Class 9 Ambar Bhag 1 Chapter 3 ब्रज की संध्या answer to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter Assam Board Class 9 Hindi Ambar Bhag 1 Chapter 3 ब्रज की संध्या and select needs one.
Class 9 Hindi (MIL) Ambar Bhag 1 Chapter 3 ब्रज की संध्या
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ब्रज की संध्या
पाठ – 3
Group – A: पद्य खंड
कवि – परिचय:
आधुनिक युग के समकालीन कवियों में पंडित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी अन्यतम श्रेष्ठ कवि हैं। आपका जन्म 1865 ई. में आजमगढ़ के निजामाबाद कस्बे में हुआ था। आपके पिता जी का नाम पंडित भोलासिंह उपाध्याय तथा माता जी का नाम श्रीमती रूक्मिणी देवी था।
हरिऔध जी बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न थे। आपने आरम्भ में एक मिडिल स्कूल में अध्यापन कार्य किया। बाद में आप कानूनगो के रूप में कार्य करते रहे। सेवानिवृत्ति के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक आपने अवैतनिक अध्यापन कार्य किया। सन् 1947 में आपका देहान्त हो गया।
हरिऔध जी सिर्फ एक प्रसिद्ध कवि ही नहीं, बल्कि एक सफल समालोचक, उपन्यासकार, निबन्धकार तथा इतिहासकार भी थे। इससे कहा जा सकता है कि हरिऔध जी साहित्य के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न थे। आपकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार ‘प्रियप्रवास’ है। इसका प्रकाशन 1914 ई. में हुआ था। ‘प्रियप्रवास’ खड़ी बोली हिन्दी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण के बाल्यकाल से मथुरा प्रस्थान तक की कथा 17 सर्गों में लिखी गयी है। इसके अतिरिक्त आपने ‘पद्यप्रसून’, ‘चुभते चौपदे’, ‘चोखे चौपदे’, ‘बोलचाल’, ‘रस-कलश’, ‘वनवास’ आदि काव्य-ग्रन्थों की भी रचना की है। ‘ठेठ हिन्दी का ठाठ’ और ‘अधखिला फूल’ आपके ये दो मौलिक उपन्यास माने जाते हैं। प्रियप्रवास के लिए आपको हिन्दी के सर्वोत्तम पुरस्कार ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित किया गया है। आपके काव्यों में प्रकृति की रमणीयता, राष्ट्रीयता तथा मानवता का सजीव चित्रण उपलब्ध होता है। आपने अपनी अमर कृति ‘प्रियप्रवास’ में विश्व-प्रेम तथा विश्व-सेवा का महान आदर्श प्रस्तुत किया है।
कवि-संबंधी प्रश्न एवं उत्तर:
1. ‘प्रियप्रवास’ नामक महाकाव्य किस कथा पर आधारित है?
उत्तर: प्रियप्रवास’ नामक महाकाव्य श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था से लेकर मथुराप्रस्थान तक की कथा पर आधारित है।
2. हरिऔध जी का देहान्त कब हुआ था?
उत्तर: सन् 1947 ई. में हरिऔध जी का देहान्त हुआ था।
3. हरिऔध जी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर: हरिऔध जी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार उनका प्रियप्रवास नामक महाकाव्य है।
4. खड़ी बोली हिन्दी के प्रथम महाकाव्य का नाम लिखिए।
उत्तर: खड़ी बोली हिन्दी के प्रथम महाकाव्य का नाम ‘प्रियप्रवास’ है।
5. प्रियप्रवास का प्रकाशन कब हुआ था?
उत्तर: प्रियप्रवास का प्रकाशन सन् 1914 में हुआ था।
6. हरिऔध जी के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर: हरिऔध जी के पिता का नाम पंडित भोलासिंह उपाध्याय तथा माता का नाम श्रीमती रूक्मिणी देवी था।
7. प्रियप्रवास में कितने सर्ग हैं?
उत्तर: प्रियप्रवास में सत्रह सर्ग हैं।
8. किस युग के कवियों में हरिऔध जी की गणना की जाती है?
उत्तर: आधुनिक युग के कवियों में हरिऔध जी की गणना की जाती है।
सारांश:
‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता ‘प्रियप्रवास’ महाकाव्य के प्रथम-सर्ग से ली गई है। इसके रचयिता आयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी हैं। कवि ने इसमें संध्या के समय ब्रज की निराली शोभा का सुन्दर वर्णन किया है। इसका सारांश निम्नलिखित है: संध्या के समय ब्रज के स्थल-भाग तथा आकाश-भाग का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि दिन समाप्त होने को था। इसलिए आकाश में धीरे धीरे लालिमा फैल रही थी। सूर्य की किरणें वृक्षों की चोटियों पर सुशोभित हो रही थीं। पक्षियों का कलरव बढ़ता जा रहा था। दिनभर दाना-पानी के लिए बाहर विचरण करने वाले पक्षी अपने-अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे। आकाश में पंक्तिबद्ध होकर उड़ते हुए पक्षियों की शोभा निराली थी। जैसे-जैसे दिन ढल रहा था वैसे-वैसे आकाश की लालिमा बढ़ती जा रही थी। आकाश की लालिमा के विस्तार से चारों दिशाएँ लाल हो गई थीं और ब्रज के वृक्षों की हरियाली भी उस लालिमा में डूबी हुई-सी प्रतीत हो रही थी। वृक्षों की चोटियों से हटकर सूर्य की लाल किरणें पर्वतों की चोटियों पर चढ़ चुकी थीं।
कवि ने संध्याकालीन ब्रज के जल-भाग का भी मनोहारी वर्णन किया है। आकाश की लालिमा ब्रज के जलाशयों के तटों पर भी निराली छटा बिखेर रही थी। नदियों, तालाबों तथा सरोवरों के जल में लालिमा युक्त आकाश का प्रतिबिम्ब अत्यन्त रमणीय लग रहा था।
कवि कहते हैं कि सूर्य अस्त हो रहा था। इसलिए आकाश के मध्य-भाग से उसका बिम्ब भी लुप्त हो रहा था। ठीक इसी समय ब्रज के वनों, उद्यानों एवं पर्वत की गुफाओं को झंकृत करती हुई गिरधर श्रीकृष्ण की बाँसुरी बज उठी। ब्रज का सारा वातावरण श्रीकृष्ण की वंशी की मधुर ध्वनि से मुखरित गया। सारांशतः कहा जा सकता है कि कवि ने संध्याकालीन ब्रज के जल-स्थल-आकाश भाग में होने वाली प्राकृतिक मनोरम शोभा का आकर्षक एवं मनोग्राही वर्णन प्रस्तुत किया है।
शब्दार्थ:
दिवस: दिन
अवसान: अन्त, परिसमाप्ति
तरु-शिखा: पेड़ की चोटी
राजती: विराजमान, शोभायमान
कमलिनी-कुल-वल्लभः कमलिनी के कुल (वंश) अथवा समूह के स्वामी सूर्य।
गगन: आकाश
लोहित: लाल, अरुण
प्रभा: प्रकाश, किरणें
विपिन: जंगल, वन
विहंगम: पक्षी
वृन्द: समूह
कल-निनाद: मधुर ध्वनि, मधुर आवाज, कलरव, चहचहाहट
विवर्द्धित: बढ़ा हुआ
विविधा: अनेक प्रकार की
विहगावली: पक्षियों की पंक्तियाँ
नभ-मण्डल-मध्य: आकाश के बीच में
अनुरंजित: लाल
पादप: वृक्ष
पुंज: समूह
हरीतिमा: हरियाली
अरुणिमा: लालिमा
विनिमज्जित: डूबा हुआ
पुलिन: तट, किनारा
सरि: सरिता, नदी, निर्झर
अचल: पर्वत
पादप-शीश-विहारिणी: पेड़ों की चोटियों पर विहार करनेवाली
तरणि: सूर्य
बिम्ब: प्रतिच्छाया
तिरोहित: लुप्त, ओझल होना, छिप जाना
ध्वनिमयी: ध्वनि से परिपूर्ण (व्याप्त)
शनैः-शनै: धीरे-धीरे
गिरि: पर्वत
कन्दरा: गुफा
कलित-कानन: सुंदर (रमणीय) वन
केलि-निकुंज: क्रीड़ा का उद्यान
तरणिजा-तट: यमुना के किनारे
राजित: शोभित
ध्वनिमयी: कोलाहल करती हुई
रमणीय: सुन्दर, आकर्षक
कुंज: ऋतुओं से अच्छादित
सकल: सभी
मुरलि: बाँसुरी
सरोवर: तालाब, जलाशय
पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:
बोध एवं विचार:
1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए:
(क) हरिऔध जी किस रूप में हिन्दी साहित्य-जगत में सुपरिचित हैं?
उत्तर: हरिऔध जी खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम महाकवि के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुपरिचित हैं।
(ख) हरिऔध जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: हरिऔध जी का जन्म सन् 1865 में आजमगढ़ जिले के निजामाबाद कस्बे में हुआ था।
(ग) हरिऔध जी द्वारा विरचित किन्हीं दो काव्य-रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर: हरिऔध जी द्वारा विरचित दो प्रसिद्ध काव्य-रचनाएँ हैं:
(1) प्रियप्रवास। और
(2) वैदेही वनवास।
(घ) हरिऔध जी द्वारा विरचित दो मौलिक उपन्यास क्या-क्या हैं?
उत्तर: हरिऔध जी द्वारा विरचित दो मौलिक उपन्यास हैं:
(1) ठेठ हिन्दी का ठाठ। और
(2) अधखिला फूल ।
(ङ) ‘प्रियप्रवास’ पर हरिऔध जी को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ था?
उत्तर: ‘प्रियप्रवास’ पर हरिऔध जी को हिन्दी का सर्वोत्तम पुरस्कार’ मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ था।
2. संक्षिप्त उत्तर दीजिए:
(क) संध्या समय ब्रज के आकाश में बनी शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: ब्रज में संध्या के समय सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल की तरफ बढ़ रहा था । जैसे-जैसे वह अस्ताचल के करीब जा रहा था, वैसे-वैसे आकाश में लालिमा फैलती जा रही थी। सूर्य की किरणें अब पेड़ों की चोटियों पर सुशोभित हो रही थीं। वन में पक्षियों का कलरव बढ़ता जा रहा था। आकाश के बीच में विभिन्न तरह के पक्षी कोलाहल करते हुए पंक्तिबद्ध होकर उड़े चले जा रहे थे। सूर्य के अस्त होते ही आकाश की लालिमा गहरी हो गई। इस गहरी लालिमा के विस्तार ने दशों दिशाओं को अपने आगोश में ले लिया और ब्रज के सारे वृक्षों की हरियाली इसी लालिमा में डूबी हुई-सी प्रतीत होने लगी।
(ख) संध्या समय ब्रज के स्थल-भाग पर बनी शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: संध्या के समय ब्रज का स्थल-भाग मनोहारी हो गया था। आकाश की लालिमा में डूबी हुई वृक्षों की हरियाली मनमोहक हो गयी थी । सूर्य अपनी किरणों से पर्वत की चोटियों को आलोकित कर रहा था। वनों एवं उद्यानों में पक्षियों की मधुर ध्वनि बढ़ती जा रही थी। इन सबके बीच पर्वत की गुफाओं, वनों और उद्यानों को झंकृत करती हुई श्रीकृष्ण की बाँसुरी बज रही थी, जिसकी धुन सुनकर मन मुग्ध हो रहा था।
(ग) संध्या समय ब्रज के जल-भाग पर बनी शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: संध्या के समय ब्रज के जल-भाग पर बनी शोभा अनुपम थी। आकाश की लालिमा ब्रज के जलाशयों के तटों पर अपनी निराली छटा बिखेर रही थी। नदियों और सरोवरों के जल में लालिमा-युक्त आकाश का प्रतिबिम्ब अत्यन्त मनोहारी और रमणीय लग रहा था।
3. सम्यक् उत्तर दीजिए:
(क) ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर: ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता ‘प्रियप्रवास’ महाकाव्य के प्रथम-सर्ग से ली गई है। इसके रचयिता आयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी हैं। कवि ने इसमें संध्या के समय ब्रज की निराली शोभा का सुन्दर वर्णन किया है। इसका सारांश निम्नलिखित है: संध्या के समय ब्रज के स्थल-भाग तथा आकाश-भाग का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि दिन समाप्त होने को था। इसलिए आकाश में धीरे धीरे लालिमा फैल रही थी। सूर्य की किरणें वृक्षों की चोटियों पर सुशोभित हो रही थीं। पक्षियों का कलरव बढ़ता जा रहा था। दिनभर दाना-पानी के लिए बाहर विचरण करने वाले पक्षी अपने-अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे। आकाश में पंक्तिबद्ध होकर उड़ते हुए पक्षियों की शोभा निराली थी। जैसे-जैसे दिन ढल रहा था वैसे-वैसे आकाश की लालिमा बढ़ती जा रही थी। आकाश की लालिमा के विस्तार से चारों दिशाएँ लाल हो गई थीं और ब्रज के वृक्षों की हरियाली भी उस लालिमा में डूबी हुई-सी प्रतीत हो रही थी। वृक्षों की चोटियों से हटकर सूर्य की लाल किरणें पर्वतों की चोटियों पर चढ़ चुकी थीं।
कवि ने संध्याकालीन ब्रज के जल-भाग का भी मनोहारी वर्णन किया है। आकाश की लालिमा ब्रज के जलाशयों के तटों पर भी निराली छटा बिखेर रही थी। नदियों, तालाबों तथा सरोवरों के जल में लालिमा युक्त आकाश का प्रतिबिम्ब अत्यन्त रमणीय लग रहा था।
कवि कहते हैं कि सूर्य अस्त हो रहा था। इसलिए आकाश के मध्य-भाग से उसका बिम्ब भी लुप्त हो रहा था। ठीक इसी समय ब्रज के वनों, उद्यानों एवं पर्वत की गुफाओं को झंकृत करती हुई गिरधर श्रीकृष्ण की बाँसुरी बज उठी। ब्रज का सारा वातावरण श्रीकृष्ण की वंशी की मधुर ध्वनि से मुखरित गया। सारांशतः कहा जा सकता है कि कवि ने संध्याकालीन ब्रज के जल-स्थल-आकाश भाग में होने वाली प्राकृतिक मनोरम शोभा का आकर्षक एवं मनोग्राही वर्णन प्रस्तुत किया है।
(ख) हरिऔध जी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तरः अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी आधुनिक हिन्दी साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं। खड़ी बोली हिन्दी को सजाने-सँवारने तथा उसे सशक्त बनाने में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आरम्भ में आप ब्रजभाषा में समस्या पूर्त्ति किया करते थे। बाद में आप खड़ी बोली हिन्दी में भी पद-रचना करने लगे। आपकी कीर्ति का मुख्य आधार ‘प्रियप्रवास’ है। सन् 1914 में प्रकाशित खड़ी बोली हिन्दी का यह प्रथम महाकाव्य है। इसमें श्रीकृष्ण के बचपन से लेकर मथुरा प्रस्थान तक की कथा 17 सर्गों में लिखी गयी है। यह वर्णनात्मक तथा भावव्यंजनात्मक महाकाव्य है। इसमें कृष्ण के चले जाने पर ब्रज की दशा का सुन्दर वर्णन है। पद्यप्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, बोलचाल, रसकलश, वैदेही वनवास आदि हरिऔध जी की प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं। आप कवि होने के साथ-साथ निबंधकार, नाटककार, उपन्यासकार, समालोचक तथा इतिहासकार थे। ठेठ हिन्दी का ठाठ और अखिला फूल आपके दो मौलिक उपन्यास हैं। हिन्दी भाषा और साहित्य को विकास आपका समालोचनात्मक ग्रंथ है। आपकी रचनाओं में भाषा के विविध रूपों का दर्शन होता है। आपने कहीं संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है तो कहीं मुहावरों पर अधिक जोर दिया है। कहीं-कहीं सहज, सरल एवं अलंकाररहित भाषा का भी प्रयोग किया है। अपने युगकाल के अनुसार आपने अपनी रचनाओं में नीति और आदर्श का प्रतिपादन किया है।
4. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(क) दिवस का _____ समीप था।
गगन था कुछ _____ हो चला।
_____ पर थी अब राजती।
कमलिनी-कुल _____ की प्रभा॥
उत्तर: झलकने पुलिनों पर भी लगी।
गगन के तल की यह लालिमा।
सरि सरोवर के जल में पड़ी।
अरुणता अति ही रमणीय थी ।।
(ख) झलकने _____ पर भी लगी।
गगन के तल की यह _____।
सरि सरोवर _____ पड़ी।
अरुणता _____ रमणीय थी।
उत्तर: (क) दिवस का अवसान समीप था।
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु-शिखा पर थी अब राजती।
कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा ।
5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
(क) विपिन बीच विहंगम-वृन्द _____ नभ मण्डल मध्य थी।
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर’ भाग-1 के ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। इनके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी हैं। इसमें सायंकालीन ब्रज के आकाश- भाग की शोभा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या: यहाँ कवि ब्रज की संध्याकालीन शोभा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि ब्रज के जंगल में पक्षियों की मधुर ध्वनि बढ़ती जा रही थी। दिन-भर दाना-पानी की खोज में बाहर विचरण करनेवाले विहग-वृन्द अपने घोंसलों में वापस लौट रहे थे। आकाश के बीच में विभिन्न तरह के पक्षी पंक्तिबद्ध होकर उड़े चले जा रहे थे। आकाश में पक्षियों की वे पंक्तियाँ अतिशय रमणीय लग रही थीं। रंग-बिरंगे पक्षियों के चहचहाने से ब्रज के वन मुखरित हो चले थे। सायंकालीन लालिमा से परिपूर्ण आकाश में कतारबद्ध पक्षियों के उड़ने से आकाश की शोभा अत्यन्त मनोहारी हो गयी थी।
(ख) अचल के शिखरों पर _____मध्य शनैः शनैः।
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर’ भाग-1 के ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता आधुनिक युग के अन्यतम कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी हैं। इसमें अस्ताचलगामी सूर्य का आकर्षक वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
व्याख्या: यहाँ कवि सूर्य के अस्ताचलगामी स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जैसे-जैसे वह अस्ताचल के करीब पहुँचता जाता है, वैसे-वैसे उसकी किरणें ऊपर की ओर चढ़ती जाती है। सूर्य की जो किरणें कुछ देर पहले पेड़ों की चोटियों पर सुशोभित हो रही थीं, अब वे पर्वतों की चोटियों पर चढ़ चुकी हैं। आकाश के बीच से सूर्य का अस्तित्व धीरे-धीरे ओझल हो रहा है और उसकी किरणें ऊपर की ओर उठती हुई आकाश में लालिमा के रूप में फैलती जा रही हैं। आकाश की यह लालिमा सारे वातावरण को अपने आगोश में लेती जा रही है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कवि ने यहाँ पर सूर्य के अस्ताचलगामी स्वरूप का बड़ा ही सुन्दर, जीवन्त और मनोहारी वर्णन प्रस्तुत किया है।
(ग) ध्वनिमयी करके गिरि ______ राजित-कुंज में।
उत्तर: प्रसंग: अवतरित पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर’ भाग-1 के “ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी हैं। इसमें कवि ने सायंकालीन श्रीकृष्ण की बाँसुरी की ध्वनि के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
व्याख्या: यहाँ कवि कृष्ण की बाँसुरी की मधुर ध्वनि के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि इस ध्वनि से ही ब्रज की संध्याकालीन शोभा में निखार आता है। जब यमुना के तट से कृष्ण की बाँसुरी की मधुर ध्वनि ब्रज के वनों, उद्यानों और पर्वत की गुफाओं में गूँजती है तब सारा वातावरण जीवन्त हो उठता है। यहाँ कवि का आशय यह है कि ब्रज की संध्याकालीन शोभा कृष्ण की बाँसुरी के बिना अधूरी है। अगर इस संध्या की शोभा को शरीर मान लिया जाए तो कृष्ण की बाँसुरी उसमें जान फूँकने का काम करती है। ब्रज की संध्या की शोभा तब तक फीकी है जब तक कि उसमें कृष्ण की बाँसुरी की मधुर ध्वनि का रस न घुल जाए।
भाषा एवं व्याकरण:
1. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण रूप लिखिए:
लालिमा, हरीतिमा, अरुणिमा, कालिमा, गरिमा
उत्तर: लालिमा – लाल
हरीतिमा – हरित
अरुणिमा – अरुण
कालिमा – काला
गरिमा – गुरु
2. निम्नलिखित सामासिक शब्दो का विग्रह कीजिए:
तरु-शिखा, नभ-लालिमा, तरणि-बिम्ब, गिरि-कन्दरा, तरणिजा-तट
उत्तर: सामासिक शब्द – विग्रह
तरु-शिखा – तरु की शिखा
नभ-लालिमा – नभ की लालिमा
तरणि-बिम्ब – तरणि का बिम्ब
गिरि- कन्दरा – गिरि की कन्दरा
तरणिजा-तट – तरणिजा का तट
3. पाठ में आए किन्हीं आठ तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए:
उत्तर: पाठ में आए आठ तत्सम शब्द निम्नलिखित हैं:
गगन, विपिन, सकल, अचल, कानन, गिरि, पादप, नभ।
निम्नलिखित शब्दों से प्रत्ययों को अलग कीजिए:
विहगावली, कवितावली, गीतावली, दोहावली, शब्दावली
उत्तर: विहगावली = विहग + आ(उपसर्ग) + वल्(धातु) + ई(प्रत्यय)।
कवितावली = कविता + आ(उपसर्ग) + वल्(धातु)+ ई(प्रत्यय)।
गीतावली = गीत + आ(उपसर्ग) + वल् (धातु) + ई (प्रत्यय)।
दोहावली = दोहा + आ(उपसर्ग) + वल् (धातु) + ई (प्रत्यय)।
शब्दावली = शब्द + आ(उपसर्ग) + वल् (धातु) + ई (प्रत्यय)।
5. निम्नांकित शब्दों के अर्थ लिखिए:
अवसान, प्रभा, विपिन, विहंगम, पादप, सरि, तरणि, तरणिजा
उत्तर: अवसान = अन्त, समाप्ति।
प्रभा = प्रकाश, आभा।
विपिन = वन, जंगल।
विहंगम = पक्षी।
पादप = वृक्ष।
संरि = निर्झर, नदी।
तरणि = सूर्य।
तरणिजा = यमुना।
योग्यता = विस्तार
1. पाठ के किन्हीं तीन छंद कंठस्थ करके अपने सहपाठियों को सुनाइए।
उत्तरः विद्यार्थीगण स्वयं करें।
2. अपने निवास स्थान की प्रातःकालीन शोभा का निरीक्षण करके उसे कविता के रूप में अभिव्यक्ति देने का प्रयास कीजिए।
उत्तरः विद्यार्थीगण स्वयं करें।
3. अपने निवास स्थान और ब्रज की संध्याकालीन शोभा की तुलना कीजिए।
उत्तर: विद्यार्थीगण स्वयं करें।
अतिरिक्त प्रश्न एवं उत्तर:
1. ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता कहाँ से उद्धृत की गयी है?
उत्तर: ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक कविता ‘प्रियप्रवास’ नामक महाकाव्य के प्रथम सर्ग से उद्धृत की गई है।
2. कविता में सूर्य की किस अवस्था का वर्णन किया गया है?
उत्तर: कविता में अस्ताचलगामी सूर्य का वर्णन किया गया है।
3. कविता में ‘सूर्य’ और ‘कमलिनी-कुल’ किसका प्रतिनिधित्व करते हैं?
उत्तर: कविता में ‘सूर्य’ श्रीकृष्ण का प्रतिनिधित्व करता है और ‘कमलिनी-कुल’ ब्रजांगनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
4. संध्या समय आकाश की लालिमा के विस्तार से दिशाओं पर कैसा प्रभाव पड़ा?
उत्तर: संध्या समय आकाश की लालिमा के विस्तार से दसों दिशाएँ लाल हो गईं। चारों तरफ लालिमा दिखाई देने लगी। वृक्षों की हरियाली भी उस लालिमा में डूबी हुई-सी प्रतीत होने लगी।
5. श्रीकृष्ण की बाँसुरी कब और कहाँ बज उठी? उसका ब्रज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: संध्या होते ही श्रीकृष्ण की बाँसुरी यमुना के तट पर सुशोभित एक उद्यान में बज उठी। बाँसुरी की मधुर ध्वनि से ब्रज के वन, उद्यान एवं पर्वत की गुफाएँ झंकृत हो गईं। ब्रज का सम्पूर्ण वातावरण श्रीकृष्ण की वंशी की मधुर ध्वनि से मुखरित हो गया।