Class 12 Hindi Chapter 14 नमक

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Class 12 Hindi Chapter 14 नमक

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नमक

Chapter – 14

काव्य खंड

लेखिका परिचय: रज़िया सज्जाद ज़हीर उर्दू की कथाकार थी, जिनका जन्म १५ फरवरी, सन् १९१७ ई० अजमेर राजस्थान में हुआ। बी. ए. तक पढ़ाई उन्होंने घर पर ही प्राप्त की। उन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् १९४७ में अजमेर से लखनऊ आ गई और वहीं करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में पढ़ने लगी। सन् १९६५ में सोवियत सुचना विभाग में उनकी नियुक्ति हुई। आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान हैं। उन्होंने मौलिक सर्जन तो किया ही साथ ही अन्य भाषाओं से उर्दू में उन्होंने अनुवाद किया। उनकी भाषा सहज, सरल और मुहावरेदार हैं। उनकी कहानियों में सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भों में परिवर्तित हो रही मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास मिलता हूँ। रजिया सज्जाद जहीर को कई सम्मानों से सम्मानित किया गया था जिनमें सोवियत भूमि नेहरु पुरस्कार, उर्दू अकादेमी, उत्तर प्रदेश अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड। इनकी प्रमुख रचनाएँ। 

उर्दू कहानी संग्रह: ज़र्द गुलाब।

साराशं

रज़िया सज्जाद जहीर की नमक’ शीर्षक कहानी भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनो तरफ के विस्थापित जनों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है। सिख बीबी को देखकर सफिया को उसकी माँ की याद आती है, जो उन्हीं की तरह भारी भरकम जिस्म वाली, छोटी-छोटी आँखोवाली जिसमें नेकी मुहब्बत और रहमदिली ही

झलकती थी। वे उसी तरह की मलमल की दुपट्टा औढ़े हुए जिस प्रकार मुहर्रम में उसकी अम्मा ओढ़ा करती हैं। सिख बीबी को जब पता चलता हैं, कि अगले दिन साफिया अपने भाईयाँ तथा रिश्तेदारों से मिलने लाहौर जाने वाली हैं, तो उनका दिल खुशी से भर उठा। लाहौर का नाम सुनते ही वे सफिया के पास आकर लाहौर के बारे में बताती हैं, यह कितना सुन्दर शहर है, यहाँ के लोग कितने खूबसूरत होते हैं। खाने के शौकिन तथा | जिदांदिली की तसवीर। सिख बीबी वैसे तो लाहौर की रहनेवाली थी, परन्तु देश विभाजन के समय उन्हें हिन्दुस्तान आना पड़ा। भले ही हिन्दुस्तान में उनकी कोठी, विजनेस हैं, फिर उन्हें अपने वतन लाहौर की याद तंग करती हैं। सफ़िया को सिख बीबी लाहौर से नमक लाने की फरमाइस करती है।

लाहौर में पन्द्रह दिन कैसे गुजर गये सफिया को पता ही नहीं चला। सालों बाद आई सफिया को उसके भाइयों, दोस्तों ने बहुत खतिरदारी की। कोई कुछ लिए आ रहा है, तो कोई कुछ सफिया को क्या चीज भेंट करे, कैसे पैक करे एक समस्या थी। लेकिन सफ़िया के सामने बड़ी समस्या यह थी कि वह बादामी कागज की पुड़िया जिसमें नमक था वह हिन्दुस्तान कैसे लाये। सफिया का एक भाई जो पुलिस अफसर था, जब उससे इस समस्या के बारे में बताया तो उन्होंने बताया कि वह लाहौरी नमक हिन्दुस्तान नहीं ले जा सकती क्योंकि कस्टम वाले रोक देगें। क्योंकि यह गैरकानुनी है। भाई ने कहा कि कस्टम वाले यात्रीयों के समान की तलाशी लेते है, और ऐसी-वैसी चीज़ अगर निकल आई तो वे सारे समान बिखेर देगें। इस पर सफिया कहती है, वे नमक छिपाकर नही बल्कि दिखाकर तथा जताकर ले जाएँगी। वह कहती है, कि वह एक चंद पैसों का तोहफा लेकर जा रही कोई सोना-चांदी या स्मगल की हुई चीज़ नहीं लेकर जा रही है। थोड़ी सी बहस होने के बाद भाई कहते हैं, वह बहस नहीं करेगें क्योंकि सभी अदीबों का दिमाग घूमा हुआ होता है। फिर भी वह कहते हैं, कि नमक को नहीं ले जा पायेगी और बदनामी मुफ्त में मिलेगी। बहस के बाद मारे गुस्से के उसकी आँखो से आँसू बहने लगे। 

अगले रोज दिन को दो बजे हिन्दुस्तान के लिए रवाना होना था, सुबह के लिए व्यस्त कार्यक्रम था, अत: सफ़ीया को सारी पैकिंग रात को ही करनी थी। सारे चीजों को पैक करने के बाद दो चीजें रह गई थी। उसमें एक नमक भी था। उसने छोटी सी टोकरी | जिसमें कीनू था, जो उन्हें किसी दोस्त से तोहफे में मिला था। सारा कीनू टोकरी से | निकाला उसमें नमक के पैकेट को बिछाया और उसके ऊपर सारे कीनू को बिछा दिया | जिससे नमक न दिखे।

छअगले दिन वह फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम में रेल का इंतजार कर रही थी। उसका समान जब कस्टम पर जाँच के लिए निकला तो उसके मन में एक ख्याल आया और उसने फैसला किया कि इस तोहफे को छिपाकर नहीं बल्कि कस्टमवालों को दिखाकर ले जायेंगी। और सफ़िया वहीं खड़े कस्टम अफ़सर की ओर बढ़ी और उन्हें सारी बात बता दी। वह कस्टम अफ़सर हिन्दुस्तानी थे, जो विभाजन के वक्त पाकिस्तान आ गये थे। लेकिन आज भी उनके लिए उनका वतन हिन्दुस्तान ही था। सफिया की सारी बात सुनकर उन्होंने खुद नमक के पैकेट को अच्छी तरह लपेटा और उसके बेग में देते हुए कहा कि मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है। जाते वक्त उन्होंने यह भी कहा कि वहाँ जाकर जामा मस्जिद की सीढ़ियों को उनका सलाम कहें साथ ही नमक देते समय उन खातून से यह कहे कि आज भी लाहौर उनका और देहली मेरा वतन हैं।

सारे दोस्तों, रिश्तेदारों से विदा लेकर रेल सरहद की तरफ बढ़ी। साफिया को समझ ही नही आया कि कब लाहौर खत्म हो गया और कब अमृतसर शुरु हो गया। जमीन, जवान, सूरतें, लिबास अदांज यहाँ तक की गालियाँ भी एक जैसी थी। बस मुश्किल इस बात की थी कि दोनों के हाथों में बंदुकें थी।

अमृतसर में फर्स्ट क्लास वालो का समान उनके डिब्बे के सामने किया जा रहा था। सफिया का सारा समान देखा जा चुका था, फिर वहाँ के कस्टम अफिसर जो देखने में बगांली लग रहे थे, उन्हें अपने पास नमक होने की बात बतायी। उसने नमक की जुड़िया को उनके हाथ में देते हुए सारी बात बता दी। इसके बाद कस्टम अफिसर उसे एक कमरे में ले गये और वहाँ दराज से निकाल कर एक किताब दिखाई जो नजरूल इसलाम की थी। उन्होंने बताया की उनका वतन ढ़ाका है, और विभाजन के समय यहाँ आए। परन्तु आज भी उन्हें अपना वतन अजीज है, आज भी वे अपने वतन को याद करते हैं। भले हो आज वे कलकता में बसे है। वे बताते हैं, वैसे तो डाभ कलकता में मिलता है, परन्तु अपने वतन के डाभ की बात ही अलग है, ठीक उसी प्रकार अपने वतन के नमक की बात। वहाँ की जमीन, वहाँ का पानी का मजा ही कुछ और है। और इसके बाद वे स्वंय पुड़िया सफ़िया के बैग में रख उसे उठा आगे आगे चलने लगे। जब साफिन अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी तब भी वे वहाँ खड़े थे। सफिया सोच रही थी कि किसका चतन कहाँ है। भले ही आज वे अपने वतन में नहीं है, फिर भी अपने वतन के लिए मुहब्बत कम नहीं हुआ हैं।

प्रश्नोत्तर

1. सफ़िया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?

उत्तरः किसी एक मुल्क का सामान दूसरे मुल्क ले जाना गैरकानुनी माना जाता है। यात्रीयों के सामानों की चैकिंग कस्टम वाले करते हैं, अगर कोई एक भी चीज ऐसी-वैसी निकल आई तो उनके सामान को कस्टमवाले बिखेर देते हैं। सफ़िया के भाई पुलिस अफसर थे अत: इस बात से परिचित थे। यहीं कारण हैं, कि वह सफ़िया को नमक की पुड़िया ले जाने से मना करते है।

2. नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफ़िया के मन में क्या द्वंद्व था? 

उत्तरः सफिया के मन में नमक की पुड़िया को लेकर एक दंड चल रहा था। सफ़िया सोच रही थी कि वह कोई सोना-चादौ या स्मगल की हुई चीज़ या फिर ब्लैक मार्केट का माल नहीं लेकर जा रही हैं बल्कि चन्द पैसो का तोहफा लेकर जा रही हैं। सफिया को इसमें रोकने वाली कोई बात नज़र नहीं आती। सफिया इस तोहफे को छिपाकर नहीं बल्कि दिखाकर या जताकर ले जाना चाहती थी।

3. जब सफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?

उत्तर: जब सफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तब कस्टम आफिसर निचली सीढ़ी के पास ही खड़े थे। उनका इस प्रकार खड़े होना सफिया के हृदय में जन्मस्थान के प्रति छिपे सद्भावना तथा प्रेम का सम्मान करना था। इतना ही नहीं कस्टम अफसर उनकी इमानदारी से बहुत प्रभावित थे। साफिया चाहती तो नमक की छोटी सी पुड़िया को कस्टम आफिसर से बिना कहें ही ले जा सकती थी, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। वह नमक की पुड़िया जैसी मामुली तोहफे के भीतर छिपे कीमती भावना को अपमानित नहीं करना चाहती थी।

4. लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं।

उत्तर: लाहौर से नमक ले जाने की इजाजत देते हुए कस्टम अफसर का यह कहना कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या अमृतसर के कस्टम अफसर का यह कहना कि मेरा वतन ढ़ाका है, उनका अपने वतन के लिए जो लगाव है, जो प्रेम हैं, उसको ओर संकेत कर रहा है। भले ही राष्ट्र-राज्यों की नयी सीमा रेखाएँ खींची जा चुकी हैं और मजहबी आधार पर लोग इन रेखाओं के इधर-उधर अपनी जगहें मुकर्रर कर चुके है, इसके बावजूद जमीन पर खींची गई रेखाएँ उनके अंतर्मन तक नहीं पहुँच पाई है। भले ही एक अनचाही अप्रीतिकर बाहरी बाध्यता ने उन्हें अपने अपने जन्म-स्थानों से अलग कर दिया हैं, पर वह आज भी उनके दिलों पर कब्जा नहीं कर पाई हैं।

5. नमक ले जाने के बारे में सफ़िया के मन में उठे द्वंद्वो के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: १. साहसी व निडरः सफिया एक साहसी महिला थी। जब उनके भाई ने बताया कि नमक की पुड़िया लाहौर से हिन्दुस्तान नहीं ले जा पाऐगी क्योंकि यह गैरकानुनी है, तथा कस्टमवाले रोक लेगें। तब उन्होंने टोकरी में नमक को छिपाकर उपर कौनू तो बिछा दिया परन्तु फिर उन्होंने तपय । किया कि वह कस्टम अफसर को नमक के बारे में बताएगी तथा उनसे उसे ले जाने की इजाजत लेगीं और उन्होंने यही किया केवल लाहौर के कस्टम को ही नहीं, बल्कि अमृतसर में उनका सामान चैक करनेवाले कस्टम अफसर को भी उन्होंने निडरता से सच्चाई बतायी।

२. वादे की पक्की: सफ़िया इरादे की पक्की थी। एक बार अगर किसी को वादा कर दिया तो एक सैयद होने के नाते उस वादे से मुकर जाना उसके लिए लज्जाजनक था। वह जान देकर भी उस वादा को निभाना जानती थी। यही कारण है सेख बीबी को लाहौर से नमक लाने का वायदा करने के बाद उन्होंने हर हाल नमक को लाने की सोची। जब उन्होंने सुना की नमक ले जाना गैर कानुनी हैं, तो उन्होंने उसे छिपाकर ले जाने का तय किया।

३. सच्ची महिला: सफिया ऐसी महिला थी जो केवल सच का साथ देना जानती थी। भले हो एक बार उसने नमक को छिपाकर ले जाने की बात सोची हो परन्तु दूसरे पल उसने यह फैसला किया कि इस तोहफे को वह छिपाकर नहीं बल्कि बताकर या जनाकर ले जायेगी। और वह कस्टम अफसर को सारा सच बता देती हैं।

6. मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से जमीन और जनता बँट नही जाती हैं उचित तर्कों व उदाहरणों के जरिए इसकी पुष्टि करे।

उत्तर: कहने का तात्पर्य यह है, कि मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर को भले हो विभाजन नाम दे दिया जाता है, परन्तु इस विभाजन से न तो जमीन बैट सकती है और न ही जनता। विभाजन के वक्त जो भारतीय पाकिस्तान में जा बसे थे, या जो पाकिस्तानी भारत में आ बसे थे, आज भी उन्हें अपनी जन्म स्थान से उतना हो लगाव तथा प्रेम हैं, जितना पहले था। इस पाठ में एक कस्टम ऑफिसर का उल्लेख किया गया है जो अमृतसर के प्लेट फार्म पर लेखिका को मिलते हैं। वे भारत में रहते हैं, परन्तु उनका जन्मस्थान ढाका है, और अब भी उनको अपने वतन के प्रति प्रेम है। यह लकीर भले ही लोगों को उनके जन्म स्थानों से विस्थापित तो कर दिया है, पर वह उनके दिलो पर कब्जा नहीं कर पाई हैं। उनके अंतर्मन तक नहीं पहुँच पाई हैं।

7. ‘नमक’ कहानी में भारत व पाक की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है, कैसे?

उत्तर: ‘नमक’ कहानी में भारत व पाक की जनता के बीच आरोपित भेदभावों के बीच भी मुहब्बत का स्वाद घुला हुआ हैं। इस बात का प्रमाण तब मिलता हैं, जब कस्टम अधिकारी सफिया को नमक ले जाने की इजाजत देते है (जिसे ले जाना गैरकानूनी है) । साथ ही वह अपना वतन देहली बताते हैं। वे कहते हैं, कि नमक देते हुए उस महिला को यह कहिए कि लाहौर अभी तक उनका वतन हैं। 

8. क्या सब कानून हुकूमत के ही हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं, होते?

उत्तर: यह कथन सफिया का है। सफ़िया अपने भाई जो पुलिस अफसर थे, उन्हें नमक ले जाने की बात बताती हैं। इस पर भाई उन्हें नमक ले जाने की बात गैरकानुनी बताते हुए कहते हैं, कि कस्टम वाले नमक ले जाने नहीं देगें। अतः वे अपने भाई से कहती हैं, क्या सारे कानून हुकूमत के हक में ही होते हैं, क्या मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते हैं।

9. भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी? 

उत्तर: जब भाई ने लेखिका को यह बताया कि नमक एक देश से दूसरे देश ले जाना गैरकानूनी हैं तथा कस्टमवाले कभी भी लाहौर से भारत नमक नहीं ले जाने। पहले तो सफिया को बहुत गुस्सा आया परन्तु धीरे-धीरे भावना का स्थान बुद्धि ने ले लिया। उन्हें एक तरकीब सुझी उन्होंने कीनू की टोकरी में सबसे नीचे नमक को बिछा दिया और ऊपर कीनूओं से इसतरह ढ़क दिया कि नमक दिखाई न दे।

10. मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है, कि कानून हैरान रह जाता है। 

उत्तर: लेखिका नमक साथ लाने की बात कस्टम अफसर इसलिए बता देती हैं, क्योंकि वह एक तोहफे को चोरी छिपे नहीं लेकर जाना चाहती थी। कस्टम अफ़सर सारी बात सुनकर भी उन्हें नमक ले जाने से नही रोकता है। वे स्वंय नमक की पुड़िया को लपेटकर सफ़िया के बैग में रखते हुए कहते हैं, मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है, कि कानून हैरान रह जाता है। 

11. हमारी ज़मीन हमारे पानी का मज़ा ही कुछ और है?

उत्तरः यह कथन भारतीय कस्टम अफसर सुनील दासगुप्त का हैं। जो वैसे तो कलकत्ता में रहते हैं, परन्तु उनका जन्म स्थान ढाका हैं। वे ढाका से भारत विभाजन के समय ही आ गये थे। परन्तु आज भी वह अपने जन्मभूमि को याद करते हैं। वे कहते हैं कि कलकता में भी डाभ मिलता है, परन्तु ढ़ाका में मिलने वाला डाभ की बात ही अलग हैं। वहाँ की जमीन, वहाँ के पानी की बात ही कुछ और है।

12. ‘नमक’ कहानी के रचनाकार कौन हैं? 

उत्तरः ‘नमक’ कहानी को लेखिका रज़िया सज्जाद जहीर हैं।

13. रज़िया सज्जाद जहीर के कहानी संग्रह का नाम बताइए? 

उत्तरः रजिया सज्जाद जहीर की उर्दू कहानी संग्रह हैं – ज़र्द गुलाब।

14. नमक कहानी का मूल विषय क्या है?

उत्तरः नमक कहानी भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ के विस्थापित पुनर्वासित जनों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक हैं।

15. साफिया लाहौर से भारत नमक किसके लिए ले जाती है?

उत्तरः सफ़िया नमक की पुड़िया सिख बीब के लिए ले जाती है।

16. सफ़िया अपने भाई से मिलने कहाँ जाती है? 

उत्तर: सफ़िया अपने भाई से मिलने लाहौर जाती है।

17. मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।यह कथन किसका हैं? 

उत्तरः यह कथन उस कस्टम अफसर का है, जो सफिया को लाहौर के प्लेटफार्म में मिलते है।

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