Class 10 Hindi Elective Chapter 1 नींव की ईंट

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Class 10 Hindi Elective Chapter 1 नींव की ईंट

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नींव की ईंट

पाठ – 1

बोध एवं विचार

अभ्यासमाला

1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो

(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहाँ हुआ था ? 

उत्तर : रामवृक्ष बेनीपुरीजी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुरी गॉव में हुआ था। 

(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएँ क्यों करनी पड़ी थी ? 

उतर : भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आपको सन 1930 से 1942 तक जेल की यात्रा करनी पड़ी थी । 

(ग) बेनीपूरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था ? 

उतर : बेनीपुरी जी का सन 1968 को स्वर्गवास हुआ था ।

(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुत: किस पर टिकी होती है ? 

उत्तर : चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत नींव  की ईंट पर टिकी होती है। 

(ङ) दुनिया का ध्यान सामान्यत: किस पर जाता है ?

उत्तर : दुनिया का ध्यान, सामान्यतः, इमारत के कंगुरों पर जाता है।  

(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा ?

उत्तर : नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम भयानक होगा वह कि पुरे इमारत मिट्टी में मिल जाएगा । 

(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है ?

उतर : सुदंर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है।

(ज) लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं ?

उत्तर : जिन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार के लिए चुपचाप बलिदान दिया और मौन सहन करके भी धर्म प्रचार में लगे रहे गिरजाघरों के कलश वस्तुत: उनके शहादत से चमकते हैं ।

(झ) आज किस लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है ?

उतर : आज कंगूरा बनने के लिए होड़ा-होड़ी मची है । 

(ञ) पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत’ का आशय क्या है ? 

उत्तर : पाठ में दिए गये ‘सुन्दर इमारत’ का आशय है कि उन्नति करने वाले समाज और देश। जो दुनीया में चकमकाते रहे है । 

2. अति संक्षिप्त उतर दो (लगभग 25 शब्दों ) :

(क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है ?

उत्तर : सत्य कठोर तथा भद्दा होता है। मनुष्य इसी भद्देपन से भागता है। इसलिए वह सत्य से भी भागता है। जो कठोरता से भागते है वे सत्य से भी भागते है । 

(ख) लेखक के अनुसार कौन-सी ईंट अधिक धन्य है।

उत्तर : लेखक के अनुसार वह ईंट धन्य है, जो जमीन के साथ हाथ नीचे जाकर गड़ गयी, और चमकीली इमारत के पहली इट बनी। जिस पर पूरे इमारत टीकी रहती है।

(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है ? 

उत्तर : नींव की ईंट की भूमिका किसी के साथ तुलना नहीं किया जा सकता है। नींव की ईंट जिस प्रकार पूरे इमारत को पकड़ कर खड़ा रहने में सहायता करती है इसी प्रकार समाज के लिए चुपचाप बलिदान देने वाले नव-युवकों को तुलना किया गया है।

(घ) कंगुरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।

उत्तर : समाज के ऊँचे पदों में काम करने वालों के यश कमाने का प्रतिनिधित्व करती है कंगुरे की ईंट। लेखक इससे कहना चाहते है कि समाज की भलाई के लिये परिश्रम करते है। तीव के ईंट लेकिन अधिक सम्मान तो उसको मिलता है जो कंगुरे की ईंट वाले है। आज के लिए यह बिल्कुल सत्य है।

(ङ) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों ?

उत्तर : सुन्दर इमारत निर्माण के लिए कुछ लाल चेहरेवाले पक्की ईटों का जरुरत होती है जो अपने को मौन बलिदान देकर मिट्टी में गड़ जाती है। ठीक उसी प्रकार सुंदर समाज निर्माण करने के लिए एैसे लाल चेहरे वाले लोगों का बलिदान होना चाहिए। लेखक ने एैसे लोगों को शहादत का लाल पोषाक पहनने वाले कहते हैं ।

(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे ?

उत्तर : लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को अमर बनाने के लिये ‘उन सृष्टि धर्म प्रचारकों को माना जाता है जिन्होंने धर्म प्रचार के लिए चुपचाप अपना बलिदान दिया और सब कुछ मौन सहन करके धर्म प्रचार पर लगे रहे थे।

(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है ?

उत्तर : सात लाख गाँवों का नव-निर्माण ! हजारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण ! कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता। जरुरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दे ।

प्रश्न 3. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) 

(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते है; पर उसकी नींव की और उनका ध्यान क्यों नहीं जाता ? 

उत्तर : मानव अपना स्वभाव से चुपचाप मरने की बजाय यश चाहते है। किन्तु एैसी यश प्राप्ति के लिए हमेशा जो बलिदान देना पड़ता इससे दूर रहते है। लोग कठोरता से भागते है अर्थात् सत्य से भागते है। लेकिन यश से नहीं भागते है। बिना परिश्रम से यश आशा करते है। जैसे स्वतंत्रता के बाद लोग पद, यश, धन के पीछे होड़ा-होड़ी कर रहे है; किंतु नये समाज निर्माण के लिए चुपचाप कर्म नहीं करना चाहते है। एैसे ही लोगों ने इमारत के कंगूरे तक देखती है और नींव तक नहीं देखते । क्यों कि वे यश ही चाहते है।

(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिये क्यों आह्वान किया है ? 

उत्तर : लेखक बेनीपुरी जीने आज देश के नव-युवकों को आह्वान कर रहा है देश के नव-निर्माण के लिए नींव की ईंट के समान चुपचाप अपने को निछावर करने के लिये। क्यों कि आजादी के बाद हजारों नगरों, कारखानों और लाखों गावों का नव-निर्माण हो रहा है। इसके लिए चुपचाप काम करने वाले लाखों नवयुवकों की आवश्यकता है। इसलिए बह सबको आह्वान कर रहा है। जिससे वह एक दिन नींव के गीत गा सकें। क्यों की नींव बनाने वालों को इससे प्रेरणा मिलती है।

(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते है; परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते ? 

उत्तर : नींव की ईंट का अर्थ-मौन बलिदान देना और कंगुरे की ईंट का अर्थ है- यश प्राप्त करनेवाला कार्य करना। यह मानव स्वभाव है। वह चुपचाप मरने के बजाय जीवन में अनायास प्रशंसा चाहते है। इसलिए आप दुनिया में कंगरे के ईंट बनने के लिए होड़ा-होड़ी लगाती है। भारत के स्वतंत्रता लड़ाई में अनेक वीर शहीद हो गये लेकिन स्वतंत्रता के बाद कुछ लोग यश, पद और धन के पीछे दौड़ते है ।

(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों ?

उत्तर : लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन धर्म प्रचारकों को देते है जिन्होंने धर्म प्रचार के लिए चुपचाप आपनेको बलिदान दिया और मौन सहन करके धर्म प्रचार में लगे रहें। धर्म प्रचार करने में कितने ही लोगो का मौत हो गया उनका हिसाब नहीं। लेकिन यह सत्य है कि उन्हीं के पुण्य-प्रयास से ही आज ईसाई धर्म एक श्रेष्ठ धर्म बन गये। इसलिए लेखक बेनीपुरी जी ने उन अनामी शहीदों को ही श्रेष्ठ माना ।

(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ ?

उत्तर : हमारा देश आजाद हुआ। लेकिन इस आजादी के पीछे अनेक अनामी शहीदों का बलिदान है जिसके नाम इतिहास में कहीं लिखा नही। शायद उनकी चर्चा भी कभी न होती है । ऐसे लोग बिन यश से देश को आजादी प्रदान किया । 

इस प्रकार नींव की ईंट की तरह अनामी शहीदों के बलिदान से ही हमारा देश आज स्वाधीन हुआ।

(च) दधीचि मुनि ने किस लिए और किस प्रकार अपना बलिदान दिया था ?

उत्तर : पुराण के अनुसार दधीचि एक तपस्वी ऋषि थे। उसी के अनुसार ‘वृत्रासुर नामक एक असुर भी थे। वह अमर बने थे। किसी भी अस्त्र से वह नहीं मरेगा। इसलिए वह देवराज इंद्र को भी आक्रमण किया था। उपाय विहीन होकर देवराज इन्द्र ने दधीचि मुनि के पास आकर सव कुछ बताया । अस्त्र बनाने दधीचि के हड्डियों को माँगा। असुरों को मारने के लिए दधीचिने हड्डियों को दान दिया और इससे वृत्रासुर मारा भी गया । इस महान बलिदान आज भी स्मरणीय और प्रेरणादायक है।

(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है ? 

उत्तर : भारत के नव निर्माण के लिए देश के उन नवयुवकों को आह्वान किया जो देश के नव निर्माण के लिए नींव का ईटं के समान चुपचाप स्वयं को सौंपा देगा । क्योंकि लेखक आजादी के बाद हजारों नगरों कारखानौ, गाँवों को नव निर्माण देखना चाहता है। इसके लिए चुपचाप काम करने वाले लाखों नवयुवकों को आवश्यकता है। इसलिए उन लोगों को आह्वान किया।

(ज) ‘नींव की ईंट’ शीर्षक निबंध का संदेश क्या है ?

उत्तर : ‘नींव की ईंट’ निबंध से देश के नवयुवकों को नव निर्माण के लिए प्रेरणा दिया है। इमारत के कंगुरों का प्रशंसा से भविष्य में देश का कोई लाभ नहीं होगा जिस से नींव की ईंट से होती है। जिस प्रकार नीव के ईंट के बलिदान से इमारत खड़ा हुआ है इस प्रकार देश के नवयुवकों के बलिदान से नये. समाज बन सकते है। जिससे राष्ट्र को मजबूती प्रदान कर सकते है।

प्रश्न 4. सम्यक उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) 

(क) ‘नींव की ईंट’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो। 

उत्तर : पाठ के मूल : ‘नींव की ईंट’ बेनीपुरी जी के रोचक एवं प्रेरक ललित निबंधों में अन्यतम है। ‘नींव की ईंट का प्रतीकार्थ है समाज का अनाम शहीद, जो बिना किसी यश-लोभ के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत है। सुंदर इमारत का आशय है-नया सुंदर समाज । कंगुरे की ईंट का प्रतीकार्थ है-समाज का यश-लोभी सेवक, जो प्रसिद्ध, प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है । निबंधकार के अनुसार भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सैनिकों नींव की ईंट की तरह थे, जबकि स्वतंत्र भारत के शासकों कंगुरे की ईंट निकले । भारतवर्ष के सात लाख गांवों, हजारों शहरों और सैकड़ों कारखानों के नव-निर्माण हेतु नींव की ईंट बनाने के लिए तैयार लोगों की जरूरत है। परंतु विडंबना यह है कि आज कंगुरे की ईंट बनाने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है। इस रूप में भारतीय समाज का नव निर्माण संभव नहीं। इसलिए निबंधकार ने देश के नौजवानों से आह्वान किया है कि वे नींव की ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के नव-निर्माण में चुपचाप अपने को खपा दें

(ख) ‘कंगूरे की ईंट’ के प्रतीकार्थ पर सम्यक प्रकाश डालो ।

उत्तर : कंगूरे की ईंट का अर्थ-यश देने वाले कार्य करना। साधारणतः मनुष्य चाहते है बिना परिश्रम तथा चुपचाप मरने के बजाय यश लाभ करना। इसी कारण स्वतंत्रता के बाद कुछ लोगों ने यह, पद तथा धन के लिए होड़ा-होड़ों में लग गये। और बाद में लोगों ने इस पर अधिक आकर्षित हुए थे, वे देश के लिये कोई काम करना नहीं चाहते। कंगुरे की ईंट समाज के ऊँचे पदों के काम करके यश कमाने वाले लोगों को प्रतिनिधित्व करते है। लेखक इससे उजागर करना चाहता है कि समाज के मजबुती पर मौन बलिदान देनेवाले से अधिक सम्मान ऊँचे पद पर सुशोभित लोगों को मिलता है। हमें चाहिए कि समाज के नव निर्माण के लिए मौन रूप से बलिदान करने वालों को प्रोत्साहन दे और उन्हीं का योगदान भी करें। कंगूरे वालों का नहीं।

(ग) ‘हाँ, शहादत और मौन-मूक ! समाज की आधारशिला यही होती है’ का आशय बताओ ।

उत्तर : “शहादत और मौन-मूक”, को ही समाज के आधारशिला माना जाता है। क्योंकि इसी से ही समाज निर्माण होती है। यदि समाज में चुपचाप काम करने वाले लोग न होता तो कोई काम नही हो सकता। आज भारत में हजारों शहरों और कारखानों का निर्माण होता रहता है। नई समाज निर्माण होती रहती है। कोई शासक अकेले यह नहीं कर सकता। इसके लिए चाहिए ऐसे नौजवान जो अपने आपको चुपचाप इस काम में सांप दे। अतः अब यह स्पष्ट है कि मौन बलिदान ही समाज की वास्तविक आधारशिला हैं ।

प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या करो 

(क) “हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसलिए सच से भी भागते हैं।”

उत्तर : प्रस्तुत व्याख्या हमारे पाठ्य पुस्तक के नींव की ईंट नामक पाठ से उपस्थापन किया गया है। यहाँ बेनीपुरी जीने सभ्यता पर विश्लेषण करते है ।

लेखक कहते है कि सत्य हमेशा कठोर होता है और यह कठोरता और भद्दापन के साथ जन्मा करते हैं। कठोरता के लिए मौन बलिदान चाहिए। लोग ऐसे बलिदान से भागकर बेकार प्रशंसा आशा करते है। सत्य से भागकर असत्य को आश्रय देते है। पाठ के अनुसार सब लोग भद्देपन से गुमनामी से भागते है। इसलिए नींव की ईंट बनाने से भी बचता है। वे चुपचाप बलिदान से ही वचते है ऐसा नहीं बलिदानों को गुणगान करने से भी बचते है। यह जानबूझकर ही करते है। इसलिए हमेशा लोग सत्य से भी धीरे धीरे भागते हैं । 

अतः हम सत्य के लिए कठोरता और भद्देपन को साथ देना चाहिए ।

(ख) “सुंदर सृष्टि । सुंदर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का ।”

उत्तर : प्रस्तुत व्याख्या के अनुसार लेखक बेनीपुरी जी कहते हे कि सुन्दर सृष्टि अपने आप नहीं होती है। इसके लिए त्याग और बलिदान जरुर लगते है। जिस प्रकार नीव की ईंट की बलिदान से दुनिया में इमारत खड़े रहते हैं, कंगुरे बनते है, लोग इमारतों को प्रशंसा करते है। लेकिन इन प्रशंसा के पीछे नीव की ईंट का बलिदान है-वह मिट्टी के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाते है, अपने को मौनता सा अंधकार में सौंप देता है। वह कभी प्रशंसा नहीं चाहते है। 

ठिक उसी प्रकार नये समाज के लिए कुछ लोगों का बलिदान देना चाहिए। जिस प्रकार कई लोगों के बलिदान से देश को स्वतंत्रता मिली, देश को नई सृष्टि के मौका मिली। 

अतः देखा जाता है कि नई सुन्दर सृष्टि के लिए बलिदान जरूर होना चाहिए, चाहे वह इमारत के लिए हो या देश-समाज के लिए हो।

(ग) “अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है।”

उत्तर : प्रस्तुत व्याख्या ‘नींव की ईंट से लिया गया है। यहाँ लेखक बेनीपुरी जीने कहते है कि आज लोग इमारत के कंगुरे बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी लगाते है। क्यों कि लोग आज सत्य से भागते है। कंगूरा बनने में बलिदान का, त्याग का, कठोरता का कोई जरुरत नहीं होता। इसलिए कंगूरा बनने में लोग उत्तावल होने लगते हैं। लेकिन कंगुरा से दुनिया में नया सृष्टि नहीं मिलता है, सृष्टि तो नींव से हो सकती है। लोग नींव होने के बजाय कंगुरा बनने जा रहे है। जिससे समाज नही बन सकते। यह बड़े अफसोस की बात है। यह भविष्य के लिए बड़ी भयानक चिंता हैं ।

Sl. No.Contents
Chapter 1नींव की ईंट
Chapter 2छोटा जादूगर
Chapter 3नीलकंठ
Chapter 4भोलाराम का जीव
Chapter 5सड़क की बात
Chapter 6चिट्ठियों की अनूठी दुनिया
Chapter 7साखी
Chapter 8पद-त्रय
Chapter 9जो बीत गयी
Chapter 10कलम और तलवार
Chapter 11कायर मत बन
Chapter 12मृत्तिका

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान 

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों में से अरबी-फारसी के शब्दों का चयन करो

इमारत, नींव, दुनिया, शिवम, जमीन, कंगूरा, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत, कलश, आवरण, रोशनी, बलिदान, शासक, आजाद, अफसोस, शोहरत ।

उत्तर : अरबी : दुनिया, मुनहसिर, आवरण, रोशनी,शासक ।

फारसी  : इमारत, जमीन, शहादत, आजाद, अफसोस,  शोहरत ।

(वाकी संस्कृत से आए हिन्दी शब्द)

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाओ 

चमकीली, कठोरता, बेतहाशा, भयानक, गिरजाघर, इतिहास ।

(i) चमकीली : आकाश के चमकीली तारों को देखकर बच्चा स्थिर हो गये।

(ii) कठोरता : कठोरता उन्नति का प्रतिशब्द है।

(iii) बेतहाशा : कोई काम करने से सोच समझकर

करना चाहिए नहीं तो बेतहाशा हो जायेगा।

(iv) भयानक : जंगल में भयानक जनबर होती है

(v) गिरजाघर : गिरजाघर में प्रार्थना चल रहे हैं ।

(vi) इतिहास : इतिहास से ही नये समाज बनाने का प्रेरणा मिलती हैं। 

प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो

(क) नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते ।

उत्तर : नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते ।

(ख) ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फुल रहे हैं 

उत्तर : ईसाई धर्म उनके पुण्य प्रताप से फल-फुल रहा हैं।

(ग) सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।

उत्तर : सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाए हैं।

(घ) हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।

उत्तर : हमारे शरीर में कई अंग होते हैं ।

(ङ) हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।

उत्तर : हमें निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं ।

(च) सव ताजमहल की सौन्दर्यता पर मोहित होते हैं।

उत्तर : सव ताजमहल की सौन्दर्य पर मोहित होते हैं।

(छ) गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।

उत्तर : गत रविवार को वह मुंबई गये ।

(ज) आप कृपया हमारे घर आने की कृपा करें। 

उत्तर : आप कृपया हमारे घर आए।

(झ) हमें अभी बहुत बातें सीखना है ।

उत्तर : हमें अभी बहुत बातों को सीखना हैं । 

(ञ) मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ। 

उत्तर : मैंने यह निबंध पढ़कर आनन्द का आभास पाया।

प्रश्न 4. निम्नलिखित लोकोक्तियों का भाव-पल्लवन करो :

(क) अधजल गगरी छलकत जाए।

उत्तर : इसका अर्थ यह है कि बह घड़ा हमेशा छलकती रहा है जिसमे जल पुरी तरह भरा नहीं होता। यदि घड़ा पुरी तरह भरा होता तो पानी इधर उधर छलकने का डर नहीं होता। जो घड़ा खाली रहता है, उससे जल के छलकनेका डर रहता है, पानी छलकता रहता है।

इसी प्रकार जिस व्यक्ति में गंभीरता और सम्पन्नता रहती है वह बोलता कम है, उचित समय पर सही काम कर देता है। वास्तविकता यह है कि जो काम करता है वह दम्भ नही करता है, जो बरसता है वे गरजता नही, जो नहीं जानता है वे दिखाने का प्रयत्न करता है, किन्तु जो अधाभरा है वह छलक छलकर अपने को व्याप्त करने को कौशिश करता है। इसलिए कहा जाता है-अधजल गगरी छलकत जाए।

(ख) होनहार बिरबान के होत चिकने पात । 

उत्तर: जो बड़ा होकर प्रसिद्ध बनता है बचपन से भी उनका परिचय मिलता है। जैसे शिवाजी के बचपन से ही वीरता का प्रमाण हमको मिले थे। सतंत्र राज्य स्थापना को कल्पना वह बचपन से ही करते थे और आखिर एक दिन सफल भी हुए।

(ग) अब पछताए क्या होत जब चिडिय़ा चुग गई खेत।

उत्तर : इससे यह कहने की कोशिश करता है कि समय का काम समय पर नहीं करने से क्या नुकसान होता है यह बात सोचकर पछताने से कोई लाभ नही होगा। करने वाला काम समय मे ही करना चाहिए। विद्यार्थी समय पर नहीं पढ़ता, गाड़ी पकड़ने वाले समय पर स्टेसन नहीं पहुंचता तो पछताना जरुर होगा। अतः जो लोग समय का मुल्य को नहीं जानता है वह जीवन में उन्नति नहीं कर सकते।

(घ) जाको राखे साइयॉ मार सके न कोय ।

उत्तर: इससे यह कहा जाता है जिसको भगवान सहायता करते है उसको किसी ने भी मार नहीं सकते। प्रत्येक जीवों को भगवान सहायता करते है, सहारा देती है। जीवित रहने के शक्ति देते है। लेकिन इसके लिए हमे भगवान के नाम लेना चाहिए। हमे भगवान के प्रति विश्वासी होना चाहिए। हमको भी भगवान जीने के शक्ति देते है। इसको कहते हैं जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई।

प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ बताओ :

अंबर, उत्तर, काल, नव, पत्र, मित्र, वर्ण, हार, कल, कनक ।

उत्तर : अंबर : आकाश , व्योम । 

उत्तर : दिशा, जवाब।

काल : समय, नियति।

नव : नया , नूतन ।

पत्र : चिठ्ठी , खत ।

मित्र : दोस्त , बंधु ।

वर्ण : अक्षर , श्रेणी ।

हार : पराजय , पराभब ।

कल : ध्वनि , वीर्य ।

कनक : स्वर्ण , सोना ।

प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों-जोड़े के अर्थ का अंतर बताओ :

अगम : जहाँ गमन नहीं किया जाता है (अगम्य)।

दुर्गम : जहाँ गमन करना मुश्किल है।

अपराध : दोष।

पाप : अधर्म ।

अस्त्र : हथियार

शस्त्र : निक्षेप करनेवाली हथियार

आधि : मानसिक व्याथा ।

व्याधि : बीमार ।

दूख : क्लेश ।

खेद : थकावट

स्त्री : औरत

पत्नी : अर्धांगिनी । 

आज्ञा : आदेश । 

अनुमति : स्वीकृति ।

अहंकार : अभिमान।

गर्व : समर्थवान अंहभाव

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