’ नामक कविता से ली गई है। इसके कवि है सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।

यहाँ कवि लघुमानव के दुख से त्रस्त होकर बादल का आह्वान क्रान्ति के रूप में कर रहे है। कवि कहते है कि प्रलय के बादल वायु रूपी सागर के ऊपर तू सदैव इस प्रकार मंडराता है, जिस प्रकार नश्वर सुख के ऊपर दुख की छाया सदैव घिरी रहती है। समीर के समान सुख भी चंचल और अस्थिर होता है। प्राय: सुख के वातावरण पर दुख छा जाता है। ग्रीष्म के भयानक ताप से पीड़ित संसार से हृदय पर निर्दय क्रान्ति के रूप में क्रान्ति का दूत बादल छा जाता है। क्रान्ति का प्रतीक बादल ग्रीष्म ताप से पीड़ित संसार को भव-जीवन का सन्देश देता है।

विशेष:

1. इसकी भाषा सहज सरल है।

2. यहाँ कवि ने सुख को अस्थिर कहा है।

3. अलंकार।

क) छेकानुप्रास अलंकार- समीर- सागर।

2. अट्टालिका नहीं है रे

 आतंक भवन

 सदा पंक पर ही हो जल-विप्लव- प्लावन।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह (भाग-2) के काव्य-खंड के ‘बादल राग’ नामक कविता से ली गई है। इसके कवि है सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी। कवि कहते है कि क्रांति हमेशा वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है। अट्टालिका नहीं है रे में भी वंचितों की पक्षधरता की अनुगूँज स्पष्ट है।

कवि कहते है कि क्रान्ति के दूत बादल के आगमन से ये अट्टालिकाएं अब केलि-क्रीड़ा की जगह नहीं रह गई बल्कि ये भय के निवास स्थान बन गई है। जल प्लावन सदैव कीचड़ में होता है, और कीचड़ में ही खिलने वाले छोटे-छोटे कमल पुष्पों से निर्मल जल ढरकताहै। कहने का तात्पर्य यह है कि बादल का जीवन दान दलित सर्वहारा वर्ग के लिए होता है। 

विशेष:

1. कवि ने सर्वहारा वर्ग के प्रति सहानुभूति तथा पूंजीपति के प्रति घृणा और आक्रोश प्रकट किया है।

2. प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग किया गया है- पंक, शुद्र तथा निम्नवर्ग के लोगों का प्रतीक है।

3. भाषा सहज सरल है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top