Class 12 Hindi Chapter 1 दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

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Class 12 Hindi Chapter 1 दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

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दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

Chapter – 1

काव्य खंड

कवि परिचय: इलाहबाद के प्रर्वतक हरिवंश राय बच्चन का जन्म सन् 1907 ई० में प्रयाग के कटरा मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ। इनके पिता प्रतापनारायण अपने मधुर स्वभाव के कारण सभी के प्रिय थे। हरिवंश राय बच्चन की प्रारम्भिक शिक्षा प्रयाग और काशी में हुई। अंग्रेजी विषय लेकर इन्होंने स्तानकोत्तर उपाधि प्राप्त की। उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि मिली। इनको अपने जीवन के प्रारम्भिक दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा क्योंकि इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय बच्चन जी एक अध्यापक के रूप में कार्यरत थे। सन् 1942-1952 तक इलाहबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से संबद्ध फिर विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। सन् 1966 ई. में वे राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गये। बच्चन ने छायावाद काल में ही लिखना आरम्भ किया था। उनके काव्य विकास को मधु काव्य, विषाद काव्य, प्रणय काव्य, राजनीतिक-सामाजिक काव्य की श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। उन्होंने लाक्षणिक वक्रता की बजाय सीधी सादी जीवंत भाषा और संवेदनसिक्त गेय शैली में अपनी बात कही। मध्ययुगीन फारसी के कवि उमर खय्याम का मस्तानापन हरिवंशराय बच्चन की प्रारंभिक कविताओं में मिलता है। सन् 1930-35 ई. का समय इलाहबाद कहलाता है जिसके प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन को माना जाता है। हरिवंशराय बच्चन की मृत्यु सन् 2003 मुंबई में हुई।

प्रमुख रचनाएं:

काव्य संग्रह: मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1938), निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, मिलनयामिनी, सतरांगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ।

आत्मकथा: क्या भूलूँ क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।

अनुवाद: हैमलेट जनगीता, मैकबैथ।

डायरी: प्रवासी की डायरी।

प्रश्नोत्तर

1. कविता में एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर: कविता में एक ओर कवि कहते है कि वे जग जीवन का भार लिए घूमते है। अर्थात उन्हें अपने दुख-सुख की परवाह नहीं है, बल्कि विश्व के समस्त मानव के लिए चिंतित रहते है। वे विश्व को सुखी देखना चाहते है।

दूसरी ओर कवि कहते है कि उन्होंने कभी जग का ध्यान नहीं किया। अर्थात कवि ने सदैव अपने मन का अपने हृदय का ही गान किया है। वे कहते है कि संसार उन्हीं लोगों का पूछता है, जो संसार का गान किया करते है। वे स्नेह रूपी सुरा का ही पान करते है। संसार द्वारा लगाये गये आरोपों की उन्हें परवाह नहीं है।

2. जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा? 

उत्तर  कवि कहते है कि हर तरह से कोशिश के पश्चात भी आज तक किसी ने सत्य को नहीं जाना है। कवि ने उन लोगों के लिए ‘नादान’ शब्द का प्रयोग किया है, जो देखकर भीसीख न ले। अतः कवि कहते है, जहाँ दाना होता है, नादान वहीं मौजूद होते हैं। वे दाना तो देखते है पर उससे नीचे छिपे जाल को नहीं देख पाते अर्थात वे देखकर भी सीख नहीं लेते।

3. मैं और, और जग और कहाँ का नाता पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।

उत्तर: यहाँ और शब्द विभिन्नता, असमानता को दर्शाता है।

4. शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: शीतल वाणी में आग का तात्पर्य है, मधुर आवाज में अग्नि की ज्वाला विद्यमान होना उनके मधुर आवाज में विद्रोह की ज्वाला है।

5. ‘आत्मपरिचय’ कविता कहाँ से उद्धृत की गई है? 

उत्तर: प्रस्तुत कविता ‘निशा निमंत्रण’ नामक गीत संग्रह से उद्धृत की गई है।

6. ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: कवि ने स्वयं का परिचय देते हुए दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का वर्णन किया है।

7. ‘आत्मपरिचय’ शब्द का तात्पर्य क्या हैं? 

उत्तर: अपना परिचय ही आत्मपरिचय है।

8. कवि किसका पान किया करते है?

उत्तर: कवि स्नेह रूपी सुरा यानी मर्यदा का पान किया करते है।

9. कवि ने किसे अपूर्ण कहा है?

उत्तर: कवि ने संसार को अपूर्ण कहा है।

10. कवि और संसार का संबंध कैसा है?

उत्तर: कवि का और संसार का नाता प्रीति कलह काहै। 

11. कवि ने क्या सीखा है?

उत्तर: कवि ने ज्ञान भुलाने की कला को सीखा है।

12. कवि की शीतल वाणी में क्या है?

उत्तर: कवि की शीतल वाणी में आग है।

13. कवि ने कैसा वेश बनाया है?

उत्तर: कवि ने पागलों जैसा वेश बनाया है।

14. कवि के रोदन को संसार क्या समझ लेता है? 

उत्तर: कवि के रोने को संसार गान समझ लेता है।

15. कविता का सारांश लिखें।

उत्तर: कवि हरिवंशराय बच्चन अपना आत्मपरिचय देते हुए कहते है कि दुनिया से उनका संबंध प्रीतिकलह का है। उन्हें अपने दुख-सुख की परवाह न होकर संसार के लिए चिंतित है। वे संसार को सुखी देखना चाहते हैं। वे जीवन में प्रेम लिए फिरते हैं। वे स्नेह रूपी मदिरा का पान किया करते है। उन्हें अवगुणों से भरी दुनिया नहीं भाता। वे दुख-सुख दोनों में ही खुश रहते हैं। कवि अपने साथ अपने स्वप्नों के संसार लिए फिरते है कवि के जीवन में उन्माद तो है, लेकिन भीतर अवसाद भी छिपा हुआ है, जो भीतर से रुलाता है। सभी प्रयत्नों के बाद भी सच्चाई को छिपाई नहीं जा सकती है, और इस सत्य को न जानने वाला व्यक्ति मुर्ख कहलाता है।

कवि कहते हैं, संसार और उनका कोई नाता नहीं हैं क्योंकि जहाँ संसार धन जोड़ता है, वहीं वे धन को ही नहीं पृथ्वी को भी ठुकराते है। उनकी मधुर वाणी में आग की ज्वाला है। उनके रोने को संसार संगीत समझ लेती है। उनका फूट पड़ना छंद बनना समझा जाता है। वे कहते हैं, वे एक पागल के वेश में घुमते है। वे ऐसा संदेश लेकर घुमते है, जिसके सुन दुनिया झूम सके।

16. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झांक रहे होंगे? 

उत्तर: अपने माता-पिता से मिलने की आशा में बच्चे नीड़ों से झाँक रहे होंगे।

17. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है।

उत्तर: निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है-

(क) भावपक्षीय विशेषता: इस कविता की आवृत्ति से प्रकृति दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी वर्ग (विशेषकर मनुष्य) के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश की गई है।

(ख) कलापक्षीय विशेषता: (i) सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।

(ii) इस कविता में सरल सर्वानुभूत बिंबों का प्रयोग किया गया है।

(iii) अलंकारों के प्रयोग से यह कविता और उत्कृष्ट बन गया है। कई अंलकारों का प्रयोग हुआ है। जैसे-पुनरुक्ति अंलकार- जल्दी-जल्दी।

अनुप्रास अंलकार : मुझसे मिलने को कौन विकल।

18. प्रस्तुत कविता के कवि कौन?

उत्तर: इस कविता के कवि है, हरिवंश राय बच्चन।

19. हरिवंश राय बच्चन किस ‘वाद’ के प्रवर्तक माने जाते है?

उत्तर: हरिवंश राय ‘बच्चन’ हालावाद के प्रवर्तक है।

20. इनका जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: इनका जन्म सन् 1907 में इलाहावाद में हुआ था।

21. हरिवंश राय बच्चन के दो काव्य संग्रहों के नाम लिखे । 

उत्तर: दो काव्य संग्रहों के नाम है – निशा-निमंत्रण, मधुकलश।

22. हरिवंश राय ‘बच्चन’ के काव्य संग्रह ‘मधुशाला’ का प्रकाशन वर्ष क्या था? 

उत्तर: ‘मधुशाला’ का प्रकाशन वर्ष सन् 1935 था।

23. ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ किस विधा की रचना है?

उत्तर: यह आत्मकथा है।

24. ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’, कविता कहाँ से उद्धृत की गई है? 

उत्तर: प्रस्तुत कविता ‘निशा निमंत्रण’ नामक काव्य संग्रह से उद्धृत की गई है।

25. पंथी क्यों जल्दी-जल्दी चलता है?

उत्तर: पंथी अपने प्रिय से मिलने को जल्दी-जल्दी चलता है।

26. बच्चे किसकी प्रत्याशा में होंगे?

उत्तर: बच्चे जीविका उपार्जन हेतु काम पर गये माता-पिता से मिलने की प्रत्याशा में है। 

27. कौन सी बात चिड़ियों के परों में चंचलता भर देता है?

उत्तर: प्रिय यानी बच्चों से मिलने का ध्यान ही चिड़ियों के परों में चंचलता भर देता है।

28. प्रस्तुत कविता का साराशं लिखे। 

उत्तर: प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति के दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में खासकर मनुष्य के धड़कते हृदय को सुनने की कोशिश की है। थका पंथी यह सोचकर जल्दी-जल्दी चलता है कि कहीं पथ में रात न हो जाएं। साँझ होते ही बच्चे अपने माता-पिता से मिलने के उत्सुक हो नीड़ों से झाँकते है। कवि कहते है कि किसी प्रिय आलबंन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे पगों में चंचलता भर देता है। अन्यथा मनुष्य शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशप्त हो जाते है।

व्याख्या कीजिए

1. मैं और, और…….. पृथ्वी को ठुकराता ।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ (भाग-2) के काव्यखंड के ‘आत्मपरिचय’ नामक कविता से ली गई है। इसके कवि है हालावाद के प्रवर्तक हरिवंशराय बच्चन जी ।

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने स्वयं और समाज के बीच की असमानता को स्पष्ट किया है।

कवि कहते है कि दुनिया से उनका संबंध प्रीतिकलह का है। उनका जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है। कवि कहते है कि वे कुछ और है और संसार कुछ और है। अर्थात उनमें और संसार में बहुत सारी असमानता व्याप्त है। अतः उनका और संसार का नाता नहीं हो सकता। कवि कहते है यह संसार अपूर्ण है, अतः वे कल्पना का संसार लेकर घुमा करते है। और कल्पना के संसार बना-बना रोज मिटाया भी करते है। जहाँ संसार वैभव जुटाने में व्यस्त है, वहीं कवि इन सबसे बेफिक्र हैं। वे धन को ठुकराने के माध्यम से इस पृथ्वी को ही प्रति पग से ठुकराते है।

विशेष: 1) कवि की भाषा सहज सरल है।

2) कवि ने स्वयं में और संसार में अंतर बताया है।

3) कवि ने वैभव को ठुकराने की बात कहीं है।

4) अंलकारों का प्रयोग किया गया है।

क) अनुप्रास – जग जिस, प्रति पग (यहां जप वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक होने केकारण अनुप्रास अंलकार है।)

ख) पुनरुक्ति -बना-बना।

2. मुझसे मिलने को कौन विकल? 

मैं होऊँ किसके हित चंचल?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरताउर में विह्वलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह (भाग-2) के काव्य-खंड के ‘दिन जल्दी जल्दी ढलता है’ नामक कवितासे ली गई है। इसके कवि है हालावाद के प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन जी।

प्रस्तुत कविता में कवि ने प्राणी वर्ग के एक अगोचर सत्य को महसूस कराने की कोशिश की है।

कवि कहते है कि किसी प्रिय से मिलने या भावी साक्षात्कार की भावना मनुष्य ही नहीं बल्कि पक्षीयों के परों में भी चंचलता भर देता है। अतः साँझ अपने घरों को लौटते पंथी जल्दी जल्दी घर की ओर अग्रसर होते है। अन्यथा मनुष्य में शिथिलता और फिर जड़ता आ जाएगी।

विशेष:

1. इसकी भाषा सहज-सरल है।

2. मनुष्य में किसी प्रिय आलंबन या विषय से मिलन की इच्छा न हो तो वह मनुष्य को निष्क्रिय बना सकता है।

3. यहां अंलकारों का प्रयोग किया गया है:

क) पुनरुक्ति अंलकार – जल्दी-जल्दी। 

ख) अनुप्रास अंलकार – मुझसे मिलने को कोन विकल? (यहां ‘म’ तथा ‘क’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार की गई है, अतः अनुप्रास अंलकार है)।

3. मैं और, और…….. पृथ्वी को ठुकराता ।

उत्तर: शब्दार्थ: नाता सम्बन्ध, जग संसार, वैभव संसार, वैभव – सम्पन्नता, पग कदम, -ठुकराता अस्वीकार करना |

अर्थ: कवि ने अपने और संसार के संबंध का बखान करते हुए कहते है कि उनमें और दुनिया में काफी अंतर है। वे कहते हैं कि उनमें कोई संबंध नहीं है। साथ ही कवि ये भी कहते है कि वह बना बनाया संसार रोज मिटाया करते है। जहाँ सारी दुनिया इस पृथ्वी पर वैभव (धन) जोड़ने की होड़ में हैं, वहीं वे दौलत ही नहीं बल्कि पूरी पृथ्वी को ही ठुकरा रहे है।

4. मैं निज रोदन भाग लिए फिरता हूँ। 

उत्तर: शब्दार्थ: रोदन रुलाई, राग संगीत, शीतल ठंडा, भूपों राजा, प्रासाद-ज महल, निछावर न्योछावर, खंडहर भग्नावशेष।

अर्थ: कवि कहते है कि उनको रोदन या रुलाई में भी एक राग है। उनके शीतल आवाज़ में अग्नि की ज्वाला हैं। जिसे वह अपने साथ लिए फिरते हैं। कवि और कहते हैं. कि वे उस भवन का खंडहर हैं, जिस पर राजाओं का महल भी न्यौछावर है।

5. मैं रोया, इसको ……… नया दीवाना।

 उत्तर: शब्दार्थ: फूट पड़ा रोना, दीवाना पागल।

अर्थ: कवि कहते है कि जब भी वे रोये तो संसार ने उसे गाना समझ लिया, जब भी वे फूट पड़े तब दुनिया ने उसे छंद का निर्माण समझा। वे कहते है कि यह दुनिया क्यों उन्हें कवि के रूप में सम्मानित करेगी जबकि वे स्वयं को इस संसार का नया पागल मानते हैं।

6. ‘मैं दीवानों का संदेश लिए फिरता हूँ।’

उत्तर: शब्दार्थ: वेश रूप बनाना, मादकता मदहोशी, संदेश संवाद। अर्थ: कवि आत्मपरिचय देते हुए कहते है कि वे पागलों का रूप बनाकर अपने में मादकता लिए फिरते है वे अपने साथ ऐसा मस्ती का संदेश लिए फिरते हैं जिससे यह संसार झूमने लगे।

7. होजाए न…… ढलता है।

उत्तर: शब्दार्थ: पथ रास्ता, मंजिल निर्धारित स्थान, पंथी राही, ढलता – समाप्त। 

अर्थ: यहां कवि ने प्रकृति के दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में मनुष्य के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश की है। कवि कहते है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाएं, क्योंकि पथिक की मंजिल अभी ज्यादा दूर नही है, यहीं सोचकर पथिक जल्दी जल्दी चलता है। ठीक पथिक की ही भांति यह दिन भी जल्दी-जल्दी ढलता है।

8. बच्चे प्रत्याशा ढलता है।

उत्तर: शब्दार्थ: प्रत्याशा, नीड़ घर, झांक देखना, परों पंखों – अर्थ : कवि कहते है कि हमें अपेन प्रिय से भावी साक्षात्कार का ध्यान आते ही हमारे पगों की गति में चंचल तेजी देता हैं। पक्षी भी जब अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं कि उनके बच्चे उनकी राह देखते हुए घोसलों से झांक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही उनके परों में बहुत चंचलता भर जाती हैं। और वे अपने बच्चों से मिलने तेज उड़ान भरते हैं। और दिन जल्दी जल्दी ढलता है।

9. मुझसे मिलने…….. जल्दी जल्दी ढलता है। 

उत्तर: शब्दार्थ: विकल व्याकुल, हित कारण, शिथिल धीमापन, पद- पैर, उर- हृदय, विह्वलता व्याकुल ।

अर्थ: कवि जब स्वयं से प्रश्न करते है कि कौन है, जो उनसे मिलने को व्याकुल है या वो किससे मिलने के लिए चंचल हो। यह प्रश्न ही उनके पैरों में शिथिलता तथा हृदय में विह्वलता भर देता हैं। दिन जल्दी जल्दी ढलता है।

10. मैं जग-जीवन का लिए फिरता हूँ। 

उत्तर: शब्दार्थ: जग-जीवन – विश्व का जीवन, भार-दायित्व, झंकृत बजना । 

अर्थ: कवि आत्मपरिचय देते हुए कहते है, कि उनके हृदय पर संपूर्ण संसार के सुख दुख का भार है, फिर भी वे अपने हृदय में प्रेम का ही झंकार (संदेश) लेकर घुमते है। कवि पुनः कहते है, कि उनके श्वास रूपी जीवन के दो तार है, जिसको छुकर किसी ने झंकृत कर दिया है।

11. मैं स्नेह-सरा का पान किया……..गान किया करता हूँ।

उत्तर: शब्दार्थ: स्नेह-सुरा – प्रेम समान मदिरा, पान- पीना।

अर्थ: कवि यहाँ अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का उजागर किया है। कवि कहते है, कि वे प्रेम रूपी मदिरा का पान किया करते हैं, जिससे मस्त होकर उन्हें दुनिया द्वारा लगाए गये आरोपों, या उनके द्वारा कहीं गई बातों का ध्यान नहीं होता। आज संसार में उन्हीं का बोलबाला है, जो संसार की गान किया करते हैं, जो इसके आगे-पीछे घुमा करते हैं। कवि कहते है, कि वे तो अपने मन के अनुसार चलते है। वे अपने अनुसार ही कार्य किया करते है।

12. मैं निज उर. ……. फिरता हूँ। 

उत्तर: शब्दार्थ: निज- अपना, उर-हृदय, उद्गार- विचार, उपहार भेंट, अपूर्ण असंपूर्ण, भाता-पसंद, स्वप्न- कल्पना ।

अर्थ: कवि दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का उजागर करते हुए कहते है कि वे अपने हृदय में उठे विचारों को लिए हुए जीवन पथ पर अग्रसर होते हैं। कवि को यह संसार इसलिए पसंद नहीं हैं, क्योंकि यह अपूर्ण है, यहां की हर वस्तु अपूर्ण हैं। इसलिए कवि अपने स्वप्नों को अपनी कल्पनाओं को लेकर आगे बढ़ता है।

13. मैं जला हृदय में….. मस्त बहा करता हूँ। 

उत्तर: शब्दार्थ: जला-प्रज्वलित करना, अग्नि-आग, दहा- जलना, मग्न-मस्त, तरने मुक्ति प्राप्त करना, मौजों-बहाव।

अर्थ: कवि आत्मपरिचय देते हुए कहते है कि वे अपने हृदय में अग्नि प्रज्ज्वलित क उसी अग्नि में अपने को जलाते है। इस संसार से उनका प्रीति कलह का नाता हैं। इसलि वे सुख-दुख दोनों में मस्त होकर रहा करते है। जहां संसार के लोग इस संसार रूप भवसागर से तरने के लिए नाव बनाते है, वहीं कहीं कवि अपने ही मन के लहरों में बह का कुंव मस्त रहा करते है।

14. मैं यौवन का….याद लिए फिरता हूँ।

उत्तर: शब्दार्थ: यौवन याद लिए फिरता हूँ। जवानी, उन्माद – उमंग, अवसाग-दुख । अर्थ : कवि आत्मपरिचय देते हुए कहते है कि उनके मन में यौवन का उमंग हैं, और उन्ह उन्हीं उमंगों में अवसाद भी छिपा हुआ है। कवि दुखी मन से कहते हैं कि वे प्रिय की यादो वि को अपने हृदय में लेकर फिरा करते हैं जो यादें उन्हें बाहर हँसाती तो है, पर अंदर रुलाती है।

15. कर यत्न मिटे…… ज्ञान भुलाना । 

उत्तर: शब्दार्थ: यत्न- प्रयास, मिटे – समाप्त होना, नादान – मूर्ख, मूढ़ – मूर्ख । 

अर्थ: सत्य को जानने के प्रयास में सबकुछ मिट चुका है, पर सत्य किसी ने नहीं जाना है। फिर इस सत्य के पीछे भागनेवाला नादान ही कहा जायेगा। साथ ही वह भी मुर्ख ही कहलायेगा जो इससे सीख न ले। कवि कहते है कि वो तो अपना सीखा हुआ ज्ञान भुलाने की ही कोशिश कर रहे है।

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