Class 10 Ambar Bhag 2 Chapter 7 नमक का दारोगा

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Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 7 नमक का दारोगा

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नमक का दारोगा

पाठ – 7

गद्य खंड

लेखक-संबंधी प्रश्न एवं उत्तर:

1. मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था? 

उत्तर: मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को बनारस (काशी) शहर से चार मील दूर लमही नामक गाँव में हुआ था।

2. प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था?

उत्तर: प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था।

3. प्रेमचंद के माता-पिता का नाम क्या था?

उत्तर: प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब राय तथा माता का नाम आनंदी देवी था।

4. प्रेमचंद के पिता अजायब राय क्या करते थे?

उत्तर: प्रेमचंद के पिता अजायब लाल डाकखाने में किरानी थे।

5. प्रेमचंद उर्दू भाषा में किस नाम से लिखते थे?

उत्तर: प्रेमचंद उर्दू भाषा में ‘नवाब राय’ नाम से लिखते थे।

6. उर्दू भाषा में प्रकाशित प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह का नाम क्या है?

उत्तर: उर्दू भाषा में प्रकाशित प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह का नाम ‘सोजे वतन’ है।

7. प्रेमचंद ने कब अपने नाम से हिन्दी भाषा में लिखना आरंभ किया?

उत्तर: उर्दू भाषा में प्रकाशित प्रेमचंद (नवाब राय) का पहला कहानी संग्रह ‘सोने ‘वतन’ जब अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया तब उन्होंने अपने नाम (प्रेमचंद) से हिन्दी भाषा में लिखना आरंभ किया।

8. आजीविका के लिए प्रेमचंद ने कौन-सा पेशा अपनाया? 

उत्तरः आजीविका के लिए प्रेमचंद ने शिक्षक के पेशे को अपनाया।

9. बाद में प्रेमचंद शिक्षा विभाग में किस प्रतिष्ठित पद पर आसीन हुए? 

उत्तरः बाद में प्रेमचंद शिक्षा विभाग में डिप्टी इन्सपेक्टर के प्रतिष्ठित पद पर आसीन हुए।

10. प्रेमचंद का देहांत कब हुआ था? 

उत्तरः प्रेमचंद का देहांत 8 अक्टूबर सन् 1936 को हुआ था।

11. प्रेमचंद जीवन भर किस कठिनाई (तंगी) से जूझते रहे?

उत्तर: प्रेमचंद जीवन भर आर्थिक कठिनाई (तंगी) से जूझते रहे।

12. प्रेमचंद ने लगभग कितनी कहानियाँ और कितने उपन्यासों की रचना की है?

उत्तर: प्रेमचंद ने लगभग तीन सौ कहानियाँ और चौदह उपन्यासों की रचना की है। 

13. प्रेमचंद की गिनती किस प्रकार के लेखकों में होती है?

उत्तर: प्रेमचंद की गिनती संसार के महान लेखकों में होती है। 

14. हिन्दी साहित्य जगत में प्रेमचंद को किन-किन उपाधियों से विभूषित किया गया है?

उत्तरः हिन्दी साहित्य जगत में प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’, ‘महान कहानीकार’ ‘और ‘कलम का सिपाही’ जैसी उपाधियों से विभूषित किया गया है।

15. प्रेमचंद की सभी कहानियाँ कहाँ संकलित हैं?

उत्तर: प्रेमचंद की सभी कहानियाँ’ मानसरोवर’ के आठ भागों में संकलित हैं।

16. प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ एवं चर्चित कहानियाँ कौन-कौन-सी हैं? 

उत्तरः प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ एवं चर्चित कहानियाँ क्रमशः ‘नमक का दारोगा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘परीक्षा’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘ईदगाह’, और ‘दो बैलों की कथा’ आदि हैं।

17. प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यासों में कौन-कौन से नाम आते हैं?

उत्तर: प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यासों में क्रमश: ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘निर्मला’, ‘सेवा सदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘कर्मभूमि’, ‘रंगभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘प्रतीक्षा’ और ‘मंगलसूत्र’ (अपूर्ण) आदि के नाम आते हैं।

18. कहानी और उपन्यासों के अतिरिक्त प्रेमचंद ने किन-किन पत्रों का सम्पादन किया था? 

उत्तर: कहानी और उपन्यासों के अतिरिक्त प्रेमचंद ने ‘हंस’, ‘मर्यादा’ और ‘जागरण’ आदि पत्रों का सम्पादन किया था।

19. कहानी के क्षेत्र में क्रान्ति का श्रेय किस लेखक को जाता है?

उत्तर: कहानी के क्षेत्र में क्रान्ति का श्रेय मुंशी प्रेमचंद को जाता है। 

20. प्रेमचंद की कहानियों में कैसा जीवन चित्र दिखाई देता है?

उत्तर: प्रेमचंद की कहानियों में ग्रामीण जीवन का जीवंत चित्र दिखाई देता है।

21. प्रेमचंद की भाषा-शैली कैसी है तथा इसकी विशेषता क्या है ? 

उत्तरः प्रेमचंद की भाषा-शैली अत्यन्त सरल एवं सहज है तथा इसकी विशेषता यह है कि इसे कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी आसानी से समझ लेता है।

22. प्रेमचंद की कहानियों में क्या निहित रहता है?

उत्तरः प्रेमचंद की कहानियों में कोई न कोई महान संदेश निहित रहता है।

23. प्रेमचंद की कहानियों की विशेषता (उद्देश्य) क्या है?

उत्तरः प्रेमचंद की कहानियों की विशेषता (उद्देश्य) अंधविश्वास, अशिक्षा, छुआछूत, ऊँच-नीच का भेदभाव, नारी अत्याचार आदि समस्याओं पर कठोर प्रहार कर समाज सुधार करना है। 

24. प्रेमचंद की कहानियों की रोचकता किस कारण बढ़ गई है?

उत्तरः प्रेमचंद की कहानियों की रोचकता उर्दू शब्द- बाहुल्य तथा मुहावरों एवं कहावतों के सुन्दर प्रयोग से बढ़ गई है।

25. ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक कहानी का मुख्य उद्देश्य धन पर धर्म की विजय दिखाना है।

सारांश:

मुंशी प्रेमचंद की ‘नमक का दारोगा’ कहानी उस युग की है, जब देश में नमक बनाने और बेचने पर कई तरह के कर (शुल्क) लगा दिए गए थे। इस कारण भ्रष्ट अधिकारियों की चाँदी हो गई थी और नमक विभाग में काम करनेवाले कर्मचारी दूसरे बड़े-से-बड़े विभागों की तुलना में अधिक ऊपरी कमाई कर रहे थे। कहानी के नायक मुंशी वंशीधर, जो एक निर्धन और कर्ज में डूबे परिवार के इकलौते कमाने वाले हैं। किस्मत से उन्हें नमक विभाग में दारोगा की नौकरी मिल जाती है। अतिरिक्त आमदनी के अनेक मौके मिलने और वृद्ध पिता की अनेक नसीहतों के बाद भी उनका मन धर्म से डिगने को नहीं चाहता। एक दिन अचानक उन्हें नमक की बहुत बड़ी तस्करी के बारे में पता चलता है और वे वहाँ पहुँच जाते हैं। इस तस्करी के पीछे वहाँ के सबसे बड़े जमींदार पंडित अलोपीदीन का हाथ है। जब पंडित अलोपीदीन को वहाँ बुलाया जाता है तो वे बड़ी निश्चिंतता से आते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि पैसे से हर दारोगा को खरीदा जा सकता है। वे मुंशी जी को भी हजार रुपए की रिश्वत देने की पेशकश करते हैं, लेकिन मुंशी वंशीधर इसके लिए तैयार नहीं होते और उन्हें गिरफ्तार होने का हुक्म दे देते। रकम बढ़ते-बढ़ते चालीस हजार तक पहुँच जाने के बाद भी वंशीधर का ईमान नहीं डिगता। 

पूरे शहर में पंडित जी की खुद बदनामी और थुक्कम फजीहत होने के बाद भी जब वे पैसे के दम पर अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं और अपने रसूख से मुंशी जी को नौकरी से भी हटवा देते हैं, तो वंशीधर की मुसीबतों का कोई ठिकाना नहीं रहता। पैसे की तंगी के साथ-साथ उन्हें घर वालों से गुस्से का भी सामना करना पड़ता है। तभी अचानक एक अनहोनी होती है। पंडित अलोपीदीन मुंशी वंशीधर के घर आकर उन्हें अपने यहाँ बढ़िया वेतन और अनेक सुख-सुविधाओं के साथ पूरे व्यवसाय और संपत्ति का प्रबंधक नियुक्त कर देते हैं, क्योंकि वे उनकी ईमानदारी से बहुत प्रभावित होते हैं।

शब्दार्थ:

• निषेध : मनाही 

• छल : धोखा 

• सूत्रपात : आरंभ, शुरू 

• पटवारी : गाँव की जमीन का लेखा-जोखा करनेवाला कर्मचारी 

• सम्मानित : सम्मान के योग्य 

• दुर्दशा : बुरी अवस्था  

• ऋण : कर्ज 

• ओहदा : पद 

• लुप्त : अदृश्य 

• सदैव : हमेशा 

• मस्त : बेफिक्र 

• कार्यकुशलता : काम करने में निपुणता 

• आचार : नैतिक आचरण, चरित्र, सदाचार 

• दफ्तर : कार्यालय 

• प्रवाह : धारा 

• गड़गड़ाहट : गड़गड़ाने का शब्द 

• मल्लाह : मछुआरा 

• कोलाहल : शोर 

• गोलमाल : गड़बड़ी 

• तमंचा : पिस्तौल 

• कतार : पंक्ति 

• सन्नाटा : खामोशी

• कानाफूसी : धीरे-धीरे बात करना

• प्रतिष्ठित : आदरणीय 

• ज़मींदार : भू-स्वामी 

• संदेह : किनारा 

• घाट : शक 

• बीड़ा : गिलौरी 

• लिहाफ : रजाई

• हुक्म : आदेश

• कष्ट : पीड़ा

• कड़ककर : चिल्लाकर

• नमकहराम : स्वामी अथवा मालिक के साथ धोखेबाजी करने वाला

• हिरासत : निगरानी, हवालात

• कायदा : नियम, तरीका

• चालान : अपराधी का विचार के लिए अदालत भेजा जाना

• स्तंभित : हैरान

• हलचल : खलबली

• कदाचित् : शायद

• अलहड़ / अल्हड़ : नासमझ, गँवार

• दीन : दुःखित, दरिद्र

• बुद्धिहीन : मूर्ख

• दृढ़ता : स्थिरता

• देव-दुर्लभ : जो देवताओं को भी प्राप्त न हो

• झुंझलाना : चिढ़ना, खिजलाना

• अलौकिक : लोकोत्तर, अमानुषी

• अटल : निश्चित, दृढ़

• निपटारा : झगड़े का निर्णय

• कुचलना : पैर से रौंदना, दबाना

• कातर : दुःखी, विवश

• मूर्च्छित : बेहोश 

• टीका-टिप्पणी : व्याख्या (आलोचना )

• अभियुक्त : प्रतिवादी, मुलजिम

• ग्लानि : खिन्नता, पछतावा, पश्चात्ताप

• क्षोभ : घबराहट, दुःख

• अरदली : हाकिम का चपरासी

• मोल : मूल्य, दाम

• विस्मित : आश्चर्ययुक्त, चकित

• डाँवाडोल : चंचल, विचलित

• पक्षपात : उचित-अनुचित का विचार न करते हुए किसी के अनुकूल प्रवृत्ति

• तजबीज : सभ्यता, संस्कृति

• निर्मूल : मूलरहित

• भ्रमात्मक : संदिग्ध

• खेदजनक : दुःखदायी

• बैर : शत्रुता

• मुअत्तली : काम या नौकरी से कुछ दिनों के लिए हटा दिया जाना

• भग्न : पराजित

• व्यथित : दुःखित

• कुड़बुड़ाना : कुढ़ना

• अकारण : बेकार

• कामना : इच्छा, अभिलाषा

• अगवानी : आगे बढ़कर स्वागत करना

• कपूत : कुपुत्र

• कुलतिलक : अपने वंश का गौरव

• कीर्ति : यश

• अर्पण : दान, भेंट

• खुशामद : चापलूसी, झूठी प्रशंसा

• स्वेच्छा : अपनी इच्छा से

• सद्भाव : मैत्री, मेलजोल

• जायदाद : संपत्ति

• बेमुरौवत : निर्दय

• संकुचित : संकीर्ण

• प्रफुल्लित : आनन्दित, खुश

• परास्त : पराजित, हार जाना

• नौबत : स्थिति

• ठकुरसुहाती : चाटुकारिता, चापलूसी

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

बोध एवं विचार:

1. सही विकल्प का चयन कीजिए:

(क) पढ़ाई समाप्त करने के बाद मुंशी वंशीधर किस पद पर नियुक्त हुए?

(i) नमक का दारोगा। 

(ii) मैनेजर।

(iii) कांस्टेबल। 

(iv) न्यायाधीश।

उत्तरः (i) नमक का दारोगा।

(ख) पंडित अलोपीदीन थे दातागंज के प्रतिष्ठित –

(i) व्यक्ति।

(ii) जमींदार।

(iii) दारोगा।

(iv) न्यायाधीश।

उत्तरः (ii) जमींदार।

(ग) अदालत में पंडित अलोपीदीन को देखकर लोग इसलिए विस्मित नहीं थे कि उन्होंने क्यों यह कार्य किया बल्कि इसलिए कि-

(i) अलोपीदीन ने भारी अपराध किया था।

(ii) उन्होंने मुंशी वंशीधर को घूस देने की कोशिश की थी।

(iii) वह कानून के पंजे में कैसे आए। 

(iv) उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।

उत्तर: (i) वह कानून के पंजे में कैसे आए।

(घ) कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का नियुक्त किया –

(i) मालिक।

(ii) स्थायी मैनेजर।

(iii) वारिस।

(iv) हिस्सेदार।

उत्तरः (ii) स्थायी मैनेजर।

2. अत्यंत संक्षेप में उत्तर दीजिए:

(क) लोग नमक का चोरी-छिपे व्यापार क्यों करने लगे? 

उत्तरः लोग नमक का चोरी-छिपे व्यापार इसलिए करने लगे क्योंकि देश की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के नमक विभाग ने ईश्वरप्रदत्त नमक के मुक्त व्यवहार पर प्रतिबंध लगा दिया था।

(ख) पहले किस प्रकार की शिक्षा पाकर लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे? 

उत्तरः पहले न्याय और विद्वत्ता की लंबी-चौड़ी उपाधियाँ पाकर लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।

(ग) किन गुणों के कारण मुंशी वंशीधर ने अफ़सरों को मोहित कर लिया था?

उत्तरः अपनी कार्यकुशलता और उत्तम आचार के कारण मुंशी वंशीधर ने अफसरों को मोहित कर लिया था।

(घ) नमक के दफ़्तर से मील भर पूर्व कौन-सी नदी बहती थी? 

उत्तरः नमक के दफ्तर से मील भर पूर्व यमुना नदी बहती थी। 

(ङ) वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में क्यों लिया?

उत्तर: वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में इसलिए लिया क्योंकि उन्होंने यमुना नदी के तट पर कुछ आदमियों को पंडित अलोपीदीन की गाड़ियों के साथ व्यापार के लिए अवैध रूप से नमक ले जाते हुए रंगे हाथ पकड़ा था।

3. संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) जब मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकले तो उनके पिता जी ने क्या उपदेश दिया?

उत्तर: जब मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकले तो उनके पिता जी ने नौकरी में केवल मासिक आय वाले प्रतिष्ठित पद के बजाय ऊपरी आय वाले पद पर ध्यान देने का उपदेश दिया। उन्होंने अपना आशय उपमा के माध्यम से स्पष्ट करते हुए समझाया कि “बेटा! मासिक आय तो पूर्णवासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।”

(ख) गिरफ्तारी से बचने के लिए पं. अलोपीदीन ने वंशीधर को किस प्रकार रिश्वत देने की पेशकश की?

उत्तरः पंडित अलोपीदीन को पैसे की ताकत पर अखण्ड विश्वास था। वे पैसे के बल पर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते थे। इसी विश्वास के बल पर उन्होंने मुंशी वंशीधर को भी खरीदना चाहा। उन्होंने पहले एक हजार रुपये देने की पेशकश की। फिर पाँच, दस, पंद्रह और बीस हजार तक पहुँच गए। लेकिन वंशीधर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब पंडित अलोपीदीन के विश्वास को पहली बार धक्का लगा और उन्होंने अत्यंत दीन भाव से इस मामले को निपटाने हेतु एक बार फिर कोशिश की। बीस से पच्चीस, पच्चीस से तीस और अन्त में चालीस हजार तक देने की लालच दी। परन्तु वंशीधर अपने स्थान पर पर्वत की तरह अविचलित खड़े रहे।

(ग) यमुना तट पर मुंशी वंशीधर और पं. अलोपीदीन के बीच हुई बातचीत का वर्णन कीजिए।

उत्तरः यमुना तट पर मुंशी वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन की नमक की बोरियों से लदी हुई गाड़ियों को रोक दिया और उनके पास बुलावा भेजा। तब पंडित अलोपीदीन एक रईस की तरह लिहाफ ओढ़े और मुँह में पान चबाते हुए उनके पास आए और ‘बाबू जी आशीर्वाद’ कहकर अत्यंत विनम्र भाव से गाड़ियों के रोके जाने का कारण पूछा। इस पर वंशीधर ने अपने पद की गरिमा के हैसियत से रुखाई स्वर में सरकारी हुक्म को कारण बताया। तब पंडित अलोपीदीन ने अपनापन दिखाकर इसे घर का मामला कहा और अन्य अधिकारियों की भाँति भेंट स्वरूप रिश्वत की पेशकश की। परन्तु इन बातों से अप्रभावित मुंशी वंशीधर ने कड़े शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- ‘हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं।’

जब पंडित अलोपीदीन को किसी भी तरह से अपनी दाल गलती हुई नहीं दिखाई दी तो बहुत ही दीन-भाव से अपनी इज्जत का वास्ता देकर स्वयं को हिरासत में नहीं लेने का आग्रह किया। किन्तु वंशीधर ने कठोर स्वर में ऐसी बातें सुनने से मना कर दिया।

परन्तु अभी भी पंडित अलोपीदीन को अपनी धन की शक्ति पर पूरा विश्वास था। जब किसी भी तरह की बातों से काम नहीं बना तो रिश्वत का सहारा लेते हुए एक हजार रुपये की पेशकश की। इस पर वंशीधर ने दृढ़ता से कहा- ‘एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते।’ इसके बाद हर आग्रह के साथ रिश्वत की राशि बढ़ती चली गई और बीस हजार तक पहुँच गई। लेकिन वंशीधर का जवाब पूर्ववत् था।

अब पंडित अलोपीदीन निराश हो चले थे और अत्यंत दीनता से ईश्वर का वास्ता देकर दया की भीख माँगते हुए पच्चीस हजार पर निपटारा करने की बात कही। तो मुंशी वंशीधर ने इसे असंभव कहकर उनकी प्रार्थना को निर्दयतापूर्वक ठुकरा दिया। एक बार फिर पंडित जी ने हिम्मत दिखाई और तीस हजार तक पहुँचे। परन्तु वंशीधर ने कहा कि किसी भी तरह संभव नहीं है। अन्त में पंडित अलोपीदीन ने अपनी सारी शक्ति बटोर कर पूछा ‘क्या चालीस हजार भी नहीं ?’ तो वंशीधर ने स्पष्ट शब्दों में कहा-‘ चालीस हजार नहीं, चालीस लाख पर भी असंभव है।’

(घ) डिप्टी मजिस्ट्रेट ने क्या फैसला सुनाया?

उत्तर: डिप्टी मजिस्ट्रेट ने यह फैसला सुनाया कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए प्रमाण निर्मूल और भ्रमात्मक हैं। वे एक बड़े व्यापारी हैं और मामूली से लाभ के लिए ऐसा काम नहीं करेंगे। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए यह भी कहा कि दारोगा मुंशी वंशीधर की विचारहीनता के कारण पंडित अलोपीदीन जैसे भले मानुस को कष्ट उठाना पड़ा। हालांकि वंशीधर का काम के प्रति सजगता और सावधानी प्रशंसनीय है, लेकिन उनकी वफादारी ने उनके विवेक और बुद्धि को दूषित कर दिया है। इसलिए उन्हें भविष्य में होशियार रहने की सलाह दी जाती है।

(ङ) नौकरी से निकाले जाने पर वंशीधर के परिवारवालों की क्या प्रतिक्रिया रही?

उत्तरः नौकरी से निकाले जाने पर वंशीधर के परिवारवालों की प्रतिक्रिया बहुत नकारात्मक रही। उनके पिता जी यमुना तट पर पंडित अलोपीदीन के साथ हुई घटना को लेकर काफी दुःखी थे और अन्दर-ही-अन्दर वंशीधर को कोस रहे थे। जब वंशीधर घर पहुँचे और उनको नौकरी से निकाले जाने की खबर सुनी तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। वे अत्यंत गुस्से में बोले- ‘जी चाहता है। कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ ।’ उनकी वृद्ध माता जी को भी काफी दुःख हुआ और उनकी तीर्थयात्रा की कामना अधूरी रह गई।

(च) पं. अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर क्यों बनाया?

उत्तर: पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से प्रभावित होकर उन्हें अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर बनाया। आमतौर पर किसी व्यक्ति को उच्च पद पर नियुक्त करने से पहले हर दृष्टिकोण से उसकी परीक्षा ली जाती है। पंडित अलोपीदीन को पैसे की ताकत पर अखण्ड विश्वास था और वे इस के बल पर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते थे। लेकिन वंशीधर उन सबमें अलग नजर आए। यमुना तट पर अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए पंडित अलोपीदीन मुंशी वंशीधर को ऊँची-से-ऊँची रिश्वत का प्रलोभन देकर भी वंशीधर को उनके सच्चे मार्ग से विचलित कर पाने में असफल रहे। और यही कारण है कि कहानी के अन्त में वे स्वयं प्रार्थना पत्र लेकर वंशीधर के घर जाते हैं और उन्हें अपनी सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद के लिए राजी कर लेते हैं।

(छ) “पं. अलोपीदीन मानवीय गुणों के पारखी थे।” – इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर: पंडित अलोपीदीन एक अमीर और अनुभवी व्यक्ति थे। उनको लक्ष्मी पर अखण्ड विश्वास था। उन्होंने अनेक उच्च पदाधिकारियों को पैसे के बल पर परास्त किया था और उनको अपने धन का गुलाम बनाकर छोड़ दिया था। किन्तु जब उनका सामना मुंशी वंशीधर जैसे कर्तव्य-निष्ठ, ईमानदार और स्वाभिमानी दारोगा से होता है तब वे पहली बार महसूस करते हैं कि संसार में कुछ ऐसे भी मनुष्य हैं, जो धर्म के नाम पर अपना सब कुछ अर्पित कर, अपनी अलग पहचान बनाते हैं। ऐसे मनुष्य न तो किसी दबाव में आते हैं और न ही किसी प्रलोभन के सामने अपने घुटने टेकते हैं। उनके लिए परिस्थिति चाहे कैसी भी क्यों न हो, वे हर स्थिति में अपने सच्चे मार्ग पर चट्टान की भाँति अडिग रहते हैं। वंशीधर के उक्त गुणों से प्रभावित होकर ही पंडित अलोपीदीन ने उनको अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया था। अतः कहा जा सकता है कि पंडित अलोपीदीन मानवीय गुणों के पारखी थे।

(ज) मुंशी वंशीधर की चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर: मुंशी वंशीधर एक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे आज्ञाकारिता, आदर्शवादिता, कर्तव्य- निष्ठा, कार्यकुशलता, ईमानदारी और त्याग उनके चरित्र की उल्लेखनीय विशेषताएँ थीं। वे एक आज्ञाकारी पुत्र की भाँति पिता से ऊपरी आय का उपदेश तो ग्रहण कर लेते हैं, परन्तु एक आदर्शवादी व्यक्ति की तरह उस उपदेश को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। नमक-विभाग में दारोगा के पद पर प्रतिष्ठित होते ही अपनी कार्यकुशलता और उत्तम आचार से सभी अफ़सरों को मोहित कर उनका विश्वासपात्र बन जाते हैं। यमुना तट पर पंडित अलोपीदीन के हर प्रलोभन का मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपनी कठोर धर्मनिष्ठा और ईमानदारी का परिचय देते हैं। हालांकि वे अदालत में पंडित अलोपीदीन से हार जाते हैं, किन्तु अपने चारित्रिक गुणों की अमिट छाप उनके हृदय पर छोड़ने में सफल हो जाते हैं। मुंशी वंशीधर के चारित्रिक गुणों से प्रभावित होकर ही अंत में पंडित अलोपीदीन उनको अपनी सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद पर नियुक्त करते हैं।

(झ) इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है? 

उत्तरः इस कहानी से हमें मुंशी वंशीधर की तरह कर्तव्य निष्ठ, ईमानदार और स्वाभिमानी मनुष्य बनने की शिक्षा मिलती है, जो सच्चे मार्ग पर पर्वत की भाँति अविचलित खड़ा रहता है।

4. आशय स्पष्ट कीजिए:

(क) मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।

उत्तरः उक्त कथन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।

उक्त कथन में लेखक ने वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी जी के माध्यम से मासिक आय और ऊपरी आय की आपस में तुलना कर ऊपरी आय वाले ओहदे को ज्यादा महत्त्व प्रदान करने का प्रयास किया है। उनका आशय यह है कि मासिक आय एक निश्चित राशि है जो महीने की निश्चित अवधि में धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। उससे हम अपनी सभी जरूरतें पूरी नहीं कर सकते हैं। लेकिन ऊपरी आय वाली राशि की कोई सीमा नहीं होती और न ही इसे पाने की कोई निश्चित तारीख। यह किसी भी समय हासिल हो सकती है। इस आय से हम अपनी सभी जरूरतें आराम से पूरी कर सकते हैं।

(ख) न्याय और नीति सब लक्ष्मी के खिलौने हैं, इन्हें वे जैसा चाहती है, नचाती हैं।

उत्तरः उक्त कथन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।

उक्त कथन में लेखक का आशय यह है कि आज पैसा मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है। पैसे के लिए हर व्यक्ति अपना ईमान बेचने के लिए तैयार खड़ा है। मनुष्य की अत्यधिक धन कमाने की प्रवृत्ति ने ही समाज में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी एवं अवैध कारोबार जैसी बुराइयों को जन्म दिया है। पैसे के बल पर न केवल उच्च पदाधिकारी खरीदे जाते हैं बल्कि न्यायाधीशों के फैसले भी बदल दिए जाते हैं। आज हर व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है।

भाषा एवं व्याकरण:

1. पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए:

पौ बारह होना, हाथ मलना, सिर माथे पर रखना, फूला न समाना, बात की बात में, धूल में मिलना, लल्लो-चप्पो करना, मुँह में कालिख लगना। 

उत्तरः पौ बारह होना (खूब मौज होना): जब से मोहन दारोगा के पद पर नियुक्त हुआ है तब से उसके तो पौ बारह हैं। 

हाथ मलना (पछताना): अवसर निकल जाने के बाद हाथ मलने से कोई फायदा नहीं।

सिर माथे पर रखना (ईमानदारी से आज्ञा-पालन का संकल्प करना): वही पुत्र सफल होता है, जो पिता के आदेश को सिर माथे पर रखता है। 

फूला न समाना (बहुत प्रसन्न होना): राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक मिलने पर बिजेंद्र सिंह फूला न समाया। 

बात की बात में (थोड़ी देर में): वह घर से निकला और बात की बात में स्कूल पहुंच गया।

धूल में मिलना (नष्ट होना): नौकरी से निकाले जाने पर उसकी माता की तीर्थयात्रा की कामना धूल में मिल गई। 

लल्लो – चप्पो करना (चापलूसी करना): रमेश दफ्तर में बड़े बाबू की लल्लो-चप्पो करते नहीं थकता ।

मुँह में कालिख लगना (बेइज्जत होना): रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर शर्मा जी के मुँह में कालिख लग गई।

2. निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करते हुए समास भेद बताइए- 

विरहकथा, घास-फूस, कर्तव्यपरायण, बुद्धिहीन, सुख-संवाद, धर्मनिष्ठ, कार्यकुशलता।

उत्तर:

सामासिक पदसामासिक विग्रहसमास भेद
विरहकथाविरह की कथातत्पुरुष समास
घास-फूसघास और फूसद्वंद्व समास
कर्तव्यपरायणकर्तव्य में परायणतत्पुरुष समास
बुद्धिहीनबुद्धि से हीनतत्पुरुष समास
सुख-संवादसुख का संवादतत्पुरुष समास
धर्मनिष्ठधर्म में निष्ठतत्पुरुष समास
कार्यकुशलताकार्य में कुशलतातत्पुरुष समास

3. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए: 

उत्तम, ऋण, न्यायालय, कठोर, आक्रमण, हस्ताक्षर, पूर्णमासी ।

उत्तर: 

शब्दसमानार्थक शब्द
उत्तमउत्कृष्ट
ऋणकर्ज
न्यायालयअदालत
कठोरकड़ा
आक्रमणहमला
हस्ताक्षरदस्तख़त
पूर्णमासीपूर्णिमा

4. विलोम शब्द लिखिए:

प्रेम, आय, विवेक, मित्र, यथार्थ, न्याय, नीति, निरादर, त्याग, अलौकिक, अविचलित, कठोर।

उत्तर:

शब्दविलोम
प्रेमघृणा
आयव्यय
विवेकअविवेक
मित्रशत्रु
यथार्थकाल्पनिक
अन्यायन्याय
नीतिदुर्नीति
निरादरआदर
त्यागग्रहण
अलौकिकलौकिक
अविचलितविचलित
कठोरकोमल

योग्यता-विस्तार:

1. प्रेमचंद की कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ पढ़िए

उत्तर: छात्रगण स्वयं करें।

2. यदि आप मुंशी वंशीधर की जगह होते तो क्या करते ? अपना विचार लिखिए।

उत्तर: यदि मैं मुंशी वंशीधर की जगह होता तो वही करता जो उन्होंने किया। क्योंकि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति न केवल अपने कुल का नाम उज्जवल करता है बल्कि दुनिया में अपनी अलग पहचान भी बनाता है। साथ ही वह अन्य लोगों के लिए आदर्श और आदरणीय बन जाता है। वह कठिन से कठिन परिस्थितियों का न केवल जमकर मुकाबला करता है बल्कि उन्हें पराजित भी करता है। यह ठीक है कि कुछ विशेष परिस्थिति में उसे हार या अपमान का सामना करना पड़ता है, परन्तु अंत में जीत उसी की होती है।

3. भारत सरकार ने भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी के खिलाफ सख्त कानून बनाया है, इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए। 

उत्तरः छात्रगण शिक्षक की मदद से जानकारी लें।

अतिरिक्त प्रश्न एवं उत्तर

● निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

1. ‘न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।’ इस पंक्ति में धर्म और धन के प्रतिनिधि कौन-कौन हैं?

उत्तर: ‘न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।’ इस पंक्ति में धर्म के प्रतिनिधि मुंशी वंशीधर तथा धन के प्रतिनिधि पं. अलोपीदीन हैं। 

2. मुंशी वंशीधर द्वारा पं. अलोपीदीन की सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद को स्वीकार करने की स्थिति में उनको मिलनेवाली सुविधाएँ क्या थीं? 

उत्तरः मुंशी वंशीधर द्वारा पं. अलोपीदीन की सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद के स्वीकार करने की स्थिति में उनको मिलनेवाली सुविधाओं में छह हजार रूपये वार्षिक वेतन के अलावा प्रतिदिन का खर्च अलग, आने-जाने के लिए घोड़ा, रहने के लिए बंगला तथा मुफ्त के नौकर-चाकर थे।

आशय स्पष्ट कीजिए

(क) ‘हम उन नमकहरामों में नहीं है, जो कौड़ियों में अपना ईमान बेचते फिरते हैं।’

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं। उक्त पंक्ति में लेखक का आशय यह है कि एक चरित्रहीन व्यक्ति थोड़े से लालच में आकर अपने कर्त्तव्य और ईमान से समझौता कर लेता है। लेकिन एक चरित्रवान् व्यक्ति हर प्रलोभन का मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपने सच्चे मार्ग पर अविचलित खड़ा रहता है और समाज में अपनी अलग पहचान बनाता है। पाठ के संदर्भ में यह बात मुंशी वंशीधर द्वारा कही गई है। यमुना के तट पर जब पं. अलोपीदीन अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए मुंशी वंशीधर को अन्य अधिकारियों की तरह रिश्वत देकर खरीदने का प्रयास करते हैं, तब वे अपनी कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के गुणों से उन्हें लज्जित कर देते हैं।

(ख) “न्याय और विद्वत्ता, लंबी-चौड़ी उपाधियाँ, बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और ढीले चोगें- एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं हैं।” 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक अंबर भाग-2′ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं, जिनके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।

उक्त पंक्तियों में लेखक का आशय यह है कि आज समाज में अत्यधिक धन कमाने की प्रवृत्ति एक संक्रामक रोग के समान फैल गयी है। इस रोग के चपेट में न केवल छोटे लोग बल्कि न्याय और विद्वत्ता जैसे ऊँचे और सम्मानित पद पर बैठनेवाले लोग भी आ गए हैं। इन लोगों के पैसे के प्रभाव में आकर किसी पक्ष के प्रति अनुकूल प्रवृत्ति होने के कारण ही अपराधी सजा से साफ बच जाते हैं। इन लोगों की वेशभूषा और लंबी-चौड़ी उपाधियाँ दिखावे मात्र के लिए रह गई हैं। ऐसे लोग अपने पद के अनुरूप आचरण न कर अपना सम्मान खोते जा रहे हैं।

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