Class 10 Ambar Bhag 2 Chapter 5 यह दंतुरित मुसकान

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Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 5 यह दंतुरित मुसकान

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यह दंतुरित मुसकान

पाठ – 5

पद्य खंड

कवि-संबंधी प्रश्न एवं उत्तर:

1. कवि नागार्जुन जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी का जन्म सन् 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था।

2. कवि नागार्जुन जी ने बौद्ध धर्म की दीक्षा कब और कहाँ ली थी?

उत्तरः कवि नागार्जुन जी ने बौद्ध धर्म की दीक्षा सन् 1936 में श्रीलंका में ली थी।

3. कवि नागार्जुन जी का संपूर्ण कृतित्व किस नाम से और कितने खंडों में प्रकाशित है?

उत्तरः कवि नागार्जुन जी का संपूर्ण कृतित्व ‘नागार्जुन रचनावली’ के नाम से सात खंडों में प्रकाशित है।

4. कवि नागार्जुन जी को मैथिली भाषा में कविता के लिए कौन-सा पुरस्कार प्रदान किया गया था?

उत्तरः कवि नागार्जुन जी को मैथिली भाषा में कविता के लिए ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार प्रदान किया गया था।

5. कवि नागार्जुन जी को क्यों जेल जाना पड़ा था? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी को राजनैतिक सक्रियता के कारण जेल जाना पड़ा था।

6. मातृभाषा मैथिली में कवि नागार्जुन जी किस नाम से प्रतिष्ठित थे? 

उत्तरः मातृभाषा मैथिली में कवि नागार्जुन जी ‘यात्री’ के नाम से प्रतिष्ठित थे।

7. कवि नागार्जुन जी का मूल नाम क्या था?

उत्तरः कवि नागार्जुन जी का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था ।

8. कवि नागार्जुन जी ने किन-किन भाषा में कविताएँ लिखीं? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी ने हिन्दी, मैथिली, बांग्ला और संस्कृत भाषा में कविताएँ लिखीं।

9. कवि नागार्जुन जी को आधुनिक कबीर क्यों कहा गया है? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी व्यंग्य कला में माहिर थे। उनकी इसी विशेषता की वजह से उन्हें आधुनिक कबीर कहा जाता है।

10. कवि नागार्जुन जी का स्वर्गवास कब हुआ था? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी का स्वर्गवास सन् 1998 में हुआ था।

सारांश:

कवि नागार्जुन अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण अपने घर से प्रायः दूर रहते थे और इस कारण वे अपने शिशु की बाल सुलभ मुसकान के अनुभव से भी वंचित रह गये एवं लम्बी यात्रा के कारण अपने ही शिशु से अपरिचित हो गए। अपने शिशु की मधुर मुसकान को पहली बार देखकर कवि के मन में जो भाव उभरे उन्होंने उसे इस कविता में उजागर किया है। कवि ने शिशु के नए-नए झलकते दाँतों के साथ मधुर मुसकान का बखूबी चित्रण किया है।

शिशु की मधुर मुसकान को देखकर कवि का हृदय स्नेह से फूट पड़ता है। वे प्रफुल्लित हो उठते हैं और शिशु से कहते हैं कि उसकी दंतुरित मुसकान से मृतक में भी जान आ जाती है यानि हमेशा उदास, हताश रहने वाले व्यक्ति भी प्रसन्नता का अनुभव करने लगते हैं। धूल से सने हुए शिशु के शरीर के अंगों को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो कमल का फूल सरोवर में न खिलकर उनकी झोपड़ी में खिला है। बाँस और बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों। मानो कठोर पत्थर भी उसके स्पर्श से पिघलकर जल में परिवर्तित होने लगे हों, अर्थात् कठोर हृदयी व्यक्ति भी इस मधुर मुसकान के जादू से भावुक हो जाता है।

मधुर मुसकान के साथ जब पहली बार शिशु कवि को न पहचानकर अपलक निहार रहा था, तब उसकी माँ द्वारा उसका परिचय कवि से करवाने पर शिशु टेढ़ी नज़र से उन्हें देख रहा था। कवि से नज़र मिलने पर उसने हल्की सी मुसकान बिखेर दी। वह हल्की मुसकान कवि को बड़ी मोहक लगने लगी। कवि ने माँ और शिशु को धन्य बताया है। शिशु जहाँ अपनी मोहक छवि के कारण धन्य है तो माँ उस जैसे शिशु को जन्म देकर तथा उसका साथ पाकर धन्य हो गयी। शिशु ने कवि को पहचानकर जो एक मुसकान बिखेरी, वही कवि के लिए सबसे मूल्यवान बन गयी। सचमुच शिशु की मुसकुराहट प्राणवान थी।

शब्दार्थ:

• दंतुरित : बच्चों के नए-नए दाँत

• मृतक : मरे हुए

• धूलि – धूसर गात : धूल-मिट्टी से सने अंग-प्रत्यंग

• जलजात : कमल का फूल

• परस : स्पर्श

• प्राण : जीवन

• पाषाण : पत्थर

• शेफालिका : पौधे का नाम

• बबूल : एक प्रकार का काँटेदार वृक्ष

• अनिमेष : बिना पलक झपकाए, लगातार देखना

• परिचित : जान-पहचान

• माध्यम : जरिया

• धन्य : सम्मान के लायक

• चिर प्रवासी : लंबे वक्त तक घर से बाहर दूर विदेश में रहने वाला

• इतर : दूसरा

• अतिथि : मेहमान

• संपर्क : संबंध, मिलन

• मधुपर्क : दही, घी, शहद, जल और दूध का योग जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। आम लोग इसे पंचामृत कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ के प्यार के रूप में हुआ है

• कनखी : तिरछी निगाह से देखना

• आँखें चार : आँखें मिलाना

• छविमान : सुंदर

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

बोध एवं विचार:

1. सही विकल्प का चयन कीजिए:

(क) बच्चे की दंतुरित मुसकान किसमें जान डाल सकती है?

(i) बेहोश व्यक्ति। 

(ii) बीमार। 

(iii) मृतक। 

(iv) कवि।

उत्तरः (iii) मृतक।

(ख) धूल से सने शरीर वाले बच्चे के रूप में कवि की झोंपड़ी में किसके फूल खिल रहे हैं? 

(i) गेंदा।  

(ii) गुलाब। 

(iii) शेफालिका। 

(iv) कमल।

उत्तर: (iv) कमल।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दीजिए:

(क) ‘पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ यहाँ ‘कठिन पाषाण’ किसका प्रतीक है?

उत्तर: ‘पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ यहाँ ‘कठिन पाषाण’ कठोर हृदय का प्रतीक है।

(ख) किसका स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया होगा?

उत्तरः धूल से सने हुए बच्चे का स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया होगा।

(ग) ‘बाँस’ एवं ‘बबूल’ किसके प्रतीक हैं?

उत्तर: ‘बाँस’ एवं ‘बबूल’ कठोर हृदय वालों के प्रतीक हैं। 

(घ) बच्चा एकटक किसे देख रहा है?

उत्तरः बच्चा एकटक कवि को देख रहा था।

(ङ) बच्चे की मधुर मुसकान देख पाने का श्रेय कवि किसे देते हैं?

उत्तरः बच्चे की मधुर मुसकान देख पाने का श्रेय कवि बच्चे की माँ को देते हैं।

(च) ‘इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क’- यहाँ अतिथि शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर: ‘इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क’- यहाँ अतिथि शब्द कवि के लिए प्रयुक्त हुआ है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ का क्या तात्पर्य है? 

उत्तर: बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ का तात्पर्य उस छोटे बच्चे की मुसकान से है जिसके अभी-अभी दाँत निकले हैं। यह मुसकान इतनी प्रिय होती है कि निराश, हताश तथा उदासीन व्यक्ति के मन को प्रफुल्लता तथा खुशी से भर देती है। अर्थात् बच्चे की दंतुरित मुसकान निश्छल प्रेम का प्रतीक है।

(ख) बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? 

उत्तरः बच्चे की दंतुरित मुसकान अर्थात् बच्चे के नए-नए झलकते दाँत के साथ मधुर मुसकान को देखकर कवि अपार सुख का अनुभव करते हैं। कवि को ऐसा लगता है कि उसकी मुसकान से उदासीन व निराश चेहरे भी खिल उठते हैं। बच्चे की दंतुरित मुसकान मृतक में भी जान डाल देती है। धूल से सने हुए बच्चे के शरीर के अंगों को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है, जैसे तालाब को छोड़कर कोई कमल का फूल उनकी झोपड़ी में खिल गया हो। शिशु की बाल सुलभ मुसकान से पत्थर जैसे कठोर हृदय में भी स्नेह की धारा फूट पड़ती है। उसी प्रकार कवि के मन में भी बच्चे की मुसकान से वात्सल्य और प्रेम उमड़ आता है।

(ग) बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति का मुसकान में क्या अंतर है? 

उत्तरः बच्चे की मुसकान से कठोर हृदय भी अपनी कठोरता को छोड़कर कोमल बन जाता है। जबकि बड़ों की स्वार्थ भरी मुसकान लोगों के दिलों को आहत कर देती है। बच्चे मन के साफ-सुथरे तथा स्वच्छ हृदय के होते हैं। बच्चे की मुसकान में स्वाभाविकता, सहजता, मधुरता तथा निश्छलता होती है। वे स्वार्थी नहीं होते हैं, जबकि बड़ों की मुसकान समय के अनुसार बदलती रहती है। उनकी मुसकान कृत्रिमता, कुटिलता तथा चालाकी भरी भी हो सकती है। उनकी मुसकान में स्वार्थ की गंध रहती है तथा सहजता न होकर परायापन का भाव रहता है।

(घ) बच्चे की मुसकान की क्या विशेषताएँ हैं? 

उत्तरः बच्चे की मुसकान अत्यंत मोहक लगती है। बच्चे की मुसकान कठोर-से- कठोर हृदय को भी पिघला देती है। बालक की मुसकान को अमूल्य माना जाता है। इस मुसकान को देखकर तो जिंदगी से निराश और उदासीन लोगों के हृदय भी प्रसन्नता से खिल उठते हैं। बच्चे की मुसकान में निःस्वार्थता, आत्मीयता, कोमलता, सहृदयता, सहजता एवं आकर्षण की विशेषताएँ रहती हैं।

(ङ) कवि को कैसे पता चला कि बच्चा उसे पहचान नहीं पाया है? 

उत्तरः जब बच्चा कवि को घूरकर देखता है। पहचान न पाने के कारण लगातार घूरकर देखते रहने के कारण कवि को लगता है कि शायद बच्चा उसे पहचान नहीं पाया है।

(च) कवि अपने-आप को ‘चिर प्रवासी’ और ‘अतिथि’ क्यों कह रहे हैं? 

उत्तरः कवि अपने आप को ‘चिर प्रवासी’ और ‘अतिथि’ कह रहा है, क्योंकि वह अपनी घुमक्कड़ प्रवृति के कारण अधिकांश समय अपने घर से दूर रहा और बालक के लिए भी अपरिचित-सा हो गया। कवि अतिथि की तरह बहुत दिनों के बाद घर लौटा है। अपनी इसी स्थिति के कारण वह अपने-आप को चिर प्रवासी तथा अतिथि कह रहा है।

4. निम्नलिखित पद्यांशों के आशय स्पष्ट कीजिए: 

(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।

उत्तरः बच्चे के नन्हें-नन्हें दाँतों के साथ उसकी मधुर मुसकान कवि के अंतःकरण को छू जाती है। वे उस मुसकान से अपार प्रफुल्लता का अनुभव करते हैं। बच्चे की एक नन्हीं सी मुसकान कवि की उदासी को दूर कर देती है। उसके धूल से सने हुए शरीर को देखकर, कवि को शिशु की मुसकराहट कीचड़ में खिले हुए कमल के फूल की तरह लगती है। शिशु देखकर कवि को ऐसा लगता है। कि कमल का फूल अपने सरोवर को छोड़कर उनके घर में खिल उठा है। आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुसकान किसी कमल के फूल से कम नहीं थी।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग गए शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?

उत्तरः कवि बच्चे के नए-नए दाँतों की झलकती मुसकान पर मुग्ध थे। उसकी मुसकान कवि को अत्यंत मोहक लग रही थी। कवि स्वयं को बाँस और बबूल की तरह कठोर मानते हैं। कवि बच्चे से कहते हैं कि उसकी मनोहारी मुसकान को देखकर तथा उसका स्पर्श पाकर कठोर हृदयी भी अपनी कठोरता को छोड़कर सहृदय बन जाएगा। उसका स्पर्श पाकर बाँस और बबूल से भी शेफालिका के फूल झरने लगेंगे अर्थात् उसका स्पर्श इतना सुकोमल और प्रसन्नता देता है कि कोई भी व्यक्ति उसकी एक मुसकराहट को देखकर भावुक हो उठेगा।

(ग) इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क।

उत्तरः कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य हैं, जो तुम्हें एक-दूसरे का साथ मिला है। मैं तो सदैव बाहर ही रहा, तुम्हारे लिए मैं अपरिचित ही रहा। मैं एक अतिथि हूँ। मुझसे तुम्हारी आत्मीयता कैसे हो सकती है ? अर्थात् मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो तुम्हारी माँ की उँगलियों में ही आत्मीयता है, जिन्होंने तुम्हें पंचामृत पिलाया, इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे तिरछी नज़रों से देख रहे हो। वस्तुतः कवि को बच्चे की दंतुरित मुसकान अति प्रिय लगती है।

5. निम्नलिखित प्रश्नों के सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। 

उत्तरः ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता के माध्यम से कवि नागार्जुन जी ने एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान का सुंदर वर्णन किया है। कवि बच्चे की दंतुरित मुसकान को देखकर आह्लादित हो जाता है। कवि में नए जीवन का संचार हो जाता है। बच्चे की मुसकान निश्छल होती है। कवि को लगता है कि यह मुसकान मृत व्यक्ति में भी प्राण डाल देगी। ऐसी मधुर मुसकान की सुंदरता को देखकर तो कठोर से कठोर व्यक्ति का दिल भी पिघल जाएगा। अर्थात् कवि कहता है कि बच्चे की निश्छल व निःस्वार्थ मुसकान जीवन से निराश व उदासीन व्यक्ति के हृदय में प्रफुल्लता व खुशी का भाव भर देती है। कविता के जरिए कवि ने बच्चे की अतुलित मुसकान में जीवन का संदेश छिपे रहने की बात कही है।

(ख) कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन उदाहरणों के माध्यम से व्यक्त किया है?

उत्तरः कवि, बच्चे की दंत झलकती मुसकान पर इस तरह मुग्ध थे कि बच्चों की मुसकान के सौंदर्य पर कवि ने अनेक बिंबों के माध्यम से अपनी खुशियों को व्यक्त किया है। बच्चे की मुसकान इतनी मधुर तथा मनमोहक होती है कि वह मुर्दे में भी जान डाल देती है। अगर कोई उदास, निराश व्यक्ति उसकी मुसकान देख ले तो वह भी प्रसन्नता से खिल उठता है। बच्चे की मुसकान तथा उसके धूल से सने अंगों के सौंदर्य को देखकर कवि को ऐसा लगता था, जैसे कि कमल का फूल तालाब को छोड़कर उनकी कुटिया में खिल उठा हो । कवि कहते हैं कि बच्चे की एक मुसकान से पत्थर भी पिघलकर जल के रूप में बदल जाता है। उसकी मुस्कान से तो बबूल और बाँस से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं, अर्थात् शिशु की मुसकान इतनी सुकोमल और प्रसन्नतादायक होती है कि कठोर से कठोर व्यक्ति भी भावुक हो उठता है।

(ग) ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता के आधार पर बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है, उसे शब्दों में लिखिए।

उत्तरः कविता के अनुसार कवि की मुलाकात शिशु से उस समय होती है, जब शिशु के नये-नये दाँत निकल रहे थे। शिशु की मधुर मुसकान के बीच झलकते दंत उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहे थे और कवि इसी मुसकान पर मुग्ध हो उठे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके नीरस जीवन में ऊर्जा का संचार हो गया। कवि को ऐसा लगा मानो जैसे तालाब का कमल उनके घर में ही खिल गया हो। शिशु उन्हें एकटक देख रहा था मानो वह जानना चाहता था कि यह अनजान व्यक्ति कौन है, पर जब शिशु का परिचय उनसे (कवि से) हो गया तो वह अपनी तिरछी नज़रों से कवि को देखकर मुसकराने लगा, जिससे कवि के हृदय में स्नेह की धारा बहने लगी।

6. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) “तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान …. रहे जलजात।”

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के अंतर्गत नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि शिशु की दंतुरित मुसकान देखकर इतने मुग्ध हो गए हैं कि उन्होंने अनेक बिंबों के माध्यम से अपनी प्रसन्नता का चित्रण किया है।

कवि शिशु के नए-नए दाँतों के साथ उसकी मुसकान को देखकर सुख का अनुभव करते हुए कहता है कि उसकी मधुर मुसकान किसी बेजान में जान डाल सकती है अर्थात् यह किसी भी हताश निराश व्यक्ति में खुशियों का संचार कर सकती है। अगर कोई उदास व्यक्ति उसकी मुसकान देख ले तो प्रसन्नता से खिल उठेगा। कवि कहता है कि उसके धूल से सने हुए शरीर के अंगों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे कमल का फूल सरोवर में खिलने की बजाय उसके घर में खिला हो। उसके स्पर्श से पत्थर भी पिघलकर जल बन जाता है। मानो कठोर हृदय भी उसका स्पर्श पाकर अपनी कठोरता का त्यागकर भावुक हो जाता है। आशय यह है कि शिशु की दंतुरित मुसकान आनंद व प्रसन्नता प्रदान करती हैं।

(ख) “तुम मुझे पाए ……. आँख लूँ मैं फेर?”

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक” अंबर भाग-2″ के अंतर्गत कवि नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से उद्धृत हैं।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि शिशु की दंतुरित मुसकान पर मुग्ध होकर शिशु के माँ के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहता है कि शिशु जो एकटक उसे निहार रहा है, वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा है, यह सिर्फ उसकी माँ की वजह से संभव हुआ है। माँ की मध्यस्थता के बिना शिशु को अपने पिता का परिचय नहीं मिल पाता।

कवि कहता है कि शिशु उन्हें पहचानने का प्रयास करते हुए उन्हें अपलक निहार रहा है। शायद लगातार देखते रहने के कारण वह थक गया होगा। इसलिए कवि अपनी दृष्टि उसकी ओर से हटा लेता है। वह उसे पहली बार पहचान नहीं सका तो कोई बात नहीं। कवि कहता है कि अगर शिशु की माँ का सहारा न होता तो वह उसकी दंतुरित मुसकान को देख नहीं पाता और न ही उसकी मधुर मुसकान का आनंद उठा पाता ।

(ग) “धन्य तुम, माँ भी …. कराती रही हैं मधुपर्क।”

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक” अंबर भाग-2″ के अंतर्गत कवि नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता “यह दंतुरित मुसकान” से ली गई हैं।

इन पंक्तियों में कवि बच्चे की दंतुरित मुसकान पर मुग्ध होकर बालक की माँ के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहता है कि बच्चा जो एकटक उसे निहार रहा है, वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा है, यह सिर्फ उसकी माँ की वजह से संभव हुआ है।

कवि कहता है कि शिशु और उसकी माँ दोनों धन्य हैं। वे दोनों एक-दूसरे के साथ और एक-दूसरे से परिचित हैं। जबकि कवि स्वयं लंबी यात्राओं के कारण शिशु के लिए पराया-सा हो गया है अर्थात् अतिथि की तरह हो गया है। बच्चे की माँ ही अपने हाथों से पंचामृत यानी मधुपर्क चटाती थी। यहाँ कवि ने शिशु और उसकी माँ के वात्सल्य प्रेम को सुंदरता से दर्शाया है। 

(घ) “देखते तुम इधर …… बड़ी ही छविमान।”

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक” अंबर भाग – 2″ के अंतर्गत कवि नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता ” यह दंतुरित मुसकान” से उद्धृत हैं।

इन पंक्तियों में कवि और शिशु की आँखों के दृष्टि-मिलन से होनेवाले अतुलित आनंद का सुंदर वर्णन हुआ है। कवि का मानना है कि वह लंबे समय तक शिशु से दूर रहने के कारण अतिथि जैसा बन गया है। कवि बच्चे के संपर्क में नहीं था। इसलिए शिशु को कवि अपरिचित-सा लगता था। शिशु का परिचय केवल अपनी माँ से है।

कवि का कहना है कि शिशु उन्हें कनखियों से यानी टेढ़ी नजरों से ऐसे निहार रहा है, मानो पूछ रहा है कि अब तक कहाँ थे ? टेढ़ी नजरों से देखकर उन्हें पहचानने की कोशिश करता और कवि से आँखें मिलते ही वह मुसकुरा उठता है। उसके नए दाँतों की झलक व मुसकराहट को देखकर कवि मोहित हो गए। उनका हृदय वात्सल्यता से भर गया।

भाषा एवं व्याकरण

1. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए:

गात, जलजात, तालाब, जल, अतिथि, मधु, माँ, आँख, पाषाण

उत्तर:

शब्दपर्यायवाची शब्द
गातशरीर, देह, काया
जलजातकमल, जलज, पद्म
तालाबजलाशय, पोखर, ताल
जलपानी, नीर, सलिल
अतिथिमेहमान, कुटुंब, पाहुन
मधुशहद, मिठास, सोम
माँजननी, माता, मैया
आँखनेत्र, चक्षु, नयन
पाषाणपत्थर, शिल, चट्टान

2. ‘दंतुरित मुसकान’ में ‘दंतुरित’ विशेषण शब्द है और ‘मुसकान’ भाववाचक संज्ञा है। इन दोनों शब्दों की जोड़ी अच्छी लगती है। 

पठित कविता से आप भी कम से कम तीन इस प्रकार के शब्द-युग्म (विशेषण और संज्ञा) छाँटकर लिखिए।

उत्तर: कठिन पाषाण, धूलि – धूसर गात, चिर प्रवासी ।

3. ‘मुहावरे’ ऐसे वाक्यांश होते हैं, जिनके प्रयोग से वाक्य प्रभावशाली हो जाता है तथा बातचीत करने की शैली रोचक हो उठती है। जैसे-देखते ही देखते राम का मोबाइल छू मंतर हो गया। यहाँ ‘छू मंतर होना’ मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है – गायब होना । इसी प्रकार उक्त कविता में आए निम्नोक्त मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए:

आँख फेर लेना, कनखी मारना, आँखें चार होना 

उत्तरः आँख फेर लेना (विमुख होना): बच्चे ने कवि को अपरिचित समझकर अपनी आँख फेर ली।

कनखी मारना (तिरछी निगाह से देखना): बच्चे ने कवि को कनखी मारी। 

आँखें चार होना (प्रेम होना): जब बच्चे ने कवि की तरफ देखा तो उनकी आँखें चार हो गईं।

योग्यता- विस्तार

1. कवि नागार्जुन की कुछ अन्य कविताएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए। 

उत्तरः छात्र स्वयं पढ़ें। 

2. आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें, तो उसके हाव-भाव व्यवहार आदि को परखिए और उस अनुभव को कविता के रूप में लिखने का प्रयास कीजिए। 

उत्तरः जब हम पहली बार किसी बच्चे को देखते हैं तो उसकी हमसे नज़र मिलते ही वह हमें निरंतर निहारता रहता है। वह हमारे बारे में जानने की कोशिश करता है और कई बार तो वह इधर-उधर भागते-दौड़ते रहता है। वह कभी अपनी माँ के पल्लू में जाकर छिप जाता है तो कभी उसकी गोद में बैठ जाता है। वह अलग-अलग तरीके तथा अपने हाव-भाव से हमें अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता रहता है। ऐसे चंचल बच्चे हमें अच्छे लगते हैं।

अतिरिक्त प्रश्न एवं उत्तर

● अति संक्षिप्त प्रश्नोत्तर

1. किसकी मुसकान मृतक में भी जान डाल देती है ?

उत्तरः शिशु के नए-नए झलकते दाँतों के साथ उसकी मधुर मुसकान मृतक में भी जान डाल देती है।

2. ‘मृतक में जान डालने’ तथा ‘झोपड़ी में कमल खिलने’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर: ‘मृतक में जान डालने’ से कवि का तात्पर्क है निराश तथा हताश व्यक्ति को भी प्रसन्नचित्त बनाने की कला तथा ‘झोपड़ी में कमल खिलने’ से तात्पर्य है कि अभावों में भी मन प्रफुल्लित हो उठना।

3. ‘तुम मुझे पाए नहीं पहचान’ कवि ऐसा क्यों कहते हैं ? 

उत्तरः कवि ‘तुम मुझे पाए नहीं पहचान’ इसलिए कहते हैं क्योंकि शिशु निरंतर अपलक उन्हें निहार रहा था। वह उन्हें पहचानने में असमर्थ था और पहचानने के प्रयास में ही कवि को लगातार देखे जा रहा था।

4. कवि और शिशु की पहचान कराने में किसकी मध्यस्थता है ? 

उत्तरः कवि और शिशु की पहचान कराने में मध्यस्थता शिशु के माँ की है। यदि माँ न होती तो शिशु भी न होता।

5. शिशु कवि को एकटक क्यों निहारने लगा? 

उत्तरः शिशु के लिए कवि एक अनजान व्यक्ति थे। वह उन्हें पहचानता नहीं था इसलिए वह उन्हें एकटक निहारने लगा, मानो वह जानना चाहता था कि वे (कवि) कौन हैं? 

6. कवि स्वयं को अपने ही घर में अतिथि मान रहा है, क्यों? 

उत्तरः कवि अपने घर में थोड़े दिन के लिए आते और अतिथि की तरह ठहर कर चले जाते थे इसलिए स्वयं को शिशु के लिए अतिथि कहते हैं।

7. ‘यह दंतुरित मुसकान’ में कवि किसे संबोधित करते हुए अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं?

उत्तर: ‘यह दंतुरित मुसकान’ में कवि अपने शिशु को संबोधित करते हुए अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर

1. कवि ने शिशु की मुस्कान व स्पर्श की किन-किन प्राकृतिक चीज़ों से तुलना कर प्रशंसा की है?

उत्तरः कवि शिशु की मोहक मुसकान पर मुग्ध हो गये थे। कवि के अनुसार शिशु की मुसकान मृत व्यक्ति में भी जान डाल सकती है, यानि निराश व्यक्ति को भी प्रसन्नचित कर देती है। उसके स्पर्श से पत्थर भी पिघल कर जल का रूप ले लेता है तथा कँटीले बबूल और बाँस के वृक्ष से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं।

2. कवि बच्चे और उसकी माँ को ‘धन्य’ क्यों कहते हैं?

उत्तरः कवि ने शिशु और उसकी माँ दोनों को धन्य कहा है। शिशु अपनी मधुर मुसकान और मोहक छवि के कारण ‘धन्य’ है, तो वहीं शिशु की माँ शिशु की जननी होने के कारण तथा शिशु की मोहक छवि को हर पल निहार सकने के सुख के कारण ‘ धन्य’ है।

3. कवि को बच्चे का धूल से सना शरीर कैसा लगता था और क्यों ?

उत्तर: जिस प्रकार कीचड़ में खिला कमल का फूल अपनी खूबसूरती से सबको मोह लेता है, उसी प्रकार धूल से सने शरीर पर खिली शिशु की मुसकान सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। शिशु को देखकर कवि को ऐसा लगता था कि तलाब में खिलने वाला कमल का फूल उनकी झोपड़ी में खिल गया हो। कवि को बच्चे का धूल से सना शरीर कमल जैसा सुंदर लग रहा था।

वृहद प्रश्नोत्तर

1. शिशु के लिए माँ का सान्निध्य विशेष रूप से उपादेय होता है। अपने विचार स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः शिशु का सबसे पहला परिचय माँ से ही होता है। यदि माँ न होती तो शिशु भी नहीं होता। शिशु माँ का स्नेह, स्पर्श पाकर ही बढ़ता व पुष्ट होता है तथा बाहरी दुनिया से परिचित होता है। अपरिचित लोगों को देखकर शिशु माँ की ही गोद में जाकर बैठता है। माँ की गोद में खेलकर वह अपनी खुशियों का अनुभव करता है। माँ भी अपने प्रिय शिशु को अपनी गोद में खिलाकर खुशी से फूली नहीं समाती है। माँ ही शिशु को अपरिचित लोगों से परिचित कराती है। वह अपनी उँगलियों से शिशु को मधुपर्क कराती है। वह अपने स्नेह, प्यार-दुलार से निरंतर पालन-पोषण करती हुई बाहरी दुनिया के लोगों से सचेत कराती रहती है। इस प्रकार माँ का सान्निध्य शिशु के लिए विशेष रूप से उपादेय होता है।

आशय स्पष्ट कीजिए

(क) “देखते तुम इधर कनखी मार”

उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से कवि शिशु के उन भावों को प्रस्तुत कर रहे हैं जो वह कवि को देखकर प्रकट करता है। ‘कनखियों से देखना’ एक मुहावरा है। शिशु कवि को तिरछी निगाहों से देख रहा था। कवि को ऐसा लगा कि शिशु टेढ़ी नजरों से देख उन्हें पहचानने का प्रयास कर रहा हो।

(ख) ” उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क”

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने माँ और बच्चे के बीच के मधुर संबंधों को उजागर किया है। माँ अपने बच्चों को अपने हाथों से मधुपर्क चटाती है। मधुपर्क जिसे पंचामृत भी कहते हैं- दही, घी, शहद, जल और दूध से निर्मित होता है। यह स्वाद में मीठी होती है, जिसे भगवान को अर्पित किया जाता है। शिशु की माँ इसमें अपनी उँगली डुबोकर शिशु के मुँह में रख देती है और बच्चा उसे खुशी से चूसता रहता है।

(ग) “छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात ” 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति में कवि अपने उन अहसासों को प्रकट करते हैं जो उन्हें शिशु की बाल सुलभ हँसी को देखकर होता है। कवि शिशु की दंतुरित मुसकान को देखकर ऐसा अनुभव करते हैं कि कमल सरोवर को छोड़कर उनकी झोपड़ी में खिल उठा हो

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

(क) किसकी मुसकान मृतक में जान डाल देती है?

(i) कवि की मुसकान।

(ii) शिशु की मुसकान।

(iii) माँ की मुसकान।

(iv) पिता की मुसकान।

उत्तरः (ii) शिशु की मुसकान।

(ख) ‘पास पाकर’ तथा ‘ धूलि धूसर’ में कौन-सा अलंकार है?

(i) अनुप्रास।

(ii) रूपक।

(iii) उत्प्रेक्षा।

(iv) उपमा।

उत्तर: (i) अनुप्रास।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) कवि ने ________ और _______ को धन्य कहा है।

उत्तर: कवि ने शिशु और माँ को धन्य कहा है।

(ख) पाषाण ________का प्रतीक है।

उत्तर: पाषाण कठोर हृदय का प्रतीक है।

(ग) कवि _________ प्रवृत्ति के थे।

उत्तर: कवि घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे।

(घ) यदि ________ न होती तो _______भी न होता ।

उत्तर: यदि माँ न होती तो शिशु भी न होता।

सही या गलत का चयन कीजिए

(क) शिशु की दंतुरित मुसकान मृतक में भी जान डाल देती है। (_______)

उत्तर: शिशु की दंतुरित मुसकान मृतक में भी जान डाल देती है। (सही)

(ख) शिशु कवि को पहचानने लगा था।  (_______)

उत्तर: शिशु कवि को पहचानने लगा था। (गलत)

(ग) कवि शिशु के लिए पराये नहीं हैं।  (________)

उत्तर: कवि शिशु के लिए पराये नहीं हैं। (गलत)

(घ) धूल-धूसरित शिशु कमल जैसा लग रहा है।  (________)

उत्तर: धूल-धूसरित शिशु कमल जैसा लग रहा है। (सही)

भाषा – अध्ययन (अतिरिक्त)

(क) निम्नलिखित वाक्यों के रसों के नाम लिखिए।

(i) तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान 

मृतक में भी डाल देगी जान

उत्तर: हास्य रस।

(ii) उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधु पर्क

उत्तरः वात्सल्य रस।

(iii) देखते तुम इधर कनखी मार और होती जब कि आँखें चार

उत्तर: हास्य रस।

(ख) पर्यायवाची शब्द लिखिए:

झोपड़ी, तालाब

उत्तरः झोपड़ी  ― कुटिया, घर, आलय।

तालाब  ― सरोवर, जलाशय, ताल।

(ग) विपरीत शब्द लिखिए:

मृत, झोपड़ी, कठिन, परिचित

उत्तरः 

शब्दविपरीत
मृतजीवित
झोपड़ीमहल
कठिनसरल
परिचितअपरिचित

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