Class 12 Hindi Chapter 17 पहलवान की ढोलक

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Class 12 Hindi Chapter 17 पहलवान की ढोलक

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पहलवान की ढोलक

Chapter – 17

काव्य खंड

लेखक परिचय: फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म ४ मार्च सन् १९२१ में बिहार के औराही हिंगाना (जिला पूर्णिया अब अररिया) में हुआ। हिन्दी साहित्य में आंचलिक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु का जीवन उतारचढ़ावों एवं संघर्षों से भरा हुआ था। प्रेमचन्द्र के बाद हिन्दी कथा-साहित्य में रेणु उन थोड़े से कथाकारों में अग्रगण्य हैं। जिन्होंने भारतीय ग्रामीण जीवन का उसके सम्पूर्ण आन्तरिक यथार्थ के साथ चित्रण किया है। स्वाधीनता के बाद भारतीय गाँव ने जिस शहरी रिश्ते को बताया और निभाना चाहा है, रेणु की नजर उससे होनेवाले सांस्कृतिक विघटन पर भी है और इसे उन्होंने गहरी तकलीफ के साथ उकेरा है। मूल्य स्तर पर इससे उनकी आंचलिकता अतिक्रमित हुई है और उसका एक जातीय स्वरूप उभरा हैं। फणीश्वर नाथ रेणु की मृत्यु ११ अप्रैल सन् १९७७ पटना में हुआ। 

प्रमुख रचनाएँ:

उपन्यास: मैला आँचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, जुलू कितने चौराहे। कहानी-संग्रह ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी को धूप।

संस्मरण: ऋणजल धनजल, वनतुलसी की गंध, श्रुत-अश्रुत पूर्व ।

रिपोर्ताज: नेपाली क्रान्ति कथा।

साराशं

जाड़े का दिन तथा अमावस्या की काली ठंडी रात थी। सारा गाँव मलेरिया और हेजे में पीड़ित भर्यात शिशु की तरह काँप रहा था। चारो तरफ सन्नाटा फैला हुआ था। ऐसा सम रहा था जैसे निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी। कभी-कभी निस्तब्धता को भंग कर रही थी। गाँव की झोपड़ियों में से केवल कराहने और के करने की आवाज ही सुनाई पड़ रही थी। बच्चे अपने कोमल कंठो से अपनी माताओं को पुकारकर रो पड़ते थे। पृथ्वी पर कही प्रकाश का नाम तक नहीं थी। ऐसी अंधकारमय निस्तब्ध रात्रि में कुत्तों की क्रन्दन एक अजीब परिस्थिति पैदा करते। निस्तब्ध रात्रि की सारी भीषणता को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारती रहती थी। संध्या से लेकर प्रातः काल तक उसकी ढोलक एक ही गति से बजती रहती थी। ऐसा लगता था मानो लुगुन सिंह की ढोलक मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भरती थी। 

लुट्टन के माता-पिता की मृत्यु नौ वर्ष की अवस्था में ही हो चुकी थी। उसकी देखभाल उसके विधवा सास ने की। गाँव के लोग उसकी सास को तरह तरह तकलीफ दिया करते थे, शायद लोगो से बदला लेने के लिए ही लुट्टन सिंह पहलवान बनने की ठान लेता है। एक बार लुट्टन दंगल देखने श्यामनगर मेला गया। उस दंगल में चाँद सिंह नामक एक पहलवान अपने गुरु बादल सिंह के साथ आया था। वह इतना शक्तिशाली था कि उसे ‘शेर का बच्चा’ टाइटिल दिया गया था। देशी पहलवान उससे लड़ने की कल्पना से भी घबरा जाते थे। उस समय लुदन ने उसे चुनौती दे डाली। वहाँ उपस्थित लोगो के साथ राजा साहब ने भी उसे रोकने कोशिश की। परन्तु लुट्टन अपनी जिद पर अड़ा रहा। वह चाँद से कुश्ती लड़ा और उसे हारा दिया। राजा साहब ने लुट्टन सिंह की बाहादूरी पर उसे पुरस्कृत ही नहीं किया बल्कि अपनी दरबार में सदा के लिए रख लिया। उस दिन से लुट्टन सिंह की कीर्ति दूर-दूर तक फैलने लगी। पौष्टिक भोजन, व्यायाम के साथ राजा साहब की स्नेह दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिया। उस समय लुट्टन सिंह की प्रतिद्वन्दीता करनेवाला कोई नहीं था। 

इसप्रकार पन्द्रह वर्ष बीत गए। परन्तु अब भी पहलवान अजेय है। अब वह अपने दोनों पुत्रों को लेकर उतरता था। दंगल में इन दोनो को देख लोगो के मुँह से अनायास निकल पड़ता कि थे बाप से भी बढ़कर निकलेगें। दोनों को राज दरबार का भावी पहलवान घोषित कर दिया गया। तथा दोनों का भरण-पोषण दरबार की तरफ से होने लगा। लुटन सिंह प्रतिदिन प्रातःकाल स्वयं ढोलक बजाकर दोनों को कसरत करवाता तथा दोपहर में सांसारिक ज्ञान की शिक्षा देते। इसी बीच वृद्ध राजा का निधन हो जाता है। राज्य की बागडोर विलायत मे आये राजकुमार के हाथ आ जाती है। राजकुमार पहलवान तथा दाना भावा पान की दैनिक भोजन-व्यय सुनते ही आश्चर्य चकित हो गये और उन्हें वहाँ से जाने की आज्ञा दे दी। उसी दिन पहलवान दोनो पुत्रों के साथ ढोलक कंधे से लटकाकर गाँव चला आया। गाँववालो ने गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना दी जहाँ रहकर वह गाँव के नौजवानों तथा चरवाहों को कुश्ती सिखाता था। लेकिन गाँव के नौजवान और चरवाहें क्या खाकर कुश्ती सिखते धीरे-धीरे का स्कूल खाली पड़ने लगा। अंत में वह अपने दोनों पुत्रों को ही वह ढोलक बजा बजाकर लड़ता और सिखाता। 

उसी समय गाँव में पहले अनावृष्टि फिर अन्न की कमी और उसके बाद मलेरिया और हैजा एक के बाद दूसरे ने मिलकर गाँव को भूनना शुरु कर दिया। गाँव प्राय: सूना हो चला था। सुर्यास्त होते ही लोग अपने घरो में जा घूसते और सूर्योदय के समय पड़ोसियों और आत्मीयो को ढाढ़स देते थे। उस रात्रि की विभीषिका में पहलवान को ढोलक अर्द्धमृत, औषधि उपचार पध्य विहीन प्राणीयों में संजीवनी शक्ति ही भरती थी। जिस दिन पहलवान के दोनो बेटे मलेरिया और हैजे की चपेट में आ गये उस दिन अपने पिता से उठा पटक दो वाला ताल बजाने को कहा। प्रातः काल पहलवान ने देखा। की उसके दोनो बेटे पेट के बल जमीन पर निस्पंद पड़े हैं। उस दिन उसने राजा श्यामानदं की दी हुई रेशमी जाधियाँ पहन ली, सारे शरीर में मिट्टी मलकर दोनो पुत्रों को कंधो पर लादकर नदी में बहा आया। लोग दगं रह गये। परन्तु पहलवान की हिम्मत नहीं टुटी प्रतिदिन की भाँति ढोलक की आवाज सुनाई दी। चार-पाँच दिनों बाद एक रात पहलवान की ढलोक बजी नहीं। पिछले दिन शिष्यों ने जाकर देखा तो पहलवान की लाश चित पड़ी हैं। लोगों को बहुत दुख हुआ। मरने से पहले वह कह गया था, कि मरने पर उसकी चिता को पेट के बल सुलाया जाए क्योंकि अपने जीवन में वह कभी चित नहीं हुआ था।

प्रश्नोत्तर

1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाव पेंच में क्या तालमेल था। पाठ में आए धवन्यात्म शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा में करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।

उत्तर: लुट्टन पहलवान का कोई गुरु नहीं था, ढोलक को ही अपना गुरु मानता था। दंगल में उतरकर ढोलक को मानकर उसे प्रणाम कर कुश्ती शुरु करता था। ढोलक की आवाज सदैव उसे उत्साहित तथा जोश देती थी। ढोलक की ढाक-ढिना, ढांक-ढिना को आवाज उसे हिम्मत देती थी। ढोलक की चट-गिड़-धा की आवाज मानो न डरने का सदश देती है। ढोलक से निकले धाक धिना, तिरकट-तिना की आवाज मानो उसे यह कह रही हो कि दाँव काटों बाहर हो जा चटाक् चट-धा की आवाज उसे उसके प्रतिद्वन्दी की उठाकर पटक देने के लिए कहती है। और धिना धिना, धिक-धिना की आवाज लुटुन पहलवान को प्रतिद्वन्दी को चित करने को प्रेरित करती है।

इस पाठ में ढोलक से निकले कई ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग कई स्थानों पर किया गया है। इन ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा बिम्ब की सृष्टि होती है। इन शब्दों को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता हैं, जैसे यथार्थ में कोई ढोलक बजा रहा हैं।

2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए? 

उतर: लुट्टन के जीवन में सबसे पहला परिवर्तन नौ वर्ष की अवस्था में आता है, जब उसके माता-पिता उसे अनाथ कर स्वर्गवासी हो जाते हैं। उस समय लुट्टन की विधवा सास उसका भरण-पोषण करती है।

लुट्टन के जीवन में दूसरी बार परिवर्तन उस समय होता है, जब वह चाँद सिंह नामक पहलवान को हराकर राजा द्वारा पुरस्कृत तो किया हो जाता है, साथ ही राजा अपने दरबार में सदा के लिए रख लेते है। और तब से राज पहलवान के रूप उसको कीर्ति दूर दूर तक फैलती है।

तीसरा परिवर्तन लुइन के जीवन में उस समय आता है, जब राजकुमार उसके दैनिक भोजन व्यय सुनते ही उसका भरण-पोषण करने में असमर्थ बताते हैं। जिससे दो पुत्रों सहित ढोलक कन्धे पर लटकाये मजबूरन उसे गाँव लौटना पड़ता हैं। जहाँ उसे तथा उसके पुत्रो को भरपेट खाना भी नहीं मिलता था।

चौथी बार परिवर्तन तब आता है, जब उसके दोनों पुत्र हैजे और मलेरिया के शिकार होकर अपने प्राण त्याग देते हैं। अपने दोनों पुत्रों को वह स्वयं कन्धे पर उठाकर नदी में बहा आता है। 

3. लट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही डोल हैं?

उतर: लुट्टन पहलवान का कोई गुरु नहीं ता, उसने स्वयं कसरत कर बाँहों को सुडौल तथा मांसल बनाया था। अतः जब भी वह दंगल में उतरता था ढोल को ही अपना गुरु मानकर उसे प्रणामकर खेल शुरु करता था। और ढोल से निकली आवास सदैव उसे गुरु को भौति हिम्मत बढ़ती थी, उसे जोश देती थी।

4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बाबजूद लुइन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?

उतर: लुइन के ढोलक की आवाज ही मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।पहलवान जीवट ढोल के बोल में अपने आपको न सिर्फ जिलाए रखाए हैं, बल्कि भूख व महामारी से दम तोड़ रहे गाँव को मौत से लड़ने की ताकत भी देते रहता है। यही कारण गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बाबजूद लुट्टन पहलवान ढोल बजाता रहा।

5. ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता है? 

उतर: ढोलक की आवाज पूरे गाँव में संजीवनी शक्ति भरती थी। सारे गाँव में मलेरिया और हैजे ने अपनी जड़े इस प्रकार फैला चुकी थी कि सारा गाँव निस्तब्धता में डुब चुकी थी। रात्रि की इस भीषणता को केवल लुट्टन पहलवान की ढोलक ही अपने ताल ठोककर ललकारती रहती थी।

6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यस्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

उतर: महामरी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही लोग चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी, वे अपने घरों से काखते- कूखते कराहते बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे और सूर्यास्य होते ही जब लोग अपनी-अपनी झोंपाड़ियों में घुस जाते तो चूँ भी नहीं करते।

कुश्ती या दंगल पहले लोगो और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानो को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था।

7. ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?

क) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?

ख) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते है?

उतर: क) अब कुश्ती या दंगल का स्थान अन्य खेलों ने ले लिया। आज न तो राजा हैं, और न ही लोगों में कुश्ती को लेकर पहले जैसा शौक है।

ख) कुश्ती की जगह क्रिकेट, फुटबाल आदि खेलो ने ले ली है।

ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए इस खेल के स्तर को ऊंचा उठाना पड़ेगा। इसे अन्तराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाना पड़ेगा। साथ ही जो सम्मान कुश्ती पहलवानों को दिया जाता था, वहीं सम्मान आज भी पहलवानों को मिलना चाहिए।

8. आशय स्पष्ट करो:

आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता हो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

उतर: यहाँ गाँव में फैली अधंकारमय रात्रि के विषय में कहा गया है। गाँव में मलेरिया और हेजे के कारण गाँव के गाँव उजड़ रहे थे। रात्रि में लोग घरो में जाते तो चू भी नहीं करते। और रात्रि इतनी अर्धकारमय होता कि ऐसा प्रतीत होता जैसे आकाश से प्रकाश का आना बन्द हो चुका है। आकाश में तारे तो चमक रहे ते परन्तु पृथ्वी पर कही प्रकाश का नाम नहीं था। आकाश से टूटकर यदि तोई भावुक तारा पृथ्वी पर अपनी रोशनी फैलना भी चाहता तो अंधकार के कारण उसकी ज्योंति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। और उसकी भावुकता और सफलता पर अन्य तारे खिलखिलाकर हंस पड़ते थे।

9. पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः एक स्थान पर वर्णन किया गया है, कि गाँव में फैले अंधकार को देखकर कोई भावुक तारा पृथ्वी पर अपनी रोशनी फैलाना चाहती थी, पर अघंकरा इस तरह से विराजमान थी कि उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। । और मानो अन्य तारे उसकी

असफलता तथा याभावुकता पर खिल्ली उड़ाते थे। अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी यहाँ मानवीकरण अंलकार का प्रयोग किया हैं। रात्रि मनुष्य की भाँति आँसू बहा रहीं है।

“पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य अँधेरा और निस्तब्धता।” यहाँ अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित सम्राज्य स्थापित करने की बात कही गयी हैं। अतः यहाँ मानवीकरण अंलकार हैं।

9. ‘पहलवान की ढोलक’ के लेखक कौन हैं?

उत्तर: फणीश्वर नाथ रेणु।

10. रेणु जी को आंचलिक उपन्यासकार क्यों कहा जाता है?

उत्तरः स्वातंन्त्योतर भारत में जब सारा विकास शहर केन्द्रित होता जा रहा था। ऐसे में रेणु ने अपनी रचनाओं से अंचल की समस्याओं की और लोगों का ध्यान खीचां। 

11. रेणु जी के किसी दो उपन्यासों का नाम लिखिए।

उत्तर मैला आंचल, परती परकथा।

12. रेणुजी की मृत्यु कब हुई?

उत्तर: रेणुजी की मृत्यु ११ अप्रैल सन् १९७७ में पटना में हुआ। 

13. गाँव में कौन सी बिमारीयाँ फैली थी? 

उत्तर: हैजा और मलेरिया।

14. पहलवान की ढोलक की आवाज क्या काम करती थी?

उत्तर: लोगों में संजीवनी शक्ति भरने का काम करती थी। 

15. लुट्टन पहलवान किसे अपना गुरु मानता था? 

उत्तरः लुट्टन पहलवान ढोलक को अपना गुरु मानता था।

16. लुट्टन सिंह किसे दगंल मं हराया था? 

उत्तरः लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह को दगंल में हराया था। 

17. चाँद सिंह को क्या टायटिल मिला था? 

उत्तरः चांद सिंह को शेर के बच्चे’ का टायटिल मिला था। 

18. काला खाँ कौन है?

उत्तरः काला खाँ एक पहलवान हैं।

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