आदर्श विद्यार्थी – रचना | Aadarsh Bidyaarthee Rachana

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आदर्श विद्यार्थी

जो ज्ञान की खोज में रहता है, जिसमें विद्या की ललक रहती है, जो नाना प्रकार के ज्ञान-विज्ञान को सीखने में लगा रहता है और जो अध्ययन मनन में लीन रहता है, वह विद्यार्थी है जो अपनी सुख-सुविधाओं की परवाह न करके अपने उद्देश्य में पूरी तरह जुटा रहता है, वह आदर्श विद्यार्थी है। इस प्रकार विद्यार्थी जीवन एक साधना काल है और जो विद्यार्थी सच्ची साधना में लीन रहता है, वह आदर्श विद्यार्थी है।

आदर्श विद्यार्थी पढ़ाई में आगे रहता है, पीछे नहीं। वह अध्यापकों से शिक्षा लेता है, उनके अनुभव से लाभ उठाता है। वह पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करता है और अपने | साथियों से बहुत कुछ सीखता है। वह ज्ञान पुजारी होता है जहाँ से ज्ञान मिले, प्राप्त करता है। वह सच्चे अर्थों में ज्ञान का पिपासु है।

आदर्श विद्यार्थी के सामने एक निश्चित भविष्य होता है, एक निश्चित ध्येय होता है कि उसे क्या करना है, क्या बनना है और उस पर जुट जाता है। वह अपने वर्तमान को | सँवारता है जिसके आधार पर भविष्य का निर्माण करता है। वह एक ध्येय में विश्वास रखता है। वह अपने निरन्तर श्रम के बल पर उसे पा ही लेता है।

आज शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं की जाती, बल्कि उसके अन्य अंग भी हैं। पुस्तकीय ज्ञान तो रटंत विद्या का नाम है जो जीवन की व्यावहारिकता से दूर है। अतः इसमें अन्य गतिविधियों का भी स्थान है। इस दृष्टि से आदर्श विद्यार्थी को खेल-कूद, वाद-विवाद प्रतियोगिता, बाल संसद, साहित्य व कला, विज्ञान प्रतियोगिता आदि में भी भाग लेना चाहिए। वह हर क्षेत्र में अपनी बुद्धि व प्रतिभा का चमत्कार दिखाता है।

यह ठीक है कि आज का जीवन ही नहीं, हमारे जीवन के मानदण्ड भी बदल गए हैं। आज हमारा जीवन स्तर बहुत ऊँचा उठ गया है, हमारी आवश्यकताएँ बढ़ गई हैं। फिर भी आदर्श विद्यार्थी का आदर्श नहीं बदला है। उसका आदर्श है उपलब्धि। उसे प्रलोभनों में नहीं फंसना है। उसे मनोरंजन में नहीं बहकना है, उसे प्रदर्शन ठाठ-बाट, शान-शौकत में नहीं खोना है। उसे तो सादा जीवन, उच्च विचार के सिद्धान्त को ही अपनाना होगा तभी सफलता उसका वरण करेगी।

आदर्श विद्यार्थी का एक गुण यह भी है कि वह अनुशासनप्रिय होता है। वह घर पर ही नहीं अपितु स्कूल में भी अनुशासन का पालन करता है। वह हर काम समय पर करता है। वह गुरुजनों व साथियों के साथ कभी अशीष्टता नहीं दिखाता। वह सच्चे अर्थों में आज्ञापालक है। वह संयमी तथा आत्म नियन्त्रण में रहता है।

आदर्श विद्यार्थी अध्यापकों का आदर करता है तथा उनकी आज्ञा का पालन करता है। जो विद्यार्थी आज्ञाकारी होता है वह पहले ही सीख लेता है कि गुरुओं का आदर करके ही कुछ सीखा जा सकता है, ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वैसे भी जो विद्यार्थी कथनी और करनी में अन्तर नहीं करता वह अवश्य ही सदाचारी होता है।

आदर्श विद्यार्थी समय का पाबंद होता है। वह जल्दी सोता है तथा सुबह जल्दी उठता है और अपने काम में कुशल होता है। वह नियमित रूप से अपने अध्ययन में व्यस्त रहता है। इसके अलावा वह धुन का पक्का और व्यवहार कुशल भी होता है। जो विद्यार्थी अपने अंदर ऐसे कुशल गुणों का विकास कर लेते हैं, वे आदर्श होते हैं तथा देश व समाज को आगे बढ़ाते हैं।

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