Class 10 Ambar Bhag 2 Chapter 1 पद – युग्म

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Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 1 पद – युग्म

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पद – युग्म

पाठ – 1

पद्य खंड

कवि – परिचय:

हिन्दी साहित्य की निर्गुण भक्ति – धारा के ज्ञानमार्गी कवियों में कबीरदास सबसे प्रतिभाशाली कवि हैं। साहित्य – जगत में उनकी तुलना लोकनायक एवं लोकप्रिय कवि गोस्वामी तुलसीदास से की जाती है। कबीरदास एक सच्चे क्रांतिकारी लोककवि थे, क्योंकि उन्होंने अपनी काव्य – रचनाएँ जनता के बीच रहकर, जनता की भाषा में मुख्य रूप से जनता की भलाई के लिए काव्य-रचना की थी। इसीलिए उनके द्वारा रचित काव्यों की प्रासंगिकता पहले की तरह आज भी है और आगे भी बनी रहेगी। ‘कबीर’ का शाब्दिक अर्थ है — बड़ा, श्रेष्ठ या महान। अपने नाम की सार्थकता सिद्ध करते हुए कबीरदास एक परम भक्त श्रेष्ठ कवि तथा महान समाज-सुधारक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

ऐसा माना जाता है कि कबीरदास का जन्म सन् 1398 में स्वामी रामानंद के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, जिसने अपने इस पुत्र को लोक-लज्जा के डर से काशी के पास लहरतारा नामक तालाब के किनारे फेंक दिया था। वहाँ से नीरू और नीमा नामक मुसलमान जुलाहा दम्पति ने इस दिव्य बच्चे को उठाकर ‘कबीर’ नाम दिया और उसका पालन-पोषण किया। लोगों की मान्यता के अनुसार कबीरदास की पत्नी बनखंडी बैरागी को पालिता कन्या ‘लोई’ थी, जिनसे ‘कमाल’ और ‘कमाली’ नाम की दो संतानें हुईं थीं। कहा जाता है कि कबीरदास जी का स्वर्गवास सन् 1518 में मगहर में हुआ था।

संत कबीरदास राम के सगुण स्वरूप के नहीं बल्कि निर्गुण-निराकार स्वरूप के उपासक थे। उन्होंने स्वामी रामानंद से दीक्षा ली थी। उनको पढ़ने-लिखने का ज्ञान नहीं था। इसलिए आजीविका के रूप में जुलाहा के कार्य में संलग्न रहते हुए उन्होंने अपने आराध्य की भक्ति में अनेक गीत गाए और लोगों को उपदेश दिया। बाद में उनके शिष्यों ने इन वाणियों को लिपिबद्ध कर ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ नाम से तीन भागों में एक साथ संगृहीत किया, जो ‘बीजक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।

संत कबीरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से आचरण की शुद्धता, निश्छल भक्ति और मानव-प्रेम पर बल देने के साथ ही धार्मिक और सामाजिक बुराइयों का विरोध किया है। उनकी रचनाओं की भाषा तत्कालीन हिन्दुस्तानी रूप से प्रभावित होने के कारण उसमें खड़ीबोली, ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी, फारसी आदि कई भाषाओं के शब्दों का सम्मिश्रण है, जिसे ‘सधुक्कड़ी’, ‘पंचमेल खिचड़ी’ आदि कहा जाता है। सरलता एवं सरसता उनकी भाषा की विशेषता है। वास्तव में वे भाषा के जादूगर थे।

कवि—संबंधी प्रशन एवं उत्तर

1. कबीरदास किस धारा तथा किस मार्ग के कवियों में सबसे प्रतिभाशाली कवि हैं?

उत्तरः कबीरदास निर्गुण भक्ति धारा तथा ज्ञानमार्ग के कवियों में सबसे प्रतिभाशाली कवि हैं।

2. कबीरदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तरः ऐसा माना जाता है कि कबीरदास का जन्म सन् 1398 में काशी में हुआ था। 

3. ‘कबीर’ शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?

उत्तर: ‘कबीर’ शब्द का शाब्दिक अर्थ — बढ़ा, श्रेष्ठ या महान है।

4. कबीरदास को लोककवि क्यों कहा जाता है? 

उत्तर: कबीरदास को लोककवि इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जनता के बीच रहकर, जनता की भाषा में मुख्य रूप से जनता की भलाई के लिए काव्य — रचनाएँ की हैं।

5. हिन्दी साहित्य – जगत में एक लोककवि के रूप में कबीरदास की तुलना किस अन्य कवि से की जाती है? 

उत्तरः हिन्दी साहित्य-जगत में एक लोककवि के रूप में कबीरदास की तुलना गोस्वामी तुलसीदास जी से की जाती है। 

6. कबीरदास का पालन-पोषण किसने किया था?

उत्तरः कहा जाता है कि कबीरदास का पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक मुसलमान जुलाहा दम्पति ने किया था।

7. कबीरदास ने आजीविका के रूप में किस पेशे को अपनाया? 

उत्तर: कबीरदास ने आजीविका के रूप में जुलाहा के पेशे को अपनाया।

8. कबीरदास जी के माता-पिता कौन थे?

उत्तर: कबीरदास जी की माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था, जो जुलाहा दंपति थे और कपड़ा बुनने का काम करते थे। 

9. कबीर शब्द का अर्थ क्या है? 

उत्तर: कबीर शब्द का अर्थ है – बड़ा, श्रेष्ठ, महान।

10. कबीरदास का विवाह किसके साथ हुआ था? 

उत्तरः लोगों की मान्यता के अनुसार कबीरदास का विवाह बनखंडी वैरागी की पालिता कन्या ‘लोई’ के साथ हुआ था।

11. कबीरदास को कितनी संतानें प्राप्त हुई? 

उत्तरः ऐसा माना जाता है कि कबीरदास को ‘कमाल’ और ‘कमाली’ नाम की दो संतानें प्राप्त हुई।

12. कबीरदास ने किनसे दीक्षा ली थी?

उत्तरः कबीरदास ने स्वामी रामानंद से दीक्षा ली थी। 

13. कबीरदास राम के किस स्वरूप के उपासक थे? 

उत्तरः कबीरदास राम के निर्गुण-निराकार स्वरूप के उपासक थे।

14. कबीरदास की वाणियों को किसने लिखित रूप दिया?

उत्तर: कबीरदास की वाणियों को उनके शिष्यों ने लिखित रूप दिया। 

15. कबीरदास की वाणियों का संग्रह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ?

उत्तर: कबीरदास की वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।

16. ‘बीजक’ के कितने भाग हैं तथा उनके नाम क्या हैं?

उत्तर: ‘बीजक’ के तीन भाग हैं तथा उनके नाम क्रमशः ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ हैं।

17. कबीरदास की रचनाओं को किस कारण ख्याति मिली हुई है?

उत्तरः कबीरदास की रचनाओं को अपने रचे जाने के समय से लेकर आज तक तथा आगे भी प्रासंगिक बने रहने के कारण ख्याति मिली हुई है। 

18. कबीरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से किन बुराइयों का विरोध किया है? 

उत्तरः कबीरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से धार्मिक और सामाजिक बुराइयों का विरोध किया है। 

19. कबीरदास ने अपनी रचनाओं में किन आदर्शों को अपनाने पर बल दिया है? 

उत्तर: कबीरदास ने अपनी रचनाओं में आंतरिक शुद्धता, निश्छल ईशवर-भक्ति और सच्चे मानव-प्रेम जैसे आदर्शों को अपनाने पर बल दिया है।

20. कबीर के काव्यों की भाषा को किन नामों से पुकारा जाता है? 

उत्तर: कबीर के काव्यों की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’, ‘पंचमेल खिचड़ी’ आदि नामों से पुकारा जाता है।

21. कबीर के काव्यों की भाषा किससे प्रभावित है?

उत्तरः कबीर के काव्यों की भाषा तत्कालीन हिन्दुस्तानी रूप से प्रभावित है। 

22. कबीर के काव्यों की भाषा में दूसरे किन-किन भाषाओं के शब्द मिलते हैं? 

उत्तर: कबीर के काव्यों की भाषा में खड़ीबोली, ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी, फारसी आदि कई भाषाओं के शब्द मिलते हैं।

23. कबीर की भाषा की विशेषता क्या है? 

उत्तरः कबीर की भाषा की विशेषता सरलता और सरसता है।

सारांश:

‘पद-युग्म’ शीर्षक के अंतर्गत संतकवि कबीरदास द्वारा रचित दो पदों का संग्रह किया गया है।

अपने पहले पद में उन्होंने आत्म-साधना के माध्यम से ईशवर की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रेरित करते हुए कहा है- हे मानव! तू अपने से बाहर परमात्मा को कहाँ ढूँढ़ रहा है। वे तो तुम्हारे हृदय-रूपी किले में निवास करते हैं। इसलिए उन्हें अपने से बाहर ढूँढ़ना व्यर्थ है। उनको खोजने वाला आंतरिक पवित्रता और निर्मल भक्ति द्वारा क्षणभर में अपने भीतर उन्हें पा लेता है। परमात्मा सभी जीवों के दिल की धड़कनों में बसते हैं।

दूसरे पद में कबीरदास अपने अनुभव के आधार पर विविध धर्म-सम्प्रदायों में प्रचलित बाह्याडम्बर और पाखण्डों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि तत्त्वज्ञान के बिना पूजा-पाठ आदि सब बेकार है। इससे कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता। तत्त्वबोध के अभाव में स्वयं के धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ बताना अज्ञानता जिसके फलस्वरूप साम्प्रदायिक झगड़े होते हैं। इसीलिए कबीरदास ने धार्मिक बाह्याडम्बर के भ्रम में नहीं पढ़ने तथा आंतरिक पवित्रता के माध्यम से अपने भीतर ही परम तत्त्व के दर्शन करने की सलाह दी है क्योंकि इसी रूप में ही सहज भाव से आत्मा – परमात्मा का मिलन होता है।

शब्दार्थ:

मोको : मुझे

बन्दे : दास, सेवक

भेंड़ी : मादा भेड़

छुरी : चाकू

गंड़ास : घास काटने का एक उपकरण

खाल : शरीर का ऊपरी आवरण, चमड़ा

पोंछ : पूँछ

देवल : मंदिर

मसजिद : मस्जिद

काबे : काबा (मुसलमानों का पवित्र तीर्थस्थान)

कौनों : कोई

कैलास : कैलाश पर्वत (हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थान)

क्रिया-कर्म : बाहरी आचार-अनुष्ठान

जोग : योग

बैराग : सांसारिक कार्यों से विरक्ति, वैराग्य

खोजी : तलाश

तुरतै : तुरंत

मिलिहाँ : मिलते हैं

तलास : तलाश

सहर : बाहरी दुनिया

पुरी : नगरी, निवास

मवास : किला, गढ़

साँसों की साँसों में : प्रत्येक जीव के दिल की धड़कनों में, प्रत्येक प्राणी के हृदय में

बौराना : पागल होना

साँच : सच 

मारन : मारना

धावै : दौड़ता है

पतियाना : विशवास करना

नेमी : नियमित रूप से पूजा-पाठ, जप आदि धार्मिक कृत्य करने वाला

धरमी : धार्मिक

असनाना : स्नान

आतम : आत्मा

पखानहि : पत्थर को  

कछु : कुछ

बहुतक : बहुत से

पीर : मुसलमानों का धर्म-गुरु

औलिया : मुसलमान संत

कितेब : किताब

कुराना : मुसलमानों का धर्म ग्रंथ

मुरीद : शिष्य

तदबीर : युक्ति, तरकीब, उपाय

उहै : वहो    

ज्ञाना : ज्ञान

डिंभ : अहंकार, दंभ                           

धरि : धारण कर

गुमाना : अहंकार

पीतर : पीतल की मूर्ति

पाथर : पत्थर 

छाप : धार्मिक चिह्न, जैसे वैष्णव अपने अंगों पर अंकिता करते है                 

तीरथ : पवित्र तीर्थ स्थान की यात्रा

पहिरे : पहनते हैं

साखी : कबीर द्वारा रचित ज्ञान संबंधी दोहे

सब्दहि : ब्रह्म-ज्ञान की बातें

गावत : गाता है

खबरि : रहस्य को

मोहि : मुझे

पियारा : प्यारा

तुर्क : मुसलमान

रहिमाना : रहीम 

दोउ : दोनों

मूए : मर गए

मंतर : मंत्र 

मर्म : रहस्य, भेद

काहू : किसी  

अभिमाना : अभिमान

सिख्य : शिष्य 

बुड़े : डूब गए 

पछिताना : पछताते है

ई : ये

भर्म : भ्रम

केतिक : कितिक

कहौं : कहो

नहिं : नहीं

सहजै सहज समाना : आंतरिक पवित्रता और निर्मल भक्ति के बल पर अपने भीतर सहज भाव से आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है।

पाठ् यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

बोध एवं विचार:

1. सही विकल्प का चयन कीजिए —

(क) ‘मोको कहाँ हुँदै बन्दे’- यहाँ ‘बन्दे’ शब्द का क्या अर्थ है?

(i) पुजारी।

(ii) दोस्त। 

(iii) सेवक। 

(iv) भगवान।

उत्तरः (iii) सेवक।

(ख) हिन्दुओं को कौन प्यारे हैं?

(i) खुदा।

(ii) राम।

(iii) तुर्क। 

(iv) रहीम।

उत्तरः (ii) राम।

2. निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दीजिए:

(क) ‘मैं तो तेरे पास में’– यहाँ ‘मैं’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? 

उत्तरः ‘मैं तो तेरे पास में’ – यहाँ’ में’ शब्द परमात्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है।

(ख) देवल या मसजिद में कौन नहीं रहता? 

उत्तरः देवल या मसजिद में भगवान नहीं रहते।

(ग) ‘खोजी’ कौन है? 

उत्तर: ‘खोजी’ सच्चे भक्त हैं।

(घ) तुर्कों को कौन प्यारे होते हैं?

उत्तरः तुर्कों को रहीम यानी अल्लाह प्यारे होते हैं।

(ङ) ‘मेरी पुरी मवास में’ – यहाँ ‘मेरी’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर: ‘मेरी पुरी मवास में’- यहाँ ‘मेरी’ शब्द भगवान के लिए प्रयुक्त हुआ है।

(च) पीर-औलिया क्या पढ़ते हैं? 

उत्तर: पीर-औलिया कुरान आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़ते हैं।

(छ) पीर-औलिया अपना मुरीद (शिष्य) किसे बनाते हैं?

उत्तरः पौर-आलिया अपना मुरीद (शिष्य) उन्हें बनाते हैं, जिनका उन पर पूरा भरोसा होता है, जो उनके बताए उपायों के अनुसार चलते हैं।

(ज) ‘छाप तिलक अनुमाना’ – यहाँ ‘छाप’ और ‘तिलक’ बाह्याडंबर के प्रतीक हैं या ज्ञान के?

उत्तर: ‘छाप तिलक अनुमाना’– यहाँ ‘छाप’ और ‘तिलक’ बाह्याडंबर के प्रतीक हैं। 

(झ) ‘आपस में दोउ लरि-लरि मुए’– यहाँ किनके बीच लड़ाई की बात की गयी है?

उत्तरः ‘आपस में दोउ लरि-लरि भुए’– यहाँ हिन्दू और मुसलमानों यानि दो सम्प्रदायों के बीच लड़ाई की बात की गयी है। 

(ञ) कबीरदास ने ‘भर्म’ किसे कहा है?

उत्तर: कबीरदास ने जाति-भेद, अस्पृश्यता, अहंकार, धार्मिक बाह्याडंबर आदि बुराइयों को’ भर्म’ कहा है।

3. निम्नलिखित प्रशनों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए—

(क) मनुष्य ईशवर को कहाँ-कहाँ खोजता है?

उत्तरः मनुष्य ईशवर को मंदिर, मसजिद आदि विभिन्न धार्मिक स्थलों पर खोजता है। परमात्मा की कृपा-दृष्टि के लिए कई हिंदू कैलास पर्वत पर जाते हैं तो मुसलमान मक्का शहर के काबा में जाते हैं।

(ख) मनुष्य ईशवर को पाने के लिए किस तरह के कर्मकांड करता है? 

उत्तर: मनुष्य ईशवर को पाने के लिए तरह-तरह के कर्मकांड करता है। जैसे मंदिर- मसजिद में भटकना, जप-तप करना, प्रातः उठकर स्नान करना, ईशवर के नाम पर पत्थर की मूर्ति की पूजा करना, कुरान आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़ना, चंदन-टीका लगाना आदि।

(ग) कबीरदास रचित पद की किन पंक्तियों में बलि-विधान का संकेत मिलता है? 

उत्तर: कबीरदास द्वारा रचित पद की निम्नलिखित पंक्तियों में बलि-विधान का संकेत मिलता है –

ना मैं बकरी ना मैं भेंड़ी, ना मैं छुरी गँड़ास में। 

नहीं खाल में नहीं पोंछ में, ना हडडी माँस में।

(घ) कबीरदास के अनुसार सच्चा खोजी ईशवर को कैसे पा लेता है? 

उत्तरः कबीर दास के अनुसार सच्चा खोजी ईशवर को तुरंत ही पा लेता है, क्योंकि वह सच्चे मन से ईशवर की भक्ति और खोज करता है।

(ङ) ईशवर का असली निवास स्थान कहाँ है? 

उत्तरः ईशवर का असली निवास स्थान मनुष्य की साँसों की तरह मनुष्य के अन्तःकरण में होता है।

(च) संत कबीरदास ने जग को बौराया हुआ क्यों कहा है? 

उत्तरः कबीरदास ने जग को बौराया हुआ कहा है क्योंकि ईशवर और धर्म के सच्चे मर्म को कहने पर जग वाले मारने दौड़ते हैं और झूठ कहने पर विशवास कर लेते हैं। लोग धर्म-ईशवरोपासना के नाम पर पाखंड और दिखावा करते हैं, लेकिन सच्चे तत्व को कोई भी स्वीकार करना नहीं चाहता है।

(छ) ‘साँच कहाँ तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना’ — कवि ने यहाँ किस सच और झूठ की बात कही है?

उत्तरः ‘साँच कहाँ तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना’ — कवि ने यहाँ सहज तथा आडंबरहीन ईशवर-भक्ति को सच और भक्ति के नाम पर किए जाने वाले पाखंड तथा आडंबर को झूठ कहा है। अर्थात् सच को संसार विशवास नहीं करता बल्कि झूठ को विशवास कर लेता है।

(ज) हिन्दू और मुस्लिम किन कारणों से आपस में लड़ते-मरते रहते हैं? उन्हें किस’ मर्म’ पर ध्यान देने की आवश्यकता है?

उत्तर: हिंदू और मुस्लिम अपने-अपने आराध्य राम और रहीम को लेकर आपस में लड़ते-मरते रहते हैं। हिंदू अपने धर्म को बड़ा कहता है और मुस्लिम अपने धर्म को। दोनों अहंकार और बाह्याडंबर के कारण आपस में लड़ जाते हैं। वे यह ‘मर्म’ नहीं समझ पाते कि परमात्मा एक ही है। राम और रहीम दो नहीं, एक हैं। इसी मर्म पर उन्हें ध्यान देने की आवश्यकता है।

(झ) कबीरदास के अनुसार कैसे गुरु-शिष्य अंतकाल में पछताते हैं? इस पछतावे का कारण क्या है?

उत्तरः कबीरदास के अनुसार अपने घमंड में चूर रहने वाले गुरु-शिष्य अंतकाल में पछताते हैं। ऐसे गुरु-शिष्य को परमात्मा के दर्शन नहीं होते। उन्हें सच्चा ज्ञान नहीं मिलता। कबीरदास के अनुसार इस पछतावे का कारण गुरु-शिष्य की अज्ञानता है। गुरु परम-तत्व से अनभिज्ञ होकर भी शिष्यों को मिथ्या गुरु-मंत्र देते फिरते हैं।

(ञ) धार्मिक बाह्याचारों का विरोध करते हुए कबीरदास ने किस पर ध्यान देने की बात की है?

उत्तरः धार्मिक बास्याडंबरों का विरोध करते हुए कबीरदास जी ने दिखावा न करके ईशवर की सच्ची और सहज भक्ति पर ध्यान देने की बात कही है। कबीरदास जी का कहना है कि ईशवर का निवास न तो मंदिर, मस्जिद में और न ही योग-वैराग्य में है। ईशवर की प्राप्ति के लिए न तो धार्मिक कर्म-कांड करने की आवश्यकता है और न ही तीर्थाटन की। ईशवर की उपासना तो सहज ढंग से करनी चाहिए।

4. आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) ना तो कौनो क्रिया कर्म में ना ही जोग बैराग में?

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय – पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ की ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से ली गयी है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास है।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि किसी धार्मिक क्रिया, कर्मकांड, योग-साधना या साधु-संन्यासी बनने से ईशवर की प्राप्ति नहीं होती। ईशवर सर्वव्यापी और निराकार है। अतः ईशवर की प्राप्ति के लिए बाह्याडंबर करना व्यर्थ है।

(ख) खोजी होय तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय – पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ की ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि ईशवर को खोजने वाला व्यक्ति आत्म-साधना के माध्यम से क्षणभर में अपने भीतर उन्हें पा लेता है क्योंकि ईशवर कहीं बाहर नहीं बल्कि हमारे हृदय रूपी किले में रहते हैं। अर्थात् स्वच्छ हृदय वाला ही परमात्मा के दर्शन पाता है।

(ग) आतम मारि पखानहि पूजै उनमें कछु नहिं ज्ञाना?

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय–पुस्तक ‘ अंबर भाग-2’ की ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि अंतरात्मा की अवहेलना कर बाह्याडम्बर के भ्रम में पड़ना अज्ञानता है, क्योंकि तत्त्वबोध के अभाव में सभी प्रकार की धार्मिक गतिविधियाँ केवल दिखावे के लिए हैं। इनसे किसी प्रकार का कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता।

5. निम्नलिखित प्रशनों के सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) कबीरदास के अनुसार हमें अपने आराध्य को कहाँ-कहाँ खोजने की आवश्यकता नहीं है?

उत्तरः कबीरदास के अनुसार हमें अपने आराध्य यानी ईशवर को बाहरी माध्यमों से अन्यत्र खोजने की आवश्यकता नहीं है। हमारे आराध्य सर्वव्यापी हैं और हम सबके हृदय में निवास करते हैं। अपनी आंतरिक पवित्रता के बल पर हम अपने परमात्मा को सहज ही खोज सकते हैं।

(ख) संत कबीरदास द्वारा रचित द्वितीय पद में वर्णित बाह्याडंबरों का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर: कबीरदास ने अपने द्वितीय पद में बाह्याडंबरों का उल्लेख करते हुए कहा है कि अंतरात्मा की अवहेलना कर नियम-धर्म का पालन करना, तथा विभिन्न तरह के क्रिया कर्म को संपादित करना व्यर्थ है। तत्त्वज्ञान के अभाव में सभी प्रकार की धार्मिक गतिविधियाँ सिर्फ दिखावे भर रह जाती है और उनसे किसी प्रकार का कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता है।

(ग) कबीरदास ने ईशवर-प्राप्ति का कौन-सा सहज उपाय बताया है? 

उत्तर: कबीरदास ने अपने पद में ईशवर-प्राप्ति के बारे में उल्लेख करते हुए कहा है कि ईशवर की भक्ति सहज रूप से करनी चाहिए। ईशवर सभी प्राणियों में उसकी साँसों की तरह विद्यमान हैं। इसलिए मनुष्य अपने अंतःकरण की पवित्रता के माध्यम से ही अपने भीतर उस परमतत्त्व के दर्शन कर सकता है क्योंकि इसी रूप में सहज भाव से आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है।

6. सप्रसंग व्याख्या कीजिए— 

(क) ना मैं देवल ना मैं मसजिद……….. सब साँसों की सांस में।

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पदयांश हमारी पाठय-पुस्तक’ अंबर भाग-2′ की ‘पद-युग्म ‘ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं। इस पदयांश में बताया गया है कि हमें अपने आराध्य प्रभु को केवल मंदिर, मस्जिद या अलग-अलग तीर्थस्थानों में या अन्यत्र खोजने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वे हमारे साथ-साथ सभी प्राणियों के दिल की धड़कनों में निवास करते हैं।

व्याख्या: कबीरदास का कहना है कि हमारे आराध्य प्रभु किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय तक सीमित नहीं हैं। वे हमारे हृदय रूपी किले में सदैव विराजमान रहते हैं। उनको खोजनेवाला आत्म-साधना के बल पर क्षणभर में अपने भीतर पा लेता है। कवि कहते हैं कि परमात्मा हमारे साथ-साथ सभी जीवों के दिल की धड़कनों में निवास करते हैं, इसलिए उन्हें अपने से बाहर अन्यत्र खोजने की आवश्यकता नहीं है।

(ख) संतो देखत जग………  उनमें कछु नहिं ज्ञाना?

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पदयांश हमारी पाठय-पुस्तक’ अंबर भाग-2′ के ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं। इस पदयांश में सामाजिक बुराइयों पर करारा प्रहार करते हुए बताया गया है कि लोग झूठी बात पर तुरंत विशवास कर लेते हैं लेकिन सच्ची बात कहने वाले की बात कोई नहीं सुनता क्योंकि लोग किसी बात का आत्म-विवेचन नहीं करते हैं।

व्याख्याः कबीरदास का कहना है कि इस संसार के लोग पागल हैं। इस समाज के लोग सच कहने वाले को मारने के लिए दौड़ते हैं, लेकिन झूठी बातों पर तुरंत विशवास कर लेते हैं। इस समाज में नियमपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले ऐसे लोग हैं, जो सुबह स्नान करके पत्थर की मूर्ति की पूजा तो करते हैं, लेकिन वे लोग आत्मा के स्वरूप को बिल्कुल नहीं जानते हैं।

(ग) बहुतक देखा………… उनमे उहै जो ज्ञाना?

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पदयांश हमारी पाठय-पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ की ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास है। इस पदयांश में बताया गया है कि धर्म-गुरु अपनी-अपनी जानकारी और ज्ञान के आधार पर ईशवर की व्याख्या करते हैं, लेकिन वे स्वयं ईशवर के बारे में नहीं जानते हैं।

व्याख्या: कबीरदास का कहना है कि यह संसार पाखंड से भरा है। इस संसार में कई ऐसे धार्मिक गुरु हैं, जो अपने धार्मिक ग्रंथ पढ़ते रहते हैं और समाज के लोगों को ज्ञान का उपदेश भी देते रहते हैं। लेकिन ऐसे तथाकथित धर्म-गुरु भ्रम जाल में पड़कर स्वयं भी ईशवर को नहीं जान पाते हैं। अर्थात् तत्वज्ञान के बिना धर्म-गुरु अपने शिष्य को सही रास्ता नहीं दिखा सकता।

(घ) हिन्दु कहै मोहिं राम पियारा……. सहजै सहज समाना। 

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पदयांश हमारी पाठय-पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं। इस पदयांश में धार्मिक बाह्याडम्बर के कारण अलग-अलग धर्मों के बीच पैदा होनेवाले आपसी वैमनस्य पर प्रकाश डालते हुए बताया गया है कि पवित्र मन से की जानेवाली निर्मल भक्ति के बल पर सहजतापूर्वक आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है।

व्याख्या: यहाँ कबीरदास का कहना है कि तत्त्वबोध के अभाव में विभिन्न सम्प्रदाय के लोग अपने-अपने धर्म-सम्प्रदाय में प्रचलित बाह्याचार के भ्रम में पड़कर स्वयं के धर्म और ईशवर को दूसरे से श्रेष्ठ समझने लगते हैं। इसीलिए कवि इन बाह्याचारों के भ्रम से बाहर निकलकर तत्त्वज्ञान पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि हमारे उपास्य प्रभु इन धार्मिक आडम्बरों में नहीं बल्कि हमारे हृदय के भीतर हैं। जिन्हें हम आंतरिक पवित्रता और निर्मल-भक्ति के बल पर अपने अंदर ही देख सकते हैं, क्योंकि इसी रूप में सहज भाव से आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है।

भाषा एवं व्याकरण

(क) निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए—

जोग, आतम, पखान, तीरथ, असनान, डिंभ, मंतर, सिख्य, धर्म

उत्तर: 

शब्दतत्सम रूप
जोगयोग
आतमआत्मा
पखानपत्थर
तोरथतीर्थ
असनानस्नान
डिंभदंभ
मंतरमंत्र
सिख्यशिष्य
भर्मभ्रम

(ख) पदों में आए विदेशज (आगत) शब्दों को चुनकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तरः मसजिद (मस्जिद): मस्जिद में लोग नमाज पढ़ते हैं।

काबा (मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थान): काबा एक पवित्र तीर्थस्थान है।

तलास (तलाश): पुलिस चोरों की तलाश कर रही है।

छुरी (चाकू): कपटी मित्र मीठी छुरी से वार करते हैं।

सहर (शहर): गुवाहाटी एक बड़ा शहर है।

पीर (मुसलमानों के धर्मगुरु): पीर धर्म की शिक्षा देते हैं। 

औलिया (मुसलमान संत): औलिया लोगों की भलाई का कार्य करते हैं।

मुरीद (शिष्य): अमीर खुसरू शेख निजामुद्दीन औलिया के मुरीद थे। 

तदबीर (युक्ति): आखिरकार जावेद ने इस मुसीबत से बाहर निकलने की तदबीर खोज ही ली है।

किताब (पुस्तक): किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त हैं।

कुरान (मुस्लिम धर्म का धार्मिक ग्रंथ): कुरान एक धार्मिक एवं पवित्र ग्रंथ है।

(ग) कारक-रूप स्पष्ट कीजिए–

मोको, बन्दे, नेमी, पखानहि, मोहिं, संतो

उत्तरः    

शब्दकारक – रूप
मोकोकर्म कारक
बन्देसंबोधन कारक
नेमीसंबंध कारक
पखानहिकर्म कारक
मोहिंकर्म कारक
संतोसंबोधन कारक

(घ) आधिक्य, सामीप्य, ओर, इच्छा प्रकट करना इत्यादि अर्थों में ‘अभि’ उपसर्ग का प्रयोग होता है, जैसे-अभिमान। ‘अभि’ उपसर्ग वाले पाँच शब्द लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।

उत्तरः अभिप्राय (अभि + प्राय): पुलिस को इस घटना के संबंध में तुमसे पूछताछ करने का अभिप्राय क्या था?

अभियान (अभि + यान): सरकार ने गरीबी उन्मूलन का अभियान तेज कर दिया है।

अभीष्ट (अभि + इष्ट): कठिन तपस्या से हो अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

अभ्यास (अभि + आस): अभ्यास के द्वारा कठिन–से–कठिन विद्या सीखी जा सकती है।

अभिमान (अभि + मान): किसी को अपनी सुन्दरता पर अभिमान करना शोभा नहीं देता।

(ङ) निम्नलिखित शब्दों से ‘इमा’ प्रत्यय को अलग कीजिए– 

महिमा, लघिमा, रक्तिमा, जड़िमा, नीलिमा

उत्तरः महिमा = मह + इमा

लघिमा = लघु + इमा

रक्तिमा = रक्त + इमा

जड़िमा = जड़ + इमा 

नीलिमा = नीला + इमा

योग्यता-विस्तार

(क) कबीरदास जी द्वारा विरचित निम्न पदों को पढ़िए और समझिए–

1. चदरिया झीनी रे झीनी

काहे के ताना काहे के भरनी

कौन तार से बीनी, चदरिया… ।

इंगला-पिंगला ताना भरनी

सुसमन तार से बीनी,

आठ कँवल दल चरखा डोलै

पाँच तत्त्व गुन तीनी, चदरिया..।

साईं को सियत मास दस लागे 

ठोक-ठोक के बीनी

सो चादर सुरनर मुनि ओदिन

ओड़ के मैली कीनी 

दास कबीर जतन से ओदिन

ज्यों की त्यों धर दीनी, चदरिया…। 

उत्तरः छात्रगण शिक्षकों की मदद लें।

2. पानी बिच मीन पियासी 

मोहिसुन-सुन आवै हाँसी 

घर में वस्तु नजर नहि आवत 

बन-बन फिरत उदासी 

आतमज्ञान बिना जग झूठा 

क्या मथुरा क्या कासी॥ 

उत्तर: छात्रगण शिक्षकों की मदद लें।

(ख) ज्येष्ठ पूर्णिमा को कबीर जयंती मनाई जाती है। सहपाठियों की मदद से अपने विद्यालय में कबीर जयंती मनाते हुए महात्मा कबीरदास पर भाषण, निबंध-लेखन, पदों के गायन और साखियों को लेकर अंत्याक्षरी की प्रतियोगिताएँ आयोजित कीजिए।

उत्तर: छात्रगण शिक्षकों की मदद लें।

(ग) संत कबीरदास ने हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के धार्मिक बाह्याडंबरों का खंडन किया है। ऐसे चार दोहों/ साखियों का संग्रह करके अपने शिक्षक को दिखाइए।

उत्तरः छात्रगण स्वयं करें।

(घ) अपने शिक्षक की सहायता से निम्नलिखित साखी का आशय समझ लीजिए: 

लाली मेरे लाल की जित देखौं तित लाल। 

लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल॥

उत्तरः प्रस्तुत साखी के जरिए कबीरदास जी ने ईशवर की महिमा का गुणगान किया है। मुझे हर जगह ईशवरीय ज्योति दिखती है-अंदर बाहर हर जगह । लगातार ऐसी दैवी ज्योति देखते-देखते, मैं भी ईशवरीय हो गयी हूँ। अर्थात् उनके नयन और हृदय में ईशवर का निवास है, इसलिए उनकी दृष्टि सदा ईशवर पर ही रहती है।

(ङ) असम के महापुरुष शंकरदेव ने ‘कीर्तन-घोषा’ में कबीरदास जी के गीत-पदों की लोकप्रियता को ध्यान में रखकर लिखा है- “उरेखा वाराणसी ठावे ठावे। कबीर गीत शिष्टसवे गावे ।।” दोनों संतों के आपसी संबंध के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास कीजिए। 

उत्तरः परीक्षोपयोगी नहीं है।

अतिरिक्त प्रश्न एवं उत्तर

वैकल्पिक प्रशन:

(क) कबीर के अनुसार ईशवर कहाँ रहते हैं?

(i) मंदिर में।

(ii) मस्जिद में।

(iii) हर प्राणी की साँस में।

(iv) काबा कैलास में।

उत्तरः (iii) हर प्राणी की साँस में।

(ख) कबीरदास ने जग को बौराया हुआ क्यों कहा है?

(i) क्योंकि सच को कोई विशवास नहीं करता।

(ii) क्योंकि झूठ को कोई विशवास नहीं करता।

(iii) क्योंकि संसार में संत-महात्मा की बातें नहीं मानी जातीं। 

(iv) क्योंकि सच कहने पर सब मारने दौड़ते हैं और झूठ कहने पर विशवास कर लेते हैं।

उत्तरः (iv) क्योंकि सच कहने पर सब मारने दौड़ते हैं और झूठ कहने पर विशवास कर लेते हैं।

(ग) अंतकाल कौन पछताता है?

(i) अहंकारी।

(ii) नेमी।

(iii) तुर्क।

(iv) हिंदू।

उत्तर: (i) अहंकारी।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

1. ‘ना तो कौनों क्रिया कर्म में – यहाँ क्रिया-कर्म से कवि का तात्पर्य क्या है?

उत्तर: ‘ना तो कौनों क्रिया कर्म में – यहाँ क्रिया–कर्म से कवि का तात्पर्य ईशवर को प्राप्त करने के लिए विविध धर्म-सम्प्रदायों में प्रचलित बाहरी आचार-अनुष्ठान हैं।

2. कबीरदास के अनुसार किस कारण लोग बाह्याचार के भ्रम में पड़ जाते हैं? 

उत्तर: कबीरदास के अनुसार जीव और ब्रह्म के संबंध का ज्ञान नहीं होने के कारण लोग बाह्याचार के भ्रम में पड़ जाते हैं।

3. द्वितीय पद में उल्लिखित ‘मर्म’ शब्द का अर्थ क्या है? 

उत्तरः द्वितीय पद में उल्लिखित ‘मर्म’ शब्द का अर्थ रहस्य (आत्मा का) है। 

4. ‘सहजै सहज समाना’ का आशय क्या है?

उत्तरः ‘सहजै सहज समाना’ का आशय यह है कि आंतरिक पवित्रता से निर्मल भक्ति के बल पर हम अपने भीतर ही परम तत्त्व का दर्शन कर सकते हैं क्योंकि इसी रूप में सहज भाव से आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है।

5. कबीरदास ने धार्मिक बाह्याडंबर के बदले कैसे भक्ति करने की सलाह दी है? 

उत्तर: कबीरदास ने धार्मिक बाह्याडंबर के बदले सहज रूप से और सच्चे हृदय से परमात्मा की उपासना करने की सलाह दी है।

6. कबीरदास जी कवि और संत के अलावा और क्या थे?

उत्तरः कबीरदास जी कवि और संत के अलावा एक समाज सुधारक भी थे।

आशय स्पष्ट कीजिए–

1. कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसों की साँस में?

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ की ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि ईशवर किसी जाति, धर्म, तीर्थस्थान, सम्प्रदाय, कुल-विशेष अथवा शिक्षा आदि से संबंधित नहीं है। वह ‘एक’ और ‘स्वतंत्र’ है और वही सभी प्राणियों के दिल की धड़कनों में व्याप्त है।

2. कैे मुरीद तदबीर बतावै, उनमें उहै जो ज्ञाना।

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय-पुस्तक ‘ अंबर भाग-2’ की ‘पद-युग्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि तात्त्विक ज्ञान से अनभिज्ञ लोगों द्वारा अपने-अपने धर्म और सम्प्रदाय में फैले बाह्याचारों का पालन-पोषण किया जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि ये अपने साथ-साथ अन्य लोगों को भी आडम्बर और पाखण्ड के गडढे में गिरा देते हैं। तत्त्वज्ञान के अभाव में ये लोग परम तत्त्व के दर्शन से वंचित रह जाते हैं और अंतकाल में उन्हें पछताना पड़ता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रशन

1. संत कबीरदास का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय प्रस्तुत कीजिए? 

उत्तर: संत कबीरदास निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञानमार्गी कवियों में सबसे प्रतिभाशाली कवि हैं। वे राम के निर्गुण-निराकार स्वरूप के उपासक थे। हिन्दी साहित्य-जगत् में उनकी छवि एक लोकप्रिय और लोकनायक कवि के रूप में रही है, क्योंकि उन्होंने जनता के बीच रहकर, जनता की भाषा में मुख्य रूप से जनता की भलाई के लिए काव्य रचनाएँ की थीं।

कबीरदास ने अपनी कवित्व प्रतिभा दिखाने के लिए कविता नहीं की थी। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ देखा, सुना और महसूस किया, उसे लोगों तक पहुँचाने के प्रयास में उनके मुँह से जो भी काव्यमयी वाणी निकली, वही कविता है, जिसे बाद में उनके शिष्यों ने लिखित रूप देकर ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संगृहीत किया। इस ग्रंथ के तीन भाग हैं- ‘साखी’ ‘सबद’ और ‘रमैनी’।

कबीरदास की रचनाओं की भाषा सरस एवं सरल होने के साथ-साथ तत्कालीन हिन्दुस्तानी रूप से प्रभावित है, जिसके कारण उसमें खड़ीबोली, ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी, फारसी, आदि कई भाषाओं के शब्द मिलते हैं। वे वास्तव में भाषा के जादूगर थे। विद्वानों ने इस भाषा को ‘सधुक्कड़ी’, ‘पंचमेल खिचड़ी’, आदि की उपाधि से विभूषित किया है।

कबीरदास की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से धार्मिक बाह्याडम्बर, जाति-भेद, छुआ-छूत, अंहकार, आदि बुराइयों का विरोध करने के साथ ही आंतरिक पवित्रता, निर्मल ईशवर–भक्ति और सच्चे मानव-प्रेम का संदेश दिया है, जो हमारी धर्मनिरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को मजबूत करता है। 

2. पठित पाठ के आधार पर कबीरदास की धार्मिक भावना का वर्णन कीजिए।

उत्तर: संत कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से धार्मिक बास्याडंबर, जाति-भेद, संप्रदायवाद, अस्पृश्यता आदि बुराइयों का विरोध किया है और समानता, सांप्रदायिक सदभाव एकैशवरवाद तथा आडंबरहीन सहज ईशवर-भक्ति पर बल दिया है। राम और रहीम दो नहीं बल्कि एक है। धर्म और संप्रदाय के आधार पर समाज में विभेद पैदा करना और विद्वेष फैलाना बिलकुल गलत है। इसी प्रकार धार्मिक क्रिया-कर्म के नाम पर दिखावा करना भी बेकार है। कबीरदास के अनुसार हमें जीवन और मन की पवित्रता पर ध्यान देना चाहिए और सहज भाव से एक ही निराकार ब्रह्म की उपासना करनी चाहिए, जो प्रत्येक जीवात्मा में निवास करता है।

3. कबीरदास की प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। 

उत्तरः पठित पाठ के आधार पर हमें पता चलता है कि कबीरदास जी कवि और संत होने के साथ ही साथ एक महान समाज सुधारक भी थे। वे एक ऐसे क्रांतिकारी लोककवि थे, जिन्होंने जनता के बीच रहकर जनता की भाषा में जनता की भलाई के लिए काव्य रचना की थी। इनकी रचनाएँ तब भी प्रासंगिक थीं, आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी प्रासंगिक रहेंगी, क्योंकि ये उच्च आदर्शगत जीवन-मूल्यों का संदेश देती हैं और सांप्रदायिक सदभावना तथा भाईचारे को बढ़ावा देती हैं।

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